गुण शब्द से हमें किसी एक पदार्थ की प्रतीति न हो कर, उस गुण को धारण करने वाले अनेक पदार्थों की एक साथ प्रतीति होती है। जैसे खारा कह देने से तमाम खारे पदार्थों की प्रतीति होती है, न कि केवल नमक की। इस तरह हम देखते हैं कि गुण का अर्थ है किसी पदार्थ का स्वभाव। लेकिन साँख्य के त्रिगुण गुणवत्ता या स्वभाव नहीं हैं। यहाँ वे प्रकृति के आवश्यक घटक हैं। सत्व, रजस् और तमस् नाम के तीनों घटक प्रकृति और उस के प्रत्येक अंश में विद्यमान रहते हैं। इन तीनों के बिना किसी वास्तविक पदार्थ का अस्तित्व संभव नहीं है। किसी भी पदार्थ में इन तीन गुणों के न्यूनाधिक प्रभाव के कारण उस का चरित्र निर्धारित होता है। हमें अन्य तत्वों के बारे में जानने के पूर्व साँख्य सिद्धांत के इन तीन गुणों के बारे में कुछ बात कर लेनी चाहिए। सत्व का संबंध प्रसन्नता और उल्लास से है, रजस् का संबंध गति और क्रिया से है। वहीं तमस् का संबंध अज्ञान और निष्क्रीयता से है।
सत्व प्रकृति का ऐसा घटक है जिस का सार पवित्रता, शुद्धता, सुंदरता और सूक्ष्मता है। सत्व का संबंध चमक, प्रसन्नता, भारन्यूनता और उच्चता से है। सत्व अहंकार, मन और बुद्धि से जुड़ा है। चेतना के साथ इस का गहरा संबंध है। परवर्ती साँख्य में यह कहा जाता है कि चेतना के साथ इस का गहरा संबंध अवश्य है लेकिन इस के अभाव में भी चेतना संभव है। यहाँ तक कि बिना प्रकृति के भी चेतना का अस्तित्व है। लेकिन यह कथन मूल साँख्य का प्रतीत नहीं होता है अपितु यह परवर्ती सांख्य में वेदान्त दर्शन का आरोपण मात्र प्रतीत होता है जो चेतना के स्वतंत्र अस्तित्व की अवधारणा प्रस्तुत करता है।
रजस् प्रकृति का दूसरा घटक है जिस का संबंध पदार्थ की गति और कार्रवाई के साथ है। भौतिक वस्तुओं में गति रजस् का परिणाम हैं। जो गति पदार्थ के निर्जीव और सजीव दोनों ही रूपों में देखने को मिलती वह रजस् के कारण देखने को मिलती है। निर्जीव पदार्थों में गति और गतिविधि, विकास और ह्रास रजस् का परिणाम हैं वहीं जीवित पदार्थों में क्रियात्मकता, गति की निरंतरता और पीड़ा रजस के परिणाम हैं।
तमस् प्रकृति का तीसरा घटक है जिस का संबंध जीवित और निर्जीव पदार्थों की जड़ता, स्थिरता और निष्क्रीयता के साथ है। निर्जीव पदार्थों में जहाँ यह गति और गतिविधि में अवरोध के रूप में प्रकट होता है वहीं जीवित प्राणियों और वनस्पतियों में यह अशिष्टता, लापरवाही, उदासीनता और निष्क्रियता के रूप में प्रकट होता है। मनुष्यों में यह अज्ञानता, जड़ता और निष्क्रियता के रूप में विद्यमान है।
मूल-साँख्य के अनुसार प्रधान (आद्य प्रकृति) में ये तीनों घटक साम्यावस्था में थे। आपसी अंतक्रिया के परिणाम से भंग हुई इस साम्यावस्था ने प्रकृति के विकास को आरंभ किया जिस से जगत (विश्व Universe) का वर्तमान स्वरूप संभव हुआ। हम इस सिद्धान्त की तुलना आधुनिक भौतिक विज्ञान द्वारा प्रस्तुत विश्व के विकास (Evolution of Universe) के सर्वाधिक मान्य महाविस्फोट के सिद्धांत (Big-Bang theory) के साथ कर सकते हैं। दोनों ही सिद्धांतों में अद्भुत साम्य देखने को मिलता है।
THE BIG-BANG
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9 टिप्पणियां:
बहुत ही रोचक जानकारी प्रदान की है आपने। आभार।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बहुत सुंदर व्याख्या. हम भी समझने की कोशीश कर रहे हैं.
रामराम.
प्रकृति के तीन गुण सत्, रजस और तमस् क्या हैं?
दिनेशरायजी द्विवेदी
सर! इन्ह तीनो गुणो का जैन धर्म के शास्त्रो मे उल्लेख मिलता है। जैन धर्म ने इसकी उत्पति का एक कारण खादय उपक्रम को माना है। जैसा खाए अन्न वैसा हो मन! तामसिक भोजन का भी उल्लेख है। आपने बहुत अच्छे विषय पर विस्तार पुर्वक लिखा है। मै आगे भी आपसे इस विषय पर लिखने के लिए गुजरासी कर रहा हू।
आभार/ मगल भावनाऐ
हे! प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
SELECTION & COLLECTION
तमस से सत्वस की ओर!
अब शुरू हुई गूढ़ व्याख्या.
बड़ा मुश्किल है कपोलकल्पित बिग बैंग पर भरोसा कर पाना..जबकि भारतीयों का ये कहना 'अनंत' है...ज्यादा सुहाता है
आपकी व्याख्या प्रतिपादन बहुत बढिया लगी जी ..लिखते रहीये और ज्ञान का प्रकाश फैलाते रहीये दीनेश भाई जी ,
बहुत सुन्दर !
- लावण्या
बहुत ग्यानवर्द्धक आलेख है समझ मे आसाने से आता है आभार इस सुन्दर सार्थक विश्य के लिये
बड़ी गूढ़ लगती हैं ये चीजें आज थोडा समय मिला तो पिछली पोस्ट पर भी गया. लेकिन इतनी जल्दी में पढने पर दिमाग उसी स्टेट में रह जाता है जहाँ पोस्ट पढने के पहले था. फुर्सत चाहिए इसके लिए तो...
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