@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: रंग कर्म
रंग कर्म लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रंग कर्म लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

जन्मदिन पर शिवराम के नाटकों-कविताओं की शानदार प्रस्तुति

ल साल का सब से छोटा दिन गुजर गया। एक काम शिवराम के जिम्मे था, वे इसे ले कर बहुत चिंतित थे, लेकिन पूरा नहीं कर सके थे। पिछले तीन दिनों में लग कर यह काम संपन्न कर लिया गया तो मेरे साथ अन्य साथियों ने भी राहत की साँस ली। लेकिन सर्दी अपना रंग दिखा गई। कल रात भोजन कर के जल्दी सोया था। सुबह पौने पाँच पर आँख खुली तो लगा जैसे पेट में गूजर धरना दिए बैठे हैं, रास्ता जाम है, पेट फूला हुआ है। शौच वगैरह सब सामान्य था लेकिन जो कुछ पेट में था वह सरकने को तैयार नहीं था। आज उपवास कर लिया  गया। शाम तक ठीक महसूस हुआ तो शिवराम के जन्मदिन पर आयोजित अभिव्यक्ति नाट्य मंच के कार्यक्रम में अलबर्ट आइंस्टाइन सीनियर सैकंडरी विद्यालय पहुँचा। देखा विद्यालय का प्रांगण दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था। मुझे अपने लिए स्थान बनाने में कुछ मशक्कत करनी पड़ी।

मशाल
कार्यक्रम का आरंभ शिवराम द्वारा आरंभ की गई परंपरा के अनुसार मशाल जला कर हुआ। विकल्प जन सांस्कृतिक मंच, कोटा के अध्यक्ष महेन्द्र 'नेह' ने शिवराम के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व पर रोशनी डाली। तुरंत बाद शिवराम का नाटक 'घुसपैठिए' का मंचन आरंभ हो गया।
घुसपैठिए
नपतियों की काली कमाई से पोषित मीडिया अक्सर हमें 'घुसपैठियों' के रूप में उन्हीं आतंकवादियों की तस्वीरें दिखाता है, जो कभी करगिल, कभी कश्मीर, तो कभई समुद्र के रास्ते देश की सीमाएँ तोड़ कर खून-खराबा करते हैं और हत्याओं का घिनौना खेल खेलते हैं। यह नाटक देश, जनता और अमन के उन दुश्मनों को तो उजागर करता ही है, वहीं नट-नटी, दातुनवाला, सब्जीवाला, सूत्रधार और अभिनेता के माध्यम से उन बहुराष्ट्रीय कंपनियों और साम्राज्यवादी ऐजेंसियों की हमारे सत्ताधारियों के माध्यम से हुई 'घुसपैठ' को ठीक उसी तरह से बेनकाब करता है, जिस तरह कुछ राजा-महाराजाओं के मार्फत 'ईस्ट इंडिया कंपनी' ने घुसपैठ कर के हमारी रोटी, रोजगार, स्वदेशी स्वावलंबन और आजादी का अपहरण किया था। इस नाटक में शिवराम ने दर्शकों के लिए एक चुनौती छोड़ी है -कौन खदेड़ेगा देश और जनता को लूटने वाले इन घुसपैठियों को? कौन? कौन? कौन? कौन? आखिर कौन? 
ह नाटक स्वयं शिवराम के निर्देशन में 'अनाम' ने अनेक बार देश के अनेक स्थानों पर खेला। इस बार भी उन्ही कलाकारों ने इसे यहाँ प्रस्तुत किया।  वृद्ध की भूमिका में अजहर, तथा नेता की भूमिका में डॉ.पवन कुमार स्वर्णकार ने विशेष  रुप से प्रभावित किया। वहीं आशीष  मोदी, राजकुमार चौहान, रोहन शर्मा, तथा संजीव शर्मा ने विभिन्न भूमिकाओं में प्रभावी अभिनय किया। अन्य कलाकारों में मनोज शर्मा, शशिकुमार, रोहित पुरुषोत्तम, आकाश सोनी, आशीश सोनी व रविकुमार का अभिनय सराहनीय था। 
स नाटक के उपरांत ऋचा शर्मा ने शिवराम की कुछ कविताओं का सस्वर प्रभावशाली पाठ किया। और फिर आरंभ हुआ शिवराम का सुप्रसिद्ध नाटक 'जनता पागल हो गई है' इस नाटक को पहली बार आपातकाल के दौरान 1976 में बारां में खेला गया था। जो जो लोग इस नाटक में अभिनय कर चुके हैं वे सभी ख्यात भी हुए। मुझे भी इस की आठ-दस प्रस्तुतियों में एक भूमिका करने का अवसर मिला था, इस की सर्वाधिक सफल प्रस्तुति शिवराम के निर्देशन में रविन्द्र रंगमंच जयपुर पर हुई थी। वह दिन मैं कभी नहीं भूल सकता। उस दिन साथियों से कुछ ऐसा हुआ था कि मुझे बहुत गुस्सा आने वाला था, शिवराम इसे भांप गए थे और उन्हों ने हमारे सभी साथियों को यह बता दिया था कि मैं आज बहुत गुस्सा होने वाला हूँ। जैसे ही मैं ठहरने के स्थान पर पहुंचा सारे वरिष्ठ साथी मुझे मनाने में लग गए। थोड़ी देर बाद जब  शांत हुआ तो मुझे लज्जा हुई, लेकिन उस से क्या? इस बहाने बुजुर्ग सभी को कॉफी और कचौड़ियों की दावत खिला चुके थे।
जनता पागल हो गई है 
नाटक 'जनता पागल हो गई है' को हम ऐसा क्लासिक कह सकते हैं, जिसे भव्य रंगमंच से ले कर सड़क पर आम जनता के बीच नुक्कड़ नाटक की तरह खेला जा सकता है। हिन्दी में नुक्कड़ नाटकों के जन्मदाता शिवराम का यह नाटक वस्तुतः जनता तक अपनी बात को पहुँचाने के माध्यम के रुप में विकसित हुआ था, जो अब तक का सब से लोकप्रिय, भारत की लगभग सभी भाषाओं में अनुदित हो कर देश के कोने-कोने में खेला जा चुका है और विदेशों में भी वहाँ की स्थानीय भाषाओं में इस की प्रस्तुतियाँ हुई हैं। इस नाटक के कुछ दृष्य  कुछ फेरबदल के साथ कुछ हिन्दी फिल्मों का हिस्सा भी बने हैं।
स नाटक का प्रारंभ देश की उस कोटि-कोटि भूखी-प्यासी जनता के आर्तनाद से होता है जो अपने परिश्रम से जहाज से ले कर सुई तक का उत्पादन करती है, लेकिन जिसे धनपतियों, नेताओं, हाकिमों द्वारा रूखी-सूखी रोटियों पर इसलिए जीवित रखा जाता है जिस से उस की कमाई और अपार धन-दौलत को निचोड़ा जा सके। नाटक में जनता कहती है-
"खेत सूखे, पेट भूखे, गाँव हैं बीमार
हम लोगों की मेहनत, कोठे भरता जमींदार
देह सूखी, प्राण सूखे, सूना सब संसार
कोई सुनता नहीं हमारी, क्या बोलें सरकार"
मैदान में हो रहे 'जनता पागल हो गई है' नाटक का एक दृश्य
ब चुनाव के मौसम में नेता वोट के लिए जनता को झूठे आश्वासन दे कर भरमाने का प्रयत्न करते हैं तो तो 'पागल' उसे सचेत करता है-
"वोट दो..... वोट दो.... ठोक दो.... ठोक दो....
इस जालिम सरकार के दिल पर चोट दो
इस ने रेल-हड़ताल में मेरा भाई डाला मार
मेरा बच्चा चबा गई यह जालिम सरकार!!"
'जनता पागल हो गई है' एक व्यस्त चौराहे पर
रकार के कहने से पूंजीपति जनता को कारखाने में काम देता है, लेकिन जब उसे सूखी रोटी भी नसीब नहीं होती तो वह हड़ताल कर देती है। सरकार, पुलिस, और मीसा-एस्मा जैसे काले कानूनों की मदद से जब जनता का निर्दयता पूर्वक दमन करती है तो जनता विद्रोह कर देती है। विद्रोह में कुर्बानियों के बाद जनता की जीत होती है। पूंजीपतियों और सरकार का दंभ जल कर खाक हो जाता है। इस नाटक का यही आशावादी स्वर, जज्बा, और विश्वास युवा नाट्यकर्मियों में जन-ऊष्मा का संचार करता है और देश के किसी भी हिस्से के हों, कोई भी भाषा बोलते हों, इस नाटक के मंचन के लिए कभी रंगमंच पर कभी नुक्कड़ पर और कभी चौपाल पर खेलने के लिए मचल उठते हैं। यह नाटक तानाशाह हुक्मरानों के विरुद्ध भारतीय जनता के विद्रोह का महा-आख्यान है, इसी लिए यह अपार लोकप्रियता हासिल कर सका है। जब तक हवाओं में शोषण, दमन और गुलामी का धुँआ रहेगा, यह सिलसिला जारी रहेगा। 
ज जनता की भूमिका में आशीष मोदी का मंत्रमुग्ध कर देने वाले अभिनय, और रोहित पुरुषोत्तम की सरकार के रुप में चुटीली भूमिका ने बहुत प्रभावित किया। पागल की भूमिका में अजहर अली ने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया और सराहना पाई। पुलिस अधिकारी के रूप में संजीव शर्मा और सिपाहियों की भूमिका में रोहन शर्मा और मनोज शर्मा ने सधा हुआ अभिनय किया। शिवराम की अनुपस्थिति में नगर के नाट्य निर्देशक अरविंद शर्मा ने इन नाटकों की तैयारी में सहयोग किया और संगीत संयोजन में सुधीर व रामू शर्मा ने अपना योगदान दिया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि नगर के स्वतंत्रता सेनानी और वयोवृद्ध पत्रकार आनन्द लक्ष्मण खाण्डेकर और विशिष्ठ अतिथि गुरुकुल इंजिनियरिंग  कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर आर.सी. मिश्रा थे। कार्यक्रम के अंत में अल्बर्ट आइंस्टाइन स्कूल के प्राचार्य डॉ.गणेश तारे ने सभी का तथा सहयोगी संस्थाओं का आभार व्यक्त किया और सभी से शिवराम के दिखाए मुक्तिकामी संघर्षों की राह पर अनवरत चलते रहने का आव्हान किया। इस अवसर पर रविकुमार द्वारा निर्मित कविता पोस्टरों की प्रदर्शनी अत्यन्त आकर्षक थी जिस में शिवराम की कविताओं पर निर्मित पोस्टर विशेष रूप से देखने को मिले।
कार्यक्रम की समाप्ति शिवराम के पूरे परिवार उन की बेटी और दामाद तीनों पुत्र और भाभी जी से एक साथ मुलाकात से भेंट मेरे लिए बड़ी सौगात थी।

इस दिन की नाट्य प्रस्तुतियों के चित्र रविकुमार के ब्लाग "सृजन और सरोकार" की पोस्ट नाट्य प्रस्तुतियों के छायाचित्र  पर देखे जा सकते हैं। 

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

शिवराम को एक सृजनात्मक श्रद्धांजलि !!!

नाटककार, रंगकर्मी, कवि, आलोचक, साहित्यकार, ट्रेडयूनियन कार्यकर्ता, शीर्ष राजनैतिक नेता शिवराम के व्यक्तित्व के अनेक आयाम थे। लेकिन उन के सभी कामों का एक ही उद्देश्य था। जनता को सचेतन करना, शिक्षित करना और संगठित होने के लिए प्रेरित करना और संगठित होने में उन की मदद करना। उन की राय में श्रमजीवी जनता की मुक्ति का यही एक मार्ग था। उन के इस बहुआयामी व्यक्तित्व में रंगकर्म सब से पहले आता था। इसी से उन्हों ने अपने उद्देश्य को प्राप्त करने का सफर आरंभ किया था और अंतिम दिनों तक वे इस से जुड़े रहे। पिछली पहली अक्तूबर को उन्हों ने हम से सदा सर्वदा के लिए विदा ली है। तीन माह भी नहीं गुजरे हैं कि 23 दिसंबर 2010 को उन का बासठवाँ जन्मदिन आ रहा है। 
शिवराम अभिव्यक्ति नाट्य एवं कला मंच (अनाम) कोटा के जन्मदाता थे। इस 23 दिसंबर को अनाम अपने जन्मदाता की अनुपस्थिति में उन्हें एक सृजनात्मक श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए पहली बार उन का जन्मदिन मनाएगा। इस दिन साँयकाल 6.30 बजे एलबर्ट आइंस्टाइन सीनयर सैकण्डरी विद्यालय, वसंत विहार, कोटा के रंगमंच पर, जहाँ शिवराम की उपस्थिति और उन के निर्देशन में अनाम ने पहले भी अनेक नाटकों का मंचन किया है, अनाम शिवराम के सब से उल्लेखनीय और शायद सब से अधिक मंचित नाटक 'जनता पागल हो गई है' और 'घुसपैठिए' का मंचन करने जा रहा है। इस अवसर पर शिवराम की एक शिष्या ऋचा शर्मा उन की कविताओं का सस्वर पाठ करेंगी और उन के पुत्र रविकुमार अपने कविता पोस्टरों की प्रदर्शनी सजाएंगे। इस अवसर पर नगर के वयोवृद्ध पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी मुख्य अतिथि होंगे तथा गुरूकुल इंजिनियरिंग कॉलेज कोटा के प्राचार्य डॉ. आर.सी. मिश्रा विशिष्ट अतिथि होंगे। शिवराम के रंगकर्म और उन के  अन्य कार्यों के सहयोगी विकल्प जन सांस्कृतिक मंच कोटा, श्रमजीवी विचार मंच कोटा तथा एलबर्ट आइंस्टाइन सी.सै. विद्यालय, कोटा इस आयोजन में अनाम का सहयोग कर रहे हैं। 

  स आयोजन का निमंत्रण यहाँ प्रस्तुत है। आप सभी से अनुरोध है कि जो भी इस कार्यक्रम में सम्मिलित हो सकता है वह इस अवसर पर अवश्य उपस्थित हों।

बुधवार, 10 नवंबर 2010

शिवराम के नाटकों की एक आत्मीय प्रस्तुति

कोटा राजस्थान का रंगकर्मी एकता संघ (रास) पिछले चार वर्षों से अपने ही एक दिवंगत साथी नाट्यकर्मी गिरधर बागला की स्मृति में नाट्य संध्या आयोजित करता रहा है।  इस समारोह में प्रतिवर्ष रंगकमल अलंकरण प्रदान कर के किसी न किसी वरिष्ठ रंगकर्मी को सम्मान और आदर प्रदान किया जाता रहा है। कल साँझ पाँचवीं गिरधर बागला स्मृति नाट्य संध्या कोटा के ऐतिहासिक क्षार बाग में स्थित कला दीर्घा के खुले थियेटर में आयोजित की गई। यह मेरा दुर्भाग्य ही रहा कि इस के पहले की चार संध्याओं में मैं उपस्थित नहीं हो सका था बावजूद इस के कि मेरे अभिन्न मित्र और शिवराम जी मृत्युपर्यंत रास के अध्यक्ष थे। कल भी स्वास्थ्य कुछ नरम था लेकिन शिवराम रचित पहला नाटक 'जमीन' का हाड़ौती भाषा में मंचन और मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'ठाकुर का कुआँ' का उन के द्वारा किए गए नाट्य रूपान्तरण को देख पाने तथा इस बहाने कृतित्व के माध्यम से दिवंगत मित्र से साक्षात्कार के लालच ने मुझे वहाँ जाने को बाध्य किया।
मंच स्तुति
दिवंगत गिरधर बागला से मेरा व्यक्तिगत परिचय नहीं था। लेकिन नाट्य संध्या में उन के पिता जी से भेंट हुई तो पता लगा वह मेरे ननिहाल के गाँव मनोहरथाना, जिला झालावाड़ (राज.) के रिश्ते से मेरा भतीजा था और गिरधर के चचेरे भाई नितिन बागला हिन्दी चिट्ठाजगत के जाने माने ब्लॉगर हैं। मैं वहाँ समय पर पहुँच गया था। लेकिन समारोह आरंभ होने में देरी थी, क्यों कि समारोह के मुख्य अतिथि पूर्व विधायक और भाजपा नेता ओम बिड़ला तथा एक बड़े उद्योग के महाप्रबंधक वी.के.जेटली वहाँ समय पर नहीं पहुँचे थे। वे वहाँ लगभग पौन घंटा की देरी से पहुँचे। हालाँकि इस के लिए उन्हें कतई कसूरवार नहीं ठहराया जा सकता। क्यों कि अक्सर ऐसे आयोजनों में दर्शक ही देरी से एकत्र होते हैं और बिना दर्शकों के आयोजन को आरंभ करने का कोई अर्थ नहीं होता। पर इस आयोजन में थियेटर समय पर भर चुका था और अतिथियों की कमी अखर रही थी। आयोजकों को इस रिक्तता को भरने के लिए अपने संगीतकारों से अतिरिक्त काम लेना पड़ा और दर्शकों को हर्षित का बांसुरी वादन बोनस के रूप में सुनने को मिल गया। 
'ठाकुर' का कुआँ एक दृश्य
हले पृथ्वीराज कपूर मेमोरियल ड्रामेटिक सोसायटी द्वारा वरिष्ठ नाट्य निर्देशक प्रभंजन दीक्षित  द्वारा निर्देशित  'ठाकुर का कुआँ' का मंचन किया। नाटक की अंतर्वस्तु, उस के कुशल रूपांतरण और कलाकारों द्वारा टूट कर किए गए अभिनय ने नाटक को दर्शकों के दिल में सीधा उतार दिया। हालांकि रोशनी का जिस तरह से उपयोग किया गया वह नाटक के संप्रेषण में बाधा उत्पन्न कर रही थी। लेकिन कभी-कभी किसी निर्देशक किसी टूल के प्रति आसक्ति इस अवस्था तक पहुँचा देती है। यह नाटक गाँव की में अछूत जातियों के शोषण की स्थितियों को अपने नंगे स्वरूप में सामने रखते हुए यह स्पष्ट कर रहा था कि जाति व्यवस्था किस तरह सामंती शोषण का सब से मजबूत और अमानवीय औजार है। नाटक ने बार-बार यह याद दिलाया कि दुआजादी के तिरेसठ वर्ष बाद भी हम इस औजार से देश को मुक्त नहीं करा पाए हैं और सामंती शोषण आज भी ग्रामीण जीवन में बरकरार है। 
'ठाकुर का कुआँ' के अभिनेता
दूसरा नाटक के.पी. सक्सेना का 'चोंचू नवाब' था। लेखक और नाटक के नाम से ही स्पष्ट था कि वह एक हास्य प्रस्तुति थी। इसे ग्यारह से तेरह वर्ष के बालक अभिनेताओं ने शरद गुप्ता के निर्देशन में प्रस्तुत किया था। कुशल निर्देशन का परिणाम था कि बालकों ने अपने त्रुटिहीन श्रेष्ठ अभिनय से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया और सभी का स्नेहपूर्ण प्रशंसा प्राप्त की। अंत में शिवराम के नाटक 'जमीन' के ओम नागर 'अश्क' द्वारा किए गए हाड़ौती रूपांतरण को संवेदना शान्ति नारायण संस्थान द्वारा विजय मैथुल के निर्देशन में प्रस्तुत किया।  यह नाटक बहुत मजबूत है, यह केवल समाज में चल रही शोषण की स्थितियों को ही प्रस्तुत नहीं करता, अपितु उन के प्रतिकार के मार्ग को प्रदर्शित  करता है। यह भी बताता है कि एकल प्रतिकार हमेशा दमन लाता है, लेकिन जब प्रतिकार सामूहिक और संगठित हो तो वह शोषकों के लिए चुनौती बन जाता है और उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर सकता है। इस तरह यह शोषितों में संगठन की चेतना का प्रसार का औजार बन जाता है। यही शिवराम के संपूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व की विशेषता भी थी।
शिवराम के पुत्र शशि अलंकरण ग्रहण करते हुए
नाट्य प्रस्तुति के उपरान्त रंगकमल अलंकरण-2010 दिवंगत शिवराम को प्रदान किया गया। इस अवसर पर रास के सभी नाट्यकारों ने घोषणा की कि इस अलंकरण के पहले हकदार शिवराम थे। लेकिन वे स्वयं रास के प्रमुख थे और उन्हें उस पद पर रहते हुए इसे प्रदान करना संभव नहीं था। वस्तुतः यह अलंकरण कोटा के नाट्य कर्मियों की और से उन्हें दिया गया आदर है, उन के प्रति श्रद्धांजलि है। सभी नाट्यकर्मियों की ओर से मुख्य अतिथि बिड़ला ने शिवराम के भाई शायर पुरुषोत्तम  'यक़ीन' और मंझले पुत्र शशि स्वर्णकार को यह अलंकरण सौंपा। ये दोनों भी नाटकों से जुड़े हुए हैं। 
बिड़ला के साथ शशि
मुख्य अतिथि बिड़ला ने अपने समापन भाषण में नाट्यकर्मियों की कला की बहुत प्रशंसा की और कहा कि उन्हें यहाँ से एक नाटक देख कर दूसरे कार्यक्रम में जाना था लेकिन नाटकों ने उन्हें ऐसा बांधा कि वे नहीं जा सके और उन्हें एक कार्यक्रम रद्द् करना पड़ा। अपने संबोधन में वे नाटकों की समाज परिवर्तन की जो भूमिका थी उस के सम्बन्ध में कुछ भी कहने से चूक गये, यह भी कहा जा सकता है कि वे इस विषय पर कहने से एक चतुर राजनीतिज्ञ की तरह कतरा गए, शायद इस लिए कि हो सकता है यह बात समाचार पत्रों में जाए तो  कहीं यथास्थितिवादियों की नाराजगी उन्हें न झेलनी पड़े।