शनिवार, 2 दिसंबर 2023
एग्नोडिस : प्राचीन ग्रीस की पहली स्त्री चिकित्सक
शुक्रवार, 10 नवंबर 2023
धन्वन्तरि जयन्ती
आज धन्वन्तरि जयंती है। कहते हैं धन्वन्तरि उज्जयनी के राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्न थे। उन्हें विष्णु का एक अवतार भी कहा जाता है।
यह भी कहते हैं कि 800 या 600 वर्ष ईसा पूर्व प्राचीन
काल के महान शल्य चिकित्सक सुश्रुत ने धनवन्तरि से वैद्यक की शिक्षा ग्रहण की थी।
इसी तरह की बहुत सी विरोधाभासी सूचनाएँ हैं जो
विभिन्न माध्यमों में मिल जाती हैं।
मनुष्य आदिकाल से बीमारियों और स्वास्थ्य रक्षा के
लिए प्रयत्न करता रहा है। जिसने जो खोजा, जो ज्ञान प्राप्त किया उसे आने वाली
पीढ़ी को हस्तान्तरित कर दिया। मोर्य और गुप्त काल में जब चिकित्साशास्त्र को
संहिताबद्ध किया जा रहा था तो इस विद्या के लिए एक काल्पनिक देवता का आविष्कार कर
लिया गया जिसे धन्वन्तरि कहा गया। पुराणों में धन्वन्तरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन
से कही जाती है। जब समुद्र मंथन का आख्यान रचा गया। चिकित्सा के व्यवसाय में अधिकांश
ब्राह्मण ही थे। पुराणों की रचना के दौरान मनुष्य का समस्त ज्ञान और कृतित्व ईश्वर
को समर्पित कर दिया गया। तभी चिकित्सा के लिए हुए तब तक के तमाम प्रयास और प्राप्त
ज्ञान को भी ईश्वर को समर्पित कर दिया गया।
दादाजी थोड़े बहुत, और पिताजी पूरे वैद्य थे। मैंने
भी आयुर्वेद की शिक्षा ग्रहण की। दिल्ली विद्यापीठ से वैद्य विशारद किया और आयुर्वेदिक
चिकित्सालय में इन्टर्नशिप भी की। बचपन से ही निकट के आयुर्वेद औषधालयों में
धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरि की पूजा होती देखी है और उन पूजाओं में शामिल भी
हुआ हूँ। यह पूजा भारतीय चिकित्साशास्त्र में अपना योगदान करने वाले तमाम
चिकित्सकों का स्मरण और आभार प्रकट करने का अवसर है। इस अवसर का हमें कभी त्याग
नहीं करना चाहिए। जब से धनतेरस का मिथक धन-संपदा के साथ जुड़ा है तब से धन्वन्तरि
को लोग विस्मृत करते चले जा रहे हैं। आज धन्वन्तरि का स्मरण करने वाले बहुत
उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। दूसरी ओर बाजार आज जगमग है, भारी भीड़ है। लोग एक
दूसरे से सटे हुए निकल रहे हैं।
आज धन्वन्तरि जयन्ती के इस अवसर पर भारत के तथा दुनिया भर के चिकित्सकों और चिकित्साशास्त्र में अपना योगदान करने वाले तमाम वैज्ञानिकों का आभार प्रकट करता हूँ। अनन्त शुभकामनाएँ कि सभी को चिकित्सा और स्वास्थ्य प्राप्त हो।
सोमवार, 9 अक्तूबर 2023
इमोजियाँ
व्यंजन सभी भविष्य के गर्भ में छिपे थे
शनैः शनैः मनुष्य ने उच्चारना सीखा
तब जनमें व्यंजन
वह पत्थरों पर पत्थरों से
उकेरता था चित्र
वही उसकी अभिव्यक्ति थी
शनैः शनैः चित्र बदलते गए अक्षर लिपियों में
अक्षर लिपियों और उच्चारण के
संयोग से जनमी भाषाएँ
लिखना बदला टंकण में
और कम्प्यूटर के आविष्कार के बाद
चीजें बहुत बदल गईं दुनिया में
अभिव्यक्ति के नए आयाम खुले
अब शब्दों ही नहीं वाक्यों को भी
प्रकट करती हैं इमोजियाँ
लगता है मनुष्य वापस लौट आया है
चित्र लिपियों के युग में
मैंने अपने आप को देखा
मैं खड़ा था बहुत ऊँचे
मैं नीचे झाँका
तो वहाँ बहुत नीचे
ठीक मेरी सीध में दिखाई दिए
आदिम मनुष्य द्वारा अंकित चित्र
और चित्र लिपियाँ
लौट आया था मैं उसी बिन्दु पर
लेकिन नहीं था ठीक उसी जगह
उससे बहुत ऊँचाई पर था।
गुरुवार, 31 अगस्त 2023
रुक गए और पीछे को लौट रहे लोगों को साथ लेने की कोशिश भी जरूरी है
बुधवार, 30 अगस्त 2023
मुहूर्तों की निस्सारता
मुझे भी अपनी किशोरावस्था में ज्योतिष और पंडताई का काम दादाजी ने सिखाया, उद्देश्य यही था कि यदि जीवन में कुछ सार्थक नहीं कर सका तो ब्राह्मण का बच्चा है यही सब करके पेट भराई तो कर ही लेगा।
उस समय जो सीखा और बाद में खोजबीन करके पढ़ा उसके हिसाब से मेरी समझ में यह सारा ज्ञान मिथ्या है और केवल डराने और रोजी रोटी चलाने का जरिया मात्र है।
मेरी एक कविता है...
क्या जोशी, क्या डाक्टर, क्या वकील
डरे को और डरावे,
फिर डर से निकलने का रास्ता बतावै,
जो ऐसा न करे तो घर के गोदड़े बिकावै।
ज्यादातर ब्राह्मणों को भद्रा के मामले में शास्त्रीय तथ्यों का ज्ञान तक नहीं है, वे भद्रा भद्रा करके लोगों को डराते हैं।
हालाँकि किसी भी ग्रंथ में रक्षाबंधन, प्रथम श्रावणी के अलावा बाद वाले श्रावणी कर्म और श्रवण पूजा हेतु शुभाशुभ देखने की जरूरत होने के बारे में कुछ भी नहीं कह रखा है। इसलिए कभी भी रक्षाबंधन मनाया जा सकता है।
महुर्त चिंतामणि ग्रन्थ कहता है, पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्थ में भद्रा रहती है, तथा तिथि के पूर्वार्ध में होने वाली भद्रा रात्रि में शुभ होती है। इस का सीधा अर्थ है कि आज 10.58 सुबह से पूर्णिमा आरंभ हो रही है उसमें पूर्वार्ध में अर्थात रात्रि 9.01 तक भद्रा रहेगी। लेकिन तिथि के पूर्वार्ध की भद्रा होने से रात्रि में शुभ है। जिसका अर्थ है कि सूर्यास्त के बाद वह शुभ है, सूर्यास्त के बाद रक्षाबंधन मनाया जा सकता है।
इसलिए जिन्हें रक्षाबंधन मनाना है मुहूर्त की टेंशन छोड़ो, मस्ती से पूरे दिन और रात कभी भी रक्षाबंधन मनाओ।
मंगलवार, 8 अगस्त 2023
पितृसत्ता खुद ही खुद को नष्ट करने के उपाय कर रही है
मंगलवार, 1 अगस्त 2023
नस्लीय और धार्मिक राष्ट्रवाद लोगों को हत्यारों में तब्दील कर देते हैं
क्या आप जानते हैं साथ के इस चित्र में यह क्या है? इसे क्या कहते हैं?
उस समय की वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों ने इस विचारधारा के लिए खाद पानी का काम किया। पूंजीवाद भयानक मंदी में फँसा था। साम्राज्यवादी देशों को नए बाजार चाहिए थे। जनता में असन्तोष था। उस असंतोष को दबाने के लिए शासकों को लगा कि राष्ट्रवाद का झुनझुना बढ़िया है और नासमझ जनता में बहुत बढ़िया तरीके से काम करता है।
मुसोलिनी से प्रेरणा प्राप्त कर लगभग एक सदी पहले भारत में भी एक संगठन खड़ा किया गया जिसे हम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ नाम दिया गया। इसने भारत में हिन्दू धार्मिक राष्ट्रवाद को फैलाने की कोशिश की। बाद में जिस तरह नस्लीय राष्ट्रवाद को जर्मनी में नाजिज्म नाम दिया गया था, यहाँ भारत में उसी तरह इस विचारधारा को हिन्दुत्व नाम प्राप्त हुआ है, जो भारतीय सनातन धर्म की मूल शिक्षाओं के बिलकुल विपरीत विचार है।
यह विचारधारा लोगों को व्यक्तिगत रूप से एक हत्यारे के रूप में परिवर्तित कर देती है। इसका उदाहरण कल जयपुर मुंबई एक्सप्रेस में इसी विचार से प्रभावित आरपीएफ के एक सिपाही ने आरपीएफ के ही एक अधिकारी और तीन यात्रियों की हत्या कर दी है।