हे, पाठक!
मन भर कर रबड़ी छक लेने के बाद भोजन मात्र औपचारिकता रह गई थी। भोजनशाला में अधिक देर नहीं लगी। सूत जी, सनत और उस का शिष्य तीनों भोजन कर बाहर आए तो अर्धरात्रि में अभी भी पाँच घड़ी समय शेष था। सनत के शिष्य को तो घर जाना था। तीनों पैदल ही टहलने निकले। सनत शिष्य को दूर तक छोड़ आए। बात करते करते वापस सितारा पहुँचे। बातें करने के लालच में सनत रात सूत जी के साथ ही रुक गया। सनत बता रहा था कि इस बार पता ही नहीं लग रहा है कि जनता क्या करेगी? सूत जी चाचा वंशजों के बारे में जानना चाहते थे।
हे, पाठक!
दोनों गुरू चेले शैयासीन हो कर बतियाने लगे। सनत बता रहा था। चाचा वंश के माँ बेटे तो संसद में पहुँच ही रहे हैं। पर इधर विद्रोही ने भी नाटक कम नहीं किया। पर माया ने उसे खूब अन्दर पहुँचाया। कोई दूसरा दल होता तो शायद इतनी साहस नहीं दिखाता। सूत जी ने सहमति व्यक्त की -हाँ, यह तो सही है कि वह महिला यदि सही रास्ते पर चले तो साहसी तो बहुत है। दलित उस के पीछे चल भी पड़े हैं, लेकिन उन में भी दल में वही लोग उच्च स्थान हथियाये हुए हैं जिन्हों ने गलत तरीकों से पैसा बना लिया है। इसी से उस के जीते हुए प्रत्याशी अवसर मिलने पर कहीं भी खिसकने को तैयार मिलते हैं। उस ने कुछ सवर्णों को अवश्य आकर्षित किया है। लेकिन दल में धनिक दलितों और गरीब दलितों का द्वैत भी बन चला है, सत्ता और आरक्षण का लाभ धनिक ही उठा रहे हैं, यह द्वैत माया को अवश्य ही ले डूबेगा। -गुरूदेव आप सच कहते हैं, ऐसा ही हो रहा है। सनत सूत जी की हाँ में हाँ मिलाता जा रहा था। -पर जिस तरह बहुत सारे दल खंड में मैदान में आ गए हैं उस में बैक्टीरिया दल को कुछ अतिरिक्त लाभ मिल सकता है।
हे, पाठक!
सनत बोला तो इस बार सूत जी ने भी हाँ भर दी कि हो सकता है पहले की अपेक्षा कुछ बढ़त मिल जाए। लेकिन बैक्टीरिया दल के पास अब आगे बढ़ने को कुछ रह भी नहीं गया है। वह यथास्थिति में फँस कर रह गई है। गरीबों के लिए उस के पास कुछ भी नया नहीं है। वह केवल और केवल वर्तमान अर्थव्यवस्था की गति को तेज करने का प्रयत्न करती है। अर्थव्यवस्था की गति तेज होती है तो आम लोगों को उस का तनिक लाभ मिलता ही है। उसी के भरोसे यह जनता में विश्वास बनाए हुए है। जिस दिन यह टूटेगा। तब लोग इसे छोड़ भागेंगे। सूत जी की इस बात पर सहमति व्यक्त करते हुए सनत कहने लगा -छोड़ तो अभी भी भाग लें, यदि कोई दूसरा विकल्प हो। इस समय कोई विकल्प खड़ा होने ले तो जनता के बीच काम कर सब को किनारे कर सकता है। लेकिन हालात ऐसे हैं, कोई विकल्प सामने आ ही नहीं रहा है। लोग जनतंतर से ऊबने लगे हैं, मत डालने से कतराने लगे हैं। सोचते हैं, मत देने से कुछ बदल तो रहा नहीं है। दे कर भी क्या करें? वैसे लाल फ्राक वाली बहनें कोशिश में लगी तो हैं।
हे, पाठक!
इस अंतिम बात पर सूत जी सनत से सहमत न हो सके। कहने लगे -पिटे पिटाए स्वयंभुओं को एकत्र करने भर से विकल्प नहीं खड़े होते। स्थाई और दीर्घकालीन विकल्प पीड़ित जनता के संगठनों को एक साथ एक लक्ष्य के साथ एकत्र करने से ही खड़ा हो सकता है। जो भी इन्हें एकत्र कर लेने का कठोर श्रम करेगा और अपने नेतृत्व में विश्वास पैदा कर सकेगा वही इन का नेतृत्व कर सकता है। सनत ने एक आह भरी - न जाने कब ऐसा होगा? सूत जी ने सनत में विश्वास जगाया -होगा अवश्य होगा। परिस्थितियों से जनता सीख रही है। जब दाल पकने लगेगी देगची का ढक्कन स्वयमेव ही भाप को बाहर निकलने को सरक लेगा। सूत जी बोले अब रात बहुत हो चली है। कुछ निद्रा भी ले लें। सुबह फिर आगे की योजना भी बनानी है। दोनों गुरू-शिष्य शीघ्र ही खर्राटे लेने लगे। सनत शिष्य बुद्धिमान था जो यहाँ से सरक लिया। वरना इधर रुक जाता तो उसे तो खर्राटों में सारी रात जागना ही पड़ता।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
रविवार, 3 मई 2009
शुक्रवार, 1 मई 2009
बंगला, साइकिल, लालटेन एकता जिन्दाबाद! ... : जनतन्तर कथा (22)
हे, पाठक!
माया बहन जी की सभा से तेजी से लौट कर सूत जी अपने ठिकाने पहुँचे। चाहते थे इस प्रदेश में आए हैं तो बैक्टीरिया पार्टी के राजकुमार, महारानी या राजकुमारी किसी से तो मुलाकात हो या उन का भाषण ही सुनने को मिल जाए। तभी उन के चल-दूरवार्ता यंत्र ने आरती आरंभ कर दी, जय जगदीश हरे ........। कोई बात करना चाहता था। उन्हों ने यंत्र के दृश्य पट्ट पर दृष्टिपात किया तो क्रमांक अनजान था। फिर भी उन्हों ने बटन दबा कर उसे सुना। प्रणाम, गुरूवर! स्वर परिचित था। शिष्य, कौन हो? स्वर नहीं पहचाना। कैसे पहचानेंगे गुरूवर? स्वर सुने दिन बहुत हो गए। मैं सनत बोल रहा हूँ। मैं ने आप को बहनजी की रैली में देखा था। आप के नजदीक आना चाहता था, लेकिन तब तक आप सरक लिए। नैमिषारण्य से आपके यंत्र का क्रमांक प्राप्त किया है, आप से मिलना चाहता हूँ। सनत का स्वर पहचानते ही सूत जी के मुख पर चमक आ गई बहुत दिनों से किसी अपने वाले से न मिले थे। सनत से पूछा, तुम भी यहीं डटे हो? क्या समाचार हैं? -गुरूवर क्यूं न डटें? समाचारों की सारी सम्पन्नता यहीं तो है। पूरे चाचा खानदान की चकल्लस यहीं है, बंगले में साइकिल और लालटेन मुस्तैद हैं, माया महारानी है, राम मंदिर के सैनानी हैं, चौधरी साहब की विरासत इधर है। आप के लिए सुंदर संवाद है मेरे पास, साथ में विजया घोंट कर छानने वाला एक चेला भी है। सूत जी को लगा पिछले पूरे सप्ताह की कमी आज ही पूरी हो जानी है। सनत को बोल दिया- अविलम्ब चेले समेत आ जाओ। सूत जी को संध्या अच्छी गुजरने का विश्वास हो गया था। चेले आएँ तब तक कमर सीधी करने लेट गए।
हे, पाठक!
दो घड़ी बीतते बीतते चेले ने अपने चेले समेत दर्शन दिए। आते ही कहने लगा गुरुवर देर हो गई। लेकिन विजया वहीं पिसवा लाया हूँ। यहाँ सितारा में सिल-बट्टा मिलना नहीं था। आप तो कोई अच्छा सा शीतल रस मंगाइए जिस से छानने की कार्यवाही आगे बढ़े। खस का शरबत और आम का रस मंगाया गया। विजया छनी और बम भोले के नाम से उदरस्थ की गई। तीनों बारी बारी से टेम बना आए। फिर तीनों ने बारी बारी से स्नान किया। तब तक रंग चढ़ चुका था। भोजन तो हो लेगा, लेकिन उस से पहले तीनों को शीतल रबड़ी स्मरण हो आई। सनत ने चेले को दौड़ाया। वह आधी घड़ी में वापस लौटा। केशर और बादाम से संस्कारित शीतल रबड़ी कण्ठ से उतरते ही रंग और दुगना हो गया। सनत बोला- गुरूवर अपना जंघशीर्ष दो, एक चक्रिका सुननी है। क्या है इस में? सूत जी की जिज्ञासा बोली। -बस तिलंगों का संवाद है।
हे, पाठक!
चक्रिका को जंघशीर्ष पर चलाया गया। आवाजें आने लगी...... देखिएगा जब से भारतबर्ष बना है। चरचा है किसी दलित को पंचायत का मुखिया बनना चाहिए। इस बार तो यह अवसर चूकना मूर्खता होगी। आप लोगों का साथ मिले तो यह संभव हो सकता है। मेरे अलावा इस योग्य और कोई नहीं। -यह निकटवान का स्वर था। ........ हमने पाँच बरस तक रैलें दौड़ाई हैं, सारी दुनिया को दिखा दिया, कैसे दौड़ाई जाती हैं? मौका तो हमारे लिए भी यही है, अब कोई सारी उमर रेल थोड़े ही चलाते रहेंगे ....... बात समाप्त होती उस से पहले ही तीसरी आवाज आई........देखिए आप दोनों ने तो पाँच बरस राजसुख भोगा है। हम ही बीच में बनवासी भए। हमने तो अपने दूत को भेजा भी था कि समर्थन देने को तैयार हैं। पर घास तक डाली गई। बाद में हम ही सरकार बचाने के काम आए। दावा तो हमारा कउन सा कच्चा है। अब महारानी जाने क्यों फिर से वही पुराना नाम उछाल रही हैं।
हे, पाठक!
पर तीनों की कैसे मुराद पूरी हो? इस का कोई सूत्र निकलना चाहिए। तभी निकटवान बोल पड़े -उस में कउन बरी बात है। हम तीनों को एक एक बरस बिठाय दें। फिर भी दो बरस बच रहें। उसमें महारानी किसी अउर को बिठाय के तमन्ना पूरी कर लेय। तो फिर डील पक्की रही। दोनों बोले पक्की। फिर साथ लड़ेंगे। बंगला, साइकिल, लालटेन एकता जिन्दाबाद! ... .... .... जिन्दाबाद! ....जिन्दाबाद! .....
इस के आगे चक्रिका रिक्त थी।
कैसा संवाद है? गुरूवर!
अतिसुंदर, सूत जी बोले- नैमिषारण्य में तो आनंद छा जाएगा। कथा सुन लोग झूम उट्ठेंगे। चलो अब समय हो चला है, भोजन शाला चलते हैं।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
माया बहन जी की सभा से तेजी से लौट कर सूत जी अपने ठिकाने पहुँचे। चाहते थे इस प्रदेश में आए हैं तो बैक्टीरिया पार्टी के राजकुमार, महारानी या राजकुमारी किसी से तो मुलाकात हो या उन का भाषण ही सुनने को मिल जाए। तभी उन के चल-दूरवार्ता यंत्र ने आरती आरंभ कर दी, जय जगदीश हरे ........। कोई बात करना चाहता था। उन्हों ने यंत्र के दृश्य पट्ट पर दृष्टिपात किया तो क्रमांक अनजान था। फिर भी उन्हों ने बटन दबा कर उसे सुना। प्रणाम, गुरूवर! स्वर परिचित था। शिष्य, कौन हो? स्वर नहीं पहचाना। कैसे पहचानेंगे गुरूवर? स्वर सुने दिन बहुत हो गए। मैं सनत बोल रहा हूँ। मैं ने आप को बहनजी की रैली में देखा था। आप के नजदीक आना चाहता था, लेकिन तब तक आप सरक लिए। नैमिषारण्य से आपके यंत्र का क्रमांक प्राप्त किया है, आप से मिलना चाहता हूँ। सनत का स्वर पहचानते ही सूत जी के मुख पर चमक आ गई बहुत दिनों से किसी अपने वाले से न मिले थे। सनत से पूछा, तुम भी यहीं डटे हो? क्या समाचार हैं? -गुरूवर क्यूं न डटें? समाचारों की सारी सम्पन्नता यहीं तो है। पूरे चाचा खानदान की चकल्लस यहीं है, बंगले में साइकिल और लालटेन मुस्तैद हैं, माया महारानी है, राम मंदिर के सैनानी हैं, चौधरी साहब की विरासत इधर है। आप के लिए सुंदर संवाद है मेरे पास, साथ में विजया घोंट कर छानने वाला एक चेला भी है। सूत जी को लगा पिछले पूरे सप्ताह की कमी आज ही पूरी हो जानी है। सनत को बोल दिया- अविलम्ब चेले समेत आ जाओ। सूत जी को संध्या अच्छी गुजरने का विश्वास हो गया था। चेले आएँ तब तक कमर सीधी करने लेट गए।
हे, पाठक!
दो घड़ी बीतते बीतते चेले ने अपने चेले समेत दर्शन दिए। आते ही कहने लगा गुरुवर देर हो गई। लेकिन विजया वहीं पिसवा लाया हूँ। यहाँ सितारा में सिल-बट्टा मिलना नहीं था। आप तो कोई अच्छा सा शीतल रस मंगाइए जिस से छानने की कार्यवाही आगे बढ़े। खस का शरबत और आम का रस मंगाया गया। विजया छनी और बम भोले के नाम से उदरस्थ की गई। तीनों बारी बारी से टेम बना आए। फिर तीनों ने बारी बारी से स्नान किया। तब तक रंग चढ़ चुका था। भोजन तो हो लेगा, लेकिन उस से पहले तीनों को शीतल रबड़ी स्मरण हो आई। सनत ने चेले को दौड़ाया। वह आधी घड़ी में वापस लौटा। केशर और बादाम से संस्कारित शीतल रबड़ी कण्ठ से उतरते ही रंग और दुगना हो गया। सनत बोला- गुरूवर अपना जंघशीर्ष दो, एक चक्रिका सुननी है। क्या है इस में? सूत जी की जिज्ञासा बोली। -बस तिलंगों का संवाद है।
हे, पाठक!
चक्रिका को जंघशीर्ष पर चलाया गया। आवाजें आने लगी...... देखिएगा जब से भारतबर्ष बना है। चरचा है किसी दलित को पंचायत का मुखिया बनना चाहिए। इस बार तो यह अवसर चूकना मूर्खता होगी। आप लोगों का साथ मिले तो यह संभव हो सकता है। मेरे अलावा इस योग्य और कोई नहीं। -यह निकटवान का स्वर था। ........ हमने पाँच बरस तक रैलें दौड़ाई हैं, सारी दुनिया को दिखा दिया, कैसे दौड़ाई जाती हैं? मौका तो हमारे लिए भी यही है, अब कोई सारी उमर रेल थोड़े ही चलाते रहेंगे ....... बात समाप्त होती उस से पहले ही तीसरी आवाज आई........देखिए आप दोनों ने तो पाँच बरस राजसुख भोगा है। हम ही बीच में बनवासी भए। हमने तो अपने दूत को भेजा भी था कि समर्थन देने को तैयार हैं। पर घास तक डाली गई। बाद में हम ही सरकार बचाने के काम आए। दावा तो हमारा कउन सा कच्चा है। अब महारानी जाने क्यों फिर से वही पुराना नाम उछाल रही हैं।
हे, पाठक!
पर तीनों की कैसे मुराद पूरी हो? इस का कोई सूत्र निकलना चाहिए। तभी निकटवान बोल पड़े -उस में कउन बरी बात है। हम तीनों को एक एक बरस बिठाय दें। फिर भी दो बरस बच रहें। उसमें महारानी किसी अउर को बिठाय के तमन्ना पूरी कर लेय। तो फिर डील पक्की रही। दोनों बोले पक्की। फिर साथ लड़ेंगे। बंगला, साइकिल, लालटेन एकता जिन्दाबाद! ... .... .... जिन्दाबाद! ....जिन्दाबाद! .....
इस के आगे चक्रिका रिक्त थी।
कैसा संवाद है? गुरूवर!
अतिसुंदर, सूत जी बोले- नैमिषारण्य में तो आनंद छा जाएगा। कथा सुन लोग झूम उट्ठेंगे। चलो अब समय हो चला है, भोजन शाला चलते हैं।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
देर से छूटी रेलगाड़ी के मुसाफिर
बत्तीस घंटों के निजि सफर ने बहुत थकान दे दी। जयपुर जाना हुआ और लौटना भी। रेलगा़ड़ी से दोनों ओर की यात्रा की गई। जाने के लिए नियमित रेलगाड़ी और और आने के लिए विशेष रेलगाड़ी में टिकट आरक्षित करवाए गए। जाने वाली गाड़ी दस मिनट देर से छूटी और समय पर पहुँच गई। जिस काम में दिन भर लगने की संभावना थी वह एक घंटे से भी कम में हो गया। ग्यारह बजे दोपहर को काम से निपट लिए लेकिन वापसी गाड़ी रात 9.15 की थी। सोचा जयपुर में घूमा जाए, कुछ लोगों से मिल लिया जाए। लेकिन शोले बरसाती धूप और ताप ने वापस घर में धकेल दिया। दिन में सोए तो थकान निकल गई। बेटी साथ थी वह अपनी मौसी से बात करती रही। मैं उठा तो बरसों बाद कम्पूटर पर स्पाइडर सोलिटेयर का सब से कठिन खेल खेलता रहा एक घंटे में एक खेल को कोई पांच बार दोहरा कर खेलने पर हल कर पाया और पुरस्कार में आतिशबाजी देखी। तब तक गृहस्वामी आ चुके थे। दो घंटे उन से बातें की, भोजन किया फिर दोनों मेजबान हमें स्टेशन छोड़ने आए।
प्लेटफार्म पर आने पर पता लगा कि गाड़ी दो घंटे देरी से चलेगी। मेजबान हमारा एक घंटे तक साथ देते रहे। फिर हम ने उन्हें स्टेशन के बाहर टहल कर आने का बहाना कर विदा किया और एक घंटा बाहर टहलते रहे। पैर अच्छी तरह थक चुकने और एक पानी की बोतल कूड़ेदान के हवाले करने के बाद प्लेटफार्म पहुंचे तब तक गाड़ी के जाने के समय में एक घंटे के इजाफे के साथ उस का प्लेटफार्म बदल चुका था। दुनिया भर में अपनी खूबसूरती के विख्यात गुलाबी नगर के रेलवे स्टेशन की हालत ऐसी थी जैसे वह देश का सब से उपेक्षित रेलवे स्टेशन हो। गर्मियों के यात्रियों की भीड़ ढोते छोटे छोटे प्लेटफार्म, जिन के आधे से अधिक पंखे बंद, पैर रखने तक को स्थान नहीं। पटरियों की दिशा से आती बदबू के असहनीय झोंके। तलाश करने पर स्टेशन मास्टर से ले कर पूछताछ खिड़की तक कुछ भी न मिले। देरी से तय किया गया गाड़ी के समय से भी आधा घंटा ऊपर हो जाने पर गाड़ी नहीं लगी और टांगे जवाब देने लगीं तो बेटी पूछताछ खिड़की तक जाने को बोलने लगी। मैं ने कहा, प्लेटफार्म नं.1 तक जाना होगा। बोली, टांगें तो यहाँ भी टूट रही हैं, ऐसे में किसी का भेजा तो खाया जाए।
पूछताछ खिड़की तो सिरे से गायब थी ही, मुश्किल से स्टेशन मास्टर का दफ्तर मिला। अनधिकृत प्रवेश वर्जित की चेतावनी को मुँह चिढ़ाते हम दफ्तर में घुसे और सीधे प्रश्न दागा। ये मद्रास स्पेशल है भी या केवल झाँसा है। अलसाए से स्टेशन मास्टर ने बताया कि यार्ड में तकनीकी समस्या थी, गाड़ी थोड़ी देर में लगने वाली है। मैं बोला, वो ठीक है, पर आप ने तय समय निकल जाने के बाद कोई उद्घोषणा तक नहीं की है। -मैं अभी करवाता हूँ, यह कहते हुए उस ने किसी को टेलीफोन किया। बाहर आए तब तक उदघोषणा होने लगी थी कि मद्रास स्पेशल कुछ ही देर में प्लेटफार्म नं. 3 पर लगने वाली है। हमने समय बिताने को एक एक कप आइस्क्रीम खाई। तब गाड़ी प्लेटफार्म नं. 3 पर लग चुकी थी। हम पहुँचे तो सवारियाँ असमंजस में थीं, किस डब्बे में चढ़ें? डब्बों पर चिन्ह अंकित नहीं थे। फिर कोई बता गया कि यहाँ एस-1 है और उस के बाद गिनते जाइए। खैर लोग अपने हिसाब से एक दूसरे से पूछताछ करते हुए डब्बों में बैठ गए। गाड़ी तय समय से ठीक सवा तीन घंटे देरी से रवाना हुई। उस समय जो कोटा पहुँचने के लिए तय था।
प्लेटफार्म पर भीषण गर्मी में जिस तरह यह साढ़े तीन घंटों का वक्त काटना पड़ा था, उस से सताए हुए लोग गाड़ी में चलते पंखों और गाड़ी के चलने से प्रवेश कर रही हवा के झोंकों से मिली राहत से जल्दी ही सो लिए। मेरी नींद खुली, मोबाइल का अलार्म सुन कर। यह समय था कोटा पहुँचने का लेकिन बाहर जो स्टेशन दिखाई दे रहा था वह कोटा का कतई नहीं था। मैं ने खिड़की से निगाह दौड़ाई तो स्टेशन पर कहीं उस का नाम नजर नहीं आ रहा था। पर सवाईमाधोपुर का अनुमान था। दस मिनट प्रतीक्षा करने पर भी गाड़ी न चली तो प्लेटफार्म पर उतर कर तसल्ली भी कर ली कि सवाई माधोपुर ही था। चार बजे गाड़ी वहाँ से चली मैं ने पौन घंटे बाद का अलार्म लगाया और फिर सो लिया। अब खतरा यह नजर आ रहा था कि नींद में कोटा न निकल जाए। अगला अलार्म बजा तो गाड़ी कोटा से एक स्टेशन पहले गुड़ला जंक्शन पर खड़ी थी। वहाँ पौन घंटा रुक कर गाड़ी फिर चली तो चंबल पुल के पहले रुकी फिर कोटा आऊटर पर। खैर छह बजने के कुछ मिनट बाद उस ने कोटा में उतारा। साढ़े छह बजे घर पहुँचे तो बेटी ने तो बिस्तर संभाला, मैं ने अपनी अदालत की फाइलें। आठ बजे की अदालत थी। जैसे तैसे साढ़े नौ बजे अदालत पहुँचा और अपना काम निपटा कर घर पहुँचा तो ढ़ाई बज चुके थे। खाना खा कर सोया तो शाम साढ़े छह बजे उठा तो मुझे बहुत देर बाद यह सत्य पता लगा कि मैं सुबह नहीं शाम को उठ रहा हूँ।
गाड़ी में चेन्नई जाने वाले बहुत मुसाफिर थे। मेरा सहयात्री कह रहा था, वहाँ तक पहुँचते पहुँचते तो चौबीस घंटे भी देरी हो सकती है। यह वह गाड़ी थी, जो किसी तकनीकी कारण से अपने आरंभिक स्टेशन पर ही तीन घंटों से भी अधिक देरी से चली थी। यह विशेष गाड़ी थी जिस के लिए भारतीय रेलवे ने अपने व्यस्त समय में से समय निकाला होगा, वह पूरी तरह से नष्ट हो चुका था। हर स्थान पर उस के लिए नए सिरे से समय निकालना संभव नहीं, इस लिए उस का भविष्य यही हो गया था कि जब जहाँ जैसे स्थान मिलेगा उसे वैसे ही आगे रवाना किया जाएगा। हमारे जीवन में भी जब हम किसी निश्चित समय पर अवसर चूक जाते हैं तो हमारी भी यही स्थिति हो जाती है।
प्लेटफार्म पर आने पर पता लगा कि गाड़ी दो घंटे देरी से चलेगी। मेजबान हमारा एक घंटे तक साथ देते रहे। फिर हम ने उन्हें स्टेशन के बाहर टहल कर आने का बहाना कर विदा किया और एक घंटा बाहर टहलते रहे। पैर अच्छी तरह थक चुकने और एक पानी की बोतल कूड़ेदान के हवाले करने के बाद प्लेटफार्म पहुंचे तब तक गाड़ी के जाने के समय में एक घंटे के इजाफे के साथ उस का प्लेटफार्म बदल चुका था। दुनिया भर में अपनी खूबसूरती के विख्यात गुलाबी नगर के रेलवे स्टेशन की हालत ऐसी थी जैसे वह देश का सब से उपेक्षित रेलवे स्टेशन हो। गर्मियों के यात्रियों की भीड़ ढोते छोटे छोटे प्लेटफार्म, जिन के आधे से अधिक पंखे बंद, पैर रखने तक को स्थान नहीं। पटरियों की दिशा से आती बदबू के असहनीय झोंके। तलाश करने पर स्टेशन मास्टर से ले कर पूछताछ खिड़की तक कुछ भी न मिले। देरी से तय किया गया गाड़ी के समय से भी आधा घंटा ऊपर हो जाने पर गाड़ी नहीं लगी और टांगे जवाब देने लगीं तो बेटी पूछताछ खिड़की तक जाने को बोलने लगी। मैं ने कहा, प्लेटफार्म नं.1 तक जाना होगा। बोली, टांगें तो यहाँ भी टूट रही हैं, ऐसे में किसी का भेजा तो खाया जाए।
पूछताछ खिड़की तो सिरे से गायब थी ही, मुश्किल से स्टेशन मास्टर का दफ्तर मिला। अनधिकृत प्रवेश वर्जित की चेतावनी को मुँह चिढ़ाते हम दफ्तर में घुसे और सीधे प्रश्न दागा। ये मद्रास स्पेशल है भी या केवल झाँसा है। अलसाए से स्टेशन मास्टर ने बताया कि यार्ड में तकनीकी समस्या थी, गाड़ी थोड़ी देर में लगने वाली है। मैं बोला, वो ठीक है, पर आप ने तय समय निकल जाने के बाद कोई उद्घोषणा तक नहीं की है। -मैं अभी करवाता हूँ, यह कहते हुए उस ने किसी को टेलीफोन किया। बाहर आए तब तक उदघोषणा होने लगी थी कि मद्रास स्पेशल कुछ ही देर में प्लेटफार्म नं. 3 पर लगने वाली है। हमने समय बिताने को एक एक कप आइस्क्रीम खाई। तब गाड़ी प्लेटफार्म नं. 3 पर लग चुकी थी। हम पहुँचे तो सवारियाँ असमंजस में थीं, किस डब्बे में चढ़ें? डब्बों पर चिन्ह अंकित नहीं थे। फिर कोई बता गया कि यहाँ एस-1 है और उस के बाद गिनते जाइए। खैर लोग अपने हिसाब से एक दूसरे से पूछताछ करते हुए डब्बों में बैठ गए। गाड़ी तय समय से ठीक सवा तीन घंटे देरी से रवाना हुई। उस समय जो कोटा पहुँचने के लिए तय था।
प्लेटफार्म पर भीषण गर्मी में जिस तरह यह साढ़े तीन घंटों का वक्त काटना पड़ा था, उस से सताए हुए लोग गाड़ी में चलते पंखों और गाड़ी के चलने से प्रवेश कर रही हवा के झोंकों से मिली राहत से जल्दी ही सो लिए। मेरी नींद खुली, मोबाइल का अलार्म सुन कर। यह समय था कोटा पहुँचने का लेकिन बाहर जो स्टेशन दिखाई दे रहा था वह कोटा का कतई नहीं था। मैं ने खिड़की से निगाह दौड़ाई तो स्टेशन पर कहीं उस का नाम नजर नहीं आ रहा था। पर सवाईमाधोपुर का अनुमान था। दस मिनट प्रतीक्षा करने पर भी गाड़ी न चली तो प्लेटफार्म पर उतर कर तसल्ली भी कर ली कि सवाई माधोपुर ही था। चार बजे गाड़ी वहाँ से चली मैं ने पौन घंटे बाद का अलार्म लगाया और फिर सो लिया। अब खतरा यह नजर आ रहा था कि नींद में कोटा न निकल जाए। अगला अलार्म बजा तो गाड़ी कोटा से एक स्टेशन पहले गुड़ला जंक्शन पर खड़ी थी। वहाँ पौन घंटा रुक कर गाड़ी फिर चली तो चंबल पुल के पहले रुकी फिर कोटा आऊटर पर। खैर छह बजने के कुछ मिनट बाद उस ने कोटा में उतारा। साढ़े छह बजे घर पहुँचे तो बेटी ने तो बिस्तर संभाला, मैं ने अपनी अदालत की फाइलें। आठ बजे की अदालत थी। जैसे तैसे साढ़े नौ बजे अदालत पहुँचा और अपना काम निपटा कर घर पहुँचा तो ढ़ाई बज चुके थे। खाना खा कर सोया तो शाम साढ़े छह बजे उठा तो मुझे बहुत देर बाद यह सत्य पता लगा कि मैं सुबह नहीं शाम को उठ रहा हूँ।
गाड़ी में चेन्नई जाने वाले बहुत मुसाफिर थे। मेरा सहयात्री कह रहा था, वहाँ तक पहुँचते पहुँचते तो चौबीस घंटे भी देरी हो सकती है। यह वह गाड़ी थी, जो किसी तकनीकी कारण से अपने आरंभिक स्टेशन पर ही तीन घंटों से भी अधिक देरी से चली थी। यह विशेष गाड़ी थी जिस के लिए भारतीय रेलवे ने अपने व्यस्त समय में से समय निकाला होगा, वह पूरी तरह से नष्ट हो चुका था। हर स्थान पर उस के लिए नए सिरे से समय निकालना संभव नहीं, इस लिए उस का भविष्य यही हो गया था कि जब जहाँ जैसे स्थान मिलेगा उसे वैसे ही आगे रवाना किया जाएगा। हमारे जीवन में भी जब हम किसी निश्चित समय पर अवसर चूक जाते हैं तो हमारी भी यही स्थिति हो जाती है।
मंगलवार, 28 अप्रैल 2009
बहन जी की रैली : जनतन्तर कथा (21)
हे, पाठक!
यात्रा की थकान से निद्रा देर से खुली,वातायन पर लटक रहे पर्दे के पीछे से बाहर की रोशनी अंदर झांक रही थी। द्वार के नीचे से कुछ अखबार अंदर प्रवेश कर गए थे। सूत जी उठे, स्नानघर में घुस लिए। स्नान हुआ, ध्यान हुआ, फिर सुबह के कलेवे का आदेश दे अखबार बाँचने बैठे। मुखपृष्टों पर सब जगह इस चुनाव के नायक नायिका जूते-चप्पल छाए थे। एक ही नगर में वर्तमान और प्रतीक्षारत प्र.मुखियाओं के सामने निकल आए थे वर्तमान ने चलाने वाले को माफ कर दिया और प्रतीक्षारत ने क्या किया? पता नहीं चला। चुनाव का अवसर है, संसद बंद है। सारी गतिविधियाँ सड़कों और मैदानों में हो रही हैं तो संसद का ये स्थाई निवासी रौनक देखने वहाँ चले आए तो चलाने वाले का क्या दोष? उन्हें माफ किया ही जाना चाहिए। कल से वापस संसद में चलेंगे तब भी तो माफ करना पड़ेगा न?
हे, पाठक!
अखबारों से ही नगर की दिन भर की गतिविधियों की खबर मिली। नगर में साइकिल सवारी का महत्वाकांक्षी न्यायालय से स्वीकृति न मिलने पर साइकिल दुकान पर मिस्त्री गिरी कर रहा था और बहन जी की पप्पी-झप्पी लेने का महत्वाकांक्षी हो चला था। नगर के आस पास ही चक्कर लगा रहा था। वायरस दल की ओर से तीन बार महापंचायत के मुखिया रहे इस बार नगर से चुनाव न लड़ने से नगर में हलचल नहीं थी। पप्पी-झप्पी वाले को अदालत ने रोक दिया था। दो-दो कलाकारों के बाहर हो जाने से दर्शकों को चित्रपट में रुचि नहीं रह गई थी और केवल पोस्टर देख-देख लौट रहे थे। वायरस दल का स्थानापन्न अभिनेता मुखिया जी से चिट्ठी लिखा कर लाया था। अब आज कल चिट्ठी सिफारिश पर कौन चित्रपट देखता है? बैक्टीरिया दल नगरों के स्थान पर ग्रामों में सेंध लगाने में व्यस्त था। रात में भी चल सके इस लिए साइकिल पर लालटेन टांग ली गई थी फिर भी रास्ता नहीं सूझ रहा था। बहन अकेले पिली पड़ी थी, उसे अपनी अभियांत्रिकी पर भरोसा था, कहती थी खंड पंचायत की मुखिया बन सकती हूँ तो महापंचायत की क्यों नहीं? नगर में उस की सभा शाम को थी। कलेवा कर सूत जी नगर का भ्रमण पर निकल पड़े।
हे, पाठक!
नगर में पैदलों और दुपहिया वालों की मुसीबत हो गई थी। रात से ही चौपायों की संख्या यकायक बढ़ गई थी और वे इधर-उधर आ-जा रहे थे। बढ़े हुओं में तिहाई तो पुलिस के थे जो नगर में व्यवस्था बनाने में लगे थे, विशेष रूप से उस मैदान के आसपास जहाँ बहन जी शाम को भाषण पढ़ने वाली थीं। चोरी-चकारी, लूट-डकैती, तस्करी वगैरा की गुंजाइश पूरे खंड में न्यूनतम रह गई थी। इन के प्रायोजक किसी न किसी दल के प्रचार में लगे थे। पुलिस निश्चिंत हो कर बहन जी की सेवा में लगी थी। इस में वे भी थे जिन्हें बहन जी ने हटा दिया था और अदालत ने फिर से बिठा दिया था। बढ़े हुए शेष दो तिहाई चौपाए सार्वजनिक परिवहन में लगे निजि वाहन थे जो श्रोताओं और दर्शकों को गाँवों से ला रहे थे। परिवहन विभाग का निरीक्षक वाहनों के नंबर नोट कर रहा था जिन के परमिट पक्के करने थे। सूत जी मैदान के नजदीक पहुँचे वहाँ अभी भी तैयारियाँ चल रही थीं। ग्रामीण लोग सजावट देख देख उस और जा रहे थे, जहाँ सरकारी अभियंताओं की निगरानी में ठेकेदारों ने भोजन-पानी की भोजन-पानी की पर्याप्त से अधिक व्यवस्था कर रखी थी। सब देख कर सूत जी वापस लौट पड़े।
हे, पाठक!
सूत जी ने दोपहर का भोजन कर तनिक विश्राम किया और ठीक समय से मैदान पहुंच गए मैदान में बना पांडाल तमाम कोशिशों के भी भर नहीं पा रहा था। कुछ दूर अभी भी वाहन आए जा रहे थे, पर उन में से उतरे लोग कुछ ही लोग पांडाल की ओर आ रहे थे, कुछ कहीं और जा रहे थे। बहन जी के आने का समय हो चला था। पांडाल भर नहीं पा रहा था, कोशिशें जारी थीं। एक घड़ी गुजरी, दूसरी गुजर गई। बहन जी पूरे पांच घड़ी देरी से आई। पांडाल फिर भी खाली था। मंचासीन होते ही उन्हों ने पांडाल पर दृष्टिपात किया। चौपायों के मालिकों के अंदर एक शीत लहर विद्युत धारा की तरह दौड़ गई। उन्हें वर्तमान परमिट कैंसल होते प्रतीत हो रहे थे। माल्यार्पण और स्तुति गान के बाद बहन जी माइक पर आ गईं।
हे, पाठक!
बहन जी आते ही आयोग पर बरस पडीं। वह उन्हें महापंचायत का मुखिया नहीं बनने देना चाहता इस लिए बैक्टीरिया दल के इशारे पर बहुत रोड़े अटका रहा है। आज की इस सभा में बहुत लोग उन के इशारे पर आने से रोक दिए गए। फिर आया पप्पी-झप्पी के महत्वाकांक्षी को आड़े हाथों लिया। हम इस तरह के लोगों को सीधे अंदर कर देते हैं। या तो सीधे सीधे हमारे तम्बू में आ जाओ या फिर हम बड़े घर पहुँचा देंगे, मुकदमे हम ने दर्ज करवा दिए हैं। फिर सब पर एक साथ बरस पड़ीं, बहुजन एक हो रहा है तो लोगों की आँख की किरकिरी हो गया है। ये साइकिल, हाथ, फूल वाले और भी सब लोग बहुजन को बिखेरने में लगे हैं। पर उन को पता नहीं है कि इस बार मेरा ही नंबर है और कोई है ही नहीं जिस पर चुनाव के बाद सहमति बने। इस के बाद कागज समाप्त हो गया। लोगों ने बीच बीच में बहुत तालियाँ बजाईं। बहन जी पढ़ने के बाद वापस सिंहासन पर नहीं बैठी मंच से उतर कर सीधे अपने वाहन में बैठीं और चल दीं। इस के साथ ही सब लोग दौड़ पड़े। सूत जी भी तेजी से वापस लौटे। थोड़ी देर में रास्ते में जाम लगने वाला था।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
यात्रा की थकान से निद्रा देर से खुली,वातायन पर लटक रहे पर्दे के पीछे से बाहर की रोशनी अंदर झांक रही थी। द्वार के नीचे से कुछ अखबार अंदर प्रवेश कर गए थे। सूत जी उठे, स्नानघर में घुस लिए। स्नान हुआ, ध्यान हुआ, फिर सुबह के कलेवे का आदेश दे अखबार बाँचने बैठे। मुखपृष्टों पर सब जगह इस चुनाव के नायक नायिका जूते-चप्पल छाए थे। एक ही नगर में वर्तमान और प्रतीक्षारत प्र.मुखियाओं के सामने निकल आए थे वर्तमान ने चलाने वाले को माफ कर दिया और प्रतीक्षारत ने क्या किया? पता नहीं चला। चुनाव का अवसर है, संसद बंद है। सारी गतिविधियाँ सड़कों और मैदानों में हो रही हैं तो संसद का ये स्थाई निवासी रौनक देखने वहाँ चले आए तो चलाने वाले का क्या दोष? उन्हें माफ किया ही जाना चाहिए। कल से वापस संसद में चलेंगे तब भी तो माफ करना पड़ेगा न?
हे, पाठक!
अखबारों से ही नगर की दिन भर की गतिविधियों की खबर मिली। नगर में साइकिल सवारी का महत्वाकांक्षी न्यायालय से स्वीकृति न मिलने पर साइकिल दुकान पर मिस्त्री गिरी कर रहा था और बहन जी की पप्पी-झप्पी लेने का महत्वाकांक्षी हो चला था। नगर के आस पास ही चक्कर लगा रहा था। वायरस दल की ओर से तीन बार महापंचायत के मुखिया रहे इस बार नगर से चुनाव न लड़ने से नगर में हलचल नहीं थी। पप्पी-झप्पी वाले को अदालत ने रोक दिया था। दो-दो कलाकारों के बाहर हो जाने से दर्शकों को चित्रपट में रुचि नहीं रह गई थी और केवल पोस्टर देख-देख लौट रहे थे। वायरस दल का स्थानापन्न अभिनेता मुखिया जी से चिट्ठी लिखा कर लाया था। अब आज कल चिट्ठी सिफारिश पर कौन चित्रपट देखता है? बैक्टीरिया दल नगरों के स्थान पर ग्रामों में सेंध लगाने में व्यस्त था। रात में भी चल सके इस लिए साइकिल पर लालटेन टांग ली गई थी फिर भी रास्ता नहीं सूझ रहा था। बहन अकेले पिली पड़ी थी, उसे अपनी अभियांत्रिकी पर भरोसा था, कहती थी खंड पंचायत की मुखिया बन सकती हूँ तो महापंचायत की क्यों नहीं? नगर में उस की सभा शाम को थी। कलेवा कर सूत जी नगर का भ्रमण पर निकल पड़े।
हे, पाठक!
नगर में पैदलों और दुपहिया वालों की मुसीबत हो गई थी। रात से ही चौपायों की संख्या यकायक बढ़ गई थी और वे इधर-उधर आ-जा रहे थे। बढ़े हुओं में तिहाई तो पुलिस के थे जो नगर में व्यवस्था बनाने में लगे थे, विशेष रूप से उस मैदान के आसपास जहाँ बहन जी शाम को भाषण पढ़ने वाली थीं। चोरी-चकारी, लूट-डकैती, तस्करी वगैरा की गुंजाइश पूरे खंड में न्यूनतम रह गई थी। इन के प्रायोजक किसी न किसी दल के प्रचार में लगे थे। पुलिस निश्चिंत हो कर बहन जी की सेवा में लगी थी। इस में वे भी थे जिन्हें बहन जी ने हटा दिया था और अदालत ने फिर से बिठा दिया था। बढ़े हुए शेष दो तिहाई चौपाए सार्वजनिक परिवहन में लगे निजि वाहन थे जो श्रोताओं और दर्शकों को गाँवों से ला रहे थे। परिवहन विभाग का निरीक्षक वाहनों के नंबर नोट कर रहा था जिन के परमिट पक्के करने थे। सूत जी मैदान के नजदीक पहुँचे वहाँ अभी भी तैयारियाँ चल रही थीं। ग्रामीण लोग सजावट देख देख उस और जा रहे थे, जहाँ सरकारी अभियंताओं की निगरानी में ठेकेदारों ने भोजन-पानी की भोजन-पानी की पर्याप्त से अधिक व्यवस्था कर रखी थी। सब देख कर सूत जी वापस लौट पड़े।
हे, पाठक!
सूत जी ने दोपहर का भोजन कर तनिक विश्राम किया और ठीक समय से मैदान पहुंच गए मैदान में बना पांडाल तमाम कोशिशों के भी भर नहीं पा रहा था। कुछ दूर अभी भी वाहन आए जा रहे थे, पर उन में से उतरे लोग कुछ ही लोग पांडाल की ओर आ रहे थे, कुछ कहीं और जा रहे थे। बहन जी के आने का समय हो चला था। पांडाल भर नहीं पा रहा था, कोशिशें जारी थीं। एक घड़ी गुजरी, दूसरी गुजर गई। बहन जी पूरे पांच घड़ी देरी से आई। पांडाल फिर भी खाली था। मंचासीन होते ही उन्हों ने पांडाल पर दृष्टिपात किया। चौपायों के मालिकों के अंदर एक शीत लहर विद्युत धारा की तरह दौड़ गई। उन्हें वर्तमान परमिट कैंसल होते प्रतीत हो रहे थे। माल्यार्पण और स्तुति गान के बाद बहन जी माइक पर आ गईं।
हे, पाठक!
बहन जी आते ही आयोग पर बरस पडीं। वह उन्हें महापंचायत का मुखिया नहीं बनने देना चाहता इस लिए बैक्टीरिया दल के इशारे पर बहुत रोड़े अटका रहा है। आज की इस सभा में बहुत लोग उन के इशारे पर आने से रोक दिए गए। फिर आया पप्पी-झप्पी के महत्वाकांक्षी को आड़े हाथों लिया। हम इस तरह के लोगों को सीधे अंदर कर देते हैं। या तो सीधे सीधे हमारे तम्बू में आ जाओ या फिर हम बड़े घर पहुँचा देंगे, मुकदमे हम ने दर्ज करवा दिए हैं। फिर सब पर एक साथ बरस पड़ीं, बहुजन एक हो रहा है तो लोगों की आँख की किरकिरी हो गया है। ये साइकिल, हाथ, फूल वाले और भी सब लोग बहुजन को बिखेरने में लगे हैं। पर उन को पता नहीं है कि इस बार मेरा ही नंबर है और कोई है ही नहीं जिस पर चुनाव के बाद सहमति बने। इस के बाद कागज समाप्त हो गया। लोगों ने बीच बीच में बहुत तालियाँ बजाईं। बहन जी पढ़ने के बाद वापस सिंहासन पर नहीं बैठी मंच से उतर कर सीधे अपने वाहन में बैठीं और चल दीं। इस के साथ ही सब लोग दौड़ पड़े। सूत जी भी तेजी से वापस लौटे। थोड़ी देर में रास्ते में जाम लगने वाला था।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
सोमवार, 27 अप्रैल 2009
माया नगरी में सूत जी महाराज : जनतन्तर कथा (20)
हे, पाठक!
सूत जी को पहली बार तापघात हुआ था इसलिए उन्हें कष्ट भी बहुत हुआ। विचार किया तो संज्ञान हुआ कि यह दो दिन वातानुकूलन का सुख-भोगने का परिणाम था। सूत जी ने प्रण कर लिया कि वे कभी इस तरह वातानुकूलन का सुख नहीं लेंगे। ऐसा सुख किस काम का जो बाद में जीवन ही संकट में डाल दे। इस के साथ ही उन्हों ने चुनाव के इस काल में किसी नेता का साक्षात्कार करने की इच्छा भी त्याग दी। अपने पत्र के लिए गतिविधियों के आधार पर ही समाचार भेजने का निर्णय किया। वायरस दल की गतिविधियाँ तो वे देख ही चुके थे। इस के बाद अन्य दलों की गतिविधियों का जायजा लेने का क्रम था। सूत जी ने एक वाहन भाड़े पर लिया और निकल पड़े दिल्ली के राजनैतिक गलियारों की ओर। जहाँ बारहों मास देस भर के नेताओं और जनता की रहती है, उन सब गलियारों में सन्नाटा पसरा मिला। सब स्थानों से नेता अन्तर्ध्यान थे तो जनता कहाँ होती। पता लगा सब अपनी अपनी जनता के शक्ति प्राप्त करने गए हैं। अब राजधानी में रुकना व्यर्थ था।
हे, पाठक!
उसी रात सूत जी उत्तर प्रांत में प्रवेश कर गए। यह देश का सब से बड़ा प्रांत था। सब से अधिक खेत भी यहीं थे। यहाँ नाना प्रकार के दल चुनाव मैदान में थे। कोई हाथी पर सवार था तो कोई साइकिल पर था। वायरस और बैक्टीरिया दल भी यहाँ भिड़े हुए थे। एक जमाना था जब प्रधानमंत्री इसी प्रांत का हुआ करता था। आज यहायहा जिधर देखो हाथी का बोल बाला था। इस प्रांत में जनता की बहुसंख्या दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की थी जो कभी भी सत्ता का समीकरण बदल सकते थे। बैक्टीरिया दल को यहाँ से बहुमत हासिल होता था। उस ने इन संबंधों में हेरफेर को उचित न समझा। जैसे कोई भी बनिया कभी भी चलती दुकान में ग्राहकों को नयी सुविधाएं नहीं देता। जब तक कि कोई प्रतियोगी मैदान में न आ जाए। वायरस दल मैदान में आया भी तो उस ने बहुमत के धर्म को अपना आधार बनाया। उस का लाभ उठा कर खंड पंचायत पर कब्जा भी किया। पर उस में जिस कमजोरी का लाभ उठा कर सत्ताधीश धर्म परिवर्तन करा कर राज करते रहे वही भेदभाव उस की भी कमजोरी बन गया।
हे, पाठक।
इस प्रांत में अल्पसंख्यक कम नहीं थे उन के एक मुश्त मत किसी को भी राजा या रंक बना सकते थे। उन की भलाई का ढोंग करते हुए बैक्टीरिया दल पहले विजयी होता रहा। लेकिन यह तिलिस्म कभी तो टूटना था। आखिर उस की यह मतजागीरदारी टूट गई, जब साइकिल वालों ने उस में सेंध लगाई। उन्हीं दिनों एक नया दल बहुसंख्या दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की एकता के नाम पर पनप रहा था। कुछ बचा खुचा था वे छीन ले गए। एक बार तो इस नए दल की नेत्री ने वायरस दल के कंधे पर चढ़ कर सांझे का झांसा दे कर सत्ता की सवारी भी की। जब सवारी ढोने का अवसर आया तो साफ मुकर गई। धीरे धीरे उस ने सब को पीछे छोड़ दिया और अब प्रदेश में हाथी की सवारी कर रही थी।
हे, पाठक!
अर्ध रात्रि को सूत जी महाराज जिस माया नगर में पहुँचे वहाँ एक विशाल मैदान में जोर शोर से मंच बनाने की तैयारियाँ चल रही थीं। बहुत से वाहन आ जा रहे थे। नीली पताकाएँ सजाई जा रही थीं। पता लगा कि प्रान्त की मुख्यमंत्री कल यहाँ अपने दल के प्रत्याशी के समर्थन में सभा को संबोधित करने वाली हैं। सूत जी ने इस माया के कभी दर्शन नहीं किए थे। उन्हों ने इसी नगर में एक ठीक-ठाक सा सितारा विश्रामालय देखा और वहीं रात्रि विश्राम के लिए रुक गए।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
सूत जी को पहली बार तापघात हुआ था इसलिए उन्हें कष्ट भी बहुत हुआ। विचार किया तो संज्ञान हुआ कि यह दो दिन वातानुकूलन का सुख-भोगने का परिणाम था। सूत जी ने प्रण कर लिया कि वे कभी इस तरह वातानुकूलन का सुख नहीं लेंगे। ऐसा सुख किस काम का जो बाद में जीवन ही संकट में डाल दे। इस के साथ ही उन्हों ने चुनाव के इस काल में किसी नेता का साक्षात्कार करने की इच्छा भी त्याग दी। अपने पत्र के लिए गतिविधियों के आधार पर ही समाचार भेजने का निर्णय किया। वायरस दल की गतिविधियाँ तो वे देख ही चुके थे। इस के बाद अन्य दलों की गतिविधियों का जायजा लेने का क्रम था। सूत जी ने एक वाहन भाड़े पर लिया और निकल पड़े दिल्ली के राजनैतिक गलियारों की ओर। जहाँ बारहों मास देस भर के नेताओं और जनता की रहती है, उन सब गलियारों में सन्नाटा पसरा मिला। सब स्थानों से नेता अन्तर्ध्यान थे तो जनता कहाँ होती। पता लगा सब अपनी अपनी जनता के शक्ति प्राप्त करने गए हैं। अब राजधानी में रुकना व्यर्थ था।
हे, पाठक!
उसी रात सूत जी उत्तर प्रांत में प्रवेश कर गए। यह देश का सब से बड़ा प्रांत था। सब से अधिक खेत भी यहीं थे। यहाँ नाना प्रकार के दल चुनाव मैदान में थे। कोई हाथी पर सवार था तो कोई साइकिल पर था। वायरस और बैक्टीरिया दल भी यहाँ भिड़े हुए थे। एक जमाना था जब प्रधानमंत्री इसी प्रांत का हुआ करता था। आज यहायहा जिधर देखो हाथी का बोल बाला था। इस प्रांत में जनता की बहुसंख्या दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की थी जो कभी भी सत्ता का समीकरण बदल सकते थे। बैक्टीरिया दल को यहाँ से बहुमत हासिल होता था। उस ने इन संबंधों में हेरफेर को उचित न समझा। जैसे कोई भी बनिया कभी भी चलती दुकान में ग्राहकों को नयी सुविधाएं नहीं देता। जब तक कि कोई प्रतियोगी मैदान में न आ जाए। वायरस दल मैदान में आया भी तो उस ने बहुमत के धर्म को अपना आधार बनाया। उस का लाभ उठा कर खंड पंचायत पर कब्जा भी किया। पर उस में जिस कमजोरी का लाभ उठा कर सत्ताधीश धर्म परिवर्तन करा कर राज करते रहे वही भेदभाव उस की भी कमजोरी बन गया।
हे, पाठक।
इस प्रांत में अल्पसंख्यक कम नहीं थे उन के एक मुश्त मत किसी को भी राजा या रंक बना सकते थे। उन की भलाई का ढोंग करते हुए बैक्टीरिया दल पहले विजयी होता रहा। लेकिन यह तिलिस्म कभी तो टूटना था। आखिर उस की यह मतजागीरदारी टूट गई, जब साइकिल वालों ने उस में सेंध लगाई। उन्हीं दिनों एक नया दल बहुसंख्या दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों की एकता के नाम पर पनप रहा था। कुछ बचा खुचा था वे छीन ले गए। एक बार तो इस नए दल की नेत्री ने वायरस दल के कंधे पर चढ़ कर सांझे का झांसा दे कर सत्ता की सवारी भी की। जब सवारी ढोने का अवसर आया तो साफ मुकर गई। धीरे धीरे उस ने सब को पीछे छोड़ दिया और अब प्रदेश में हाथी की सवारी कर रही थी।
हे, पाठक!
अर्ध रात्रि को सूत जी महाराज जिस माया नगर में पहुँचे वहाँ एक विशाल मैदान में जोर शोर से मंच बनाने की तैयारियाँ चल रही थीं। बहुत से वाहन आ जा रहे थे। नीली पताकाएँ सजाई जा रही थीं। पता लगा कि प्रान्त की मुख्यमंत्री कल यहाँ अपने दल के प्रत्याशी के समर्थन में सभा को संबोधित करने वाली हैं। सूत जी ने इस माया के कभी दर्शन नहीं किए थे। उन्हों ने इसी नगर में एक ठीक-ठाक सा सितारा विश्रामालय देखा और वहीं रात्रि विश्राम के लिए रुक गए।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
शनिवार, 25 अप्रैल 2009
जनता के लिए क्या है, आप के पास? : जनतन्तर कथा (19)
हे, पाठक!
भारत वर्ष की महापंचायत के एक प्रतीक्षारत मुखिया के साक्षात्कार का अवसर मिल जाने से सूत जी अति-प्रसन्न थे। दो दिन रिक्त रहने की सारी उदासी अन्तर्ध्यान हो गई। वे तुरंत तैयारियों में जुट गए। अपने यंत्रों की सार संभाल की कि साक्षात्कार कैसे अच्छा से अच्छा अंकित किया जा सकता है। वैमानिक कोलाहल में भी इस की जाँच करना चाहते थे। इस के लिए एक ऐसे कमरे की आवश्यकता थी जिस में आवाज करने वाला यंत्र हो। इस भवन में ध्वनिरहित वातानुकूलक बहुत थे, पर कोलाहल कहीं नहीं,, वे बहुत चिंतित हुए। अचानक उन्हें स्मरण आया कि वे अपने जंघशीर्ष पर जाल के माध्यम से विमान ध्वनि पैदा कर सकते हैं। उन्हों ने विमान ध्वनि उत्पन्न कर अपने यंत्र जाँच लिए। संध्याकाल में सूचना आई कि प्रातः पाँच बजे ही उन्हें उस वाहन में बैठना है जो प्रेस को ले कर विमान पत्तन के लिए जाएगी।
हे, पाठक!
अगले दिन सूत जी को ले कर वाहन निकला तो पूरे नगर में न जाने कहाँ कहाँ चक्कर लगाता हुआ विमानपत्तन पहुँचा। इस बीच वाहन में अनेक लोग स्थान-स्थान से सवार हुए। पत्तन पर वहाँ विशेष विमान तैयार था, सब को विमान पर चढ़ा दिया गया। सब से अंत में सात बजे जो अंतिम व्यक्ति विमान पर चढ़ा, वह प्रतीक्षारत मुखिया था। उसने सब पर दृष्टिपात किया और अपने निर्धारित आसन पर जा बैठा। फिर अपने सहायक से सूत जी की ओर इशारा कर उन के बारे में जाना। विमान चल पड़ा। जैसे ही विमान व्योम में पहुंचा और कमरबंद खोले गए, सहायक सूत जी के पास आया और प्रतीक्षारत मुखिया जी के पास वाले आसन पर जा कर अपना काम निपटा लेने को कहा, इस चेतावनी के साथ कि आप के पास मुश्किल से आधा घंटा है, इतने में काम पूरा कर लेना होगा। सूत जी तुरंत प्र. मुखिया जी के पास वाले आसन पर पहुँचे, अपना परिचय देने लगे, तो प्र. मुखिया जी खुद ही बोल पड़े - महाराज, आप को कौन नहीं जानता? आप की कथाएँ पढ़-पढ़ कर ही तो हम यहाँ तक पहुँचे हैं। आप की कथाएँ नहीं होतीं तो हम न जाने कहाँ होते? आप श्रीगणेश कीजिए। सूत जी आरंभ हुए।
हे, पाठक!
सूत जी ने पूछा- इस बार तो इस महापंचायत चुनाव में आप का दल अकेला हैं जो कह रहा हैं कि आप निर्विवादित रूप से दल की ओर से मुखिया के प्रत्याशी हैं, क्या आप के दल इस बारे में कोई विवाद नहीं है?
प्र. मुखिया जी बोले- वायरस दल में मुखिया के लिए कभी विवाद के जन्म की कोई संभावना ही उत्पन्न नहीं होने दी जाती है। हम वरिष्ठता से चलते हैं। जो हम से वरिष्ठ हैं, उन के टायर घिस गए थे। चाल बाधित हो गई थी, दल ने टायर भी बदलवाए, वे चले भी, लेकिन समय के साथ नहीं चल सकते थे, इस लिए दल ने उन्हें अवकाश दे दिया। तत्पश्चात मेरा ही क्रम था, विवाद कैसे जन्म लेता।
सूत जी- क्या यह सही नहीं कि दल के युवाओं ने गुर्जर खंड के नेता के पक्ष में ध्वनियाँ की हैं?
प्र.मुखिया- सही है, किन्तु केवल यह कहा जाता है कि वे मुखिया के योग्य हैं। ध्वनि तीव्र होती उस से पहले ही दल ने मुझे आगे कर दिया। प्रचार आरंभ हो गया। अब ध्वनियाँ होती रहें, उन के परिपक्व होने की संभावना समाप्त हो गई।
सूत जी- क्या यह नहीं कहा जाना चाहिए कि एक जन्म लेने की संभावना को गर्भ में ही समाप्त कर दिया गया जो अमानवीय था?
प्र. मुखिया- नहीं, संभावना कोई जीव नहीं होती। उसे कहीं भी समाप्त किया जा सकता है।
सूत जी- क्या आप के दल को बहुमत प्राप्त होने की संभावना है?
प्र.मुखिया- हमने ऐसा कभी नहीं कहा, हम ने कहा हमारा दल महापंचायत का सब से बड़ा दल होगा। हम बहुमत जुटाएंगे।
सूत जी- यह तेरह दिवस, मास का खेल तो पहले भी असफल हो चुका है?
प्र. मुखिया- नहीं, अब नहीं होने देंगे। कुछ दल हमारे साथ हैं, शेष हम जुटा लेंगे।
सूत जी- उन में से किसी ने आप के मुखिया होने पर आपत्ति हुई तो?
प्र. मुखिया- नहीं होगी, यही तो एक कारण है कि दल मुझे पहले ही मैदान में ले आया। वरना जवानों की ध्वनियाँ गुर्जरखंड नेता के लिए तीव्र हो जातीं तो दल को साथ मिलना कठिन हो जाता।
सूत जी- पन्द्रहवीं महापंचायत के लिए आप के दल का मुख्य नारा क्या है?
प्र. मुखिया- यही कि हमारे पास मुखिया के लायक नेता है, किसी और के पास नहीं।
सूत जी- यह तो आप के दल के लिए हुआ, जनता के लिए क्या है?
प्र. मुखिया- जनता के लिए किस के पास क्या है? किसी के पास कुछ नहीं, हम से ही क्यों अपेक्षा की जाती है। फिर जनता के लिए बहुत कुछ है। दल ने घोषणा की है। राम मंदिर बनाएंगे, समान नागरिक संहिता बनाएंगे, भारतवर्ष को आतंकवाद हीन कर देंगे, गरीबों को सस्ता चावल देंगे, बहुत कुछ है .... आप ने हमारा घोषणा-पत्र नहीं पढ़ा?
प्र. मुखिया- राम मंदिर और समान नागरिक संहिता तो आप आप के दल के बहुमत की स्थिति में बनाएँगे जिस के लिए आप खुद स्वीकार करते हैं कि वह नहीं आ रहा है। आतंकवाद के लिए विपक्षी आप को आतंकवादियों को कैकय छोड़ देने का स्मरण करवा चुके हैं। सस्ता चावल गरीबों को तब मिलेगा जब रोजगार मिलेगा। उस के लिए कुछ है आप के घोषणा पत्र में .....
सूत जी का प्रश्न पूरा होता उस से पहले ही विमान में घोषणा हुई कि यात्री अपने-अपने कमरबंद कस लें विमान उतरने वाला है। सूत जी को अपने आसन पर आना पड़ा। साक्षात्कार अधूरा ही रह गया। दिन भर में विमान अनेक स्थानों पर गया। प्र. मुखिया जी ने सब स्थानों पर भाषण किया। सूत जी को उन के प्रश्नों के उत्तर न मिले। पर मुखिया जी जब भाषण दे कर वापस आने लगते तो विपक्षी का चुनाव चिन्ह जरूर दिखाते। सायंकाल जब विमान पत्तन पर उतरा तो यान की ठंडक और बाहर की गर्मी में आते जाते सूत जी तापघात के शिकार हो लिए। सूत जी पत्तन से बाहर आए तो सहायक सूत जी को एक कागजी थैला दे कर बोला- इस में प्र. मुखिया जी के छाया चित्र हैं इन्हें साक्षात्कार के साथ जरूर छापिएगा। तीन दिनों से कोई पत्र उन के चित्र नहीं छाप रहा है और इस वाहन में बैठिएगा यह आप को आप के आवास पर छोड़ देगा। सूत जी पहले ही अपना आवास छोड़ चुके थे। वहीं वापस पहुंचे तो वहाँ कोई स्थान खाली न था। सूत जी ने पुराना ग्राहक होने की दुहाई दी तो उन्हें बताया गया कि अर्धरात्रि को एक स्थान रिक्त होगा तब वे वहाँ जा सकते हैं। तब तक वे प्रतीक्षागृह में प्रतीक्षा करें। वे प्रतीक्षागृह आए जहाँ और भी लोग थे। उन्हों ने कागजी थैला खोला तो उस में चित्रों के साथ एक विज्ञापन था और साथ में शुल्क का एक चैक भी। तापघात से पीड़ित सूत जी दो दिनों तक अपने कक्ष में ही रहे। साक्षात्कार तीसरे दिन छपा।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
भारत वर्ष की महापंचायत के एक प्रतीक्षारत मुखिया के साक्षात्कार का अवसर मिल जाने से सूत जी अति-प्रसन्न थे। दो दिन रिक्त रहने की सारी उदासी अन्तर्ध्यान हो गई। वे तुरंत तैयारियों में जुट गए। अपने यंत्रों की सार संभाल की कि साक्षात्कार कैसे अच्छा से अच्छा अंकित किया जा सकता है। वैमानिक कोलाहल में भी इस की जाँच करना चाहते थे। इस के लिए एक ऐसे कमरे की आवश्यकता थी जिस में आवाज करने वाला यंत्र हो। इस भवन में ध्वनिरहित वातानुकूलक बहुत थे, पर कोलाहल कहीं नहीं,, वे बहुत चिंतित हुए। अचानक उन्हें स्मरण आया कि वे अपने जंघशीर्ष पर जाल के माध्यम से विमान ध्वनि पैदा कर सकते हैं। उन्हों ने विमान ध्वनि उत्पन्न कर अपने यंत्र जाँच लिए। संध्याकाल में सूचना आई कि प्रातः पाँच बजे ही उन्हें उस वाहन में बैठना है जो प्रेस को ले कर विमान पत्तन के लिए जाएगी।
हे, पाठक!
अगले दिन सूत जी को ले कर वाहन निकला तो पूरे नगर में न जाने कहाँ कहाँ चक्कर लगाता हुआ विमानपत्तन पहुँचा। इस बीच वाहन में अनेक लोग स्थान-स्थान से सवार हुए। पत्तन पर वहाँ विशेष विमान तैयार था, सब को विमान पर चढ़ा दिया गया। सब से अंत में सात बजे जो अंतिम व्यक्ति विमान पर चढ़ा, वह प्रतीक्षारत मुखिया था। उसने सब पर दृष्टिपात किया और अपने निर्धारित आसन पर जा बैठा। फिर अपने सहायक से सूत जी की ओर इशारा कर उन के बारे में जाना। विमान चल पड़ा। जैसे ही विमान व्योम में पहुंचा और कमरबंद खोले गए, सहायक सूत जी के पास आया और प्रतीक्षारत मुखिया जी के पास वाले आसन पर जा कर अपना काम निपटा लेने को कहा, इस चेतावनी के साथ कि आप के पास मुश्किल से आधा घंटा है, इतने में काम पूरा कर लेना होगा। सूत जी तुरंत प्र. मुखिया जी के पास वाले आसन पर पहुँचे, अपना परिचय देने लगे, तो प्र. मुखिया जी खुद ही बोल पड़े - महाराज, आप को कौन नहीं जानता? आप की कथाएँ पढ़-पढ़ कर ही तो हम यहाँ तक पहुँचे हैं। आप की कथाएँ नहीं होतीं तो हम न जाने कहाँ होते? आप श्रीगणेश कीजिए। सूत जी आरंभ हुए।
हे, पाठक!
सूत जी ने पूछा- इस बार तो इस महापंचायत चुनाव में आप का दल अकेला हैं जो कह रहा हैं कि आप निर्विवादित रूप से दल की ओर से मुखिया के प्रत्याशी हैं, क्या आप के दल इस बारे में कोई विवाद नहीं है?
प्र. मुखिया जी बोले- वायरस दल में मुखिया के लिए कभी विवाद के जन्म की कोई संभावना ही उत्पन्न नहीं होने दी जाती है। हम वरिष्ठता से चलते हैं। जो हम से वरिष्ठ हैं, उन के टायर घिस गए थे। चाल बाधित हो गई थी, दल ने टायर भी बदलवाए, वे चले भी, लेकिन समय के साथ नहीं चल सकते थे, इस लिए दल ने उन्हें अवकाश दे दिया। तत्पश्चात मेरा ही क्रम था, विवाद कैसे जन्म लेता।
सूत जी- क्या यह सही नहीं कि दल के युवाओं ने गुर्जर खंड के नेता के पक्ष में ध्वनियाँ की हैं?
प्र.मुखिया- सही है, किन्तु केवल यह कहा जाता है कि वे मुखिया के योग्य हैं। ध्वनि तीव्र होती उस से पहले ही दल ने मुझे आगे कर दिया। प्रचार आरंभ हो गया। अब ध्वनियाँ होती रहें, उन के परिपक्व होने की संभावना समाप्त हो गई।
सूत जी- क्या यह नहीं कहा जाना चाहिए कि एक जन्म लेने की संभावना को गर्भ में ही समाप्त कर दिया गया जो अमानवीय था?
प्र. मुखिया- नहीं, संभावना कोई जीव नहीं होती। उसे कहीं भी समाप्त किया जा सकता है।
सूत जी- क्या आप के दल को बहुमत प्राप्त होने की संभावना है?
प्र.मुखिया- हमने ऐसा कभी नहीं कहा, हम ने कहा हमारा दल महापंचायत का सब से बड़ा दल होगा। हम बहुमत जुटाएंगे।
सूत जी- यह तेरह दिवस, मास का खेल तो पहले भी असफल हो चुका है?
प्र. मुखिया- नहीं, अब नहीं होने देंगे। कुछ दल हमारे साथ हैं, शेष हम जुटा लेंगे।
सूत जी- उन में से किसी ने आप के मुखिया होने पर आपत्ति हुई तो?
प्र. मुखिया- नहीं होगी, यही तो एक कारण है कि दल मुझे पहले ही मैदान में ले आया। वरना जवानों की ध्वनियाँ गुर्जरखंड नेता के लिए तीव्र हो जातीं तो दल को साथ मिलना कठिन हो जाता।
सूत जी- पन्द्रहवीं महापंचायत के लिए आप के दल का मुख्य नारा क्या है?
प्र. मुखिया- यही कि हमारे पास मुखिया के लायक नेता है, किसी और के पास नहीं।
सूत जी- यह तो आप के दल के लिए हुआ, जनता के लिए क्या है?
प्र. मुखिया- जनता के लिए किस के पास क्या है? किसी के पास कुछ नहीं, हम से ही क्यों अपेक्षा की जाती है। फिर जनता के लिए बहुत कुछ है। दल ने घोषणा की है। राम मंदिर बनाएंगे, समान नागरिक संहिता बनाएंगे, भारतवर्ष को आतंकवाद हीन कर देंगे, गरीबों को सस्ता चावल देंगे, बहुत कुछ है .... आप ने हमारा घोषणा-पत्र नहीं पढ़ा?
प्र. मुखिया- राम मंदिर और समान नागरिक संहिता तो आप आप के दल के बहुमत की स्थिति में बनाएँगे जिस के लिए आप खुद स्वीकार करते हैं कि वह नहीं आ रहा है। आतंकवाद के लिए विपक्षी आप को आतंकवादियों को कैकय छोड़ देने का स्मरण करवा चुके हैं। सस्ता चावल गरीबों को तब मिलेगा जब रोजगार मिलेगा। उस के लिए कुछ है आप के घोषणा पत्र में .....
सूत जी का प्रश्न पूरा होता उस से पहले ही विमान में घोषणा हुई कि यात्री अपने-अपने कमरबंद कस लें विमान उतरने वाला है। सूत जी को अपने आसन पर आना पड़ा। साक्षात्कार अधूरा ही रह गया। दिन भर में विमान अनेक स्थानों पर गया। प्र. मुखिया जी ने सब स्थानों पर भाषण किया। सूत जी को उन के प्रश्नों के उत्तर न मिले। पर मुखिया जी जब भाषण दे कर वापस आने लगते तो विपक्षी का चुनाव चिन्ह जरूर दिखाते। सायंकाल जब विमान पत्तन पर उतरा तो यान की ठंडक और बाहर की गर्मी में आते जाते सूत जी तापघात के शिकार हो लिए। सूत जी पत्तन से बाहर आए तो सहायक सूत जी को एक कागजी थैला दे कर बोला- इस में प्र. मुखिया जी के छाया चित्र हैं इन्हें साक्षात्कार के साथ जरूर छापिएगा। तीन दिनों से कोई पत्र उन के चित्र नहीं छाप रहा है और इस वाहन में बैठिएगा यह आप को आप के आवास पर छोड़ देगा। सूत जी पहले ही अपना आवास छोड़ चुके थे। वहीं वापस पहुंचे तो वहाँ कोई स्थान खाली न था। सूत जी ने पुराना ग्राहक होने की दुहाई दी तो उन्हें बताया गया कि अर्धरात्रि को एक स्थान रिक्त होगा तब वे वहाँ जा सकते हैं। तब तक वे प्रतीक्षागृह में प्रतीक्षा करें। वे प्रतीक्षागृह आए जहाँ और भी लोग थे। उन्हों ने कागजी थैला खोला तो उस में चित्रों के साथ एक विज्ञापन था और साथ में शुल्क का एक चैक भी। तापघात से पीड़ित सूत जी दो दिनों तक अपने कक्ष में ही रहे। साक्षात्कार तीसरे दिन छपा।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
बुधवार, 22 अप्रैल 2009
सूत जी घोषित हीरो जी के निजि सचिव के साथ : जनतन्तर कथा (18)
हे, पाठक!
वायरस पार्टी के परबक्ता से मिल कर सूत जी महाराज को बड़ा हर्ष हुआ। नई कथा के लिए सूत्र मिल चुका था। परबक्ता को अपना परिचय दिया कि मैं नैमिषारण्य टाइम्स का विशेष सम्वाददाता हूँ और आप के घोषित हीरो से एक साक्षात्कार चाहता हूँ। परबक्ता बोला- अभी तो समय मिलना असंभव लगता है, हीरो भारतवर्ष के तूफानी दौरे पर हैं। एक पावं मंच पर, तो दूसरा एयरोप्लेन या हेलीकोप्टर पर रहता है, वहाँ से हटता है तो किसी द्रुतगामी वाहन पर चला जाता है। फिर यह काम मेरे क्षेत्राधिकार का नहीं है साक्षात्कार फिक्स करने का काम हीरो जी के निजि सचिव का है। उन का कॉन्टेक्ट नम्बर आप को दे सकता हूँ। सूत जी ने फटाफट अपनी डायरी निकाली, नंबर नोट किया और अपना लैपटॉप संभालते वहाँ से चलते भए। सोच रहे थे नंबर मिल गया यह कम नहीं, वरना जाल पर खोज करनी पड़ती। फिर क्या था बाहर आ कर सीधे निजि सचिव को मोबाइल थर्राया। बहुत देर तक व्यस्त रहने के बाद आखिर नंबर लग गया और वंदेमातरम् की धुन सुनाई दी। फिर आवाज आई- हू आर यू? स्पीक इमिडियटली। सूत जी कम खुदा थोड़े ही थे, उन्होंने देस देस के ऋषिमुनियों की क्लास ले रखी थी। उसे भी अपना परिचय बताया। या, या, आई लिसन्ड दिस वर्ड नेमिसारण, बट नेवर सी दिस पेपर, व्हाई नोट सेन्ड ए कॉपी डेली टू अस, वी मे प्रोवाइड यू सम हेण्डसम एडस्। सूत जी ने बताया कि उन का अखबार सारे ऋषि, मुनियों और धार्मिक हिन्दुओं में बहुत पोपुलर है। अगर हीरो जी का साक्षात्कार उस में छप गया तो चुनाव में बड़ा लाभ मिलेगा।
हे, पाठक!
ऋषि, मुनि और धार्मिक पब्लिक का नाम सुनते ही निजि सचिव सोच में पड़ गया- यह बीमारी कहाँ से टपक पड़ी। ऋषि, मुनि और धार्मिक हिन्दू तो पहले ही बुक्ड हैं। उन पर समय और धन व्यय करना ठीक नहीं, इस आदमी को टालना होगा। पर इस की इन में पैठ है, कुछ उलटा सीधा लिख बैठा तो बुक्ड माल में से कुछ तो हाथ से निकल ही जाएगा, सफाई देनी पड़ेगी सो अलग। सचिव ने तुरंत सूत जी को बोला- वैसे तो हीरो जी से साक्षात्कार होना कठिन है, फिर भी मैं कुछ प्रयत्न कर सकता हूँ। लेकिन आप को मेरे ऑफिस में एक-दो दिन डेरा डालना पड़ेगा। सूत जी फिर हर्षित हुए। काम बनता नजर आ रहा है। बन गया तो एक एक्सक्लूसिव कथा का प्रबंध तो हो ही जाएगा।
हे, पाठक!
सूत जी निजि सचिव के दफ्तर पहुँचे। निजि सचिव ने जो उन की वेषभूषा देखी तो चकरा गया। सोचा यह साक्षात व्यास मुनि का भूत कहाँ से चला आ रहा है। निजि सचिव ने एक व्यक्ति को भेज कर प्रेस के लिए आरक्षित गेस्ट हाउस का एक कमरा उन के लिए खुलवा दिया। हिदायत दी मैं काम में भूल सकता हूँ इस लिए सुबह शाम याद दिलाते रहना। एक दो दिन में साक्षात्कार अरेंज करवा दूंगा। पर एक शर्त पर कि हीरो जी मिलें तो उन से मेरी तारीफ जरूर कर दीजिएगा। कमरे पर पहुँचाने वाले आदमी ने स्विच बोर्ड पर लगा औरेंज कलर का बटन दिखाया। किसी चीज की जरूरत हो तो इसे दबाइएगा। जो चाहेंगे वही हाजिर कर दिया जाएगा। सूत जी समझ गए कि यह सब चुनाव काल की कृपा है, जिस दिन चुनाव अंतिम हुए और गेस्ट हाउस खाली करा लिया जाएगा। खैर अपने को करना भी क्या है? साक्षात्कार हुआ और अपन सटके। दूसरे एण्टी हीरो भी तो तलाशने हैं।
हे, पाठक!
सूत जी महाराज ने दो दिन तक मुफ्त आतिथ्य का सुख भोगा। वहाँ सब कुछ था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इंद्र लोक के किसी अतिथिगृह में ठहरे हों। तीसरे दिन निजि सचिव ने बताया कि आप के साक्षात्कार की व्यवस्था हो गई है। हीरो जी कल सुबह दक्षिण भारत के दौरे पर जा रहे हैं। आप उन के साथ प्लेन पर होंगे और हवाई यात्रा के बीच ही उन का साक्षात्कार ले सकेंगे। इस के अलावा कोई और समय साक्षात्कार के लिए हीरो जी के पास नहीं है। आप अपने इंस्ट्रूमेंट्स संभाल कर ले जाना। शाम को प्लेन आप को वापस यहीं छोड़ देगा। आप चाहेंगे तो आप को नेमिषारण पहुँचाने की व्यवस्था कर दी जाएगी। सूत जी बोले अभी इलेक्शन तक इधर ही रुकने और दो चार राज्यों में जाने का कार्यक्रम है। इस लिए दिल्ली में ही छोड़ दें तो ठीक रहेगा।
आज की कथा यहीं विराम लेती है, कल हीरो जी के हवाई साक्षात्कार की कथा होगी, पढ़ना विस्मृत मत करिएगा।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
वायरस पार्टी के परबक्ता से मिल कर सूत जी महाराज को बड़ा हर्ष हुआ। नई कथा के लिए सूत्र मिल चुका था। परबक्ता को अपना परिचय दिया कि मैं नैमिषारण्य टाइम्स का विशेष सम्वाददाता हूँ और आप के घोषित हीरो से एक साक्षात्कार चाहता हूँ। परबक्ता बोला- अभी तो समय मिलना असंभव लगता है, हीरो भारतवर्ष के तूफानी दौरे पर हैं। एक पावं मंच पर, तो दूसरा एयरोप्लेन या हेलीकोप्टर पर रहता है, वहाँ से हटता है तो किसी द्रुतगामी वाहन पर चला जाता है। फिर यह काम मेरे क्षेत्राधिकार का नहीं है साक्षात्कार फिक्स करने का काम हीरो जी के निजि सचिव का है। उन का कॉन्टेक्ट नम्बर आप को दे सकता हूँ। सूत जी ने फटाफट अपनी डायरी निकाली, नंबर नोट किया और अपना लैपटॉप संभालते वहाँ से चलते भए। सोच रहे थे नंबर मिल गया यह कम नहीं, वरना जाल पर खोज करनी पड़ती। फिर क्या था बाहर आ कर सीधे निजि सचिव को मोबाइल थर्राया। बहुत देर तक व्यस्त रहने के बाद आखिर नंबर लग गया और वंदेमातरम् की धुन सुनाई दी। फिर आवाज आई- हू आर यू? स्पीक इमिडियटली। सूत जी कम खुदा थोड़े ही थे, उन्होंने देस देस के ऋषिमुनियों की क्लास ले रखी थी। उसे भी अपना परिचय बताया। या, या, आई लिसन्ड दिस वर्ड नेमिसारण, बट नेवर सी दिस पेपर, व्हाई नोट सेन्ड ए कॉपी डेली टू अस, वी मे प्रोवाइड यू सम हेण्डसम एडस्। सूत जी ने बताया कि उन का अखबार सारे ऋषि, मुनियों और धार्मिक हिन्दुओं में बहुत पोपुलर है। अगर हीरो जी का साक्षात्कार उस में छप गया तो चुनाव में बड़ा लाभ मिलेगा।
हे, पाठक!
ऋषि, मुनि और धार्मिक पब्लिक का नाम सुनते ही निजि सचिव सोच में पड़ गया- यह बीमारी कहाँ से टपक पड़ी। ऋषि, मुनि और धार्मिक हिन्दू तो पहले ही बुक्ड हैं। उन पर समय और धन व्यय करना ठीक नहीं, इस आदमी को टालना होगा। पर इस की इन में पैठ है, कुछ उलटा सीधा लिख बैठा तो बुक्ड माल में से कुछ तो हाथ से निकल ही जाएगा, सफाई देनी पड़ेगी सो अलग। सचिव ने तुरंत सूत जी को बोला- वैसे तो हीरो जी से साक्षात्कार होना कठिन है, फिर भी मैं कुछ प्रयत्न कर सकता हूँ। लेकिन आप को मेरे ऑफिस में एक-दो दिन डेरा डालना पड़ेगा। सूत जी फिर हर्षित हुए। काम बनता नजर आ रहा है। बन गया तो एक एक्सक्लूसिव कथा का प्रबंध तो हो ही जाएगा।
हे, पाठक!
सूत जी निजि सचिव के दफ्तर पहुँचे। निजि सचिव ने जो उन की वेषभूषा देखी तो चकरा गया। सोचा यह साक्षात व्यास मुनि का भूत कहाँ से चला आ रहा है। निजि सचिव ने एक व्यक्ति को भेज कर प्रेस के लिए आरक्षित गेस्ट हाउस का एक कमरा उन के लिए खुलवा दिया। हिदायत दी मैं काम में भूल सकता हूँ इस लिए सुबह शाम याद दिलाते रहना। एक दो दिन में साक्षात्कार अरेंज करवा दूंगा। पर एक शर्त पर कि हीरो जी मिलें तो उन से मेरी तारीफ जरूर कर दीजिएगा। कमरे पर पहुँचाने वाले आदमी ने स्विच बोर्ड पर लगा औरेंज कलर का बटन दिखाया। किसी चीज की जरूरत हो तो इसे दबाइएगा। जो चाहेंगे वही हाजिर कर दिया जाएगा। सूत जी समझ गए कि यह सब चुनाव काल की कृपा है, जिस दिन चुनाव अंतिम हुए और गेस्ट हाउस खाली करा लिया जाएगा। खैर अपने को करना भी क्या है? साक्षात्कार हुआ और अपन सटके। दूसरे एण्टी हीरो भी तो तलाशने हैं।
हे, पाठक!
सूत जी महाराज ने दो दिन तक मुफ्त आतिथ्य का सुख भोगा। वहाँ सब कुछ था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इंद्र लोक के किसी अतिथिगृह में ठहरे हों। तीसरे दिन निजि सचिव ने बताया कि आप के साक्षात्कार की व्यवस्था हो गई है। हीरो जी कल सुबह दक्षिण भारत के दौरे पर जा रहे हैं। आप उन के साथ प्लेन पर होंगे और हवाई यात्रा के बीच ही उन का साक्षात्कार ले सकेंगे। इस के अलावा कोई और समय साक्षात्कार के लिए हीरो जी के पास नहीं है। आप अपने इंस्ट्रूमेंट्स संभाल कर ले जाना। शाम को प्लेन आप को वापस यहीं छोड़ देगा। आप चाहेंगे तो आप को नेमिषारण पहुँचाने की व्यवस्था कर दी जाएगी। सूत जी बोले अभी इलेक्शन तक इधर ही रुकने और दो चार राज्यों में जाने का कार्यक्रम है। इस लिए दिल्ली में ही छोड़ दें तो ठीक रहेगा।
आज की कथा यहीं विराम लेती है, कल हीरो जी के हवाई साक्षात्कार की कथा होगी, पढ़ना विस्मृत मत करिएगा।
बोलो! हरे नमः, गोविन्द, माधव, हरे मुरारी .....
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