@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत

सोमवार, 10 मार्च 2008

10 मार्च राष्ट्रीय शर्म दिवस मनाएँ



आज 10 मार्च को सभी भारतीय राष्ट्रीय शर्म दिवस मनाएँ।

क्यों ?

आज संध्या को घोषणा की जाएगी।

..............दिनेशराय द्विवेदी..............

रविवार, 9 मार्च 2008

“विश्व सुंदरी”

कल आलेख पोस्ट होने के तुरन्त बाद ही एक और कविता महेन्द्र नेह से प्राप्त हुई। मुझे लगा कि वे इसे कल अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आप तक पहुँचाना चाहते थे। तब तक ब्लॉगर पर कुछ अवरोध आ गया। मैं ने उन्हें नहीं बताया। लेकिन आज इस कविता विश्व सुंरीको आप के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.............

विश्व सुंरी


महेन्द्र 'नेह'

चलते चलते

राह में ठिठक गई

इस एक अदद औरत को क्या चाहिए?

इस के पावों को चाहिए

दो गतिमान पहिए

ले जाएँ इसे जो

धरती के ओर-छोर

इसे चाहिए

एक ऐसा अग्निकुण्ड

जिस में नहा कर

पिघल जाए

इस की पोर-पोर में जमी बर्फ

दुनियाँ के शातिर दिमाग

लगा रहे हैं हिसाब

कितने प्रतिशत आजादी

चाहिए इसे?

गुलामी से कितने प्रतिशत चाहिए निजात?

ये, कहीं बहने ना लग जाए

नदी की रफ्तार

कहीं उतर न आए सड़क पर

लिए दुधारी तलवार..........

इस से पहले कि

बाँच सके यह

किताब के बीच

फड़फड़ाते काले अधर

सजा दिए जाएँ

इस के जूड़े में रंगीन गजरे

गायब कर दी जाए

इस की असल पहचान

स्वयं के ही हाथों

उतरवा लिए जाएँ

बदन पर बचे खुचे परिधान

गहरे नीले अंधेरे के बीच

अलंकृत कर दिया जाए

इस के मस्तक पर

विश्व सुंदरी का खिताब

इस से पहले

कि हो सके यह

सचमुच आजाद.............

* * * * * * *

शनिवार, 8 मार्च 2008

महिलाओं पर महेन्द्र “नेह” की कविता और गीत


महेन्द्र नेह से आप परिचित हैं। उन के गीत हम सब नीग्रो हैं और "धूप की पोथी" के माध्यम से करीब दस दिनों से वे घुटने के जोड़ की टोपी (knee joint cap) के फ्रेक्चर के कारण पूरे पैर पर बंधे प्लास्टर से घर पर कैद की सजा भुगत रहे हैं। आज शाम उन से मिलने गया तो अनायास ही पूछ बैठा महिलाओं पर कविता है कोई? फिर फोल्डरों में कविताऐं तलाशी गईं। सात गीत-कविताऐं उन के यहाँ से बरामद कर लाया। एक उन के पसन्द की कविता और एक मेरी पसंद का गीत आप के लिए प्रस्तुत हैं-

महेन्द्र नेह की पसंद की कविता.........

आओ, आओ नदी - महेन्द्र नेह

अनवरत चलते चलते

ठहर झाती है जैसे कोई नदी

इस मक़ाम पर आकर ठहर गई है

इस दुनियाँ की सिरजनहार

इसे रचाने-बसाने वाली

यह औरत।

इतिहास के इस नए मोड़ पर

तमन्ना है उसकी कि लग जाऐं

तेज रफ्तार पहिए उस के पाँवों में

ले जाएं उसे धरती के ओर-छोर।

चाहत है उसकी उग आएं उसके हाथों में

पंख, और वह ले सके थाह

आसमान के काले धूसर डरावने छिद्रों की।

इच्छा है उसकी, जन्मे उसकी चेतना में

एक सूरज, पिघला दे जो

उसकी पोर-पोर में जमी बर्फ।

सपना है उसका कि

समन्दर में आत्मसात होने से पहले

वह बादल बन उमड़े-घुमड़े बरसे

और बिजली बन रचाए महा-रास

लिखे उमंगों का एक नया इतिहास

ब्रह्माण्ड के फलक पर।

इधर धरती है, जो सुन कर उस के कदमों की आहट

बिछाए बैठी है, नए ताजे फूलों की महकती चादर

आसमान है जो उस की अगवानी में बैठा है,

पलक पांवड़े बिछाए

और समन्दर है जो

उद्वेलित है, पूरे आवेग में गरजता-तरजता

आओ-आओ नदी

तुम्हीं से बना, तुम्हारा ही विस्तार हूँ मैं

तुम्हारा ही परिवर्तित सौन्दर्य

तुम्हारे ही हृदय का हाहाकार...........

*************

मेरी पसंद का गीत................

नाचना बन्द करो - महेन्द्र नेह

तुम ने ही हम को बहलाया

तुम ने ही हम को फुसलाया,

तुम ने ही हम को गली-गली

चकलों-कोठों पर नचवाया।

अब आज अचानक कहते हो

मत थिरको अपने पावों पर,

अपनी किस्मत की पोथी को

अब स्वयं बाँचना बन्द करो।

मत हिलो नाचना बन्द करो।।

तुम ने ही हम को दी हाला

तुम ने ही हमें दिया प्याला,

तुम ने औरत का हक छीना

हम को अप्सरा बना ड़ाला।

अब आज अचानक कहते हो

मत गाओ गीत जिन्दगी के,

मुस्कान अधर पर, हाथों में

अब हिना रचाना बन्द करो।

चुप रहो नाचना बन्द करो।।

तुम ने ही हम को वरण किया

तुम ने ही सीता हरण किया,

तुम ने ही अपमानित कर के

यह भटकन का निष्क्रमण किया।

अब आज अचानक कहते हो

मत निकलो घर से सड़कों पर,

अपनी साँसों की धड़कन को

बेचना-बाँटना बन्द करो।

मत जियो, नाचना बन्द करो।।

*********

अब आप बताएं, किस की पसन्द कैसी है?

सोमवार, 3 मार्च 2008

शहर न हुए, हो गए ब्लेक होल।

ब्लेक होल
  • दिनेशराय द्विवेदी
शहर, शहर न हुए,
हो गए ब्लेक होल,
जो भी आता है नजदीक
खीच लिया जाता है उस के अन्दर।
हाँ रोशनी की किरन तक
उस के अन्दर।
नहीं निकलता कोई भी उस से बाहर
कभी नहीं।

क्या है,इस ब्लेक होल में?
कोई नहीं जानता है, या
जानता है कोई कोई।
अभी-अभी किसी बड़े विज्ञानी ने बताया
चन्द रोशनी की किरणें निकल पाती हैं
ब्लेक होल के बाहर
या फिर निकल पड़ता है सब कुछ ही बाहर
जब फट पड़ता है
अपने ही दबाव से ब्लेक होल।
फिर से बनते हैं सितारे, ग्रह, उपग्रह, क्षुद्रग्रह, पूंछ वाले तारे और उल्काएं भी।
न जाने और क्या क्या भी।

तो आओ तलाश करें उन किरनों को,
जो निकल आई हैं उस ब्लेकहोल के बाहर
और शहर, और शहरों के बाहर
पूछें उन से क्या है शहर के भीतर
कैसा लग रहा है,
शहर के बाहर?
और कितना है दबाव अन्दर
कि कब टूट रहा है ब्लेक होल?
कि कब बनेंगे?
नए सितारे, नए ग्रह, नए उपग्रह,
नए क्षुद्रग्रह, पूंछ वाले नए तारे
और नई उल्काएं।
**************************************

ताजा विज्ञान समाचार अब हिन्दी ब्लॉग "कल की दुनियाँ" पर

आप ने हिन्दी ब्लॉग "शब्दों का सफर" और "अदालत " देखें होंगे। इन में से एक हमें नए शब्दों, उन की रिश्तेदारी से परिचित कराते हुए हमारी शब्द सामर्थ्य का विकास कर रहा है। तो दूसरा न्याय जगत की ताजा खबरों से अवगत कराता रहता है। इन दोनों ही चिट्ठों का महत्व प्राथमिक है। ये हमारे ज्ञान को तो बढ़ाते ही हैं हमें लेखन के लिए सामग्री भी उपलब्ध कराते हैं।
इसी श्रँखला में एक नए हिन्दी चिट्ठे "कल की दुनियाँ" ने और जन्म लिया है- यह चिट्ठा हमें आने वाले कल की दुनियाँ के लिए विज्ञान के योगदान की ताजा सूचनाऐं आप तक पँहुचा रहा है। यह आज प्रत्येक चिट्ठा पाठक की जरुरत था। सभी को इस चिट्ठे को रोज पढ़ना चाहिए। चिट्ठाकारों के लिए तो नयी वैज्ञानिक जानकारियाँ प्राप्त करने का यह सर्वोत्तम स्रोत साबित हो सकता है।
इस चिट्ठे के चिट्ठा कार ने अपने संबंध में जानकारियाँ उपलब्ध नहीं कराई हैं। लेकिन कोई अपनी पहचान छुपा कर भी हिन्दी पाठकों की सेवा कर रहा है, यह स्तुत्य है।
आप इस ब्लॉग पर यहाँ "कल की दुनियाँ" पर क्लिक कर के पहुँच सकते हैं।

शुक्रवार, 29 फ़रवरी 2008

गंदगी को मत हटाओ जिससे पता लगता रहे कि उसका उद्गम क्या है

  • गंदगी को आप हटाते रहें, और गंदगी करनेवाला गंदगी करता रहे। यह कब तक चलता रहेगा। आख़िर गंदगी करने वाले के बारे मैं सबको पता लगना चाहिए कि कौन इसे फैला रहा है?
  • अगर म्युनिसिपैलिटी इसे नहीं हटाती है, तो लोग ख़ुद ही उस रस्ते से निकालना बंद कर देंगे।
  • कीडे गंदगी से निकलते ही मर जाते हैं, गंदगी उनके जीवन के लिए जरुरी है

भड़ास को ब्लॉगर ने हटाया

भड़ास को ब्लॉगर द्वारा हटाया जा चुका है। इस पर बात करना बंद करें।
मैंने अभी देखा की कुछ और ब्लोग्स को ब्लॉगर से हटा देने का आव्हान किया गया है। इस बात की मुझे पहले ही आशंका थी।
इससे अब अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकने की संभावना हो गई है। यह एक और ख़राब स्थिति है। इससे कैसे निपटा जा सकता है , इस पर विमर्श आवश्यक हो गया है। सभी हिन्दी ब्लोग्गेर्स को इस पर विचार करना पड़ेगा।

१, मार्च २००८,

भड़ास को किसी ने नहीं हटाया

भड़ास को की सी ने नहीं हटाया। न ब्लॉगर ने और न ही चिट्ठा संकलकों ने।

इसमें कोई भी बात बुरी नहीं। सबके अपने अपने पाठक हैं। मगर ख़ुद ही अपने चिट्ठे पर उसे हटाने का नाटक भी खूब रहा। हम गच्चा खा गए। कोई बात नहीं मधु मास चल रहा है और कुछ लोग मदन मस्ती पर उतर आये हैं। उन्हें अपना काम करने दीजिये। बाकी लोग अपना काम करें।