@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: थड़ियाँ
थड़ियाँ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
थड़ियाँ लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 7 जुलाई 2023

किस के पास है बेरोजगारी का इलाज?


आप कहीं किसी नगर, कस्बे में चले जाएँ, या सड़क मार्ग से सफर करते हुए जाएँ, आपको हर जगह बेशुमार थड़ियाँ मिलेंगी। सड़क पर बैठ कर लोग सामान बेचते या सेवा प्रदान करते मिलेंगे। ये वो लोग हैं जिनके पास रोजगार नहीं है, फुटकर व्यापार करन या सेवाएँ प्रदान करने के लिए उपयुक्त स्थान पर जगह खरीदने को आवश्यक धन नहीं है। वे सड़कों के किनारे अपनी आजीविका के लिए ये सब करते हैं। 
जिस स्थान पर ये रोजगार कर रहे हैं वह इनका नहीं है इस कारण इनको अक्सर प्रशासन हटाता रहता है। वह हटाता है, ये फिर आ जमते हैं। धीरे धीरे प्रशासन की भी आदत पड़ गयी है कि ये कहीं नहीं जाने वाले। फिर अब ऐसे लोग वोटर भी हैं, तो इन्हें खुद सत्ता पार्टी वाले और विपक्ष वाले भी संरक्षण देते हैं। अतिक्रमण हटाओ अभियानों के नाम पर इन पर एक्शन तो होता है लेकिन वह केवल दिखावे के लिए होता है। वे हटते हैं और फिर वहीं आ जमते हैं।

इस स्थिति का लाभ बड़े स्टेक होल्डर उठाते हैं। वे ठेले खरीदते हैं, उनमें माल सजाते हैं। बेरोजगार पकड़ते हैं और कहते हैं दिन भर सामान बेचो, शाम को कमीशन मिल जाएगा। इस तरह इस बेरोजगारी का लाभ उठाते हुए कुछ बड़े स्टेक होल्डर बिना स्थान के लिए कुछ भी इन्वेस्ट किए अपनी रिटेल सेल चैनें चला रहे हैं। इसमें बड़ा लाभ है। जगह का पैसा बच जाता है, ज्यादा से ज्यादा स्थानीय प्रशासन पुलिस को पटा के रखना होता हैं, जिसमें उतना पैसा खर्च नहीं होता। दूसरे इन्हें सेल्समेन बहुत सस्ते में मिल जाता है। तो बेरोजगारी की बढ़ोतरी के इस युग में ये धन्धा भी बहुत पनप रहा है।

अगर आप नगरों, कस्बों के बाजारों में ऐसे ठेले थड़ियाँ देखते हैं जिनकी संख्या तेजी से बढ़ रही है, यहाँ तक कि दिन भर यातायात अवरुद्ध रहता है, पैदल चलने वालों तक को धक्के खा कर चलना होता है। गाँवों के निकट से निकलने वाली सड़कों पर आपको थड़ियाँ, ठेले भरपूर संख्या में दिखाई देते हैं। इनकी संख्या देश में बेरोजगारी को नापने का का बैरोमीटर है। यदि इनमें कमी आती है तो बेरोजगारी घट रही है और यदि ये बढ़ती हैं तो समझिए बेरोजगारी बढ़ रही है। पिछले नौ बरसों में इनमें तेजी से वृद्धि हुई है। हमारे प्रधानमंत्री ने नाला गैस और पकौड़ा रोजगार के जो फारमूले दिए हैं उनसे ये और तेजी से बढ़ रहे हैं। सीधा मतलब है कि देश में रोजगार का भारी संकट है। 

शासक पार्टियाँ अपने शासन के पाँच में से चार साल कुछ भी करती रहती हैं। लेकिन जैसे ही चुनाव नजदीक आता है, वे नौकरियाँ देने की घोषणा करने लगती हैं। जो नियुक्ति पत्र डाक से आवेदकों को चुपचाप पहुँच जाने चाहिए उन्हें प्रधानमंत्री पूरे समारोह के साथ बाँटता है जैसे उसके फास जादू की छड़ी है और उससे अगले दिन ही देश की बेरोजगारी पूरी तरह गायब हो जाएगी। ऐसे जनता को मूर्ख बनाया जा सकता है, बेरोजगारी खत्म नहीं की जा सकती। लेकिन जनता इतनी मूर्ख भी नहीं होती कि बार बार इस झाँसे में आती रहे।

बेरोजगारी देश में तेजी से बढ़ रही है, वह बहुत सारी समस्याओं की जड़ है। यहाँ तक कि वह देश में पारिवारिक विवादों का भी एक प्रमुख स्रोत है। यदि देश में स्त्रियों और पुरुषों को बालिग होते ही कुछ न कुछ रोजगार उपलब्ध हो तो बच्चे अपनी सैकण्डरी शिक्षा के बाद की उच्च शिक्षा का खर्च खुद उठा सकते हैं और माता पिता पर बोझ नहीं बने रहते। जैसा हमें अमरीका महाद्वीप, यूरोप, आस्ट्रेलिया और एशिया में चीन, जापान व अन्य कुछ देशों में देखने को मिलता है। यदि रोजगार चाहने वाली लगभग सभी स्त्रियों को रोजगार उपलब्ध हो तो वे आत्मनिर्भर होने लगेंगी और विवाह बराबरी के आधार पर तय होगें जिससे विवाह में स्त्री पुरुष समानता स्थापित होने का काम आगे बढ़ेगा। 

इसलिए आज की भारत की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है। इस समस्या भारत में उपस्थित दक्षिणपंथी, यथास्थितिपंथी और वामपंथी राजनीति में से कौन सी राजनीति कैसे निपटती है, उस पर निर्भर करेगा कि भारत में किस राजनीति का भविष्य कैसा होगा। फिलहाल तो केवल कम्युनिस्ट ही हैं जो बेरोजगारी पूरी तरह समाप्त करने का वायदा करते दिखायी देते हैं। मोदी जी जानते हैं कि वे केवल वायदा नहीं करते बल्कि अवसर मिलने पर पर उसे पूरा करके भी दिखा सकते हैं। यही कारण है कि वे कम्युनिस्ट राजनीति के लिए अक्सर कहते हैं कि यह राजनीति खतरनाक है।