बरसों पहले बिछाई गई पाइप लाइनें समय के साथ गलने लगीं, उन में लीकेज होने लगे। समय समय पर उन्हें बदला गया। नगर का विस्तार हुआ और आवश्यकता के अनुसार जल वितरण व्यवस्था का भी विस्तार हुआ। अब पूरे नगर में उच्च जलाशय बनाए गए हैं। जिस से 24 घंटे जल वितरण को समयबद्ध जल वितरण में बदला जा सके। उन का प्रयोग भी आरंभ हो चुका है। लेकिन इस सब के बीच लाइनें लीकेज होती रहती हैं। भूमि की ऊपरी सतह में मौजूद जीवाणु युक्त जल का उस में प्रवेश भी होता ही है। हर साल प्रदूषित पानी से संबंधित बीमारियाँ भी इसी कारण से आम हैं।
मैं ठहरा अदालत का प्राणी। वहाँ पानी की उपलब्धता के अनेक रूप हैं। चाय की दुकानों पर, प्याउओं पर पानी उपलब्ध है। जहाँ जब जरूरत हो वहीं पी लो। यह कुछ मात्रा में तो प्रदूषित रहता ही है। इस से बचाव का एक ही साधन है कि आप अपने शरीर की इम्युनिटी बनाए रक्खें। वह बनी रहती है। पर कभी तो ऐसा अवसर आ ही जाता है जब इस इम्युनिटी को संक्रमण भेद ही लेता है। रविवार को एक पुस्तक के विमोचन समारोह में थे वहाँ जल पिया गया या उस से पहले ही कहीं इम्युनिटी में सेंध लग गई।
सोमवार उस की भेंट चढ़ा और मंगल भी उसी की भेंट चढ़ रहा है। लोग समझते हैं कि वकील ऐसी चीज है कि जब चाहे अदालत से गोल हो ले। लेकिन ऐसा कदापि नहीं है। एक मुकदमे में नगर के दो नामी चिकित्सकों को गवाही के लिए आना था। जिन्हें लाने के लिए मैं ने और मुवक्किल ने न जाने क्या क्या पापड़ बेले थे। स्थिति न होते हुए भी अदालत गया। दोनों चिकित्सक अदालत आए भी लेकिन जज अवकाश पर थे। बयान नहीं हो सके। अब अदालत गया ही था तो बाकी मामलों में भी काम तो करना पड़ा ही।
अदालतों की हालत बहुत बुरी है। सब जानते हैं कि अदालतों की संख्या बहुत कम है। लेकिन उस के लिए आवाज उठाने की पहल कोई नहीं करता। वकीलों को यह पहल करनी चाहिए। इस से उन्हें कोई हानि नहीं अपितु लाभ हैं। पर एक व्यक्ति के बतौर वे असमंजस में रहते हैं कि इस से उन के व्यवसाय के स्वरूप पर जो प्रभाव होगा उस में वे वैयक्तिक प्रतिस्पर्धा में टिक पाएँगे या नहीं।
भारतीय समाज वैसे भी इस सिद्धांत पर अधिक अमल करता है कि जब घड़ा भर लेगा तो अपने आप फूट लेगा। उसे लात मार कर अश्रेय क्यों भुगता जाए। लालगढ. की खबरों की बहुत चर्चा है। कोई कुछ तो कोई कुछ कहता है। सब के अपने अपने कयास हैं। लेकिन मैं जो न्याय की स्थिति को रोज गिरते देख रहा हूँ, एक ही बात सोचता हूँ कि जो व्यवस्था अपने पास आने वाले व्यक्ति को पच्चीस बरस चक्कर लगवा कर भी न्याय नहीं दे सकती। उस में न जाने कितने लालगढ़ उत्पन्न होते रहेंगे ?
दो दिनों से "प्यासा" फिल्म का यह गीत गुनगुना रहा हूँ। चलिए आप भी सुन लीजिए .......
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