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सोमवार, 30 मार्च 2020

कोविद-19 महामारी और भारत-1


 'भारत में महामारी का प्रवेश'

तीन माह की अवधि में ही कोविद-19 वायरस ने दुनिया को हलकान कर दिया है और अब उसने वैश्विक महामारी का रूप ले लिया है। वे देश अभी सौभाग्यशाली हैं जिन में अभी तक इस वायरस के चरण नहीं पड़े हैं। इस वायरस से बचाव के लिए कोई टीका वैज्ञानिक अभी तक पुख्ता तौर पर ईजाद नहीं कर पाए हैं। न ही इस के रोगी की चिकित्सा के लिए कोई खास दवा की वे पहचान नहीं कर पाए हैं। इन दोनों की खोज/ आविष्कार में वे में दिन रात जुटे हैं। टीका ईजाद करने में उन्हें कम से कम एक वर्ष का समय लगेगा ऐसा अनुमान है। इस वायरस का संक्रमण संक्रमित व्यक्ति के मुहँ और नाक से निकले डिस्चार्ज से फैलता है। यह छींक और खाँसी के माध्यम से वातावरण में आता है। छींक और खाँसी के डिस्चार्ज से निकले कण चार-पांच फुट की दूरी तक तुरन्त फैल जाते हैं।

इस कारण फिलहाल बचाव के लिए यह उपाय निकाला गया है कि एक व्यक्ति दूसरे से कम से कम दो मीटर की दूरी बनाए रखे, घर से बाहर निकले तो अनजान सतहों और व्यक्तियों को न छुए। अपने मुहँ और नाक को खास तरह के मास्क से ढक कर रखे जिससे संक्रमण दूर तक न फैले। जब तक अत्यन्त ज्ररूरी न हो तो घर से बाहर न निकले। अलग अलग सतहों पर कुछ ही समय में यह वायरस निष्क्रीय हो कर समाप्त हो जाता है। यदि 14 दिन तक इस का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में होने से रोका जा सके तो इस वायरस को नष्ट किया जा सकता है। यदि कुछ समय और अर्थात कम से कम तीन सप्ताह तक इलाकों में आवागमन पूरी तरह रोक दिया जाए और लोग घरों से न निकलें तो किसी भी क्षेत्र विशेष में इस वायरस को पूरी तरह से नष्ट किया जा सकता है। सरकारें अपने अपने काम में जुट गयी हैं। यह वायरस पहले पहल चीन में 8 दिसंबर को प्रकट हुआ था और 31 दिसंबर को एक रिपोर्ट से विश्व स्वास्थ्य संगठन को सूचित किया गया था । चीन में उस ने तीन हजार से अधिक लोगों की जान ले ली। फिलहाल चीन में स्थिति नियन्त्रण में प्रतीत होती है और वहाँ जिस नगर वुहान में इसे पहले पहले देखा गया था उसे वहाँ सभी गतिविधियाँ फिर से आरंभ की जा रही हैं।

भारत में यह पहली बार 30 जनवरी 2020 को प्रकट हो चुका था। उसी समय हमारी सरकार को इसे गंभीरता से लेते हुए इस से देश को बचाने के उपाय पूरी गंभीरता से आरंभ कर देने चाहिए थे। लेकिन केरल राज्य की सरकार को छोड़ कर 19 मार्च 2020 की सुबह तक भारत को इस महामारी से बचाने के लिए कोई खास उपाय भारत सरकार और राज्यों की सरकारें करती नजर नहीं आईं।  19  मार्च की रात 8 बजे प्रधानमंत्री मोदी अचानक टीवी/रेडियो पर आए और देश की जनता से इतवार 22 मार्च को देश भर में सुबह 7 से रात 9 बजे तक जनता कर्फ्यू रखने का आव्हान किया गया। केवल एक दिन के लिए यह उपाय करने का कोई औचित्य नहीं था। जनता कर्फ्यू के दिन शाम 5 बजे स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस और प्रशासन को इस के लिए काम करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए शाम 5 बजे पाँच मिनट के लिए तालियाँ और थालियाँ बजाने का आव्हान किया गया था। जनता कर्फ्यू को जनता का अभूतपूर्व सहयोग मिला और वह पूरी तरह सफल रहा। मोदी जी के उत्साही भक्तों ने तालियाँ और थालियों के साथ साथ शंख, ढोल, ड्रम वगैरा भी बजा दिए। यहाँ तक कि अनेक नगरों में लोग जलूसों और झुण्डों में बाहर निकले जैसे कोविद-19 पर उन्होने विजय प्राप्त कर ली हो। इस तरह उन्होंने कर्फ्यू की उपयोगिता को नष्ट कर दिया।  कर्फ्यू की सफलता से शायद मोदीजी ने यह समझा कि भारत की जनता कोविद-19 से निपटने को तैयार है। एक दिन के अंतराल के बाद 24 मार्च 2020 को सुबह-सुबह घोषणा हुई कि प्रधानमंत्री रात आठ बजे देश को संबोधित करेंगे। ... (क्रमशः)

रविवार, 29 मार्च 2020

'सामाजिक दूरी' नहीं, सामाजिक सामंजस्य के साथ 'शारीरिक दूरी'

कोविद-19    वायरस से उत्पन्न महामारी से निपटने के लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह जरूरी पाया है कि लोग आपस में कम से कम 6 फुट की दूरी बनाए रखें। यह वायरस मनुष्य और मनुष्य की शारीरिक निकटता से फैलता है। यदि इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति छींकता है या खाँसता है तो छींक या खाँसी के साथ बाहर निकले कणों में वायरस होते हैं और वे विशेष रूप से आँख, नाक, कान या मुख के ज़रीए निकट व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर उसे भी संक्रमित कर सकते हैं। सरकार, मीडिया संगठनों आदि ने इस पर चर्चा करते हुए मनुष्यों के बीच इस दूरी को बनाए रखने को आम तौर पर “सोशल डिस्टेंसिंग” हिन्दी में “सामाजिक दूरी” शब्द का प्रयोग किया है।

शारीरिक दूरी (Physical Distancing)

“सोशल डिस्टेंसिंग” या “सामाजिक दूरी शब्द इस संदर्भ में बिलकुल गलत और बहुत भ्रामक शब्द है। इस वैश्विक आपदा के समय में जब इस से निपटने के लिए “सामाजिक निकटता” की अत्यन्त आवश्यकता है हम ठीक उसके विलोम सामाजिक दूरी” शब्द का प्रयोग कर रहे हैं। “सामाजिक दूरी” का सही अर्थ यह है कि हम एक दूसरे का सहयोग करना बन्द कर दें। यदि ऐसा हुआ तो यह महामारी दुनिया के लाखों लोगों को लील लेगी। यदि कुछ ही समय में इस महामारी और उस से उत्पन्न प्रभावों से मरने वाले लोगों की संख्या करोड़ से ऊपर चली जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।


कल शाम जब मैंने इस मुहावरे पर बहुत विचार किया और उसके बाद मैंने इंटरनेट पर तनिक रिसर्च की तो पाया कि इस शब्द पर अमरीका की नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान और सार्वजनिक नीति के प्रोफेसर डैनियल एल्ड्रिच का कहा ​​है कि यह शब्द भ्रामक है और इसका व्यापक उपयोग का प्रभाव उल्टा पड़ सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी उसी निष्कर्ष पर पहुंचा है। पिछले हफ्ते एल्ड्रिच ने इसके स्थान पर "शारीरिक दूरी" शब्द का उपयोग करना शुरू कर दिया है।

एल्डरिच ने कहा है कि कोरोनोवायरस के प्रसार को धीमा करने के लिए किए गए प्रयासों में “शारीरिक दूरी” (Physical Distance) बनाए रखते हुए सामाजिक संबंधों को मजबूत करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। एक ट्वीट में, उन्होंने “शारीरिक दूरी” के साथ “सामाजिक जुड़ाव" (Social Connectedness) के लिए बुजुर्ग पड़ोसियों के लिए काम करने वाले नौजवानों की तारीफ की है। उन्होंने कहा है कि यह लोगों के बीच सामाजिक संबंध आपदाओं से निपटने के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। एल्ड्रिच ने अपने सहयोगियों और निर्णय लेने वाले अधिकारियों और संस्थाओँ से “सामाजिक दूरी” शब्द के उपयोग के बारे में अपनी चिंता प्रकट की है और कहा है कि सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी और गैर सरकारी संगठनों को “सामाजिक दूरी” शब्द का उपयोग करने के स्थान पर “शारीरिक दूरी” शब्द का प्रयोग करना चाहिए।


विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पिछले सप्ताह "शारीरिक दूरी" शब्द का उपयोग शुरू कर दिया है। डब्लूएचओ द्नवारा 20 मार्च को की गयी दैनिक प्रेस ब्रीफिंग में डब्ल्यूएचओ के महामारी-वैज्ञानिक मारिया वान केरखोव ने कहा है कि अब हम “सामाजिक दूरी” शब्द को “सामाजिक दूरी” शब्द से बदल देना चाहते हैं, क्योंकि हम चाहते हैं कि लोग अभी भी आपस में जुड़े रहें, उन के सामाजिक सम्बन्ध पहले से अधिक मजबूत बनें।

एल्ड्रिच के शोधकार्य से पता चलता है कि मजबूत सामाजिक निकटता वाले समुदाय ही जिनमें लोग एक दूसरे के साथ जीवन भर की जानकारी साझा कर सकते हैं किसी भी बड़ी आपदा के बाद सबसे प्रभावी ढंग से जीवित रह कर बेहतर ढंग से पुनर्निर्माण करने में सफल हो सके हैं। जिन लोगों और समुदायों को आपदाओं में सब से अधिक हानि हुई है और जो ठीक से पुनर्निर्माण नहीं कर सके वे कमजोर सामाजिक संबंध वाले थे जिनमें आपसी विश्वास और सामंजस्य की कमी थी। 1995 की शिकागो हीट वेव के, कैलिफोर्निया की 2018 के कैंप फायर और 2011 में जापान में आए भूकंप और सूनामी की आपदाओं के समय यह प्रमाणित हो चुका है कि ऐसे कमजोर सामाजिक संबंध वाले समुदाय आपदा में सब से पहले नष्ट होने वाले होते हैं।

पैराडाइज, कैलिफ़ोर्निया में 2018 के कैंप फायर में, एल्डरिच ने पाया कि वे लोग जीवित नहीं बचे थे जिनके बीच आपसी सामाजिक संबंध मजबूत नहीं थे । इसके विपरीत जिन समुदायों में मजबूत सामाजिक सामंजस्य था वे सभी को अपने घरों से बाहर निकालने और मदद करने में सक्षम रहे। उन समुदायों में अविश्वसनीय रूप से किसी की मृत्यु नहीं हुई।

इस कारण पश्चिम के अनेक विशेषज्ञों का मत है कि वर्तमान भाषा को बदलना चाहिए। अर्बाना विश्वविद्यालय में नगरीय और क्षेत्रीय नियोजन के प्रोफ़ेसर रॉबर्ट ओलशनस्की ने कहा है कि “सामाजिक दूरी” मुहावरे में एक विरोधाभास है। वास्तव में हम परस्पर एक दूसरे से छह फीट दूर रहने के लिए सहमत होते हुए अधिक सहयोगी और सामाजिक हो रहे हैं। इस से हमारी सामाजिक निकटता में वृद्धि हुई है। जब कि “सामाजिक दूरी” 'शब्द का अर्थ है कि हमें एक ऐसा समाज चाहिए जिसमें लोग अलग-अलग रहें। लोगों के बीच मजबूत सामाजिक संबंध न केवल महामारी का मुकाबला करने के लिए आवश्यक हैं, बल्कि पुनर्निर्माण के लिए बहूत जरूरी हैं।

इतिहास ने हमें बार-बार सिखाया है कि सहयोगी, पारस्परिक रूप से सहायक समुदाय ही हैं बड़ी आपदाओं से लगातार उबरने में सबसे सफल रहते हैं। इस कारण मेरा बहुत दृढ़ता के साथ समाचार माध्यमों के संपादकों, संवाददाताओं, एकंरों और सोशल मीडिया के एक्टिविस्टों से आग्रह है कि हमें भारत में अपनी भाषा को बदल देना चाहिए और तुरन्त “सामाजिक दूरी” (Social Distancing) शब्द के स्थान पर “शारीरिक दूरी” (Physical Distancing) शब्द का उपयोग आरंभ कर देना चाहिए।