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बुधवार, 20 मई 2020

फेक न्यूज : हमें खुद को परिष्कृत करना होगा।

एनडीटीवी इंडिया के डिजिटल एडिटर विवेक रस्तोगी का एक साक्षात्कार समाचार मीडिया डॉट कॉम ने प्रकाशित किया हैइस में उन्होंने फेक न्यूज' के बारे में पूछे गए प्रश्न कि, "फेक न्यूज का मुद्दा इन दिनों काफी गरमा रहा है। खासकर विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर फेक न्यूज की ज्यादा आशंका रहती है। आपकी नजर में फेक न्यूज को किस प्रकार फैलने से रोका जा सकता है? का उत्तर देते हुए कहा है .... 

Vivek Rastogi
"फेक न्यूज का मुद्दा कतई नया नहीं है और इस पर चर्चा लम्बे अरसे से चली आ रही है। संकट काल में इसके फैलाव की आशंका बढ़ जाती है, क्योंकि हमारे समाज का एक काफी बड़ा हिस्सा शोध और सत्यापन की स्थिति में नहीं होता, और न ही उन्हें इसकी आदत रही है। मीडिया संस्थानों की विश्वसनीयता उनके अपने हाथ में होती है। अगर सभी संस्थान एनडीटीवी की भाँति कोई भी समाचार 'सबसे पहले' देने के स्थान पर 'सही समाचार' देने का लक्ष्य बना लें, तो इस समस्या से कुछ हद तक छुटकारा पाया जा सकता है। रही बात सोशल मीडिया की, तो हमारे-आपके बीच ही, यानी हमारे समाज में ही कुछ लोग ऐसे हैं, जिन्हें किसी सत्यापन की जरूरत महसूस नहीं होती, जिसके चलते फेक न्यूज़ ज़ोर पकड़ती है। वैसे, फेक न्यूज़ फैलाने के पीछे लोगों के निहित स्वार्थ भी होते हैं और अज्ञान भी। इसलिए, इसके लिए सभी को मिलजुलकर प्रयास करने होंगे। सोशल मीडिया पर समाचार पढ़ने वालों को जागरूक करना होगा कि वे हर किसी ख़बर पर सत्यापन के बिना भरोसा न करें।"

मेरा भी सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों से यह अनुरोध है कि वे विवेक रस्तोगी की इस बात को गाँठ बांध लेना चाहिए कि, हम किसी भी समाचार जो हमें किसी भी स्रोत से मिला हो उसे आगे सम्प्रेषित करने के पूर्व जाँच लेना चाहिए कि कहीं वह फेक तो नहीं हैं। यहाँ सोशल मीडिया पर सभी विचारधारा और विचारों वाले लोग हैं, अक्सर लोग अपनी विचारधारा या स्वयं को अच्छे लगने वाले समाचारों, सूचनाओँ आदि को सही मान कर जल्दी में सम्प्रेषित कर देते हैं, यहीं हम से चूक होती है। हम मिथ्या और गलत चीजों को आगे बढ़ने का अवसर दे देते हैं। 

यदि हम चाहते हैं कि भविष्य की दुनिया अच्छी सच्ची और इन्सानों के रहने लायक हो तो हमें झूठ को इस दुनिया से अलग करना होगा, और इसका आरम्भ हम स्वयं से कर सकते हैं। हम खुद तक पहुँचने वाली सूचनाओं को ठीक से जाँचें और उन्हें आगे काम में लें। यही चीज हमारे लिए आगे बहुत काम देगी। इसी से हमारी विश्वसनीयता भी बनी रहेगी। वर्ना फैंकुओँ की दुनिया में कोई कमी नहीं है। खास तौर पर उस समय में जब उन में से अनेक आज राष्ट्र प्रमुखों के स्थान पर बैठे हैं।

मुझे लगता है हमें आज और इसी पल इस काम को आरंभ कर देना चाहिए, इसे अपनी आदत बना लेनी चाहिए। एक तरह से यह स्वयम् को  परिष्कृत (Refine) करना होगा।


शनिवार, 16 मई 2020

निक नेम


मेरा मुवक्किल जसबीर सिंह अपने ऑटो में स्टेशन से सवारी ले कर अदालत तक आया था। अपने मुकदमे की तारीख पता करने के लिए मेरे पास आ गया। उसका फैक्ट्री से नौकरी से निकाले जाने का मुकदमा मैं लड़ रहा था। जब वो आया तब मैं टाइपिस्ट के पास बैठ कर डिक्टेशन दे रहा था। मुझे व्यस्त देख कर वह वहाँ बैठ गया।

इसी बीच एक वृद्ध व्यक्ति तेजी से अदालत परिसर में घुसा।  उसके हाथ में बड़ा सा थैला था। उसने पट से वह थैला जसबीर सिंह के पास रखा और बोला, “सरदार जी, थैला रखा है, ध्यान रखना। मैं थोड़ी देर में आता हूँ। जसबीर सिंह या मेरी कोई भी प्रतिक्रिया का इन्तजार न करते हुए वह व्यक्ति तेजी से परिसर में अंदर की और चला गया।

मैं टाइप करवा कर निपटा। उसके बाद जसबीर सिंह से बात की। जसबीर उसके बाद भी बैठा रहा। आधा घंटा गुजर गया। आखिर मैं ने ही उससे पूछा, “जसबीर, आज आटो नहीं चला रहे हो क्या?”
“वकील साहब¡ एक बुजुर्ग आदमी यह थैला रख गया है, और मुझे कह कर गया है कि मैं आता हूँ। अब उसने विश्वास किया है तो उसके आने तक रुकना तो पड़ेगा।“

जसबीर की बात सुन कर मुझे जोर की हंसी आ गयी। मैं ने उसे कहा, “तुम जाओ, इस थैले का ध्यान मैं रख लूंगा। असल में वह बुजुर्ग मेरे रिश्तेदार हैं, वह तुम्हें नहीं मुझे कह कर गए थे कि, “सरदार जी, थैला रखा है, ध्यान रखना। मैं थोड़ी देर में आता हूँ। मेरा निक  नेम भी  सरदार है। इसलिए तुम गलत समझ गए कि तुमसे कह कर गए हैं।“

मेरे इतना कहते ही जसबीर ने राहत की साँस ली। उठते हुए बोला, “तो अब मैं चलता हूँ। में तो समझा था, यह पता नहीं कौन आदमी मुझे यहाँ थैले की रखवाली में बिठा गया।“


कल एक पोस्ट पर सब से निक नेम बताने को कहा था। मैं ने अपना निक नेम बताया तो उनकी प्रतिक्रिया थी, वाकई “सरदार” ही निक नेम है क्या?

निक नेम

मेरा मुवक्किल जसबीर सिंह अपने ऑटो में स्टेशन से सवारी ले कर अदालत तक आया था। अपने मुकदमे की तारीख पता करने के लिए मेरे पास आ गया। उसका फैक्ट्री से नौकरी से निकाले जाने का मुकदमा मैं लड़ रहा था। जब वो आया तब मैं टाइपिस्ट के पास बैठ कर डिक्टेशन दे रहा था। मुझे व्यस्त देख कर वह वहाँ बैठ गया।

इसी बीच एक वृद्ध व्यक्ति तेजी से अदालत परिसर में घुसा।  उसके हाथ में बड़ा सा थैला था। उसने पट से वह थैला जसबीर सिंह के पास रखा और बोला, “सरदार जी, थैला रखा है, ध्यान रखना। मैं थोड़ी देर में आता हूँ। जसबीर सिंह या मेरी कोई भी प्रतिक्रिया का इन्तजार न करते हुए वह व्यक्ति तेजी से परिसर में अंदर की और चला गया।

मैं टाइप करवा कर निपटा। उसके बाद जसबीर सिंह से बात की। जसबीर उसके बाद भी बैठा रहा। आधा घंटा गुजर गया। आखिर मैं ने ही उससे पूछा, “जसबीर, आज आटो नहीं चला रहे हो क्या?”
“वकील साहब¡ एक बुजुर्ग आदमी यह थैला रख गया है, और मुझे कह कर गया है कि मैं आता हूँ। अब उसने विश्वास किया है तो उसके आने तक रुकना तो पड़ेगा।“

जसबीर की बात सुन कर मुझे जोर की हंसी आ गयी। मैं ने उसे कहा, “तुम जाओ, इस थैले का ध्यान मैं रख लूंगा। असल में वह बुजुर्ग मेरे रिश्तेदार हैं, वह तुम्हें नहीं मुझे कह कर गए थे कि, “सरदार जी, थैला रखा है, ध्यान रखना। मैं थोड़ी देर में आता हूँ। मेरा निक  नेम भी  सरदार है। इसलिए तुम गलत समझ गए कि तुमसे कह कर गए हैं।“

मेरे इतना कहते ही जसबीर ने राहत की साँस ली। उठते हुए बोला, “तो अब मैं चलता हूँ। में तो समझा था, यह पता नहीं कौन आदमी मुझे यहाँ थैले की रखवाली में बिठा गया।“

कल एक पोस्ट पर सब से निक नेम बताने को कहा था। मैं ने अपना निक नेम बताया तो उनकी प्रतिक्रिया थी, वाकई “सरदार” ही निक नेम है क्या?