@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: कीचड़ सूखने का इंतजार ही किया जाए

सोमवार, 5 जुलाई 2010

कीचड़ सूखने का इंतजार ही किया जाए

ल रात शोभा (श्रीमती द्विवेदी) ने पूछा, गाड़ी में पेट्रोल तो है ना? मैं चौंका। एक तो पिछले ही दिनों पेट्रोल की कीमतें बढ़ी हैं फिर अक्सर वे ये सवाल तभी करती हैं जब वे मेरे साथ कार में ऐसी जगह की यात्रा करती हैं जहाँ एक-दो किलोमीटर में पेट्रोल पम्प न हो और कोई सवारी भी न मिलती हो। मैं ने तत्काल पूछा, क्यों? कहीं जाना है क्या? वे बोलीं, नहीं मैं तो इस लिए कह रही थी कि कल भारत बंद है, सुबह जरूरत पड़ेगी तो क्या करोगे? नहीं हो तो अभी जा कर भरवा लाओ। -कल तक के लिए पर्याप्त होगा। इतना कह कर मैं ने अपनी जान छुड़ाई। चलो इस बहाने हमें भारत बंद का तो पता लगा। वरना हमें तो सुबह अखबार या टीवी समाचार से ही यह पता लगता। वैसे भी कल किसी टीवी वाले को धोनी की शादी से ही फुरसत नहीं थी।
सुबह अखबार आया तो पता लगा कि बंद के कारण यातायात की अस्तव्यस्तता रहने से अधिवक्ता परिषद ने घोषणा कर दी है कि वे भी काम लंबित रखेंगे। हम कुछ रिलेक्स हो गए। हमें पता था कि आज कोई अदालत परेशान नहीं करेगी। क्यों कि अधिवक्ताओं के काम न करने से आज का दिन उन के काम के कोटे की गणना से अलग हो गया है। यह न्यायिक अधिकारियों के लिए बोनस का दिन है। इस दिन जितना काम वे अपने अपने चैंबर में करते हैं वह उन के कोटे को सुधार देता है। हम भी आराम से निबटे। बस भोजन करना शेष था कि बंगलूरू से बेटे का फोन आ गया। बता रहा था कि वह जल्दी ही नीचे जा कर कुछ नाश्ता ले आया है वरना दिन भर भोजन से वंचित रहना पड़ता। यूँ तो वह अपना भोजन खुद बनाता रहा है। लेकिन अभी इसे के लिए वहाँ पर्याप्त साधन नहीं जुटा पाने के कारण चाय आदि के अलावा वह बाजार पर ही निर्भर रहता है। उस ने बताया कि यहाँ सारी कंपनियाँ आज बंद रहेंगी। ट्रेफिक भी बंद रहेगा। सुबह सुबह ही पुलिस वालों की टोलियाँ सड़क पर आ निकली थीं। जिस किसी ने दुकान खोल दी थी उसे बंद करवा रहे थे। कह रहे थे अपना नुकसान करवाओगे और हमारे कलंक लगाओगे, कि पुलिस ने कुछ नहीं किया। मैं ने उसे कहा कि यह तो बड़ी अजीब बात है पुलिस बंद करवा रही है? तो उस का जवाब था कि यहाँ बीजेपी की सरकार जो है। 
म अदालत के लिए निकले तो ट्रेफिक रोज की तरह चलता नजर आया। हाँ ऑटो इक्का दुक्का नजर आ रहे थे। सिटी बसें नहीं थीं और दुकानें एक सिरे से बंद थीं। हम बड़े मजे में गाड़ी चलाते हुए अदालत पहुँचे तो दूर से हमारा पार्किंग पूरी तरह खाली देख प्रसन्नता हुई, कि आज किसी पेड़ की छाया के  नीचे कार पार्क कर सकेंगे। लेकिन यह खुशी पास जाने पर टूट गई। पुलिस वाले अस्पताल और अदालत के बीच वाली सड़क के किनारे वाले पार्किंग में गाड़ी पार्क करने ही नहीं दे रहे थे। हमने पार्किंग के लिए दूसरी जगह तलाशी तो सभी पार्किंग  पहले से भरे हुए थे। फिर परेशान हुए तो एक जूनियर साथी ने हमें सलाम ठोकी। हम ने गाड़ी रोक दी। उस ने कहा कि आज उस की कार अंदर पार्किंग में फँस गई है। मुझे पत्नी को अस्पताल ले जाना है। मैं गाड़ी से उतर गया और अपनी गाड़ी की चाबी उसे दे दी। मुझे पार्किंग तलाशने से मुक्ति मिली। 
दालत में जा कर अपना काम संभाला। अदालतों में गए। कुछ अदालतों ने मुकदमों में तारीखें बदल दी थीं। कुछ अदालतें जहाँ नए न्यायिक अधिकारी तबादला हो कर आए थे, तारीखें नहीं बदल रही थीं। शायद नए अधिकारी मुकदमों की पत्रावलियों से परिचित होना चाह रहे थे, या फिर वे कोटा की उस परंपरा से वाकिफ न थे, जिस के अनुसार अधिवक्ता परिषद की काम लंबित होने की चिट्ठी आने पर उन्हें प्रसन्न होना था। पर मैं जानता था कि उन की यह असामान्यता सिर्फ दोपहर के विश्राम तक ही टिकेगी। क्यों कि तब चाय पर वे पुराने अधिकारियों से मिलेंगे और उन से मिली सीख उन्हें सामान्य कर देगी। बंद के दिन भी कुछ तो मुवक्किल आ ही गए थे। कुछ उन से बातचीत की, कुछ उन्हें सलाहें दीं, कुछ टाइप का काम करवाया। एक नया मुकदमा मिला तो फीस भी मिली। इस के अलावा दो बार बैठ कर कॉफी भी पी। कुल मिला कर शाम के साढे़ चार बज गए। तब तक शहर में कुछ भी असामान्य होने की खबर नहीं थी। सब कुछ वैसे ही चल रहा था जैसे हर बंद में चलता है। दुकानें स्वतः ही बंद थीं। कुछ नुकसान होने के डर से और कुछ इस लिए कि व्यापारियों को रूटीन में सप्ताह में एक ही अवकाश मिलता है। जब कभी बंद की घोषणा होती है तो वे बड़े खुश होते हैं कि उन्हें एक दिन का अवकाश और मिला और पहले से ही पिकनिक का कार्यक्रम बना लेते हैं। फिर आज तो मौसम इस के लिए बहुत अनुकूल था। पिछले दो-तीन दिनों हुई बरसात ने वातावरण को भीगा-भीगा और कुछ कुछ सर्द तो कर ही दिया था। आज नगर के आस-पास के सभी पिकनिक स्पॉट आबाद थे। सभी महाराज भोजन बनाने के लिए पहले से बुक थे। 
शाम घर पहुँचने पर टीवी खोला तो न्यूज चैनलों पर बहसें चल रही थीं। विपक्ष इसे जनता का बंद साबित करने पर तुला हुआ था तो कांग्रेस कह रही थी कि विपक्ष सरकार में होता तो इस से भी बुरी हालत होती। विपक्षी दलों के प्रतिनिधि सोच रहे थे कि रोना ही यही है कि वे सरकार में नहीं हैं। यदि होते तो काँग्रेसी ये सब कर रहे होते जो उन्हें करना पड़ रहा है। जनता टीवी देखने में व्यस्त थी। हम सोच रहे थे कि गाड़ी कीचड़ में फँस गई है। निकाले नहीं निकल रही है। निकालने में एक और खतरा है कि कहीं टूट नहीं जाए। कोई एकाध पहिया कीचड़ में फंसा रह जाए तो और मुश्किल हो जाए। दूसरी कोई गाड़ी दूर-दूर तक नहीं दिखाई दे रही है कि इसे छोड़ उस में सफर किया जाए। अब ऐसे में क्या किया जाए?  कीचड़ सूखने का इंतजार ही किया जाए। कीचड़ सूखे शायद उस से पहले कोई अच्छा वाहन ही नजर आ जाए।

14 टिप्‍पणियां:

डा० अमर कुमार ने कहा…


सिस्टम में पैठा कीचड़ कितने दिनों में सूखेगा ?
इँतज़ार की भी कोई हद होती होगी, यदि हर व्यक्ति अपने स्तर से यथाशक्ति इस कीचड़ को धोता-पोंछता चले.. तभी बात बनेगी ।
क्या कोई बता सकता है कि, आज का बन्द जनता के कष्ट से द्रवित होकर आयोजित किया गया था, या मौके का लाभ उठाने के उद्देश्य से ..
इस पर बहस आमँत्रित है ।

डा० अमर कुमार ने कहा…


ऎसे बन्द, धिक्कार रैली, हाहाकार हफ़्ता, थू-थू रैली, हियाँ-ऊहाँ यात्रायें शायद Mud-Politics कहलाती है ?

Rangnath Singh ने कहा…

दिल्ली में तो बूंदा-बांदी होती रही। हम घर से निकले ही नहीं। यूं ही फांकी काट दी। वैसे,आपने बंद की अच्छी रिपोर्टिंग की है।

राम त्यागी ने कहा…

सही लिखा है आपने ...
ये बंद मुझे तो निराश ही करता है :(

Arvind Mishra ने कहा…

बंद का रोजनामचा !

ZEAL ने कहा…

jab tak dimaag ki khidki nahi khulegi...aise band jaree rahenge.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

एओचक विवरण ...ऐसे बंद का क्या लाभ?

Asha Lata Saxena ने कहा…

बंद का नुक्सान हमेशा आम आदमी को ही भुगतना होता है |आपने बहुत सही लिखा है |अच्छी रचना के लिए बधाई
आशा

निर्मला कपिला ने कहा…

बंद से आम आदमी तो निराश ही होता है बेचारा मजदूर जिसने जो कमाना वही खाना उसकी ये नेता लोग कभी नही सोचते बस विपक्ष का एक धर्म सा बन गया है कि जब विपक्ष मे आओ तो बंद कर दो पार्टी चाहे कोई भी हो।ापने तो खूब बडी पोस्ट लिख कर बंद मनाया। बधाई।

उम्मतें ने कहा…

इस कीचड़ में हम सब फंसे हुए हैं !

अजय कुमार झा ने कहा…

हा हा हा क्या दिलचस्प वर्णन किया है सर ..अदालती कार्यवाही का ..और नए न्यायाधीशों का । मजा आ गया

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

कीचड़ तो सूखने का नाम ही नहीं ले रहा है
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लोकतन्त्र के कमल जिस कीचड़ में खिला है, उससे दूर रहा जाये ।

विष्णु बैरागी ने कहा…

इस कीचड को तो हर कोई गाढी और स्‍थायी करने में लगा हुआ है।