पूर्वाग्रह
सामाजिक जीवन में लोगों में सहज प्राप्य औपचारिक-अनौपचारिक शिक्षा (Learning) के माध्यम से एक दूसरे के बारे में उनकी जाति, धर्म, लिंग, भाषा, नागरिकता, सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिति और समूह सदस्यता को आधार मानते हुए एक सकारात्मक या नकारात्मक सोच विकसित हो जाती है। इस का प्रभाव यह होता है कि वे लोग ये जानने का प्रयत्न नहीं करते कि उस व्यक्ति में उस तरह के गुण या दोष हैं या नहीं। दैनिक जीवन में यह महसूस किया जा सकता है कि लोगों में अनुकूल भावनाएँ ही नहीं प्रतिकूल भावनाएँ भी होती हैं। समाज में लोग कुछ लोगों से प्रेम या स्नेह करते हैं, और उसी आधार पर उनके प्रति हृदय में सहयोग अथवा सहानुभूति के भाव मौजूद रहते हैं। इसके विपरीत लोग कुछ व्यक्तियों और समूहों से घृणा करने लगते हैं या उनकी उपेक्षा करते हैं। इस तरह लोग प्रत्येक विषय में कुछ व्यक्तियों और समूहों के सदस्यों को अपने समूह से अलग और हीन समझने लगते हैं और अपनी इसी समझ और विश्वास के अनुसार उनके प्रति अपने व्यवहार को ढालते हैं। ऐसा करने का कोई तार्किक कारण नहीं होता फिर भी दूसरे समूहों और उनके सदस्यों के प्रति जो संवेगात्मक मनोभाव लोगों में पनप जाता है, उसके अनुरूप वे उनके प्रति विद्वेष, घृणा और अत्याचारपूर्ण व्यवहार करने को तत्पर रहते हैं। इस तरह समूहों और व्यक्तियों के प्रति लोगों के इन्हीं मनोभावों तथा व्यवहार प्रतिमानों को पूर्वाग्रह कहते हैं।
पुष्टिकरण-पूर्वाग्रह
लोगों में उनके दिमागों में पहले से जो विश्वास मौजूद होते हैं। उनमें उनके अनुरूप जानकारी खोजने या उसकी व्याख्या करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। वे अपने ही विश्वासों को पुष्ट करते रहना चाहते हैं, इसे ही हम पुष्टिकरण-पूर्वाग्रह कहते हैं। इस तरह आम तौर पर लोग उनकी यथास्थिति को चुनौती देने वाले तथ्यों, विचारों, तरीकों को खोजने और उसके लिए काम करने प्रति उनकी प्रवृत्ति नकारात्मक होती है। जबकि नया सीखने (Learning), पुरानी गलत सीखों से मुक्ति पाने (Unlearning) और सही लेकिन विस्मृत बातों को फिर से सीखने (Relearning) के लिए व्यक्तियों को अपने विश्वासों को फिर से जाँचने, परखने और उन पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता होती है।
सीखने के इस दृष्टिकोण को अपनाने की क्षमता को सुधारने के लिए, एक व्यक्ति को अपने पुष्टिकरण-पूर्वाग्रह के बारे में जागरूकता विकसित करने पर काम करना आवश्यक है। ऐसी जागरूकता के विकास के बाद ही कोई व्यक्ति अपनी मौजूदा राय से अलग राय कायम करने में समर्थ हो सकता है। तब हम कह सकते हैं कि किसी व्यक्ति विशेष ने अपने पुष्टिकरण-पूर्वाग्रह को चुनौती देने की योग्यता हासिल कर ली है। ऐसे ही व्यक्ति विभिन्न स्रोतों से जानकारी एकत्र करके और विविध पृष्ठभूमि के लोगों के साथ विचारों पर चर्चा करके अपने पुष्टिकरण-पूर्वाग्रह को चुनौती दे सकते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें