@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: "आह! कहीं मैं और कहीं तू" : पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की जादू वाली दूसरी ग़ज़ल

सोमवार, 31 अगस्त 2009

"आह! कहीं मैं और कहीं तू" : पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की जादू वाली दूसरी ग़ज़ल


आप ने कल पुरुषोत्तम 'यक़ीन' की जादू वाली पहली ग़ज़ल "खुल कर बात करें आपस में" पढ़ी।  कुछ पाठकों ने कहा ग़ज़ल ही जादू भरी है, कुछ पाठकों ने पूछा, ये जादू का रहस्य क्या है?  जादू का रहस्य तो मैं भी तलाशता रहा।  बावज़ूद इस के कि मेरे पास जादू वाली दूसरी ग़ज़ल थी, मैं इस में सफल नहीं हो सका।  फिर से यक़ीन साहब की शरण ली गई।  वे अब भी बताने को तैयार नहीं।  कहते हैं, पाठक खुद तलाश करें तो कितना अच्छा हो।  जादू इन दोनों ग़ज़लों में छुपा है।  संकेत दिए देता हूं, जो  ग़ज़ल के नीचे छपे चित्रों में छिपा है। मैं तो अब भी तलाश कर नहीं पाया।  शायद आप तलाश लें। तलाश लें तो मुझे भी टिप्पणी में बताएँ। वर्ना अपने यक़ीन साहब तो हैं हीं, कल उन की फिर से शरण लेंगे। 
 

आह! कहीं मैं और कहीं तू
- पुरुषोत्तम 'यक़ीन' -
 

नयनों का इक ख़्वाब हसीं तू
तू आकाश है और ज़मीं तू

वो अपने मतलब के संगी
उन अपनों सा ग़ैर नहीं तू

दाग़ नहीं तेरे चहरे पर
कैसे कह दूँ माहजबीं तू

तू यह कैसे सह लेता है
आह! कहीं मैं और कहीं तू

तेरे दिल की बात न जानूँ
मेरे दिल में सिर्फ़ मकीं* तू

कुछ दिल की कुछ जग की सुन लें
आ कर मेरे बैठ क़रीं* तू

कौन 'यक़ीन' करेगा सच पर
चुप ही रहना दोस्त हसीं तू



मकीं* = निवास,   क़रीं*  = निकट
 

चित्र संकेत -

11 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

सुन्दर ग़ज़ल है
--->
गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम

निर्मला कपिला ने कहा…

बाकी सच तो आप जाने या यकीन साहिब मगर गज़ल का जादू सब पर चल गया है बहुत सुन्दर गज़ल है बधाई

अर्चना तिवारी ने कहा…

सुन्दर ग़ज़ल...

रंजू भाटिया ने कहा…

गजल बहुत पसंद आई जादू यही समझ में आया लफ्जों का ..शुक्रिया इसको शेयर करने के लिए

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

लाजवाब जी. लगता है ये प्रकृति का जादू है?

रामराम.

Ghost Buster ने कहा…

लगता है पकड़ लिया हमने:

ये देखिये जरा -

१)
तू इक राहत अफ़्ज़ा मौसम
तू आकाश है और ज़मीं तू

छल करते हैं अपना बन कर
उन अपनों सा ग़ैर नहीं तू

तेरे मुख पर तेज है सच का
कैसे कह दूँ माहजबीं तू

दर्दे-जुदाई और तन्हाई
आह! कहीं मैं और कहीं तू

कोई नहीं है तुझ बिन मेरा
मेरे दिल में सिर्फ़ मकीं* तू

खुल कर बात करें आपस में
आ कर मेरे बैठ क़रीं* तू

झूठी ख़ुशियों पर ख़ुश रहिए
चुप ही रहना दोस्त हसीं तू



२)

नयनों का इक ख़्वाब हसीं तू
तू बादल तू सबा तू शबनम


वो अपने मतलब के संगी
मेरे साथी मेरे हमदम


दाग़ नहीं तेरे चहरे पर
तेरे आगे सूरज मद्धम


तू यह कैसे सह लेता है
क्यूँ न निकल जाता है ये दम


तेरे दिल की बात न जानूँ
कह तो दे इतना कम से कम


कुछ दिल की कुछ जग की सुन लें
कुछ तो कम होंगे अपने ग़म


कौन 'यक़ीन' करेगा सच पर
व्यर्थ 'यक़ीन' यहाँ है मातम

------------------------

ये तो सचमुच जादू निकला यकीन साहब. वाह.

अमिताभ मीत ने कहा…

क्या बात है !! सच में जादू वाली ग़ज़ल है. बहुत शुक्रिया पढ़वाने का.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुन्दर ग़ज़ल है

अपूर्व ने कहा…

जादू तो है कही न कही गज़ल मे..और नज़र आ जाये तो फिर जादू कैसा..

वीनस केसरी ने कहा…

हम तो आये ठ जादू की पुडिया प्राप्त करने की तुंरत मिले और गटकी जाये और फौरी तौर पर राहत मिले, मगर आपने और भी उलझा दिया

अब सुनिए क्या जादू मुझे दिखा इस दोनों गजलों में

जैसा की आपने कहाँ जादू फोटो में है, तो दोनों फोटो एक दुसरे की कॉपी है... यही हाल गजलों का भी है दोनों के भाव एक दुसरे के सामान लगे और शायद है भी .....
दोनों में ७-७ शेर है और दोनों गजल के १-१, २-२, ३-३, ४-४, ५-५, ६-६, ७-७ शेर के भाव सामान हैं

और दोनों गजल एक ही बहर पर कही गई हैं
फैलुन फैलुन फैलुन फैलुन

रुक्न २२,२२,२२,२२

आगे आप जानिए और यकीन साहब :)

वीनस केसरी

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

ग़ज़ल सुन्दर है........