@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: मंजिलों से तो मुलाक़ात अभी बाकी है.... शतकीय नमन ....

सोमवार, 25 अगस्त 2008

मंजिलों से तो मुलाक़ात अभी बाकी है.... शतकीय नमन ....

अनवरत का यह सौवाँ आलेख है। 20 नवम्बर 2007 को प्रारंभ हुई यह यात्रा सौवेँ पड़ाव तक कैसे पहुँचा? कुछ भी पता न लगा। स्वयँ को अभिव्यक्त करते हुए, दूसरे ब्लागरों को पढ़ते हुए, विचारों को आपस में टकराते हुए, नए मित्रों को अपने जीवन में शामिल करते हुए, कुछ सीखते हुए, कुछ बताते हुए और कुछ बतियाते हुए....

यह यात्रा अनंत है, चलती रहेगी, अक्षुण्ण जीवन की तरह ... अनवरत...
इस आलेख पर कुछ कहने को विशेष नहीं इस के सिवा कि सभी ब्लागर साथियों का खूब सहयोग मिला। उन का भी जिन्हों ने कभी आ कर मुझ से असहमति जाहिर की। सहमति से भले ही उत्साह बढ़ता हो, मगर असहमति उस से अधिक महत्वपूर्ण है, वह विचारों को उद्वेलित कर नया सोचने को बाध्य करती है, विचार प्रवाह को तीव्र करती है।
सहयोगी और मित्र साथियों के नामों का उल्लेख इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि किसी न किसी के छूट जाने का खतरा अवश्यंभावी है। सभी साथियों को शतकीय नमन!

इस अवसर पर कुछ और न कहते हुए पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की ग़जल के माध्यम से अपनी बात रख रहा हूँ.....
मंजिलों से तो मुलाक़ात अभी बाकी है
पुरुषोत्तम 'यक़ीन'

*
सो न जाना कि मेरी बात अभी बाक़ी है
अस्ल बातों की शुरुआत अभी बाक़ी है
**
तुम समझते हो इसे दिन ये तुम्हारी मर्ज़ी
होश कहता है मेरा रात अभी बाक़ी है 

***
ख़ुश्बू फैली है हवाओं में कहाँ सोंधी-सी
वो जो होने को थी बरसात अभी बाक़ी है 

****
घिर के छाई जो घटा शाम का धोका तो हुआ
फिर लगा शाम की सौग़ात अभी बाक़ी है 

*****
खेलते ख़ूब हो, चालों से तुम्हारी हम ने
धोके खाये हैं मगर मात अभी बाक़ी है 

******
जो नुमायाँ है यही उन का तअर्रुफ़ तो नहीं
बूझना उन की सही ज़ात अभी बाक़ी है 

*******
रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो मुलाक़ात
अभी बाकी है
**************

28 टिप्‍पणियां:

Tarun ने कहा…

ख़ुश्बू फैली है हवाओं में कहाँ सोंधी-सी
वो जो होने को थी बरसात अभी बाक़ी है

रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है

क्या बात कही है, आप को शतक लगाने की बधाई

अनूप शुक्ल ने कहा…

आपको सैकड़ा पूरा करने की बधाई। कई सैकड़े बनें आपके। शुभकामनायें।

Yunus Khan ने कहा…

एक उल्‍लेखनीय और सार्थक सैकड़ा । शुभकामनाएं

Smart Indian ने कहा…

शतक लगाने के अवसर पर ढेरों शुभकामनाएं! इतने विचारोत्तेजक पोस्ट्स लिखने के लिए आप बधाई के पात्र हैं. कविता भी बहुत सुंदर है: "धोके खाये हैं मगर मात अभी बाक़ी है"

Satish Saxena ने कहा…

शुभकामनायें द्विवेदी जी ! आप हिन्दी ब्लॉगजगत की शोभा हैं |

लोकेश Lokesh ने कहा…

शतक हेतु बधाई और अगले पड़ाव की शुभकामनायें

Arvind Mishra ने कहा…

बहुत बहुत बधाई ! पुरुषोत्तम यकीन की गजल इस शतकीय आयोजन को यकीनन और भी गरिमामय बना गयी है .आप सहर्ष शत सहस्त्र आलेख पूरा करें और हिन्दी ब्लॉग जगत के शलाका पुरूष बनें यही कामना है !

बेनामी ने कहा…

दिनेशरायजी को हार्दिक शुभकामना | अफलातून

रंजू भाटिया ने कहा…

बहुत बहुत शुभकामनाएं। यूँ ही लिखते रहे

रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत सुखद एक पड़ाव पार करने पर। हजारों और लेख आने हैं।
एक बैलेन्स्ड ब्लॉगर का अचीवमेण्ट बहुत अच्छा लगता है। बहुत बधाई।

Priyankar ने कहा…

अग्रज दिनेशराय द्विवेदी जी को सौवीं पोस्ट के पड़ाव पर पहुंचने की बधाई ! और आगे ऐसे सैकड़ों पड़ाव पार करने हेतु शुभकामनाएं .

rakhshanda ने कहा…

सो न जाना कि मेरी बात अभी बाक़ी है
अस्ल बातों की शुरुआत अभी बाक़ी है
**
तुम समझते हो इसे दिन ये तुम्हारी मर्ज़ी
होश कहता है मेरा रात अभी बाक़ी है
वाह दानिश जी , बेहद खूबसूरत, एक एक लफ्ज़ दिल को छूता सा जारहा है,
******
जो नुमायाँ है यही उन का तअर्रुफ़ तो नहीं
बूझना उन की सही ज़ात अभी बाक़ी है
*******
रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है

क्या बात है, आपने बेहद अच्छी ग़ज़ल लिखी, आपकी काबलियत तो हैरान करती है, ग़ज़ल भी इस कदर दिलकश लिख सकते हैं?

Waterfox ने कहा…

बहुत बहुत बधायी.
'अभी तो नापी है मुठ्ठी भर ज़मीन, अभी तो आसमान बाकी है'

Radhika Budhkar ने कहा…

Bahut Bahut Badhai

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

इस शतकीय लेख के लिए बधाई और शुभकामनाएं !
बहुत ही उपयोगी लेख होते हैं आपके ! ईश्वर करे
अभी आप ढेरों शतक लगाए ! प्रणाम !

pallavi trivedi ने कहा…

रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है
sundar ghazal....shatak ki badhai...

विष्णु बैरागी ने कहा…

बहुत-बहुत बधाइयां । यह तो पहली शतक है । शतकों की शतक बाकी है अभी ।
हार्दिक शुभ-कामनाएं ।

Anwar Qureshi ने कहा…

haardik shubkaamnayen ...likhte rahiye ...aap se bahut kuch sekhne ko mita hai anwarat rahiye ..thnx

Ashok Pandey ने कहा…

सौवें आलेख के लिए बधाई। शुभकामनाएं कि आप यूं ही मंजिल दर मंजिल आगे बढ़ते जाएं।

संगीता पुरी ने कहा…

रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है
बहुत अच्छा लिखा है।

Manish Kumar ने कहा…

बधाई इस सैकड़े के लिए। यकीन साहब की ग़ज़ल बेहद पसंद आई।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

"अनवरत" की यात्रा का १०० वाँ सोपान है !
बधाई हो.!!
.मँज़िलेँ और भी हैँ
-लावण्या

Asha Joglekar ने कहा…

Badhaee aapko sau aalekh poore hone par. jiasa aapne kaha hai ki ye to shuruwat hai.
Gazal wakaee bahut badhiya padhwaee aapne. Dhanyawad.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

कृपया हेलमेट उतारकर, बल्ला लहराइए। हम सभी “स्टैण्डिंग ओवेशन” देने के लिए ‘ब्लॉगर दीर्घा’ में खड़े हो चुके हैं।

बधाई, बधाई, बधाई...

Abhishek Ojha ने कहा…

बधाई और शुभकामनायें ! आशा है ऐसे ही ज्ञानवर्धन होता रहेगा.

अजित वडनेरकर ने कहा…

हमारे बीच आप जैसे व्यक्तित्व हैं , सोच कर अच्छा लगता है और इसका गर्व भी है।
ब्लाग-जगत में संतुलन बनाए रखनें में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है । कई अवसरों पर जहां अन्य मौन रह जाते है , आपकी मुखर , समझदार, सद्भावी टिप्पणी माहौल को हराभरा कर जाती है।
ऐसे कई शतक अभी लगने हैं। आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं....

रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है

यक़ीन साहब की ग़ज़ल जबर्दस्त है। अगर भूल नहीं रहा हूं तो कोटा निवासी ही हैं न ?

Udan Tashtari ने कहा…

बधाई.....शुभकामनायें!!

Suresh Gupta ने कहा…

वधाई शतक की.