@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: क्या है ब्लागीरी ?

सोमवार, 1 नवंबर 2010

क्या है ब्लागीरी ?

पिछली पोस्ट में मैं ने अपनी व्यस्तता  और अपनी अनुपस्थिति का जिक्र किया था। जिस से बेकार में मित्रों और पाठको के मन में संदेह जन्म न लें। सोचा था फिर से नियमित हो लूंगा। लेकिन प्रयत्न कभी भी परिणामों को अंतिम रूप से प्रभावित नहीं करते, असल निर्णायक परिस्थितियाँ होती हैं। कल सुबह से ही जिस मसले में उलझा, अभी तक नहीं सुलझ पाया। कल सुबह से व्यस्त हुआ तो रात एक बज गया। सुबह थकान पूरी तरह दूर न हो पाने के बावजूद समय पर उठ कर आज के मुकदमों की तैयारी की और नये कार्यभारों को पूरा करता हुआ अदालत पहुँचा। अभी शाम को घर पहुँचा हूँ जबरन पाँच मिनट आँखें मूंद कर लेटा। सोचता था कम से कम पन्द्रह मिनट ऐसे ही लेटा रहूँ। लेकिन तब तक शोभा ने कॉफी पकड़ा दी। मैं उठ बैठा। बेटे को तीन माह बाद बंगलूरू से घर लौटे दो दिन हो गये हैं लेकिन उस से बैठ कर फुरसत से बात नहीं हो सकी है। बेटी घंटे भर बाद कोटा पहुँच रही है उसे लेने स्टेशन जाना है। कॉफी के बाद बचे समय में यह टिपियाना पकड़ लिया है।
म सोचते हैं कि हमें ब्लागीरी के लिए फुर्सत होनी चाहिए, मन को भी तैयार होना चाहिए और शायद मूड भी। पर यदि इतना सब तामझाम जरूरी हो तो मुझे लगता है कि वह ब्लागीरी नहीं रह जाएगी। ब्लागीरी तो ऐसी होना चाहिए कि जब कुंजी-पट मिल जाए तभी टिपिया लो, जो मन में आए। बनावटी नहीं, खालिस मन की  बात हो, तो वह ब्लागीरी है। 
प का क्या सोचना है? 

25 टिप्‍पणियां:

Tausif Hindustani ने कहा…

100 % आपसे सहमत , यही ब्लॉगीरी होना चाहिए
dabirnews.blogspot.com

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

कोई और अच्छा शब्द मिल जाये. दर-असल गीरी जहां कहीं पर आ जाती है, वहां उठाई गीरी, चमचा गीरी, नेता गीरी जैसे शब्द एकदम चमक उठते हैं... :)

अजय कुमार झा ने कहा…

जीं हां सर बिल्कुल ठीक कहा आपने असल में ब्लॉगिरी तो यही है , वैसे पिछले दिनों आपकी कमी बहुत सालती रही

राज भाटिय़ा ने कहा…

सहमत हे जी,रोहतक आयेगे तो सब कसर पुरी हो जायेगी...

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

`पर यदि इतना सब तामझाम जरूरी हो तो मुझे लगता है कि वह ब्लागीरी नहीं रह जाएगी।'

सही है, वो तो या तो दादागिरी हो जाएगी या जादूगरी :)

राम त्यागी ने कहा…

मेरा भी यही सोचना है !

अगर आप किसी विषय पर शोध करके विषय परक लेख रहे हैं - जैसे कि आपका 'तीसरा खम्बा' ब्लॉग तो फिर ज़रा साक्ष्यों के आधार पर ही लिखना पड़ेगा सोच विचार कर ...अन्यथा लिखो जो मन में आये ...बस उतार दो ब्लॉग पटल पर

Satish Saxena ने कहा…

बिलकुल ठीक कह रहे हैं ! दीवाली की शुभकामनायें

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच है, मन और जीवन दोंनों में समय हो तो ही सृजनात्मकता बनी रहेगी।

PD ने कहा…

"जादूगरी" सही शब्द रहेगा.. :)

Khushdeep Sehgal ने कहा…

द्विवेदी सर,
शत प्रतिशत सहमत...ब्लॉगीरी में खुद को ज़्यादा ही पॉलिटिकली करेक्ट दिखाने की कोशिश की जाए तो वो पकड़ी जाती है...ब्लॉगीरी दिल से की जाने वाली दिल की विषयवस्तु है...इसलिए इसे दिलवाले ही ज़्यादा अच्छी तरह समझ सकते हैं...

जय हिंद...

Udan Tashtari ने कहा…

सही ही कह रहे हैं यदि किसी एजेंडे के तहत न की जाये तो.

आशा है जल्द ही आप नियमित होंगे.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

जब मर्ज़ी टिपिया दो ....सही बात ...

दीपावली की शुभकामनायें

Arvind Mishra ने कहा…

जी सच ,यही तो है ब्लागीरी /ब्लागिरी ...दिल ढूंढता है फुरसत के फिर वही चार दिन ..मगर वो मिलता ही कहाँ है -जीवन ऐसे ही छलावे की तरह बीतता जाता है ...
ऐसे में ब्लागीरी क्यों छोडी जाय ?

honesty project democracy ने कहा…

सच्ची अभिव्यक्ति ही ब्लोगिंग है और सच्ची अभिव्यक्ति कडवी तो हो सकती है लेकिन इंसानियत के वजूद के लिए सबसे जरूरी चीज है ....

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

अपने मन की बात बिना झिझके ईमानदारी से बयान करने की ताकत है ब्लॉगरी। ब्लॉग लिखकर हम अधिक सामाजिक, जिम्मेदार और सुघड़ व्यक्तित्व के स्वामी बन सकते हैं।

अपनी खोल से बाहर आकर दुनिया के बीच जिंदादिली से रहने का शऊर सिखाती है ब्लॉगरी।

बस जमाये रहिए जी। जब, जितना और जैसे भी बन पड़े। हम तो खुद ही मचल रहे हैं कुछ लिखने को लेकिन टाइम‍इच नई है...।

विष्णु बैरागी ने कहा…

शुरु किया था तो सोचा था, झण्‍डे गाड देंगे। जैसे-जैसे अन्‍दर घुसे तो अपनी हकीकत अनुभव होने लगी। जी करता है, इस झंझट से मुक्ति पा लें। लेकिन कम्‍बख्‍त है कि छुटती नहीं। बीबी के बाद यह ब्‍लागीरी ही है जिसका साथ निभता नहीं और छूटने की कल्‍पना मात्र से पसीने छूटने लगते हैं।

अब तो इसी के साथ जीना और इसी के साथ मरना है।

लिहाजा, अब इसी तरह जीए जाना है। लेकिन दिल से और सहजता से - बिलकुल 'दर्द का हद से गुजर जाना है, दवा हो जाना' की तर्ज पर।

जब जी करे, लिखेंगे, जब जी चाहा अजगर की तरह कुण्‍डली मार कर पसर जाऍंगे। जो भी करेंगे, सचमुच में दिल से। भले ही कभी-कभार करें या रोज।

इसके जरिए जब-जब खुद को सयाना साबित करने की कोशिश की, तब-तब हर बार पकडे गए। इसी ने समझाया कि अपनी असलियत में रहना ही समझदारी है।

सो, जैसे हैं वैसे दिखें और वैसा ही लिखें - यह ब्‍लागीरी है।

ZEAL ने कहा…

.

खालिस मन की बात हो, तो वह ब्लागीरी है..

I also feel so.


.

कविता रावत ने कहा…

असल निर्णायक परिस्थितियाँ होती हैं।.....बनावटी नहीं, खालिस मन की बात हो, तो वह ब्लागीरी है। आप का क्या सोचना है?
... bahut sahi..

फ़िरदौस ख़ान ने कहा…

आपसे सहमत हैं...

Archana Chaoji ने कहा…

इसीलिए तो कहा--"मेरे मन की"
शुभ-दीपावली

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

आपसे सहमत हूँ ... ब्लॉग्गिंग भी स्वतत ही होनी चाहिए ...

Gyan Darpan ने कहा…

सहमत

उम्मतें ने कहा…

मूड भी हो और दीगर कामों से फुर्सत भी , तभी ठीक !

शरद कोकास ने कहा…

सही है हमे अपनी प्राथमिकतायें तय करने का पूरा हक़ है । और मै क्या कहूँ आप सभी सीनियर हैं ठीक ही सोचते होंगे ।

Smart Indian ने कहा…

द्विवेदी जी,

आपको, परिजनों एवम मित्रों को दीवावली मंगलमय हो!