आज शनिवार है, अदालत में सिर्फ एक मुकदमा था। साथी के भरोसे छोड़ा और अदालत नहीं गया। मेरे पास नकदी सिर्फ दो-तीन सौ के आसपास रह गयी थी। सोचा था पुराने 500-1000 वाले नोट जमा करवा आउंगा और जितनी नकदी मिल जाएगी उतनी लेता आऊंगा। बैंक गया तो वहाँ बाहर कुछ सीनियर सिटीजन खड़े बतिया रहे थे। दरवाजे पर ही चौकीदार से पूछा नकदी का क्या हाल है? उस ने बताया कि नकदी है ही नहीं। सिर्फ पुराने नोट जमा करने का काम चल रहा है।
अंदर गया तो मैनेजर सीट पर नहीं थे। पता लगा नकदी के इन्तजाम में गये हैं। मैं ने पुराने नोट जमा करा दिए। पूछा तो बताया कि कुछ नकदी मिल जाएगी तो उपस्थित ग्राहकों को देंगे। मुझे एक लिफाफा रजिस्टर्ड डाक में डालना था तो पास के पोस्टआफिस चला गया। वहाँ हर काउंटर पर कम से कम 20 से 30 लोग लाइन में खड़े थे। मैं ने पूछा रजिस्टर्ड डाक का काउंटर कौन सा है? तो जो लाइन बताई गयी उस में 28 लोग थे। उस में नोट एक्सचेंज वाले लोग भी थे। पूछने पर पता लगा सभी काउंटर अपने अपने काम के साथ साथ नोट एक्सचेंज का काम भी कर रहे हैं। अपनी तो एक रजिस्ट्री के लिए इत्ती देर लाइन में खड़े रहने की हिम्मत नहीं थी। बस पोस्ट आफिस से बैरंग लौट आया।
तभी याद आया चैक बुक भी नहीं है। इस दुष्काल में चैक बुक तो होनी चाहिए। मैं वापस बैंक आया जिस से चैक बुक के लिए आवेदन दर्ज करवा सकूँ। तब तक बैंक मैनेजर आ चुके थे। मैं उन से बतियाने लगा। उन्होंने बताया कि चार दिन से सिर्फ चार पाँच लाख रुपया मिल रहा था। हम एक्सचेंज वालों के साथ अपने ग्राहकों को खाते से भी दो दो हजार ही दे रहे थे। जिस से अधिक से अधिक लोगों को राहत मिल सके। पर आज तो मैं पाँच बैंकों में हो कर आ गया हूँ। केवल चेस्ट वाली कुछ ब्रांचोंं के पास कैश नहींं है।
बैंक की यह शाखा नगर विकास न्यास परिसर में है। न्यास के कर्मचारियों को वेतन भी यहीं से मिलता है। न्यास ने वेतन तो बैंक को दे दिया है और बैंक ने कर्मचारियों के खाते में डाल दिया है। लेकिन बैंक के पास इतना कैश नहीं कि वह सब को वेतन दे सके। उन्हें भी वही दो दो हजार मिले हैं। इस से कैसे कर्मचारी काम चलाएँ उन की समझ में नहीं आ रहा है। एक कर्मचारी नेता ने बैंक मैनेजर से बैंक के किसी उच्चाधिकारी का फोन नंबर लिया और ऊंची आवाज में फोन पर बात करने लगा।
आखिर पता लगा कि समस्या का कोई हल नहीं है। रिजर्व बैंक तक में नकदी नहीं है। छपेगी तब आएगी। खबर ये है कि नकदी छापने के लिए स्याही और कागज भी नहीं है। देश आने वाले दिनों में कैसे चलेगा? इस का पता किसी को नहीं है। सरकार स्पष्ट कुछ नहीं बता रही है। चेस्ट भरे पड़े होने की वित्त मंत्री की बात भी मिथ्या ही प्रतीत होती है। कोटा में तो चेस्ट खाली हैं। मुझे तो लगता है "अब की बार झूठी सरकार" आ गयी है।
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