उम्र का 14वाँ साल था। नाक और
ऊपरी होठ के बीच रोआँली का कालापन नजर आने लगा था। एक दम सुचिक्कन चेहरे पर काले बालों वाली रोआँली देख कर अजीब सा लगने लगा था। समझ नहीं आ रहा था कि इस का क्या किया जाए।
स्कूल में लड़के मज़ाक बनाने लगे थे कि मर्दानगी फूटने लगी है, अब लड़कियाँ
फ़िदा होने लगेंगी। मज़ाक क्लास की लड़कियों के कानों तक भी पहुँच जाता था। जब कभी
किसी लड़की से आँखें मिलतीं तो वह मुहँ दबा कर हँस पड़ती। साथ की लड़कियाँ साथ
देतीं। लड़कों को फिर से मज़ाक करने का मौका मिल जाता।
घर में दादाजी, पिताजी, बड़े काका
मोहनजी, और छोटे काका बाबू मर्द थे। दादाजी गाँव से अपने साथ पड़ौसी बनिए के
लड़के को पढ़ने के लिए साथ ले आए थे जो उनके साथ मन्दिर में ही रहता था। वह उम्र में मुझ से तीन-चार साल बड़ा था।
उसकी रोआँली बालों में परिवर्तित हो चुकी थी। नाई ने उसे तराश कर बाकायदे मूँछों का आकार दे दिया था। दो
महीने में जब वो कटिंग कराने जाता तो नाई से मूँछे तराशवा कर आता।
नाई मुझे भी 2-3 दफा कह चुका था कि मेरे भी अब
मूँछे आकार लेने लगी हैं। चार-छह महीने बाद इन्हें तराशना पड़ेगा।
दादाजी हमारे पारिवारिक नाई को
हर इतवार दोपहर साढ़े बारह बजे बुलाते थे। वे बड़े मंन्दिर के पुजारी थे। दोपहर 12 बजे मन्दिर बन्द होने के बाद ही उन्हें समय मिलता। इतवार को वे मन्दिर के
काम से निपट कर नाई के पास हजामत कराने बैठ जाते। नाई साथ लाए काले पत्थर पर उस्तरा तैयार करता और हजामत शुरू कर देता। पहले सिर के सारे बाल उतारता, बाद में दाढ़ी-मूँछ भी उस्तरे से साफ कर देता। नाई के जाने
के बाद वे दोबारा स्नान कर के भोजन करते। थोड़ी देर आराम करने पर तीन बज जाते
और उन की मन्दिर की ड्यूटी शुरू हो जाती। उनके सिर, दाढ़ी और
मूँछ के बाल नौरात्रों के अलावा कभी 1-2 सूत
से अधिक नहीं बढ़े। उन दिनों सब जवान लोग सिर पर अच्छे-खासे बाल रखने लगे थे। लेकिन
दादाजी को लंबे बाल अच्छे नहीं लगते। वे अक्सर हमारे नाई को हिदायत देते रहते कि
कटिंग करो तब बाल छोटे जरूर कर दिया करो। जब कि कटिंग कराने जाने पर हम नाई से
कहते केवल दिखावे के लिए छोटे करना,
बस सैटिंग कर देना। कटिंग के बाद
दादाजी को बाल छोटे हुए दिखाई नहीं देते तो वे डाँट देते।
पिताजी एक दिन छोड़ कर एक दिन
खुद शेव बनाते थे वे दाढ़ी पूरी तरह साफ कर देते थे। लेकिन मूँछों के बाल छोटी
कैंची से इस तरह छाँटते थे कि बालों के सिर मात्र चमड़ी से बाहर दिखाई देते रहें। उन्हेँ
मूँछ कहना उचित नहीं था। बड़े काका मोहनजी ने भी पिताजी वाली ही पद्धति अपना रखी
थी। अलबत्ता छोटे काका बाबू को मूंछ रखने का शौक था। वे खुद दाढ़ी नहीं बनाते थे, सप्ताह में
एक बार नाई से बनवाते। तभी मूँछों को तराशवा आते।
जब से स्कूल में लड़के मेरा मजाक बनाने लगे थे। तब से मैं सोचता था कि ये होठों पर उग आई मूँछों का क्या किया
जाए। धीरे-धीरे दाढ़ी पर भी बाल नजर आने लगे। यह एक नई समस्या थी। घर में बहुत
सारे भगवानों के चित्र थे। उन में से किसी के भी दाढ़ी मूँछ नहीं थीं। आखिर एक दिन
मैं ने फैसला ले लिया कि दाढ़ी मूँछ साफ कर ली जाए। उस दिन सब लोग कहीं बाहर गए
हुए थे। घर पर मैं अकेला था। बस उस दिन मैने पिताजी का शेव वाला डब्बा उठाया और रेजर से
दाढ़ी और मूँछ साफ कर डाली।
अगले दिन स्कूल में एक नए तरह
का मजाक बना। कुछ दिन बनता रहा। अब हर पन्द्रह दिन में दाढ़ी मूँछ बनाने का सिलसिला आरंभ
हो गया था। फिर सप्ताह में एक बार, उसके बाद दो बार। तीन साल ऐसे ही निकल गए। आखिर
तीन दिन की दाढ़ी-मूँछ भी बुरी लगने लगी। मैं सप्ताह में तीन दिन बनाने लगा। शादी
के बाद तो जब कभी दाढ़ी बनाए तीन दिन हो जाते तो उत्तमार्ध टोकना शुरू कर देती। क्या ब्लेड
खत्म हो गयी है या शेविंग क्रीम। मैं पलट कर पूछता तो जवाब देती कि बस दाढ़ी नहीं
बनी इसलिए पूछा। जल्दी ही मुझे पता लग गया था कि उसे दाढ़ी का बढ़े रहना पसंद
नहीं। जब तक जिला मुख्यालय आ कर वकालत शुरू नहीं की तब तक उत्तमार्ध का मेरे साथ रहना कैजुअल सा था। साल में आधे दिन वह मायके में रहती। जिला मुख्यालय आ जाने के बाद तो निरन्तर साथ
हो गया था। अब प्रतिदिन शेव करना शुरू हो गया जो आज तक चला आ रहा है।
आज सुबह ब्लागर मित्र विवेक रस्तोगी जी ने
सुझाया कि अब 21 दिन घर ही रहना है तो दाढ़ी बढ़ा कर देख लिया जाए कि शक्ल कैसी
लगती है। एक बार तो मुझे भी लगा कि बात ठीक है। इस होली पर ब्लागर मित्र राजीव
तनेजा ने दाढ़ी वाला मीम बनाया था। उसमें दाढ़ी में अपना चेहरा देख चुका था। इस
कारण खुद को दाढ़ी में देखने का कोई चार्म नहीं रहा था। फिर याद आया, कोरोना
महामारी के चलते इस वक्त हर कोई कह रहा है कि हाथ से मुहँ, नाक, कान और
आँखें न छुएँ। दाढ़ी बढ़ाई तो बार बार हाथ वहीं जाएगा, रोका न जाएगा।
मुहँ, नाक, कान और आँखे भी नजदीक ही हैं। वैसे भी दो महीने से कोरोना
वायरस के इलस्ट्रेशन देख रहा हूँ। उन पर भी बढ़ी हुई दाढ़ी-मूँछ के बालों जैसे बाल होते
हैं। आखिर उत्तमार्ध से कहा कि मन कर रहा है कि 21 दिन दाढ़ी न बनाई जाए। तो कहने लगीं
कि क्या शेविंग क्रीम खत्म हो गया है?
मैं समझ गया कि उधर भी अच्छा नहीं
लगेगा। मैं फौरन उठा और जा कर बिलकुल रोज की तरह क्लीन शेव बनाई और घुस गया बाथरूम
में।
अब अपना तो कहना है कि जब तक
कोरोना है, जिन लोगों ने दाढ़ी-मूँछ रख रखी हैं, उन्हें भी क्लीन-शेव हो जाना
चाहिए, रोज दाढ़ी बनानी चाहिए। जी, बिलकुल मोदी जी को भी और शाह जी को भी।