@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’ के चंद दोहे

गुरुवार, 9 जुलाई 2009

पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’ के चंद दोहे

मैं ने आप को अब तक अपने शायर दोस्त पुरुषोत्तम यक़ीन की ग़ज़लें खूब पढ़ाई हैं। आज उन के चंद दोहों का लुत्फ उठाइए .....



दोहे
  • पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’

.1.
वर दे विद्यादायिनी, नहीं रहे अभिमान
मिटा सकें संसार से, उत्पीड़न अपमान


.2.
पूजा सिज्दे व्यर्थ हैं, बेजा है अरदास
हमें ग़ैर के दर्द का, नहीं अगर अहसास


.3.
कैसे सस्ती हो कभी, महँगाई की शान
अपने-अपने मोल का, सब रखते हैं ध्यान


.4.
क्या कैरोसिन, लकड़ियाँ, क्या बिजली क्या गैस
सब के ऊँचे भाव हैं, करो ग़रीबो ऐश


.5.
कैसी ये आज़ादियाँ, क्या अपनों का राज
कितना मुश्किल हो गया, जीवन करना आज


.6.
जब से आई देश में, अपनों की सरकार
बढ़ीं और बेकारियाँ, हुए और लाचार



.7.
कहते हैं बूढ़े-बड़े, आज ठोक कर माथ
व्यर्थ गया अंग्रेज़ से, करना दो-दो हाथ


.8.
किस के सर इल्ज़ाम दें, कहाँ करें फ़र्याद
हम ने ख़ुद ही कर लिया, घर अपना बर्बाद


.9.
मूर्ख करें यदि मूर्खता, उन का क्या है दोष
ज्ञानी दुश्मन ज्ञान के यूँ आता है रोष



* * * * * * * * *

16 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

कहते हैं बूढ़े-बड़े, आज ठोक कर माथ
व्यर्थ गया अंग्रेज़ से, करना दो-दो हाथ

यकीन साहब के सारे ही दोहे बहुत सटीक और सार्थकता लिये हैं. बहुत आभार आपका पढवाने के लिये.

रामराम.

Arvind Mishra ने कहा…

वाह क्या दोहे हैं -घाव करे गंभीर वाले !

Abhishek Ojha ने कहा…

सच्चाई बयां करते दोहे !

Udan Tashtari ने कहा…

अति उत्तम दोहे..आपका आभार.

रंजू भाटिया ने कहा…

किस के सर इल्ज़ाम दें, कहाँ करें फ़र्याद
हम ने ख़ुद ही कर लिया, घर अपना बर्बाद

बहुत खूब ..शुक्रिया इनको पढ़वाने का

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

यह भी बहुत सुंदर रहा.

अमिताभ मीत ने कहा…

वाह ! हर दोहा कमाल है. शुक्रिया ...

बेनामी ने कहा…

एकदम मौज़ूं दोहे...बेहतरीन...

अजित वडनेरकर ने कहा…

बहुत बढ़िया। एकदम नावक के तीर हैं।

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

डॉ. द्विवेदी साहब,

आपको आभार बहुत अच्छे दोहे पढ़वाने के लिये। श्री पुरूषोत्तम जी को अनेकों बधाईयाँ

पूजा सिज्दे व्यर्थ हैं, बेजा है अरदास
हमें ग़ैर के दर्द का, नहीं अगर अहसास

कैसे सस्ती हो कभी, महँगाई की शान
अपने-अपने मोल का, सब रखते हैं ध्यान

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

जितेन्द़ भगत ने कहा…

मूर्ख करें यदि मूर्खता, उन का क्या है दोष
ज्ञानी दुश्मन ज्ञान के यूँ आता है रोष
अच्‍छा व्‍यंग्‍य-
मूर्ख करें यदि मूर्खता, उन का क्या है दोष
ज्ञानी दुश्मन ज्ञान के यूँ आता है रोष

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) ने कहा…

एक ही शब्द कहूँगा..."गजब"....!!

गौतम राजऋषि ने कहा…

पुरूषोत्तम जी तो समस्त तारिफ़ों से परे हैं।
कहते हैं बूढ़े-बड़े, आज ठोक कर माथ
व्यर्थ गया अंग्रेज़ से, करना दो-दो हाथ

क्या बात कही है!!

संजीव गौतम ने कहा…

bahut achchhe hain.

संजीव गौतम ने कहा…

bahut achchhe hain.

Neeraj Rohilla ने कहा…

Dr. Rahi masoom Raza ke upanyaas ka sahi link hai....

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