कल अदालत से आने के बाद से ही मैं बहुत परेशान था। आज पाँच मुकदमे एक ही अदालत में आखिरी बहस में नियत थे। मैं जानता था कि इन में से कम से कम एक में और अधिक से अधिक दो में बहस हो सकती है। परेशानी का कारण यही था कि मैं उन पाँच में से किन दो मुकदमों का चुनाव करूँ और पूरी तैयारी के साथ अदालत में पहुँचूँ? मेरे लिए यह चुनाव बहुत मुश्किल था। मैं ने पहले सभी पाँच मुकदमों को सरसरी तौर पर देखा। एक अवलोकन हो जाने के उपरांत उन में से दो को छाँटा और उन में बहस की तैयारी कर ली। सुबह अदालत पहुँचने तक यह अंदेशा बना रहा कि यदि खुद अदालत के जज ने यह कह दिया कि मैं तो दूसरे दो मुकदमों को पढ़ कर आया हूँ तो सारी मेहनत अकारथ जाएगी। मुझे उन एक या दो मुकदमों में बहस करनी पड़ेगी जिन में मेरी तैयारी आत्मसंतोष वाली नहीं है।
मैं अदालत पहुँचा तो सोचा पहले दूसरे मुकदमो से निपट लिया जाए, क्यों कि पहले यदि बहस वाले मुकदमों में चले गए तो इन अदालतों में जाना नहीं हो सकेगा और मुकदमों में मेरी अनुपस्थिति में कुछ भी हो सकता है। पहली ही अदालत में जज साहब एक अन्य वकील को बता रहे थे कि आज फिर किसी वकील की मृत्यु हो गई है और शोकसभा ग्यारह बजे हो चुकी है। अब काम नहीं हो सकेगा। बार एसोसिएशन की सूचना आ चुकी है। मैं समझ गया कि जिन दो मुकदमों में मैंने पूरी तैयारी करने की मेहनत की है और शेष तीन को सरसरी तौर पर देखने की जहमत उठाई है वह बेकार हो चुकी है। आज बहस नहीं होगी। जज भी नहीं सुनेंगे। क्यों कि आज का दिन उन के कार्य दिवस की गणना से कम हो गया है और आज के दिन वे अपना विलंबित काम पूरा कर के अपनी परफोरमेंस बेहतर करने का प्रयत्न करेंगे। मैं जिस जिस अदालत में गया वहाँ पहले से ही मुकदमों में तारीखें बदली जा चुकी थीं।
कुछ ही देर में मुझे विपक्षी वकील के कनिष्ट का फोन आया कि उन पाँच मुकदमों में भी अगली तारीख दी जा चुकी है। मेरा उधर जाना मुल्तवी हो गया। अब मैं भी मुतफर्रिक काम निपटाने लगा। किसी मुकदमें की अदालत की फाइल का निरीक्षण करना था, वह कर लिया। कुछ नकलों की दरख्वास्तें लगानी थीं वे लगा दीं। इतने में मध्यान्ह अवकाश हो गया और सभी लोग चाय पर चले गए।
चाय से निपटते ही मेरे एक वरिष्ट वकील ने कहा -पंडित! मेरे साथ मेरे दफ्तर चलो, कुछ काम है। वरिष्ठ का निर्दश कैसे टाला जा सकता था। मैं उन के साथ उन के दफ्तर पहुँचा। मस्अला यह था कि एक पति-पत्नी और उन के रिश्तेदार उन के दफ्तर में मौजूद थे। मेरे वरिष्ठ उन की रंजामंदी से तलाक लेने की अर्जी हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 (बी) में तैयार कर चुके थे और दोनों को पढ़ने और समझने के लिए दी हुई थी। पत्नी पक्ष उस में यह जुड़वाना चाहता था कि दोनों के बीच विवाह के उपरांत साथ रहने के बावजूद भी यौन संबंध स्थापित नहीं हुए थे। इस बात से दोनों पक्ष सहमत थे। इस लिए वरिष्ट वकील साहब ने उस तथ्य को यह लिखते हुए कि दोनों में वैचारिक मतभेद बहुत अधिक थे और वे कम नहीं होने के बजाए बढ़ रहे थे इस कारण से दोनों के बीच यौन संबंध भी स्थापित नहीं हो सके थे।

