@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: इरोक्वाई बिरादरियाँ : बेहतर जीवन की ओर-10

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

इरोक्वाई बिरादरियाँ : बेहतर जीवन की ओर-10

रोक्वाई गोत्र के सद्स्यों का कर्तव्य था कि वे एक दूसरे की मदद और रक्षा करें।  सदस्य अपनी रक्षा के लिए गोत्र की शक्ति पर निर्भर करता था। यदि बाहरी व्यक्ति किसी सदस्य को चोट पहुँचा जाए तो उसे सारे गोत्र की चोट समझ कर उस का बदला लेते थे। रक्त प्रतिशोध को इरोक्वाई लोग बिना शर्त मानते थे। यदि कोई बाहरी व्यक्ति किसी इरोक्वाई को मार डालता तो पूरा गोत्र खून का बदला खून से लेने के लिए कटिबद्ध हो जाता था। पहले मध्यस्थता के प्रयास किए जाते थे। इस का तरीका यह होता कि मारने वाले के गोत्र के लोग घटना पर दुखः प्रकट करते और कोई मूल्यवान भेंट भेजते। यदि मरने वाले का गोत्र उसे स्वीकार कर लेते तो मामला निपट जाता अन्यथा। मरने वाले का गोत्र एक टुकड़ी मारने वाले का पीछा करें और मार डालें। ऐसा करने पर हत्यारे के गोत्र को शिकायत का कोई अवसर नहीं होता था और समझा जाता था कि हिसाब चुक लिया गया। 

र गोत्र के पास एक खास नाम या कई खास नाम होते थे जिन के उल्लेख से पता लगता था कि वह व्यक्ति किस गोत्र का है। गोत्र अजनबियों और बाहरी व्यक्तियों को अंगीकार कर के उन्हें कबीले में सम्मिलित कर सकता था। जो युद्धबंदी मारे नहीं जाते थे वे अपनाए जाने पर कबीले के सदस्य बन जाते थे और उन्हें कबीले के सदस्य के सभी अधिकार प्राप्त हो जाते थे। पुरुष अजनबी को भाई या बहिन और स्त्रियाँ संतान मान लेती थीं। जिन गोत्रों की सदस्य संख्या कम हो जाती थी वे अक्सर दूसरे गोत्रों से सामुहिक भर्ती कर लेते थे। किसी को अपनाए जाने का काम अनुष्ठान पूर्वक होता था और यह एक तरह से धार्मिक अनुष्ठान बन गया था। हर गोत्र का पृथक कब्रिस्तान होता था या अनेक गोत्रों का सामुहिक कब्रिस्तान होने पर एक गोत्र की पंक्ति एक साथ होती थी। माँ और उस के बच्चों को एक ही पंक्ति में दफनाया जाता था लेकिन पिता को उस के बच्चों के साथ नहीं दफनाया जा सकता था क्यों कि उस का गोत्र अलग होता था। गोत्र की एक परिषद होती थी जो वास्तव में गोत्र के सभी स्त्री-पुरुषों की जनसभा होती थी। सभी सदस्यों का मत बराबर होता था। यह परिषद शांतिकाल के साखेमों और युद्धकाल के नेता का चुनाव करती थी और उन्हें हटाती थी। गोत्र के सदस्य के मारे जाने पर वह प्रायश्चित की भेंट को स्वीकार करती थी या फिर रक्त प्रतिशोध का निर्णय करती थी। वही अजनबियों को अपना सदस्य बनाती थी। यह जनसभा गोत्र की सार्वभौम सत्ता थी। इस तरह गोत्र इरोक्वाई समाज का की एक इकाई के रूप में काम करता था।

मरीका की खोज के समय इंडियन कबीले ऐसे ही मातृवंशीय गोत्रों में संगठित थे। जो कबीले पाँच-छह या अधिक गोत्रों से मिल कर बने थे उन में तीन-चार कबीले एक समूह में संगठित हो जाते थे तथा शेष अन्य समूह में। इन समूहों को बिरादरी कहा जा सकता था। सेनेका कबीले में दो बिरादरियाँ थीं। ये बिरादियाँ वास्तव में उन समूहों का प्रतिनिधित्व करती थीं जिन में वे सब से पहले विभाजित हुए थे। गोत्रों के भीतर विवाह वर्जित था। इससे एक कबीले के लिेए यह आवश्यक था कि उस में कम से कम दो गोत्र हों जिस से कबीला स्वतंत्र रूप से अस्तित्व कायम रख सके। बिरादरी के कार्य सामाजिक और धार्मिक प्रकार के होते थे। जैसे एक कबीले में किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर दूसरी बिरादरी अंतिम क्रिया और दफनाने की व्यवस्था करती थी जब कि मृतक बिरादरी के लोग मातम मनाने में लग जाते थे। किसी गोत्र में साखेम के चुनाव को बिरादरी के दूसरे गोत्र मंजूरी देते तो ठीक था लेकिन किसी गोत्र को आपत्ति होती थी तो बिरादरी की परिषद बैठती थी और वह भी चुनाव को अस्वीकार कर देती थी तो चुनाव रद्द माना जाता था और दूसरे साखेम का चुनाव करना पड़ता था। बिरादरियाँ यदि सैनिक टुकड़ी के रूप में काम करती थीं तो हर गोत्र की वर्दी और झंडा अलग होता था। जिस तरह कई गोत्रों से मिल कर एक बिरादरी बनती थी उसी तरह कई बिरादरियों के मेल से कबीले का निर्माण होता था।

7 टिप्‍पणियां:

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

पढा...

Gyan Darpan ने कहा…

ज्ञानवर्धक आलेख|


Gyan Darpan
Matrimonial Service

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सहजीवन में एकता का परम महत्व है, उसे तो बनाये रखना आवश्यक हो जाता है।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

तथ्य परक आलेख,आभार.

Satish Saxena ने कहा…

नयी जानकारी ...
आभार आपका !

shikha varshney ने कहा…

हो गई शुरुआत...गोत्र फिर जाति.
ज्ञानवर्धक आलेख.

Bharat Bhushan ने कहा…

देखते हैं रेड इंडियन किस प्रकार दासत्व को प्राप्त हुए.