@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: हाड़ौती
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सोमवार, 23 जून 2008

दिखावे की संस्कृति-1 ....एक दुपहर शमशान में

आज मुझे फिर एक अस्थि-चयन में जाना पड़ा। मेरे एक नित्य मित्र के भाई का शुक्रवार को प्रातः एक सड़क दुर्घटना में देहान्त हो गया। मैं अन्त्येष्टी में नहीं जा सका था। सुबह नौ बजे एक मित्र का फोन मिला, वहाँ चलना है। मेरे पास उस समय कोई वाहन नहीं था, पहले तो फोन पर मना किया, कि शाम को बैठक में ही जाना हो सकेगा। संयोग से कुछ ही समय में वाहन आ गया, और मैं तुरंत ही रवाना हो गया। सुबह 9.50 पर मुक्तिधाम पहुँचा। (मेरे नगर में यहाँ श्मशान को मुक्तिधाम कहने की परंपरा चल निकली है) तब तक चिता को पानी डाल कर शीतल किया जा चुका था। अस्थियाँ धोकर, एक लाल थैली में बंद की गईं। राख को चम्बल में प्रवाहित करने के लिए कुछ लोग जीप से केशवराय पाटन के लिए रवाना हो गए।

कोटा जंक्शन से कोई दस किलोमीटर दूर, चम्बल के दक्षिणी किनारे पर रंगपुर नाम का गाँव है। सामने ही चम्बल के उस पार केशवराय पाटन है। सड़क मार्ग से यही 30 किलोमीटर पड़ता है। चम्बल के पूर्वोन्मुखी बहने से वहाँ तीर्थ है। चम्बल किनारे केशवराय भगवान का विशाल प्राचीन मन्दिर है, उस से भी प्राचीन शिव मंदिर है, प्राचीन जैन तीर्थ भी है। कोटा के अधिकांश लोग इसी तीर्थ में राख प्रवाहित करने के लिए जाते हैं। किसी को यह भान नहीं कि राख से चम्बल मे प्रदूषण होता होगा, राख को भूमि में भी दबाया जा सकता है। खैर!!

दाह-स्थल गोबर से लीपा गया। स्थान की गर्मी से लीपा गया तुरंत ही सूख गया। उस पर गोबर के ही उपले गोलाई में इस तरह जमाए गए कि उन पर मिट्टी का कलश रखा जा सके। फिर उन में आग चेताई गई और एक कलश में चावल पकाने को रख दिए गए। नम हवा और नम उपले। बहुत धुआँ करने के उपरांत ही उपलों ने आग पकड़ी। आधा घंटा चावल पकने में लगे। चावल पकने के बाद उन्हें पत्तल में घी और चीनी के साथ परोसा गया। मृतक को भोग अर्पित करने का प्रक्रम प्रारंभ हुआ। यह एक लगभग पूरी तरह सुलग चुके उपले पर घी छोड़ कर, पानी से आचमन करा कर, पत्तल के दूसरी और मृतक की कल्पना करते हुए, उसे प्रणाम कर के किया जाता है। उठने के बाद व्यक्ति अपने हाथ जरूर धो लेता है। एक व्यक्ति द्वारा इस कर्म कांड को करने में कम से कम दो मिनट तो लगते ही हैं।

पहले पुत्रों ने भोग अर्पण किया, फिर परिवार के दूसरे लोगों ने, फिर रिश्तेदारों ने। उस के बाद बिरादरी के लोगों ने भोग अर्पण किया। एक सुलगता हुआ उपला घी से तर-बतर हो कर बुझ गया। उसे माचिस से फिर सुलगाया गया। आग की लपटें हवन की तरह उठने लगीं। एक घंटे में कुल तीस लोग भोग अर्पण कर चुके थे, और अभी दस के लगभग पास खड़े अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे। बैठे हुए लोगों में भी कुछ जरुर इस कर्मकाण्ड को करने के इच्छुक जरूर रहे होंगे। नजदीक ही एक गाय ध्यान मग्न पत्तल पर रखे चीनी और घी से सने चावलों को देख रही थी, जिसे वहाँ आस पास खड़े लोग नहीं देख रहे थे।

मैं दूर एक बरामदे में बैठा यह सब देख रहा था, जहाँ अनेक खूबसूरत ग्रेनाइट की बेन्चें अभी कुछ माह पहले विधायक कोष से लगाई गई थीं। उन में से कुछ पर धूल जमा थी, कुछ पर से लोगों ने बैठने से पहले हटा दी थी और कुछ पर से उन के बैठने के कारण स्वतः ही हट गई थी। एक बैंच पर कुछ कचरा सा पड़ा था। देखने पर पता लगा कि वह राल का पाउडर है जो चिता को चेताने के लिए काम आता है। एक बैंच के नीचे एक पांच-छह माह का कुत्ता चुपचाप आकर लेट गया था। उस के दो जुड़वाँ भाई दूसरे बरामदे में सुस्ता रहे थे। तीनों अभी अभी दूसरे मुहल्ले के कुत्तों से भिड़ने के लिए अभ्यास कर रहे थे। मुक्तिधाम के दूर के कोने में पेड़ों के झुरमुट के पीछे छिपे एक चबूतरे के पास दो नौजवान स्मैक या कोई अन्य पदार्थ का सेवन कर निपट चबूतरे पर पड़ी नीम की निमोलियों को साफ कर रहे थे, जिस से वहाँ सो कर दिन गुजारा जा सके।

मुझ से कर्मकाण्ड की लम्बाई बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मैं नें पास बैठे लोगों से पूछा, -क्या बीस-तीस साल पहले भी ऐसा ही होता था?

जवाब मिला, -पहले तो परिवार के लोग भी इस कर्मकाण्ड में सम्मिलित नहीं होते थे।

मैं ने बताया, केवल लीनियल एसेन्डेण्टस् ही यह कर्मकाण्ड करते थे। यानी मृतक/मृतका के पुत्र, पौत्र, पौत्री और नाती और उन के पुत्र आदि। वहाँ बैठे लोगों ने इस पर सहमति जताई।

मैं ने पूछा, -तो अब ये क्या हो रहा है?

प्रश्न का उत्तर नहीं था, सो नहीं मिला।

जवाब में मिला प्रश्न – इस में बुराई क्या है?

बुराई यह है कि उम्र में बड़ा तर्पण ले तो सकता है, दे नहीं सकता। दूसरे यह कि यहाँ आए लोगों का समय भी तो कीमती है वह जाया हो रहा है।

हम तो बर्दाश्त कर रहे थे। लेकिन गाय से इतनी देर बरदाश्त नहीं हुई, वह आस पास के लोगों की निगाहें न अपनी ओर देखती न पा कर शीघ्रता से चबूतरे पर चढी और चावलों पर झपटी। वह चावलों को लपकती इस से पहले ही वहाँ खड़े लोगों में से तीन-चार उस पर टूट पड़े। गाय खदेड़ दी गई।

हम में से एक ने कहा, - एक व्यक्ति नहा कर घर जा चुका है ताकि महिलाएँ नहाने जा सकें।

दूसरा बोला, -तो हम भी चल सकते हैं।

हम उठे और शमशान के बाहर आ गए। अपने अपने वाहन पर सवार हो चल दिये अपने घरों की ओर। हमारे बाहर आने तक कतार में छह व्यक्ति थे, और हमारे इर्द-गिर्द बैठे वे लोग जो बाहर नहीं आए थे कतार में सम्मिलित होने चल दिए थे।

रविवार, 25 मई 2008

गुर्जर-2............यह आँदोलन है या दावानल ?

कोटा के आज के अखबारों में गुर्जर आंदोलन छाया हुआ है।

अखबारों ने जो शीर्षक लगाए हैं, उन्हें देखें.....................

सिकन्दरा में कहर - हालात बेकाबू, 23 और मरे, दो दिन में 39 लोग मारे गए, 100 से अधिक घायल - जवानों ने की एसपी व एसडीएम की पिटाई - हिंसक आंदोलन बर्दाश्त नहीं...वसुन्धरा - तीन कलेक्टर दो एसपी बदले - मौत का बयाना - कोटा में आज दूध की सप्लाई बंद, हाइवे पर जाम लगाएँगे - रेल यातायात ठप, बसें भी नहीं चलीं - टिकट विंडो भी रही बन्द - कोटा-दिल्ली-आगरा के बीच रेल सेवाएँ ठप,यात्रियों ने आरक्षण रद्द कराए, परेशानी उठानी पड़ी, रेल प्रशासन को करोड़ों का नुकसान, कई परीक्षाएँ स्थगित - लाखों के टिकट रद्द - श्रद्धांजली देने के खातिर गूजर नहीं बाँटेंगे दूध - ट्रेनें रद्द होने से कई परीक्षाएँ रद्द - एम.एड. परीक्षा टली - प्री बी.एड परीक्षा बाद में होगी - रेलवे ट्रेक की भी क्षति - श्रद्धांजलि देने की खातिर गुर्जर नहीं बाँटेंगे दूध - गुर्जर आंन्दोलन की आँच हाड़ौती में भी फैली - नैनवाँ पुलिस पर हमला - चार पुलिसकर्मी घायल- गर्जरों ने पहाड़ियों पर जमाया मोर्चा - राष्ट्रीय राजमार्ग 76 पर बाणगंगा नदी के पास जाम - कोटा शिवपुरी ग्वालियर सड़क संपर्क दो घंटे बन्द रहा - बून्दी बारां व झालावाड़ में जाम - स्टेट हाईवे 34 पर आवागमन बन्द - रावतभाटा रोड़ पर देर रात जाम - बून्दी जैतपुर में जाम पुलिसकर्मी पिटे - झालावाड़ बसें बन्द - 17 गुर्जर बन्दियों ने दी अनशन की धमकी - सेना सतर्क, बीएसएफ पहुँची, आरफीएसएफ की एक कम्पनी बयाना जाएगी - हर थाने को दो गाड़ियाँ - रात को दबिश - हाड़ौती के कई कस्बों में आज बन्द - राजस्थान विश्व विद्यालय की परीक्षाएं स्थगित - पटरी पर कुछ भी नहीं - ... प्रदेश में अशांति की अंतहीन लपटें - भरतपुर बयाना के हालात=पटरियाँ तोड़ी फिश प्लेटें उखाड़ी - दूसरे दिन बयाना में पहुँची सेना, शव लेकर रेल्वे ट्रेक पर बैठे रहे बैसला - डीजीपी ने हेलीकॉप्टर से लिया जायजा - चिट्ठी आने तक नहीं हटेंगे बैसला- गुर्जर आन्दोलन = गुस्सा+ जोश= पाँच किलोमीटर - यह तो धर्मयुद्ध है - जोर शोर से पहुँची महिलाएँ - चाहे चारों भाई हो जाएँ कुर्बान - मेवाड़ में सड़कों पर उतरे गुर्जर - राजसमन्द में हाईवे जाम - हजारों गुर्जरों का बयाना कूच - छिन गया सुख चैन- ठहरी साँसें - अटकी राहें - सहमी निगाहें - हैलो भाई तुम ठीक तो हो - कई रास्ते बंद जयपुर रोड़ पर खोदी सड़क - 8 कार्यपालक मजिस्ट्रेट नियुक्त - किशनगढ़ भीलवाड़ा बन्द सफल - दो गुर्जर नेता गिरफ्तार - करौली -टोक में सड़कें सुनसान - चित्तौड़गढ़ अजमेर अलवर और करौली आज बन्द - सहमे रहे लोग आशंकाओं में बीता दिन - शकावाटी में भी बिफरे गुर्जर - नीम का थाना में एक बस को आग के हवाले किया - चार बसों में तोड़ फोड़ - बस चालक घायल कई जगह रास्ता जाम- पाटन में सवारियों से भरी बस को आग लगाने का प्रयास - सीकर झुन्झुनु के गुढ़ागौड़ जी व खेतड़ी में गुर्जरों की सभाएँ और सीएम का पुतला फूँका ............

..........................................आपने पढ़े खबरों के हेडिंग ये एक दिन के एक ही अखबार से हैं। दूसरे अखबार से शामिल नहीं किये गए हैं। अब आप अंदाज लगाएँ कि यह आँदोलन है या दावानल ?

इस दावानल का स्रोत कहाँ है? वोटों के लिए और सिर्फ वोटों के लिए की जा रही भारतीय राजनीति में ?  पूरी जाति,  वह भी पशु चराने और उन के दूध से आजीविका चलाने वाली जाति से आप क्या अपेक्षा रख सकते हैं। यह पीछे रह गए हैं तो उस में दोष किस का है? इन के साथ के मीणा अनुसूचित जाति में शामिल हो कर बहुत आगे बढ़ गए हैं। गुर्जरों को यह बर्दाश्त नहीं। उन्हें राजनीतिक हल देना पड़ेगा। पर मीणा वोट अधिक हैं। उन्हें नाराज कैसे करें?

  

पिछड़ेपन को दूर करने की नाकाम दवा आरक्षण के जानलेवा साइड इफेक्टस हैं ये।

ये आग भड़क गई है। नहीं बुझेगी आरक्षण से। पीछे कतार में अनेक जातियाँ खड़ी हैं।

आरक्षण को समाप्ति की ओर ले जाना होगा। पिछड़ेपन को दूर करने और समानता स्थापित करने का नया रास्ता तलाशना पड़ेगा। मगर कौन तलाशे?

सोमवार, 14 जनवरी 2008

हाड़ौती का दिनेसराई दुबेदी की आड़ी सूँ सँकरात को राम राम बँचणा जी।

जोग लिखी हाड़ौती का हिरदा, कोटा राजसथान सूँ, सारा जम्बूदीप अर भरतखण्ड का रह्बा हाळाँन् क ताईं दिनेसराई दुबेदी की आड़ी सूँ सँकरात को राम राम बँचणा जी। राम जी की किरपा सूँ य्हां सब मजामं छे। राम जी व्हाँ भी थानँ मजामँ रखाणे।
आज तड़-तड़के ही नारायण परसाद जी को मेल मल्यो, कै हिन्दी कि बोल्याँन् का कतनाँ चिट्ठा परकासित हो रिया छे ? मेल मँ म्हाँकी हाड़ौती क ताईं हारोटी मांड मेल्यो छो। म्हारे तो या बात तीर सी लागी। नाँव बगड़बो खुणनँ छोखो लागे छे। ज्ये मनं तो सोच ली के आज तो अनवरत पे हाड़ौती की पोस्ट जावे ही जावे।
हाड़ौती ख्हाँ छे ?
राजस्थान का नक्सा मं दक्खन-पूरब मं एक गोळ-गोळ उभार दीखे छे। बस या ही हाड़ौती की धरती छे। कोटो, बून्दी, झालावाड़ अर बाराँ याँ चार जिलाँन को जो खेतर छे ऊँ स ई हाड़ौती खे छे।
।। बड़ी सँकरात।।
आज बड़ी सँकरात छे। बड़ी अश्यां के यो म्हाँके राजस्थान मँ संसकर्ति को सबसूँ बड़ो थ्वार छे। खास कर र ब्याऊ स्वाणी छोरियाँ के कारणे। व्हाँ ने सासरा मँ ज्यार कश्यां रह् णी छाइजे या सिखाबा के कारणे घणा सारा नेग (बरत) कराया जावे छे। ज्यां मँ सूँ दो चार अश्याँ छे।
तारा दातुन
छोरियाँ क ताँईं तड़-तड़के ई उठणी पड़े, अर तारा स्वाणी ई दातुन करणी पड़े। बरस मँ एक भी दन चूक नं होणी छावे, नँ तो फेर एक बरस ताँईं बरत करणी पड़े।
मून
छोर् यां ब्याऊ स्वाणी होतां ईं सँकरात सूँ एक बरस ताईं मून रखणी पड़े। मूनी रहबा को अभ्यास कराबा के कारणे। संझ्या की टेम दन आँथतांईं छोर् यां राम राम ख्हेर मूनी हो जावे। जद संझ्या फूले अर तारा हो जावे तो ऊंको मून कोई दूसरो मंतर बोल र छुड़ावे, जदी छोरी बोले, व्हाँ ताईं मूनी ई रेवे। मून छुड़ाबा को मंतर अश्यां छे। .....

आम्बो मोरियो, नीम्बो मोरियो, मोरियो डाढ़्यूँ डार।
सरी किसन जी सेव बैठ्या, राजा राणी कांसे बैठ्या।
झालर बाज घड़ावळ बाजी, संझ्या फूली, तारा होया।
मूनी जी की मून छूटी, मूनी बाबा राम राम।।
ईं का तोड़ मं मून लेबा हाळी छोरी राम राम खेवे, जद मून छूटे। बापड़ी नरी छोरियाँ मून छुड़ाबा के कारणे मून को मंतर जाणबा हाळा नं ढूँढती ही रेवे। ज्याँ ताईं न मले मूँडा प ताळो पटक्याँ रैणी पड़े। म्हारी बा (दादी) के गोडे नरी छोरियाँ मून छुड़ाबा आती। बा न्हं होती तो ऊँ की बाट न्हाळती। छोरियाँ की परेसानी देख र बा नै यो मंतर म्हारे ताँईं सिखायो छो, ज्ये आज थाँ ईँ बता दियो।
चड़ी चुग्गो
मून की ई नाईं बरस भर ताईं रोजीनां एक मुट्ठी चावळ, चावळ न होवे तो ज्यार का दाणा, चड़्यां के ताईं पटकणी पड़े। ईं मं चूक हो जावे तो दूसरे दन दो मुट्ठी देणी पड़े। अश्यां भी कर सके क, म्हींना भर ताईं एक मुट्ठी दाणा रोज का भेळा करे, अर म्हीनो होताँ ईं पूरी तीस मुट्ठी दाणा चड्याँ नें पटके।
ये तीन बरत मनं यां मांड्या। अश्या तीन सौ आठ नेग होवे छे।
सँकरात कश्याँ मनावै?
सँकरात पे ब्हेण-बेट्याँ ने फीर मं बुलावै। फेर जीं के खेत होवे, सारी लुगायां छोखा-छोखा कपड़ा फेर र खेत मं जावे। व्हाँ चावळ-दाळ को, नँ तो बाजरा-दाळ को खीचड़ो गाड़ र आवे। खेताँ में खूब घूमे-फरे के घाघरा की लावणाँ सारा खेत में फर जावे। अश्याँ खी जावे के अश्याँ करबा सूँ लावणी पे खूब फसल होवे अर समर्धी घरणँ आवे छे। सँकरात के बाद सब ब्हेण-बेट्याँ अर भाणजा-भाणज्याँ ने नया कपड़ा-लत्ता दे र बिदा करे छे। संकरात के दन चावळ-दाळ को खीचड़ो बणावै, तिल्ली का लड्डू, पापड़ी, चक्की बणावे। यां नै दान करे, अर या नं ई खावै। घर मं कत्त-बाटी-दाळ को भोजन बणावे। जतनो हो सके गरीबाँ के ताईं ख्वावे, अर दान करे।
सुहागण्याँ
सुहागण्याँ ईं दन चूड़ो, बिन्दी, सिन्दूर, कपड़ा अर सुहाग का सन्दा सामान सासू नँ या सासरा की कोई भी बड़ी सुहागण नै देवे अर आसीस लेवे।
आदमी अर छोरा
आदमी अर छोरा ईं दन गुल्ली-डंडा खेले। पण आज खाल तो देख्याँ-देखी पतंगां उडाबा को चलण हो ग्यो। म्हाँ कै कोटा मँ शायर शकूर अनवर साब क य्हाँ दस-बारा बरस सूँ सँकरात प सिरजन सद्भावना समारोह मनायो जावे छे। जी मेँ सहर का सारा साहित्यकार भेळा होर कविता पढे छे, पतंगाँ उड़ाव छे, तिल्ली की गजक, रेवड़ी, लड्डू, दाळ-चावल की खीचड़ी खावे छे।
उश्याँ हाड़ौती मं ईं जनम्यो अर बावन बरस खडग्या। पण अतनी सी हाड़ौती मांडबा में पसीनो आग्यो, ईं श्याळा मँ भी।
कोसिस रह्गी क अनवरत पै म्हीनाँ मँ क सात दनाँ मँ एक पोस्ट हाड़ौती मँ जावै। पण ईं सूँ हाड़ौती का लोग ज्यादा सूँ ज्यादा जुड़गा जदी या चाल पावगी।
या पोस्ट तो खालिस नाराइण जी को परसाद छे।
नाराइण। नाराइण।