@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: गणेशोत्सव या भारतीय लोक जीवन की झाँकी

सोमवार, 24 अगस्त 2009

गणेशोत्सव या भारतीय लोक जीवन की झाँकी

गणेश चतुर्थी हो चुकी है।  विनायक गणपति मंगलमूर्ति हो कर पधार चुके हैं।  पूरे ग्यारह दिनों तक गणपति की धूम रहेगी। गणपति के आने के साथ ही देश भर में त्योहारों का मौसम आरंभ हो गया है जिसे देवोत्थान एकादशी तक चलना है। उस के उपरांत गंगा से गोदावरी के मध्य के हिन्दू परंपरा का अनुसरण करने वाले लोगों को चातुर्मास के कारण रुके पड़े शादी-ब्याह और सभी मंगल काज करने की छूट मिल जाएगी।  प्रारंभ तो कल हरितालिका तीज से ही हो चुका है। वैसे भी गणपति के आने के पहले शिव और पार्वती का एक साथ होना जरूरी था। इसलिए यह पर्व एक दिन पहले ही हो लिया।  इस दिन मनवांछित वर की कामना के लिए कुमारियों ने निराहार निर्जल व्रत रखे और जिन परिवारों में किसी अशुभ के कारण श्रावण पूर्णिमा को रक्षाबंधन नहीं हुआ वहाँ रक्षाबंधन मनाया गया।

आने वाले दिन तरह व्यस्त होंगे। हर नए दिन एक नया पर्व होगा।  ऋषिपंचमी हो चुकी है। फिर सूर्य षष्ठी, दूबड़ी सप्तमी और गौरी का आव्हान, और गौरी पूजन, राधाष्टमी और गौरी विसर्जन, नवमी व्रत, और दशावतार व्रत और राजस्थान में रामदेव जी और तेजाजी के मेले होंगे, जल झूलनी एकादशी होगी। फिर वामन जयन्ती और प्रदोष व्रत होगा और अनंत चतुर्दशी इस दिन गणपति बप्पा को विदा किया जाएगा। अगले दिन से ही पितृपक्ष प्रारंभ हो जाएगा जो पूरे सोलह दिन चलेगा। तदुपरांत नवरात्र जो दशहरे तक चलेंगे। फिर चार दिन बाद शरद पूर्णिमा, कार्तिक आरंभ होगा और  दीपावली आ दस्तक देगी। दीपावली की व्यस्तता के बाद उस की थकान उतरते उतरते देव जाग्रत हो उठेंगे और फिर शादी ब्याह तथा दूसरे मंगल कार्य करने का वक्त आ धमकेगा।

 इन सभी त्योहारों का भारत के लोक जीवन से गहरा नाता है। गणपति के आगमन से इन का आरंभ हो रहा है सही ही है वे प्रथम पूज्य जो हैं। लेकिन गणेश चतुर्थी के दूसरे दिन गणेश गौण हो जाते हैं। उस के बाद एक देवी का नाम सुनने को मिलता है। यह देवी है गौरी; किन्तु यह पौराणिक देवताओं वाली गौरी नहीं है। इस के बजाए वह केवल कुछ पौधों की गठरी है। जिस के साथ ही एक मानव प्रतीकात्मक प्रतिमा अर्थात् एक कुमारी कन्या की प्रतिमा होती है। स्त्रियाँ पौधे एकत्र करती हैं और उसे हल्दी से बनाई गई चौक (अल्पना) के ऊपर रख देती हैं। जब इन का गट्ठर बनाया जाता है तो विवाहिता स्त्रियों को सिंदूर दिया जाता है। व्रत की सारी क्रियाएँ पौधों के इस गट्ठर के आस पास होती हैं जिन में केवल स्त्रियाँ भाग लेती हैं। इन पौधों और कुंवारी कन्या को घर के प्रत्येक कमरे में  ले जाया जाता है और प्रश्न किया जाता है : गौरी गौरी तुम क्या देख रही हो? कुमारी उत्तर देती है 'मुझे समृद्धि और धनधान्य की बहुलता दिखाई दे रही है"। गौरी के इस नाटकीय आगमन को वास्तविकता का पुट देने के लिए फर्श पर उसके पैरों के निशान बनाए जाते हैं। जिस से इसमें इस बात का आभास दिया जाता है कि वह वास्तव में इन कमरों में आई।
अगले दिन समारोह शुरू होने पर चावल और नारियल की गिरी से बने पिंड देवी के सामने रखे जाते हैं। प्रत्येक हाथ से काता हुआ सुहागिन अपने से सोलह गुना लंबा सूत ले कर गौरी के सामने रखती है। फिर शाम को घर की सब लड़कियाँ बहुत देर तक गाती और नाचती हैं। फिर गौरी के समक्ष गाने और नाचने के लिए अपनी सखियों के घर जाती हैं। अगले दिन प्रतिमा को अर्धचंद्राकार मालपुए की भेंट चढ़ाई जाती है। फिर प्रत्येक स्त्री वह सूत जो पिछली रात प्रतिमा के सामने रखा था उठा लेती है और इस सूत का छोटा गोला बना कर सोलह गांठें लगा लेती है। फिर इन्हें हल्दी के रंग में रंगा जाता है। और तब हर स्त्री इसे गले में पहन लेती है। सूत का यह हार वह अगले फसल कटाई दिवस तक पहने रहती है और फिर उस दिन उसे शाम के पहले उतार कर विधिपूर्वक नदी में विसर्जित कर देती है। इस बीच जिस दिन यह सूत का हार गले में पहना जाता है उस दिन उसे नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। और उस के किनारे से लाई गई मिट्टी को घर लाकर सारी जगह और बगीचे में बिखेर दिया जाता है। यहाँ स्त्री ही देवी प्रतिमा को नदी तक ले जाती है और उसे यह चेतावनी दी जाती है कि पीछे मुड़ कर  नहीं देखे।
इस व्रत या अनुष्ठान के पीछे एक कहानी भी है कि एक व्यक्ति अपनी निर्धनता से तंग आ कर डूबने के लिए नदी पर गया। वहाँ उसे एक विवाहित वृद्धा मिली उसने इस निर्धन को घर लौटने को राजी किया और वह स्वयं भी उसी के साथ आई उस के साथ समृद्धि भी आई। अब वृद्धा के वापस लौटने का समय आ गया। वह व्यक्ति उसे नदी पार ले गया जहाँ वृद्धा ने नदी किनारे से मुट्ठी भर मिट्टी उठा कर उसे दी और कहा समृद्धि चाहता है तो इस मिट्टी को अपनी सारी संपत्ति पर बिखेर दे, वृद्धा ने उस से यह भी कहा कि हर साल भाद्र मास में वह गौरी के सम्मान में इसी प्रकार का अनुष्ठान किया करे।"
इस अनुष्ठान के संबंध में गुप्ते के विचार इस प्रकार है-
इस क्रिया के तार्किक संकेत यह है कि :
1.   नदी या तालाब के किनारे वाली कछारी भूमि वास्तव में खेतीबाडी के लिए सब से उपयुक्त है;
2.  वृद्ध स्त्री प्रतीक है जाते हुए पुराने मौसम का;
3.  युवा लड़की नए मौसम का प्रतीक है जो खिलने के लिए तैयार है;
4.  लेटी हुई आकृति अथवा पुतला संभवतः पुराने मौसम के मृत शरीर का प्रतीक और चावल और मोटे अनाज की जो भेंट चढ़ाई जाती है, वह यही संकेत देता है कि उस समय यह अनाज प्रस्फुटित हो रहा है।
5.  अनाज की यह भेंट धान की नई फसल भादवी की आशा में दी जाती है किन्तु लेटी हुई आकृति की आत्मा का मध्यरात्रि को शरीर त्यागना, उस मौसम में खेतों में काम करने के अंतिम दिनों का संकेत है, लेटी हुई आकृति को धरती मांता की गोद मे सुला देना, चारों ओर रेत का बिखेरा जाना और सोलह गांठों वाले गोले बनाना, ये सब मौसम, पुराने मौसम की समाप्ति नए मौसम के समारंभ के प्रतीक हैं जो सारे संसार की आदिम जातियों द्वारा मनाए जाते हैंर यहा इन्हें हिन्दू रूप दे दिया गया है। सोलह गांठे लगाना और सोलह सूत्रों के गोले बनाना और फिर उसका हार बना लेना, इस बात का संकेत है कि धान की फसल के लिए इतने ही सप्ताह लगते हैं। 
 गुप्ते के उक्त विवरण की व्याख्या करते हुए चटोपाध्याय कहते हैं- सारे अनुष्ठान का केन्द्र भरपूर फसल की इच्छा है। सारा अनुष्ठान कृषि से संबंधित है और इसे केवल स्त्रियाँ ही करती हैं। यहाँ गणेशपूजा को नयी फसल के आगमन के साथ जोड़ने का प्रयत्न किया है और उन की तुलना मैक्सिको की अनाज की देवी, टोंगा द्वीप समूह की आलो आनो, ग्रीस की दिमित्तर या रोम की देवी सेरीस से की है। आश्चर्य है कि ये सभी देवियाँ हैं। वस्तुतः कृषि की खोज होते ही देवताओं को पीछे हट जाना पड़ा। वे गुप्ते का विवरण पुनः प्रस्तुत करते हैं-
मुख्य देवी गौरी के पति शिव ने चोरी चोरी उन का पीछा किया और उन की साड़ी की बाहरी चुन्नट में छिपे रहे। शिव का प्रतीक लोटा है जिसमें चावल भरे होते हैं और नारियल से ढका रहता है।  
मेरा स्वयं का भी यह मानना है कि गणेश पूजा सहित भाद्रमास के शुक्ल पक्ष में मनाए जाने वाले सभी त्योहारों और अनुष्ठानों का संबंध भारत में कृषि की खोज, उस के विकास और उस से प्राप्त समृद्धि से जुड़ा है। बाद में लोक जीवन पर वैदिक प्रभाव के कारण उन के रूप में परिवर्तन हुए हैं। पूरे भारत के लोक जीवन से संबद्ध इन परंपराओं का अध्ययन किया जाए तो भारतीय जनता के इतिहास की कड़ियों को खोजने में बड़ी सफलता मिल सकती है।

14 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

कई नई जानकारियाँ
आभार

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

हिंदू धर्म,पर्व और उससे जुड़ी इतनी ज्ञानवर्धक बातें आपने बताई,मुझे अत्यन्त रोचक लगा ..मेरा बधाई स्वीकार करे और निरंतर ऐसे सुंदर बातें प्रस्तुत करते रहे ताकि हम जैसे नये पीढ़ी के लोगो को आप से कुछ सीखने को मिले..

बहुत आभार..

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

गनेशापूजन का सुन्दर वृतांत जताने के लिए आभार.
ॐ गं गण पतये नमः
गणेश पर्व की हार्दिक मंगल शुभकामनाओ के साथ

Himanshu Pandey ने कहा…

महत्वपूर्ण जानकारियाँ दी आपने । साथ में माह में व्रत-त्यौहारों की पूरी समय सारणी भी प्रदान कर दी आपने । आभार ।

अजय कुमार झा ने कहा…

जब मैं गांव में रहता था तब पता चला था ... बहुत से त्योहारों का सीधा सीधा संबंध किसानी से ही होता था.....आपकी इस पोस्ट ने बहुत सी नयी जानकारिय़ां दीं...

बेनामी ने कहा…

बड़ा ही अच्छा लगा...
समयानुकूल सही प्रसंग...

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा और जानकारीपूर्ण आलेख. आभार!!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

अच्छी जानकारी। पर क्या हमें सड़कों पर, गलियों में आमोदफ़्त बंद करके अपना यह पर्व मनाना चाहिए, जिसमें सरकारी बिजली, ध्वनि प्रदूषण और विसर्जन से बंध होते ताल-तलैये जैसी समस्याओं से आम नागरिक को जूझना पड़ रहा है। चंदे का न्यूसेंस है सो वो अलग:)

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

आपकी पोस्ट तथ्यों और जानकारियों की आकर है। धन्यवाद।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

िल्कुल नई जानकारियां उपलब्ध करवाई आपने.

रामराम.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

पढ़ कर अच्छा लगा. धन्यवाद.

Arvind Mishra ने कहा…

लोकपर्वों की बुद्धिगम्य और तार्किक जानकारी के लिए हम आपके मुरीद रहेगें !

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

बहुत सुन्दर और बहुत मेहनत से लिखी पोस्ट। क्या कहेंगे इसे - डेडीकेटेड ब्लॉगिंग!

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति....बधाई...