@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: एक गीत संग्रह और दो पत्रिकाओं के महत्वपूर्ण अंकों का लोकार्पण

बुधवार, 1 जुलाई 2009

एक गीत संग्रह और दो पत्रिकाओं के महत्वपूर्ण अंकों का लोकार्पण

गीत हो या ग़ज़ल, कविता हो या नवगीत, नाटक लेखन हो या मंचन; हिन्दी, हाड़ौती, उर्दू और ब्रज भाषा का साहित्य कोटा की चंबल के पानी और उर्वर भूमि में बहुत फलता फूलता है।  यहाँ साहित्य पर बहस-मुबाहिसे बहुत होते हैं।  किताबें और पत्रिकाएँ छपती भी हैं और उन के विमोचन समारोह भी होते हैं।  पिछले सप्ताह में दो बड़े आयोजन हुए जिन में दो पत्रिकाएँ और एक पुस्तक का विमोचन हुआ। 
21 जून को साहित्य, कला एवं सांस्कृतिक संस्थान के 45 वें स्थापना समारोह पर प्रेस क्लब में हुए एक समारोह में वरिष्ठ कवि ब्रजेन्द्र कौशिक के गीत संग्रह 'साक्षी है सदी' का लोकार्पण हुआ।  इस संग्रह में 54 गीत संग्रहीत हैं। 
इस संग्रह को मैं अभी नहीं पढ़ सका पर एक गीत की बानगी देखिए ....



हम ने जिस को पंच चुना 
उस ने अब तक नहीं सुना 
हम ने हा-हाकार किया
उस ने चाँटा मार दिया
हम-तुम से 
ऐसा क्यों सलूक किया
सोच 
और उत्तर दे दो टूक भैया


27 और 28 जून को 'विकल्प' जन सांस्कृतिक मंच ने 'समय की लय' नाम से एक नवगीत-जनगीत पर सृजन चिंतन समारोह आयोजित किया।  27 जून की शाम को एक काव्य-गीत संध्या का आयोजन किया गया जिस में नवगीत केन्द्र में रहे। इस में बड़ी संख्या में कवियों, गीतकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। दूसरे दिन कला दीर्घा कोटा में आयोजित समारोह में हिन्दी पत्रिका 'सम्यक' के 28वें अंक का जो कि नवगीत-जनगीत विशेषांक था तथा 'अभिव्यक्ति' के ताजा अंक का लोकार्पण किया गया।  इस अवसर पर डॉ. विष्णु विराट और अतुल कनक ने पत्रवाचन किया और उस पर बहस हुई।  लोकार्पण के बाद के दूसरे सत्र में जनगीत सामर्थ्य और संभावनाएं विषय पर एक संगोष्ठी संपन्न हुई जिसमें बशीर अहमद 'मयूख, बृजेन्द्र कौशिक, दुर्गादान सिंह गौड़, रामकुमार कृषक, शैलेन्द्र चौहान, मुनीश मदिर, डॉ. देवीचरण वर्मा, महेन्द्र 'नेह' किशनलाल वर्मा, मुकुट मणिराज, जितेन्द्र निर्मोही, अम्बिका दत्त व अन्य साहित्यकारों ने भाग लिया। 


सम्यक के इस नवगीत-जनगीत विशेषांक का  संपादन महेन्द्र 'नेह' ने किया है। इस में दो संपादकीय, छह आलेख, तीन साक्षात्कार और 71 कवि-गीतकारों के नवगीत प्रकाशित हुए हैं जिन में  निराला, नागर्जुन, शील से ले कर नए से नए  सशक्त हस्ताक्षर सम्मिलित हैं। इस से इस अंक ने नवगीत के इतिहास को अनायास ही सुरक्षित कर दिया है।  इस अंक की एक-एक रचना महत्वपूर्ण है। इस अंक में सजाए गए नवगीतों में से कुछ का रसास्वादन तो आप अनवरत पर यदा कदा करते रह सकते हैं। अभी तो आप इस विशेषांक की अन्तिम आवरण पृष्ठ पर छपा गजानन माधव मुक्तिबोध  के नवगीत का रसास्वादन कीजिए।  पढ़ने के बाद यह दर्ज कराना न भूलिए कि यह रस कौन सा था?  और कैसा लगा?


'नवगीत'
  • गजानन माधव मुक्तिबोध

भूखों ओ
प्यासों ओ
इन्द्रिय-जित सन्त बनो!

बिरला को टाटा को 
अस्थि-मांस दान दो

केवल स्वतंत्र बनो!

धूल फाँक श्रम करो
साम्य-स्वप्न भ्रम हरो

परम पूर्ण अन्त बनो!

अमरीकी सेठवाद
भारतीय मान लो
हमारे मत प्राण लो

मानवीय जन्तु बनो!
*********
अभिव्यक्ति के ताजा अंक के बारे में फिर कभी..........



18 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

दिनेश जी॥…एक सन्ग्रहनीय पोस्ट …

Ashok Pandey ने कहा…

मुक्तिबोध की कविता पढ़ाने के लिए आभार। स्‍वतंत्रता की पता नहीं कितनी कीमत चुकाएंगे हम।

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

अच्छी जानकारी दी आपने - मुक्तिबोध जी की कविता मेँ रौद्र रस और वीर रस दोनोँ ही पाये
- लावण्या

राज भाटिय़ा ने कहा…

कविता मै आज के हालात झलकते है आज का दर्द झलकता है, ओर साथ मै आप ने अति सुंदर जानकारी दी.
धन्यवाद

Udan Tashtari ने कहा…

बस, आभार इस प्रस्तुति का..वरना कमतर कर दूँगा इसका महत्व..अगर कुछ भी बोला तो!!

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

बहुत अच्छी पोस्ट .

Arvind Mishra ने कहा…

नव साहित्य परिचय के लिए शुक्रिया - जरा किसी पंच के बारे में लोक कवि की इस मायिक्रों रचना पर सुधीजन गौर फरमाएं -
तोहईं राजा तोहईं चोर
तोहईं तोर भाटा मोर
तोहईं भूजअ तोहईं खाय
तोहईं फिर पंचायती आयअ

Himanshu Pandey ने कहा…

मुक्तिबोध की कविता की मारकता अक्षुण्ण रहती है उनके प्रत्येक कविता रूप में । आभार इस प्रविष्टि के लिये ।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत जबरदस्त पोस्ट. बहुत धन्यवाद.

रामराम.

cartoonist anurag ने कहा…

dinesh ji...
bahut hi sunder.....
itnee shandar prastuti k liye aapka abhinandan karta hu......

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

एक उत्कृष्ट साहित्यिक गतिविधि की रिपोर्ट के लिए आभार।

Ashok Kumar pandey ने कहा…

yah ank bhijvaaiye bhai sahab..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

ये महत्वपूर्ण जानकारी दी आप ने....

अजित वडनेरकर ने कहा…

जानकारी के लिए शुक्रिया।
मुक्तिबोध की मानवीय जन्तु बनने की अपील हमेशा ही याद रहनी चाहिए...
बढ़िया पेशकश थी।

निर्मला कपिला ने कहा…

ितनी अच्छी जानकारी और मुक्तिबोध पढवाने के लिये धब्यवाद्

निर्मला कपिला ने कहा…

ितनी अच्छी जानकारी और मुक्तिबोध पढवाने के लिये धब्यवाद्

गौतम राजऋषि ने कहा…

इस बेहतरीन पोस्ट के लिये आभार दिनेश जी!

प्रदीप कांत ने कहा…

हम ने जिस को पंच चुना
उस ने अब तक नहीं सुना
हम ने हा-हाकार किया
उस ने चाँटा मार दिया
हम-तुम से
ऐसा क्यों सलूक किया
सोच
और उत्तर दे दो टूक भैया

BAHUT HII BADHIYA... BAS