उसने कहा और गाँव ने मान लिया कि यूपी सरकार दलालों की है। आखिर गाँव मानता भी क्यों नहीं? और न भी मानते तो भी मानना पड़ता। ये बात किसी ऐरे गैरे ने या किसी पीएम इन वेटिंग ने नहीं कही थी। ये बात कही थी पीएम इन मेकिंग ने। सुना है आजकल वह पदयात्रा पर है और लोगों को महापंचायत का न्यौता देते घूम रहा है। उस के पीछे बहुत से लोग इस आशा में चल रहे हैं कि कल पीएम बन जाए तो कम से कम उन्हें पहचान तो ले।
वह चला तो पूरी योजना बना कर चला। आखिर दादी के पापा से उस ने सीखा है कि बिना योजना के कोई काम नहीं करना चाहिए। उस ने योजना बनवाई और चल दिया। यूँ योजना वह खुद भी बना सकता था। वैसे ही जैसे मम्मी चाहती तो खुद राज कर सकती थी, लेकिन मम्मी ने तय किया कि ये ज्यादा मुश्किल काम है इसलिए खुद मत करो किसी और से करवाओ। मम्मी ने इस के लिए हिन्दी पढ़ी। हिन्दी के कथाकारों, उपन्यासकारों की कहानियाँ-उपन्यास पढ़े। मुंशी प्रेमचंद पढ़ा। उस की कहानियों में एक कहानी पढ़ी 'नमक का दरोगा' । यह कहानी पढ़ते ही मम्मी ने सोच लिया था कि जब भी यह जबर्दस्त काम पड़ेगा वह किसी नमक का दरोगा तलाश लेगी। उसे तो नमक का दरोगा नजदीक ही मिल गया। उस ने राज का काम करने के लिए उसे अच्छे सम्मान और वेतन का पद दे दिया। वह परम प्रसन्न हो गया। होना ही था आखिर उसे तो सुदामा की तरह सब कुछ मिल गया था।
पीएम इन मेकिंग ने भी योजना बनाने का काम किसी और से कराने का निश्चय किया। उस ने जब यह सूचना अपनी मम्मी को दी, तो मम्मी ने तुरन्त नजदीक में बैठा एक सावधि सन्यासी बेटे को पकड़ा दिया। आज से तुम्हारी सारी योजनाएँ यही बनाएगा। उस ने सन्यास सावधि लिया था। लौटना भी था। कहीं बोलने की आदत न छूट जाए, इसलिए योजनाएँ ही नहीं बनाता था, वह बोलता भी बहुत था। पीएम इन मेकिंग ने उसी से बोलना सीखा। महानगर और नगर तो नगर हैं, वहाँ सब कुछ चल जाता है। पर गाँव तो गाँव है वो भी भारत का गाँव। गाँव बोलता नहीं है। पहले आने वाले का सम्मान करता है फिर उस की पीड़ा बोलती है। गाँव ने पीएम इन वेटिंग का सम्मान किया। उस ने कहा तो मान लिया कि यूपी की सरकार दलालों की है। फिर पीड़ा बोलने लगी - हम तो पहले ही जानते थे कि सरकार दलालों की है। अब ये भी जानते हैं कि हर सरकार दलालों की होती है। हम यहाँ दलालों की सरकार से भी लड़ रहे हैं और लड़ लेंगे। लेकिन उस का क्या करें जो आप के आगे आगे आती है, आप के जाने के बाद भी आती रहती है और जब आती है पहले से लंबी हो कर आती है। सुना है ये दिल्ली से आती है। हर चीज के भाव बढ़ाती है। दिल्ली की सरकार उसे रोक नहीं पाती है। आप का नमक का दरोगा कहता है, हम कतर ब्योंत कर रहे हैं, कम लंबी भेजेंगे। पर जितना वह कतर-ब्योंत करता है इस की लंबाई बढ़ जाती है।
उधर सुना है नमक का दरोगा भी मुश्किल में है, उस के सहायकों का टूजी से रिश्ता ही नहीं टूट रहा है। हम समझ गए हैं, पीएम इन वेटिंग जी! कौन सरकार दलालों की नहीं? वहाँ भी सरकार नमक के दरोगा की नहीं, दलालों की है। ये जमीन के दलाल हैं, तो वहाँ हर चीज के दलाल हैं। कोई चीज है, जिस के दाम की लंबाई न बढ़ती हो? हर चीज के दलाल हो गये हैं और सारी सरकारें दलालों की हो गई हैं।