महेन्द्र “नेह” से आप परिचित हैं। उन के गीत “हम सब नीग्रो हैं” और "धूप की पोथी" के माध्यम से करीब दस दिनों से वे घुटने के जोड़ की टोपी (knee joint cap) के फ्रेक्चर के कारण पूरे पैर पर बंधे प्लास्टर से घर पर कैद की सजा भुगत रहे हैं। आज शाम उन से मिलने गया तो अनायास ही पूछ बैठा महिलाओं पर कविता है कोई? फिर फोल्डरों में कविताऐं तलाशी गईं। सात गीत-कविताऐं उन के यहाँ से बरामद कर लाया। एक उन के पसन्द की कविता और एक मेरी पसंद का गीत आप के लिए प्रस्तुत हैं-
महेन्द्र “नेह” की पसंद की कविता.........
आओ, आओ नदी - महेन्द्र “नेह”
अनवरत चलते चलते
ठहर झाती है जैसे कोई नदी
इस मक़ाम पर आकर ठहर गई है
इस दुनियाँ की सिरजनहार
इसे रचाने-बसाने वाली
यह औरत।
इतिहास के इस नए मोड़ पर
तमन्ना है उसकी कि लग जाऐं
तेज रफ्तार पहिए उस के पाँवों में
ले जाएं उसे धरती के ओर-छोर।
चाहत है उसकी उग आएं उसके हाथों में
पंख, और वह ले सके थाह
आसमान के काले धूसर डरावने छिद्रों की।
इच्छा है उसकी, जन्मे उसकी चेतना में
एक सूरज, पिघला दे जो
उसकी पोर-पोर में जमी बर्फ।
सपना है उसका कि
समन्दर में आत्मसात होने से पहले
वह बादल बन उमड़े-घुमड़े बरसे
और बिजली बन रचाए महा-रास
लिखे उमंगों का एक नया इतिहास
ब्रह्माण्ड के फलक पर।
इधर धरती है, जो सुन कर उस के कदमों की आहट
बिछाए बैठी है, नए ताजे फूलों की महकती चादर
आसमान है जो उस की अगवानी में बैठा है,
पलक पांवड़े बिछाए
और समन्दर है जो
उद्वेलित है, पूरे आवेग में गरजता-तरजता
आओ-आओ नदी
तुम्हीं से बना, तुम्हारा ही विस्तार हूँ मैं
तुम्हारा ही परिवर्तित सौन्दर्य
तुम्हारे ही हृदय का हाहाकार...........
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मेरी पसंद का गीत................
नाचना बन्द करो - महेन्द्र “नेह”
तुम ने ही हम को बहलाया
तुम ने ही हम को फुसलाया,
तुम ने ही हम को गली-गली
चकलों-कोठों पर नचवाया।
अब आज अचानक कहते हो
मत थिरको अपने पावों पर,
अपनी किस्मत की पोथी को
अब स्वयं बाँचना बन्द करो।
मत हिलो नाचना बन्द करो।।
तुम ने ही हम को दी हाला
तुम ने ही हमें दिया प्याला,
तुम ने औरत का हक छीना
हम को अप्सरा बना ड़ाला।
अब आज अचानक कहते हो
मत गाओ गीत जिन्दगी के,
मुस्कान अधर पर, हाथों में
अब हिना रचाना बन्द करो।
चुप रहो नाचना बन्द करो।।
तुम ने ही हम को वरण किया
तुम ने ही सीता हरण किया,
तुम ने ही अपमानित कर के
यह भटकन का निष्क्रमण किया।
अब आज अचानक कहते हो
मत निकलो घर से सड़कों पर,
अपनी साँसों की धड़कन को
बेचना-बाँटना बन्द करो।
मत जियो, नाचना बन्द करो।।
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अब आप बताएं, किस की पसन्द कैसी है?