@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: आपाधापी-अवरोध और हॉर्न

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

आपाधापी-अवरोध और हॉर्न

दो दिनों से कुछ भी लिखने को मन नहीं किया। होली सर पर आ गई और दोनों बच्चे घर में नहीं। मन कुछ तो उदास होना ही था। पूर्वा बिटिया आ रही है यह सोच कर मन उद्विग्न भी था। आज रात वह कोटा पहुँच गई। उस की ट्रेन बीस मिनट लेट थी। हम स्टेशन पहुँच कर उस की प्रतीक्षा करते रहे। उस ने फोन पर बताया कि अब ट्रेन चंबल पार कर चुकी है। वहाँ से मुश्किल से पाँच मिनट में उसे प्लेटफॉर्म पर होना चाहिए था। लेकिन आधा घंटा गुजर जाने के बाद भी ट्रेन नदारद थी। पूर्वा को फिर फोन लगाया तो पता लगा आउटर पर खड़ी है। आज कल ट्रेन यातायात इतना व्यस्त रहता है कि एक ट्रेन समय से विचलित हो जाती है तो उसे फिर मार्ग खुलने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। खैर ट्रेन पूरे एक घंटा बीस मिनट देरी से कोटा पहुँची।

यातायात की यह समस्या सभी क्षेत्रों में हो चली है। स्टेशन जाने के पहले घर से रवाना हुए तो बीस मिनट का समय था। सोचा कार में पेट्रोल ले लिया जाए। पेट्रोल पंप पर सामान्य से अधिक भीड़ थी। मैं हमेशा एक ही पंप से पेट्रोल लेता हूँ, कार पहचान कर मुझे वेंडर ने गाइड किया और तुरंत पेट्रोल दे दिया। वरना बिना पेट्रोल लिए ही स्टेशन रवाना होना पड़ता। बाद में घर पहुँच कर पता लगा कि बजट में पेट्रोल की कीमतें बढ़ने की खबर से लोग पेट्रोल पंपों की ओर दौड़ रहे थे। पंप से चले तो रास्ते की दोनों लाल बत्तियों पर रुकना पड़ा। वहाँ भी आपा-धापी से पाला पड़ा हर कोई आगे निकलना चाहता था। 
स्टेशन से चले तो दो कदम बाद ही स्टेशन सीमा में ही जाम से जूझना पड़ा। हुआ ये कि ट्रेन लेट होने से जो भी आटो-रिक्षा स्टेशन पहुँचता गया उस का चालक ट्रेन से निकलने वाली सवारियों के मोह में अपना वाहन इस तरह फँसाता गया कि वाहन फँस गए। मुश्किल से पंद्रह मिनट में जाम खुला। इस बीच बज रहे हॉर्न ? बाप रे बाप! एक बार आगे वाला ऑटो-रिक्षा पीछे खिसकने लगा तो मुझे भी हॉर्न को एक पुश देना पड़ा। तुरंत पूर्वा ने टोक दिया। पापा! अब जाम में हॉर्न बजाने का क्या लाभ? वह तो खुलते ही खुलेगा। वापसी में फिर से दोनों लाल बत्तियों पर रुकना, फिर वही आगे निकलने की आपा धापी। मेरे पीछे से एक कार बार बार हॉर्न दे रही थी। लेकिन मैं उसे मार्ग नहीं दे सकता था। इधर-उधर सरकाने का स्थान ही नहीं था। जैसे ही मुझे स्थान मिला मैं ही आगे चल दिया। पीछे वाली गाड़ी को स्थान दे दे ने के बावजूद वह आगे नहीं निकल सकी। पर हॉर्न देती रही। दिन में फिर भी हॉर्न बर्दाश्त हो जाता है। लेकिन रात को हॉर्न सुनाई दे तो ऐसा लगता है जैसे कानों में किसी ने सीसा घोल दिया है। पता नहीं क्यों लोग रात को इतना हॉर्न बजाते हैं? वह भी बार बार लगातार।

13 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बडे शहर मे तो ये रोज की समस्या है और यहा जोधपुर मे सरकारी गाडी या बडी गाडी बाले खाली सडक पर भी साइड अपने हिसाब से चाहते है.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

दीनेश भाई जी आप को सपरिवार होली की शुभकामनाएं
एक बात बताऊँ ? जिसे सुनकर आप को अवश्य आश्चर्य होगा -
यहां ( अमरीकी फ्री वे और आम सड़कों पर ) शायद एकाध बार ही किसी आखिरकार का होर्न सुनाई देता है !
वरना होर्न बजाना बहुत बुरा समझा जाता है और सच कहूं तो मुझे अब तक हमारी कर का होर्न कैसा है वो पता ही नहीं !
भारत में- ' sound pollution '
बहुत ज्यादा है
चलिए अब होली के मज़े आरम्भ होंगें
...आनंद लीजिये .
स स्नेह,
- लावण्या

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी जब हम ने अपनी नयी कार ली तो छोटा बेटा एक दो महीने तक इंतजार करता रहा नयी कार का हार्न सुननए को, हमारे यहां भी हार्न किसी की बहुत बडी गलती करने पर बजाया जाता है, वर्ना सालो साल जरुरत नही पडती, ओर एक दिन एक मुर्ख ने जब गलत कार मोडी तो मैने पहले ही बेटे को बोल दिया की सुनो अपनी कार का हार्न, ओर उस के बाद आज तक फ़िर नही बजाया, बिटिया आ गई शायद कल बेटा भी आ जाये, ओर फ़िर खुशी से होली मनाये आप सब को होली की बहुत बहुत बधाई

Udan Tashtari ने कहा…

यहाँ तो हार्न सुनने के लिए कान तरस जायेंगे आपके लेकिन कोई हार्न नहीं बजायेगा, जब तक कि आप कोई बड़ी गल्ती न कर जायें.

हिन्दुस्तान पहुँचते ही हार्न की आवाज स्वागत करती सी नजर आती है..इसलिए हमें तो अच्छी लगती है पहले दिन. :)

उम्मतें ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
उम्मतें ने कहा…
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उम्मतें ने कहा…

अरे ...होली से ठीक पहले...ये तो बड़ी हार्नियाई हुई पोस्ट बन गई ! देखिये हम और आप तो इस वाद्य यंत्र को सड़क पर ही सुन लेते हैं किन्तु भाई समीर वगैरह के लिए अफ़सोस हो रहा है :)

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

रात को हॉर्न सुनाई दे तो ऐसा लगता है जैसे कानों में किसी ने सीसा घोल दिया है। पता नहीं क्यों लोग रात को इतना हॉर्न बजाते हैं? वह भी बार बार लगातार..
सही बात है,यह नई संस्कृति विकसित हो रही है.
आपको , पूरे परिवार को होली की शुभकामनाएं .

निर्मला कपिला ने कहा…

हम बाहर की बुरी बाटें जल्दी सीख लेते हैं मगर अच्छी बात पर ध्यान नही देते। मै भी अमेरिका जा कर हार्न न सुन पाने से हैरान रह गयी थी। मगर यहां तो सडकों गलियों मे कान थक जाते हैं। होली की हार्दिक शुभकामनाएं

Abhishek Ojha ने कहा…

होर्न बहुत इरिटेट करता है मुझे भी. कुछ जगहों पर लोग ज्यादा इस्तेमाल करते हैं, पुणे में थोडा कम है ! लखनऊ और देहरादून जाना हुआ, वहां तो... बाप रे ! सर दर्द हो जाता है.

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

हर शख्स जल्दी में है। उस प्रक्रिया में हर शख्स भोंपू (हॉर्न) बन गया है!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपको होली पर्व की घणी रामराम.

रामराम

अनूप शुक्ल ने कहा…

हार्न भी एक बवाल है। एक पोस्ट निकल आई! जय हो!