@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: कहाँ फँसा दिया? ज्ञान जी! शुद्ध-अशुद्ध 'हटमल' के चक्कर में

शनिवार, 12 अप्रैल 2008

कहाँ फँसा दिया? ज्ञान जी! शुद्ध-अशुद्ध 'हटमल' के चक्कर में

कहाँ फँसा दिया?

हम भी जा पहुँचे ज्ञान जी के बताए रास्ते से शुद्धता जँचवाने शुद्धता जांचक साइट पर, और लौट कर बुद्धू घर आ गए।
हमें ये शुद्धता जाँच बिलकुल फर्जी लगी। उसी तरह

जैसे वाहन बरकशॉ.. वाले का मुफ्त जाँच शिविर। जाँच कराने को मेला लगे है, वहाँ। फिर वह बतावै, के क्या-क्या कमियाँ हो गई हैं, फिर अपनी बरकशॉ.. पर जाने का कारड देवै है। अब मुफ्त जाँच करवाने वालों में से आधे-परधे तो पहुँच ही जावैं।

हम पहले बोलना सीखे, फिर पढ़ना, फिर लिखना सीखे। तीसरी कक्षा में भर्ती हुए, हिन्दी, विज्ञान और सामाजिक में अव्वल रहै,  गणित तो दादाजी की सिखाई थी, सो परचे के सारे सवाल कर नीचे लिखते कोई से पाँच सवाल जाँचना लेना, हमने  परचे में ऊपर लिखी चेतावनी सवाल करने के बाद पढ़ी, अब ये समझ ना आए की कौन सा हल काटें, किसको रक्खें, सब अपने ही किए धरे हैं।  

पाँचवीं तक स्कूल के मेधावी छात्र माने गए। छठी में हिन्दी के गुरूजी ने व्याकरण और उच्चारण का  ज्ञान दिया। तब लगा कि क्या-क्या गलतियाँ करते आए थे। उन नियमों के मुताबिक हिन्दी लिखने का प्रयास करते तो सभी परचे ब्रह्माण्ड (0) दर्शन करवा देते।

ये ही हाल अंग्रेजी का हुआ। बरसों तक हम व्याकरण के मुताबिक अंग्रेजी लिखते रहे। आज तक सफलता के दर्शन नहीं हुए। और गति बनी ही नहीं। फिर व्याकरण छोड़ा, त्यागी हुए, अपने मरजी-मुताबिक लिखने लगे तो अच्छे-अच्छे तारीफ कर गए। हाँलाकि उन में से कोई व्याकरण जानकार नहीं था। वह तो पबलिक थी, और पबलिक व्याकरण के नियम नहीं देखती। देखती है उस की समझ आया या नहीं और काम का है या नहीं। व्याकरण के हिसाब से काम करने वाली पारटियाँ कबर में दफ़न हो गई। जिसने मारकिट देखा उसने गुरूशिखर पर झंड़ा जा गाड़ा।
कानून के मुताबिक जिन्दगी जीने लग जाँय, तो पाजामे में मूतना पड़ जाय। जिन्दगी को जिन्दगी के हिसाब से जियो। रेल को पटरियों पर दौड़ने दो। रेल इस्पात की हो या रबर की। हमारा ध्येय चलना है। रुक गए तो गलतियां गिनने में में ही उमर निकल जानी है, ठीक करना कराना तो दूर का डोल। जिस ने मरज़ दिया वही दवाई देगा, जिस ने चोंच दी वही चुग्गा भी देगा। जे आदमी का बच्चा है जिस को चोंच नहीं मिली। मिले तो, मिले हाथ पाँव, उनको लेकर परेशान है। जिस ने शुद्धता-जाँच-मापक-जंत्र बनाया है, उस को अशुद्ध 'हटमल' को शुद्ध करने का जंतर भी बनाने दो। फिर इस्तेमाल करेंगे। उस को। काहे पचड़े में पड़ो। अपना काम लिखने का है, बस लिखते रहो। आखिर किसी ने 'अक्वा गार्ड' भी तो बनाया है, सब अपने अपने किचन में लगवाए हैं कि नहीं?

8 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

नामकरण अच्छा है - हटमल। खटमल का भाई लगता है। :)
हमें तो घोस्ट बस्टर जी ने कह दिया है - फिकर नॉट। सो आप भी रहें चिंता-मुक्त।:D

Arun Arora ने कहा…

क्या बात है जी यानी आप भी हटमल की झोपडी मे घूम आये जी हम तो जी कालिया के उस डायलांग सेचलते है "जहा कालिया खडा हो जाता है लाईन वही से शुरू हो जाती है" भले ही हम उतने काले ना हो जितने दिखते है...:)

mamta ने कहा…

चले अच्छा है कि हमने आपकी पोस्ट पहले पढ़ ली है वरना अगर ज्ञान जी की पोस्ट पहले पढ़ते तो शायद हम भी इसी दौर से गुजर रहे होते । :)

Manas Path ने कहा…

हमें तो व्याकरण का ज्ञान कभी मिला ही नहीं.

इष्ट देव सांकृत्यायन ने कहा…

व्याकरण जरूरी है. पर ऐसा भी नहीं की उसके फेर में टेक्स्ट नष्ट कर दें.

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेशराय जी धन्यवाद आप ने इस खट्मल,या हटमल से बचा लिया, वेसे यह हटमल नाम बहुत प्यारा हे

अजित वडनेरकर ने कहा…

जय हो , जय जय हो। हमें भी घूम आना चाहिए क्या ?

Kavi Kulwant ने कहा…

अच्छा लगा आप का ब्लाग..
कवि कुलवंत
http://kavikulwant.blogspot.com