आप ने अनवरत पर महेन्द्र 'नेह' की कुछ रचनाएँ पढ़ी हैं। आज आप के हुजूर में पेश कर रहा हूँ, ऐसे शायर की गज़ल जो बहुमुखी प्रतिभा का धनी है। जिस ने बहुत देर से उर्दू सीखी और जल्द ही एक उस्ताद शायर हो गए। ये पुरुषोत्तम 'यकीन' हैं। अब तक इन के पाँच गज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। हो सकता है विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में इन की रचनाएँ आप पढ़ भी चुके हों। यकीन साहब मेरे मित्र भी हैं और छोटे भाई भी। उन के बारे में विस्तार से किसी अगली पोस्ट पर। अभी आप उन की ये गज़ल पढ़िए..........
थोड़ा नजदीक आ अंधेरा है
पुरुषोत्तम 'यकीन'
रोशनी कर ज़रा अंधेरा है
कोई दीपक जला, अंधेरा है
यूँ तो अकेले मारे जाएंगे
हाथ मुझ तक बढ़ा, अंधेरा है
खोल दरवाजे खिड़कियाँ सारी
मन के परदे हटा, अंधेरा है
लम्स* से काम चश्म* का लेकर
पाँव आगे बढ़ा, अंधेरा है
राह सूझे न हम सफर कोई
आज सचमुच बड़ा अंधेरा है
औट कैसी है छुप गया सूरज
दिन है लेकिन घना अंधेरा है
दूर रहना 'यकीन' ठीक नहीं
थोड़ा नजदीक आ, अंधेरा है
*लम्स= स्पर्श
*चश्म= आँख
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10 टिप्पणियां:
मंहगाई बारह परसेंट, अँधेरा नहीं अंधेर गर्दी है.
राह सूझे न हम सफर कोई
आज सचमुच बड़ा अंधेरा है
बहुत खूब शुक्रिया इसको यहाँ पढ़वाने के लिए
अच्छी कविता और दो शब्दों का इजाफा। लम्स और चश्म।
धन्यवाद।
इसका उलट गोपालदास नीरज याद आते हैं - रोशनी पूंजी नहीं है जो तिजोरी में समाये...
अच्छी गजल... ये लम्स और चश्म हमने भी आज सीखे... लम्स आज एक और ब्लॉग पर देखने को मिला.
औट कैसी है छुप गया सूरज
दिन है लेकिन घना अंधेरा है
दूर रहना 'यकीन' ठीक नहीं
थोड़ा नजदीक आ, अंधेरा है
ye dono behad pasand aaye...bahut khoob...
अँधेरा तो है ....रोशनी की किल्लत है .....बढियां !
bhut sundar gajal. badhai ho.
कोई आस का दिया जलाओ सच मे बहुत अंधेरा हे,
राह सूझे न हम सफर कोई
आज सचमुच बड़ा अंधेरा है
बहुत हि सुन्दर ध्न्यावाद
बहुत आभार पुरुषोत्तम 'यकीन' जी की गज़ल पढ़वाने का. और भी जब मौका लगे, तो पढ़वाईयेगा.
यकीनन्` बेहतरीन -
शुक्रिया इनसे मुलाकात
करवाने का
- लावण्या
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