@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत

बुधवार, 25 मार्च 2020

कोरोना और दाढ़ी-मूँछ


उम्र का 14वाँ साल था। नाक और ऊपरी होठ के बीच रोआँली का कालापन नजर आने लगा था। एक दम सुचिक्कन चेहरे पर काले बालों वाली रोआँली देख कर अजीब सा लगने लगा था। समझ नहीं आ रहा था कि इस का क्या किया जाए। स्कूल में लड़के मज़ाक बनाने लगे थे कि मर्दानगी फूटने लगी है, अब लड़कियाँ फ़िदा होने लगेंगी। मज़ाक क्लास की लड़कियों के कानों तक भी पहुँच जाता था। जब कभी किसी लड़की से आँखें मिलतीं तो वह मुहँ दबा कर हँस पड़ती। साथ की लड़कियाँ साथ देतीं। लड़कों को फिर से मज़ाक करने का मौका मिल जाता।

घर में दादाजी, पिताजी, बड़े काका मोहनजी, और छोटे काका बाबू मर्द थे। दादाजी गाँव से अपने साथ पड़ौसी बनिए के लड़के को पढ़ने के लिए साथ ले आए थे जो उनके साथ मन्दिर में ही रहता था। वह उम्र में मुझ से तीन-चार साल बड़ा था। उसकी रोआँली बालों में  परिवर्तित हो चुकी थी।  नाई ने उसे तराश कर बाकायदे मूँछों का आकार दे दिया  था। दो महीने में जब वो कटिंग कराने जाता तो नाई से मूँछे तराशवा कर आता। नाई मुझे भी  2-3 दफा   कह चुका था कि मेरे भी अब मूँछे आकार लेने लगी हैं। चार-छह महीने बाद इन्हें तराशना पड़ेगा।

दादाजी हमारे पारिवारिक नाई को हर इतवार दोपहर साढ़े बारह बजे  बुलाते थे। वे बड़े मंन्दिर के पुजारी थे। दोपहर 12 बजे मन्दिर बन्द होने के बाद ही उन्हें समय मिलता। इतवार को वे मन्दिर के काम से निपट कर नाई के पास हजामत कराने बैठ जाते। नाई  साथ लाए काले पत्थर पर उस्तरा तैयार करता और  हजामत शुरू कर देता। पहले सिर के सारे बाल उतारता, बाद में दाढ़ी-मूँछ भी उस्तरे से साफ कर देता। नाई के जाने के बाद वे दोबारा स्नान कर के  भोजन करते। थोड़ी देर आराम करने पर तीन बज जाते और उन की मन्दिर की ड्यूटी  शुरू हो जाती। उनके सिर, दाढ़ी और मूँछ के बाल नौरात्रों के अलावा कभी 1-2  सूत से अधिक नहीं बढ़े। उन दिनों सब जवान  लोग सिर पर अच्छे-खासे बाल रखने लगे थे। लेकिन दादाजी को लंबे बाल अच्छे नहीं लगते। वे अक्सर हमारे नाई को हिदायत देते रहते कि कटिंग करो तब बाल छोटे जरूर कर दिया करो। जब कि कटिंग कराने जाने पर हम नाई से कहते केवल दिखावे के लिए छोटे करना, बस सैटिंग कर देना। कटिंग के बाद दादाजी को बाल छोटे हुए दिखाई नहीं देते तो वे डाँट देते।

पिताजी एक दिन छोड़ कर एक दिन खुद शेव बनाते थे वे दाढ़ी पूरी तरह साफ कर देते थे। लेकिन मूँछों के बाल छोटी कैंची से इस तरह छाँटते थे कि बालों के सिर मात्र चमड़ी से बाहर दिखाई देते रहें। उन्हेँ मूँछ कहना उचित नहीं था। बड़े काका मोहनजी ने भी पिताजी वाली ही पद्धति अपना रखी थी। अलबत्ता छोटे काका बाबू को मूंछ रखने का शौक था। वे खुद दाढ़ी नहीं बनाते थे, सप्ताह में एक बार नाई से बनवाते। तभी मूँछों को तराशवा आते।

जब से स्कूल में लड़के मेरा मजाक बनाने लगे थे। तब से मैं सोचता था कि ये होठों पर उग आई मूँछों का क्या किया जाए। धीरे-धीरे दाढ़ी पर भी बाल नजर आने लगे। यह एक नई समस्या थी। घर में बहुत सारे भगवानों के चित्र थे। उन में से किसी के भी दाढ़ी मूँछ नहीं थीं। आखिर एक दिन मैं ने फैसला ले लिया कि दाढ़ी मूँछ साफ कर ली जाए। उस दिन सब लोग कहीं बाहर गए हुए थे। घर पर मैं अकेला था। बस उस दिन मैने पिताजी का शेव वाला डब्बा उठाया और रेजर से दाढ़ी और मूँछ साफ कर डाली।

अगले दिन स्कूल में एक नए तरह का मजाक बना। कुछ दिन बनता रहा। अब हर पन्द्रह दिन में दाढ़ी मूँछ बनाने का सिलसिला आरंभ हो गया था। फिर सप्ताह में एक बार, उसके बाद दो बार। तीन साल ऐसे ही निकल गए। आखिर तीन दिन की दाढ़ी-मूँछ भी बुरी लगने लगी। मैं सप्ताह में तीन दिन बनाने लगा। शादी के बाद तो जब कभी दाढ़ी बनाए तीन दिन हो जाते तो    उत्तमार्ध टोकना शुरू कर देती। क्या ब्लेड खत्म हो गयी है या शेविंग क्रीम। मैं पलट कर पूछता तो जवाब देती कि बस दाढ़ी नहीं बनी इसलिए पूछा। जल्दी ही मुझे पता लग गया था कि उसे दाढ़ी का बढ़े रहना पसंद नहीं। जब तक जिला मुख्यालय आ कर वकालत शुरू नहीं की तब तक उत्तमार्ध का मेरे साथ रहना कैजुअल सा था। साल में आधे दिन वह मायके में रहती। जिला मुख्यालय आ जाने के बाद तो निरन्तर साथ हो गया था। अब प्रतिदिन शेव करना शुरू हो गया जो आज तक चला आ रहा है।

आज सुबह  ब्लागर  मित्र विवेक रस्तोगी जी ने सुझाया कि अब 21 दिन घर ही रहना है तो दाढ़ी बढ़ा कर देख लिया जाए कि शक्ल कैसी लगती है। एक बार तो मुझे भी लगा कि बात ठीक है। इस होली पर ब्लागर मित्र राजीव तनेजा ने दाढ़ी वाला मीम बनाया था। उसमें दाढ़ी में अपना चेहरा देख चुका था। इस कारण खुद को दाढ़ी में देखने का कोई  चार्म नहीं रहा था। फिर याद आया, कोरोना महामारी के चलते इस वक्त हर कोई कह रहा है कि हाथ से मुहँ, नाक, कान और आँखें न छुएँ।  दाढ़ी बढ़ाई  तो बार बार हाथ वहीं जाएगा, रोका न जाएगा। मुहँ, नाक, कान और आँखे  भी नजदीक ही हैं।  वैसे भी दो महीने से कोरोना वायरस के इलस्ट्रेशन देख रहा हूँ। उन पर भी बढ़ी हुई दाढ़ी-मूँछ के बालों जैसे बाल होते हैं। आखिर उत्तमार्ध से कहा कि मन कर रहा है कि 21 दिन दाढ़ी न बनाई जाए। तो कहने लगीं कि क्या शेविंग क्रीम खत्म हो गया है? मैं समझ गया कि उधर भी अच्छा नहीं लगेगा। मैं फौरन उठा और जा कर बिलकुल रोज की तरह क्लीन शेव बनाई और घुस गया बाथरूम में।

अब अपना तो कहना है कि जब तक कोरोना है, जिन लोगों ने दाढ़ी-मूँछ रख रखी हैं, उन्हें भी क्लीन-शेव हो जाना चाहिए, रोज दाढ़ी बनानी चाहिए। जी, बिलकुल मोदी जी को भी और शाह जी को भी।

सोमवार, 23 मार्च 2020

लंगोटों वाला देश



धरती पर कर्क रेखा के आसपास एक देश था। उस देश के लोगों के पास एक बहुत पुरानी  किताब थी। जिसकी भाषा उनके लिए अनजान थी। वह उनके पूर्वजों की भाषा रही होगी। वे ऐसा ही मानते थे। उस किताब की लिपि तो वही थी जो वे इस्तेमाल करते थे। किताबो को वे पढ़ तो सकते थे, लेकिन समझ नहीं सकते थे।  जिन्हों ने पढ़ने की कोशिश की उन की समझ में कुछ नहीं आया। उन्हों ने थोड़ी ही देर में अपना माथा पीट लिया और किताब पढ़ना छोड़ दिया। लेकिन वे नहीं चाहते थे कि उन्हें अज्ञानी कहा जाए।

उन्हों ने किताब को सबसे अच्छे खूब अच्छी तरह सजे हुए कपड़ों में बांध कर रख दिया और उसकी पूजा करने लगे। उन्हों ने लोगों को कहा कि ये किताबें आसमानी हैं, अबूझ हैं। इन्हीं में संसार का सारा ज्ञान भरा पड़़ा है। लोग उन्हें ज्ञानी कहने लगे।  वे नहीं जानते थे कि किस मंत्र का क्या मतलब है? लेकिन उन्होंने उनका उपयोग तलाश लिया। फिर उन्होंने उन किताबों के पन्नों की लंगोटें बना लीं। पहनने वाली नहीं, घुमाने वाली।

जब भी किसी को बहुत बुखार होता। कोई शरीर में  हो रहे दर्द से तड़पता रहता। किसी को साँप या कीड़े ने काट लिया होता। किसी की बीवी भाग गयी होती। किसी की फसल नष्ट हो गयी होती। किसी के पालतू खो गए होते या चोरी हो गए होते। वे सब बीमार को, पीड़ित को लेकर किसी ज्ञानी के पास जाते।  ज्ञानी उन्हें गंभीरता से सुनता। बहुत से ऊल-जलूल सवाल पूछता। फिर एक लंगोट निकालता और उसे घुमा कर बताते। फिर कहता: इसे ले जाओ। सुबह-शाम छत के बारजे पर खड़े होकर इसे घुमाना, फिर वापस दीवार पर अपनी छाती से ऊँची जगह पर खूंटी पर लटका देना। तुम ठीक हो जाओगे,  तुम्हारी समस्या हल हो जाएगी। लोग ठीक हो जाते। बहुत से लंगोट घुमाते घुमाथे मर जाते। जो मर जाता वह ज्ञानी के पास कभी नहीं लौटता। इस तरह ज्ञानियों के घर आने वाले लोगों को पता नहीं लगा कि लंगोट असफल भी होती है। देश में ज्ञानियों का डंका बजने लगा। तब से देश के लोग समझते हैं कि लंगोट घुमाना हर बीमारी का इलाज है, हर समस्या का हल है।

बस तब से लोग उस देश को लंगोटों वाला देश कहने लगे।

कोटा, 23.03.2020

रविवार, 22 मार्च 2020

कमीज


ˍˍˍˍˍˍˍˍˍˍˍˍ दिनेशराय द्विवेदी

अफगानिस्तान,
बमबारी में ज़ख्मी बच्चा
भर्ती है अस्पताल में

डाक्टर उसका हाथ बचाना चाहते थे
पर असफल रहे
बच्चे से कहा
तुम्हारा हाथ काटना पड़ेगा
ऐसे ही जिन्दा रहा जा सकता है

बच्चा बोला 
मैं जिन्दा रहना चाहता हूँ
डॉक्टर मेरा हाथ काट दीजिये, पर

पर, मेरी आस्तीन मत काटना
मेरे पास एक ही कमीज़ है।

कोटा, 22.03.2020

महापुरुष


एक तरह के लोग सोचते हैं-
कोई है जिसने दुनिया बनाई
फिर दुनिया चलाई
वही है जो दुनिया चला रहा है
वे उसे ईश्वर कहते हैं।

दूसरी तरह के लोग सोचते हैं-
ऐसा कोई नहीं जो दुनिया बनाए और उसे चलाए
दुनिया तो खुद-ब-खुद है
हमेशा से और हमेशा के लिए
वह चलती भी खुद-ब-खुद है
उसके अपने नियम हैं जिनसे वह चलती है
ये लोग जो सोचते हैं
उसे कहते भी हैं और जीते भी हैं।

कुछ तीसरी तरह के लोग हैं
जो सोचते हैं कि कभी कोई ईश्वर रहा होगा
जिसने दुनिया बनाई और चलाई
पर वो कभी का मर चुका है
जीवन ने कीड़े से लेकर वानर तक
और वानर से लेकर पुरुष तक की यात्रा
खुद ही तय की है

वानर के लिए कीड़े का कोई महत्व नहीं
पुरुष के लिए वानर का कोई महत्व नहीं
पुरुष को महापुरुष बनना है
महापुरुष के लिए पुरुषों का कोई महत्व नहीं
वे एक दिन महापुरुष बनेंगे
वे महापुरुष बन रहे हैं
वे महापुरुष बन चुके हैं।

बन चुके महापुरुष सोचते हैं कि मेरे सामने
किसी पुरुष का कोई महत्व नहीं
वे सोचते हैं और अपने इस विचार को जीते भी हैं
लेकिन वे इसे कहते नहीं

वे लोगों को कहते हैं-
ईश्वर कभी नहीं मरता
वह कभी नहीं दिखता
वह कहीँ नहीं आता जाता

मैं उसका पुत्र हूँ
मैं उसका दूत हूँ
मैं उसका अवतार हूँ
तुम मेरे सामने झुको
तुम्हें मेरे सामने झुकना होगा
तुम्हें मेरे सामने झुका दिया जाएगा

ये जो तीसरा व्यक्ति है
खुद-ब-खुद बना हुआ महापुरुष
दुनिया की सबसे खतरनाक चीज है।
कोटा, 22.03.2020
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शनिवार, 21 मार्च 2020

गणगौर एडवाइजरी जारी करे सरकार


'भँवर म्हाने पूजण दो गणगौर'

यह उस लोक गीत का मुखड़ा है जो होली के अगले दिन से ही राजस्थान भर में गाया जा रहा है। राजस्थान में वसंत के बीतते ही भयंकर ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। आग बरसाता हुआ सूरज, कलेजे को छलनी कर देने और तन का जल सोख लेने वाली तेज लू के तेज थपेड़े बस आने ही वाले हैं। अनवरत पसीना टपकाने वाले ऐसे निकट भविष्य के पहले राजस्थान में अगले शुक्रवार 27 मार्च को गणगौर का त्यौहार मनाया जाने वाला है।

गणगौर प्रतिमाएँ अनेक घरों पर बिठा दी गयी हैं। रोज उनकी पूजा की जा रही है। गीत गाए जा रहे हैं। यह अभी व्यक्तिगत स्तर पर है। पर अगले शुक्रवार को यही सब सामुहिक रूप ले लेने वाला है। उस से पहले गणगौर पर बनने वाले पकवान गुणे बनना आरंभ हो चुके हैं। कल मुझे भी हुकुम हुआ कि गुड़ लाना है, गुणे बनाने के लिए। गुड़ आया तो दो घण्टे बाद ही टेबल पर गुड़ और गेहूँ के आटे के बने गुणे नजर आने लगे। रात तक वे तले जा कर खुले में रख दिए गए, जिस से उन की बची खुची नमी भी निकल ले। सुबह वे डिब्बे में बंद हो चुके हैं। किसी को भी इनका स्वाद अगले शुक्रवार गणगौर के दिन पूजा के बाद ही चखने को मिलेगा।

गणगौर के दिन अर्थात अगले शुक्रवार 27 मार्च को सुबह से ही मुहल्ले में स्त्रियों की हलचल बढ़ जाएगी। वे सजेंगी-सँवरेंगी, बेसन के आटे से शिव-पार्वती की प्रतिमाओं के लिए गहने गढ़ेंगी, फिर पूजा का थाल सजा कर उस घर को जाएंगी जहाँ मुहल्ले मे गणगौर घाली हुई है। वे पूजा के लिए अकेले ही नहीं जातीं। दो-दो चार-चार के समूह में पूजा के लिए जाती हैं। वहाँ एकत्र हो कर गीत गाती हैं, नाचती हैं। आमोद प्रमोद चलता है। साँयकाल गणगौर की प्रतिमाओँ को सरानेसामुहिक रूप से जलूस बना कर नदी तालाब पर जाती हैं। इस जलूस के आगे बैंड-बाजा होता है। कुछ नहीं तो एक ढोली ढोल बजाता हुआ जरूर चलता है। नदी पर वे प्रतिमाओं को सराने के पहले और बाद में गीत गाती हैं और ढोल की थाप पर नृत्य करती हैं। देर रात तक यह काम चलता रहता है। पहले तो सारी व्यवस्थाएँ पुरुष ही करते थे। अब यह कमान लगभग पूरी तरह स्त्रियों के हाथों में है। पुरुष इन कामों में केवल वान्छित सहयोग करते हैं। राजस्थान में स्त्रियों के लिए इस त्यौहार का बहुत महत्व है। पुरुषों के लिए भी यह त्यौहार अपनी प्रियाओं को प्रसन्न रखने, रूठी प्रियाओं को मनाने और वैवाहिक जीवन में सूख चुके रोमांस को तरलता प्रदान करने का होता है। इस त्यौहार में पुराने वक्त में मनाए जाने वाले मदनोत्सव के अवशेष मौजूद हैं।

त्यौहार तो आ चुका है। लेकिन उसके साथ ही राजस्थान में वायरस कोविद-19’ की भयानक उपस्थिति एक बड़े संकट का कारण हो सकती है। इस वायरस से फैली बीमारी को संयुक्त राष्ट्र संघ महामारीघोषित कर चुका है। ऐसे में इस त्यौहार के समय सतर्कता बहुत आवश्यक हो गयी है। इस त्यौहार में स्त्रियों का समूह में एकत्र होना पर्याप्त समय तक साथ रहना। पुरुषों का सहयोग के लिए नजदीक बने रहना। फिर समारोह है तो अपरिचित भी इसमें सम्मिलित होते हैं। ऐसे में सामुहिक रूप से इसे मनाना वायरस के प्रसार के लिए बहुत मुफीद हो सकता है। आज ही खबर है कि भीलवाड़ा में तीन चिकित्सक और तीन नर्सिंग छात्र इस कोरोना की चपेट में हैं। उन में लक्षण दिखाई देने के पहले वे सैंकड़ों लोगों के संपर्क में आए होंगे और उनमें से अनेक को वायरस स्थानान्तरित हुए हो सकते हैं। इसी कारण से इस नगर को पूरी तरह से लॉक डाउनकी स्थिति में लाने की कवायद चल रही है। आशा है प्रशासन और भीलवाड़ा की जनता इस लॉक डाउन को सहयोग करेंगे और वायरस का विस्तार रुक सकेगा।

इस घटना को देखते हुए आगामी दिन बहुत ऐहतियात रखने के होंगे। गणगौर पूजा वास्तव में शिव-पार्वती पूजा है। जिन परिवारों की स्त्रियाँ इस त्यौहार को मनाती हैं उन के घरों में शिव-पार्वती प्रतिमाएँ या तस्वीरें अवश्य होती हैं। सभी स्त्रियाँ अपने अपने घरों में रह कर इन प्रतिमाओं/ तस्वीरों की पूजा कर के त्यौहार मना सकती हैं। उन्हें इस के लिए बाहर निकलने की जरूरत नहीं होगी। इस अवसर पर जो मीठे और चरपरे गुणे बनाए जाते हैं उन्हें आपस में बदला भी जाता है। इस बार यह काम न किया जाए तो बेहतर है। क्यों कि इस अदला-बदली में वायरस स्थानान्तरण भी हो सकता है। आज कोरोना वायरस से फैली इस विश्वव्यापी महामारी के समय में गणगौर के त्यौहार को भी निबन्धित रीति से मनाना पड़ेगा। यह निबन्धित रीति क्या हो, यह बताने के लिए राज्य सरकार को तुरन्त एडवाइजरी जारी करनी चाहिए।


कोरोना लॉक डाउन


अदालतों में लगभग पूरा ही लॉक डाउन हो गया है। 31 मार्च तक कोर्ट जाने का कोई मतलब नहीं रहा। आज मेरा सहायक शिव प्रताप यादव अदालत गया था। आज बहुत सारे मुकदमे कलेक्ट्री आदि में थे। जिनकी अगली तारीख वेबसाइट पर अपलोड नहीं होती। उसे कलेक्ट्री परिसर में प्रवेश करने में परेशानी आई। खुद अफसर दरवाजे पर खड़े होकर लोगों को अंदर नहीं जाने दे रहे थे। उसे भी रोका गया। कुछ जद्दोजहद के बाद वह अंदर जा सका। उसे कहा गया था कि भाई किसी के मुकदमों को कोई नुकसान नहीं होगा। आप अपनी तारीखें 31 मार्च के बाद नोट कर लेना।

कल और परसों तो छुट्टी है। सोमवार को देखना पड़ेगा कि क्या हालात रहते हैं।  वैसे  अदालतें ऐसा स्थान है जहाँ हजारों लोग रोज एकत्र होते हैं। जिसमें गाँवों से आए लोग भी होते हैं और विभिन्न नगरों से पेशियों पर आए ऐसे लोग भी जो विदेश से हाल में देश लौटे लोगों के संपर्क में आए हुए भी हो सकते हैं। इस कारण अदालत परिसर को   बंद करना ही उचित है। मेरे विचार में तो सरकार को ऑन लाइन सुनवाई की व्यवस्था को तेजी से विकसित करना  चाहिए जिस से अदालतो में अनावश्यक भीड़ को कम किया जा सके।
आज मुझे कहीं नहीं जाना था। लेकिन सुबह मोटे अनाज लेने बाजार गया। ज्वार, मक्का, जौ और बाजरा लेकर आया हूं। कुछ महीनों से मैंने अपनी रोटी में गेहूं के आटे की मात्रा 15 परसेंट के लगभग रहने दी है। उसका बड़ा लाभ भी मिला मुझे। वजन कम करने में मदद मिली। इसके अलावा मैंने यह किया था कि चीनी और चीनी से बने तमाम खाद्य पदार्थों का प्रयोग करना बंद कर दिया। पिछले 6 महीने में तकरीबन 8 किलो वजन कम किया है। २-३ तरह की दालें और चना शाम को लेकर आया।
दिन में शहर में यातायात बहुत कम था। दुकानें सभी खुली थी। कहीं कोई भीड़ नहीं थी। लोग केवल जरूरी चीजें खरीदने के लिए बाजार में निकले थे। इस बात की भी तैयारी थी महीने में 15 दिन का राशन पूरा कर लिया जाए।
अगले सप्ताह गणगौर का त्यौहार है। राजस्थान में स्त्रियां इसे खूब मनाती हैं। गणगौर के दिन गणगौर की पूजा के लिए काफी स्त्रियां एक साथ इकट्ठा होती है। शाम को गणगौर की मूर्तियां सराने के लिए जुलूस बनाकर नदी-तालाब जाती हैं। इस तरह का एकत्रीकरण इस वक्त वायरस के विस्तार केलिए अच्छा मौका देगा।
राजस्थान सरकार को इस त्यौहार के मौके पर विशेष व्यवस्थाएं करनी पड़ेंगी और स्त्रियों को घर से बाहर निकलने से रोकना होगा। देखना है कि राजस्थान सरकार का प्रशासन कैसे इस त्यौहार से निपटने के लिए क्या तैयारियां कर रहा है?
कोटा,   20.03.2020 , रात्रि 09ः30 

शुक्रवार, 20 मार्च 2020

कोविद-19 का नेग


17 मार्च तक अदालत में कामकाज सामान्य था। 18 को जब अदालत गया तो हाईकोर्ट का हुकम आ चुका था, केवल अर्जेंट काम होंगे। अदालत परिसर को सेनीटाइज करने और हर अदालत में सेनीटाइजर और हाथ धोने को साबुन का इन्तजाम करने को कहा गया था, वो नदारद था। काम न होने से हम मध्यान्ह की चाय के लिए 1.30 के बजाय 12.40 पर ही चले गए। वापस लौटे तब तक अदालत के तीनों गेट बंद थे। केवल एक गेट की खिड़की चालू थी। अब अन्दर जाने के लिए गेट नंबर-1 से ही जाना होता जो दूर था। सब मुकदमों में पेशियाँ हो चुकी थीं। परिसर के अंदर वाले एक सहायक से बैग मंगाया, बाउंड्री के ऊपर से उसने दिया। मैं 2 बजे के पहले घर आ गया।

कल मैं नहीं, केवल मेरा सहायक अदालत गया। कोई आधे घण्टे में ही मोबाइल एप पर सारे मुकदमों की पेशियाँ मिल गयीं। घण्टे भर में तो सहायक भी वापस लौट कर आ गया। उसने बताया कि केवल गेट नं.1 की खिड़की खुली थी, वहाँ एक पुलिसमेन और एक अदालत कर्मचारी तैनात था। मात्र अदालत स्टाफ, वकील और उनके क्लर्कों के अलावा किसी  ही अदालत परिसर में आने दिया जा रहा था।

यूँ मेरे पास वकालत का काम हमेशा पैंडिंग रहता है, मैंने सोचा उसी को निपटाया जाए। पर मन नहीं लगा। टीवी पर फिल्म देखने बैठ गया। सालों बाद पूरी फिल्म देखी, जितेन्द्र-जया की "परिचय"। उत्तमार्ध ने सूची बना रखी थी बाजार से लाने वाले सामानों की। मैंने उसके दो हिस्से किए। कैश काउंटर से लाने वाले सामान कल ले आया। उसके यहां हमारी जरूरत वाला चाय का ब्रांड उपयुक्त साइज का नहीं था। आज उसके और कुछ और चीजों के लिए दुबारा बाजार जाना पड़ेगा। बाजार सामान्य था। बस भीड़ कम थी, इतनी कि रामपुरा बाजार और उसकी गलियों में बिना किसी से टकराए आसानी से निकला जा सकता था।

दवा वाले की दुकान से दो दवाएँ लानी थीं। उनमें से एक नहीं थी। मैं दोनों नहीं लाया। सोचा शाम को ले लूंगा, पर दुबारा बाजार जाना नहीं हुआ। उसके पास एक सेनेटाइजर जेल उपलब्ध था। लेकिन बहुत महंगा। इस कारण मैं नहीं लाया। मुझे लगा कि उसके बिना काम चलाया जा सकता है। साबुन से हाथ धोकर वे कम से कम एक माह की जरूरत के पहले से घर पर मौजूद थे। कुछ दूसरी जरूरी चीजें लेने के लिए जो घर पर लगभग खत्म होने की स्थिति में हैं आज फिर बाजार जाना पड़ेगा।

अखबार में खबर है कि नगर में विदेश से आए 112 लोगों की स्क्रीनिंग की गयी है। तीन सन्दिग्ध हैं इनमें से दो अस्पताल में भर्ती हैं, शेष एक को घर पर आइसोलेट किया गया है। अब तक आइसोलेट किए जाने वाले लोगों की संख्या 107 हैं। 7 संदिग्धों के आइसोलेशन के 28 दिन पूरे हो चुके हैं। फिलहाल 127 लोग चिकित्सा विभाग की निगरानी में हैं। अच्छी बात यह है कि अभी तक कोई कोविद-19 का पोजिटिव नहीं पाया गया है। फिर भी नगर जिस तरह से एहतियात बरत रहा है वह अच्छा है।

अखबार में यह भी खबर है कि इटली में कोविद-19 से हुई मौतों की संख्या 3405 ने चीन में हुई मौतों की संख्या 3245 को पीछे छोड़ दिया है। यह बहुत बुरी खबर है। सबसे अधिक आबादी वाला चीन ने इस कोविद-19 के विजय अभियान को बिना कोई हल्ला किए सफलता पूर्वक रोक दिया है। इटली में अभी वायरस का विजय अभियान जारी है। बाकी विश्व बुरी तरह आतङ्कित है। हमारी अपनी तैयारी को देख कर बहुत बुरा महसूस हो रहा है। हैंड सेनेटाइजर, हैंड वाश और मास्क पर जम कर कालाबाजारी हो रही है। पैनिक में खाने-पीने की वस्तुएँ बाजार से गायब हो गयी हैं। विशेष रूप से पीएमओ की नाक के नीचे एनसीआर में यह संकट है। वहाँ से जो खबरें आ रही हैं वे अच्छी नहीं हैं। नोएडा में बेटी को तीन दिन से मल्टीग्रेन आटा नहीं मिल रहा था। कल सामान्य गेहूँ आटा खऱीद कर लाना पड़ा। एक और मित्र ने कहा कि गाजियाबाद में आटा बाजार से गायब है। निश्चित रूप से गलियों में यही ऊंचे दामों पर मिल रहा होगा वह भी सीमित मात्रा में। साहेब, आप कितना ही कहें कि मास्क और सेनेटाइजरों की, घरेलू सामानों की कोई कमी नहीं है। पर जब ग्राउण्ड रिपोर्ट विपरीत आ रही हो तो साहेब की बात पर विश्वास हो तो कैसे? इसबीच खबर ये भी है कि डॉलर 76 रुपए का हो चला है।

खैर¡ आप तो इतवार के कर्फ्यू के लिए तैयार हो जाइए। बाहर कतई न निकलें। निकलेंगे तो सोच लीजिए आपके साथ क्या-क्या हो सकता है? मैं ने बताने का ठेका नहीं ले रखा। बस वेलेंटाइन-डे के अगले दिन के अखबार की खबरों को याद रखें। हाँ, थाली या ताली बजाना तो मूर्खता लगती है। मैंने सुना है और बचपन में देखा भी है कि थाली घर में बेटा होने पर बजाई जाती थी और शाम तक ताली बजाने वाले पहुँच जाते थे, अपना नेग वसूलने के लिए। आप भी तैयार हो जाइए नेग तो वसूला जाएगा ही। आखिर आपके घर कोविद-19 पैदा हुआ है।

- दिनेशराय द्विवेदी, कोटा-20.03.2020