तुम्हारा जवाब नहीं। अब अपनी रक्षा में मासूम बच्चों को औजार बना कर उतार रहे हो। बच्चों की मासूमियत भरी बोली के सहारे सहानुभूति प्राप्त करना चाहते हो। एक वीडियो देखा है, अभी-अभी। एक मासूम सी बच्ची महंगाई का अर्थशास्त्र समझा रही है। बता रही है कि पेट्रोल, डीजल और दूसरे जीवन के लिए जरूरी माल महंगे इसलिए हैं कि हमें सस्ता, चावल, मिट्टी का तेल और मुफ्त शिक्षा देनी पड़ती है। यह झूठ तुम देश को नहीं समझा पा रहे हो। पर एक बच्ची को तुमने रटा दिया है। तुम्हें चिन्ता सताती है कि इस देश के लोगों ने प्यार से नेताओं को बापू, चाचा, बहन, दीदी, बेटी, बहू जैसे संबोधन दिये हैं लेकिन तुम्हारे हिस्से में ऐसा कोई संबोधन नहीं आया। सच में तुम्हें बहुत जलन हो रही है। इस जलन को तुम छुपाना चाहते हो, लेकिन वह तुम्हारे इस प्रचार अभियान में रिस रिस कर बाहर आ रही है।
यह जलन तो तुम्हें होगी और होती रहेगी। तुम्हें यह जलन किसी और ने नहीं दी है। जलन पैदा करने वाली यह आग तो तुमने खुद लगाई है। यह आग तुम्हारे भीतर लगातार जल रही है। यह आग मरणांतक है, और तुम्हारी यह जलन भी मरणांतक है। तुम्हारी राजनीति घृणा से पैदा हुई है, प्रेम से नहीं। घृणा केवल जलन ही दे सकती है। जीवन भर इस आग में तुम जलते रहोगे, किसी उधार की ठंडक से तुम्हें आराम नहीं पड़ेगा। जो फसल तुमने बोयी है वही तो काटोगे। तुमने घृणा बोयी है, लगातार बो रहे हो, उसी की फसलें भी काट रहे हो।
किसी देश की जनता ने घृणा को पसंद नहीं किया। कभी कभी वह तुम्हारे जैसे पग पग पर घृणा फैलाने वाले लोगों के मकड़ जाल में फँसी तो है, लेकिन उसने वह जाल भी तोड़े भी हैं और तब तुम्हारे जैसे लोगों को जो हाल हुआ है, तुम उस से भी अनभिज्ञ नहीं हो। कभी कभी मन में आता भी होगा कि इस जाल से निकलो और जलन से मुक्ति पा जाओ। पर तुम्हारे शरीर के तो कण-कण में घृणा का जहर भरा है। वह तुमको पूरा जला कर ही छोड़ेगा। तुम्हारी कोई जीवित मुक्ति नहीं है। तुम्हारी मृत्यु ही उस का इलाज है। मृत्यु के बाद कैसी मुक्ति? जलते रहो¡ अपनी ही लगाई आग में। तुम्हारे भीतर सुलगती हुई घृणा की यह आग तुम्हारी नियती बन गयी है। कोई प्यार कभी तुम्हारे पास नहीं फटकेगा, फटके भी कैसे? प्यार को तो तुम्हारी घृणा पास आने के पहले जला देती है।
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