यह यात्रा अनंत है, चलती रहेगी, अक्षुण्ण जीवन की तरह ... अनवरत...
इस आलेख पर कुछ कहने को विशेष नहीं इस के सिवा कि सभी ब्लागर साथियों का खूब सहयोग मिला। उन का भी जिन्हों ने कभी आ कर मुझ से असहमति जाहिर की। सहमति से भले ही उत्साह बढ़ता हो, मगर असहमति उस से अधिक महत्वपूर्ण है, वह विचारों को उद्वेलित कर नया सोचने को बाध्य करती है, विचार प्रवाह को तीव्र करती है।
सहयोगी और मित्र साथियों के नामों का उल्लेख इसलिए नहीं कर रहा हूँ कि किसी न किसी के छूट जाने का खतरा अवश्यंभावी है। सभी साथियों को शतकीय नमन!
इस अवसर पर कुछ और न कहते हुए पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की ग़जल के माध्यम से अपनी बात रख रहा हूँ.....
मंजिलों से तो मुलाक़ात अभी बाकी है
पुरुषोत्तम 'यक़ीन'
*
सो न जाना कि मेरी बात अभी बाक़ी है
अस्ल बातों की शुरुआत अभी बाक़ी है
अस्ल बातों की शुरुआत अभी बाक़ी है
**
तुम समझते हो इसे दिन ये तुम्हारी मर्ज़ी
होश कहता है मेरा रात अभी बाक़ी है
***
होश कहता है मेरा रात अभी बाक़ी है
***
ख़ुश्बू फैली है हवाओं में कहाँ सोंधी-सी
वो जो होने को थी बरसात अभी बाक़ी है
****
वो जो होने को थी बरसात अभी बाक़ी है
****
घिर के छाई जो घटा शाम का धोका तो हुआ
फिर लगा शाम की सौग़ात अभी बाक़ी है
*****
फिर लगा शाम की सौग़ात अभी बाक़ी है
*****
खेलते ख़ूब हो, चालों से तुम्हारी हम ने
धोके खाये हैं मगर मात अभी बाक़ी है
******
धोके खाये हैं मगर मात अभी बाक़ी है
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जो नुमायाँ है यही उन का तअर्रुफ़ तो नहीं
बूझना उन की सही ज़ात अभी बाक़ी है
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बूझना उन की सही ज़ात अभी बाक़ी है
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रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो मुलाक़ात अभी बाकी है
मंजिलों से तो मुलाक़ात अभी बाकी है
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28 टिप्पणियां:
ख़ुश्बू फैली है हवाओं में कहाँ सोंधी-सी
वो जो होने को थी बरसात अभी बाक़ी है
रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है
क्या बात कही है, आप को शतक लगाने की बधाई
आपको सैकड़ा पूरा करने की बधाई। कई सैकड़े बनें आपके। शुभकामनायें।
एक उल्लेखनीय और सार्थक सैकड़ा । शुभकामनाएं
शतक लगाने के अवसर पर ढेरों शुभकामनाएं! इतने विचारोत्तेजक पोस्ट्स लिखने के लिए आप बधाई के पात्र हैं. कविता भी बहुत सुंदर है: "धोके खाये हैं मगर मात अभी बाक़ी है"
शुभकामनायें द्विवेदी जी ! आप हिन्दी ब्लॉगजगत की शोभा हैं |
शतक हेतु बधाई और अगले पड़ाव की शुभकामनायें
बहुत बहुत बधाई ! पुरुषोत्तम यकीन की गजल इस शतकीय आयोजन को यकीनन और भी गरिमामय बना गयी है .आप सहर्ष शत सहस्त्र आलेख पूरा करें और हिन्दी ब्लॉग जगत के शलाका पुरूष बनें यही कामना है !
दिनेशरायजी को हार्दिक शुभकामना | अफलातून
बहुत बहुत शुभकामनाएं। यूँ ही लिखते रहे
रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है
बहुत सुखद एक पड़ाव पार करने पर। हजारों और लेख आने हैं।
एक बैलेन्स्ड ब्लॉगर का अचीवमेण्ट बहुत अच्छा लगता है। बहुत बधाई।
अग्रज दिनेशराय द्विवेदी जी को सौवीं पोस्ट के पड़ाव पर पहुंचने की बधाई ! और आगे ऐसे सैकड़ों पड़ाव पार करने हेतु शुभकामनाएं .
सो न जाना कि मेरी बात अभी बाक़ी है
अस्ल बातों की शुरुआत अभी बाक़ी है
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तुम समझते हो इसे दिन ये तुम्हारी मर्ज़ी
होश कहता है मेरा रात अभी बाक़ी है
वाह दानिश जी , बेहद खूबसूरत, एक एक लफ्ज़ दिल को छूता सा जारहा है,
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जो नुमायाँ है यही उन का तअर्रुफ़ तो नहीं
बूझना उन की सही ज़ात अभी बाक़ी है
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रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है
क्या बात है, आपने बेहद अच्छी ग़ज़ल लिखी, आपकी काबलियत तो हैरान करती है, ग़ज़ल भी इस कदर दिलकश लिख सकते हैं?
बहुत बहुत बधायी.
'अभी तो नापी है मुठ्ठी भर ज़मीन, अभी तो आसमान बाकी है'
Bahut Bahut Badhai
इस शतकीय लेख के लिए बधाई और शुभकामनाएं !
बहुत ही उपयोगी लेख होते हैं आपके ! ईश्वर करे
अभी आप ढेरों शतक लगाए ! प्रणाम !
रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है
sundar ghazal....shatak ki badhai...
बहुत-बहुत बधाइयां । यह तो पहली शतक है । शतकों की शतक बाकी है अभी ।
हार्दिक शुभ-कामनाएं ।
haardik shubkaamnayen ...likhte rahiye ...aap se bahut kuch sekhne ko mita hai anwarat rahiye ..thnx
सौवें आलेख के लिए बधाई। शुभकामनाएं कि आप यूं ही मंजिल दर मंजिल आगे बढ़ते जाएं।
रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है
बहुत अच्छा लिखा है।
बधाई इस सैकड़े के लिए। यकीन साहब की ग़ज़ल बेहद पसंद आई।
"अनवरत" की यात्रा का १०० वाँ सोपान है !
बधाई हो.!!
.मँज़िलेँ और भी हैँ
-लावण्या
Badhaee aapko sau aalekh poore hone par. jiasa aapne kaha hai ki ye to shuruwat hai.
Gazal wakaee bahut badhiya padhwaee aapne. Dhanyawad.
कृपया हेलमेट उतारकर, बल्ला लहराइए। हम सभी “स्टैण्डिंग ओवेशन” देने के लिए ‘ब्लॉगर दीर्घा’ में खड़े हो चुके हैं।
बधाई, बधाई, बधाई...
बधाई और शुभकामनायें ! आशा है ऐसे ही ज्ञानवर्धन होता रहेगा.
हमारे बीच आप जैसे व्यक्तित्व हैं , सोच कर अच्छा लगता है और इसका गर्व भी है।
ब्लाग-जगत में संतुलन बनाए रखनें में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है । कई अवसरों पर जहां अन्य मौन रह जाते है , आपकी मुखर , समझदार, सद्भावी टिप्पणी माहौल को हराभरा कर जाती है।
ऐसे कई शतक अभी लगने हैं। आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं....
रुक नहीं जाना 'यकीन' आप की मंजिल ये नहीं
मंजिलों से तो अभी मुलाक़ात बाकी है
यक़ीन साहब की ग़ज़ल जबर्दस्त है। अगर भूल नहीं रहा हूं तो कोटा निवासी ही हैं न ?
बधाई.....शुभकामनायें!!
वधाई शतक की.
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