
यह एक संयोग ही है कि इस दिन हमारा पंजाब प्रान्त और संपूर्ण सिख समुदाय बैसाखी के रूप में मनाता है। यह सौर चैत्र मास का अन्तिम दिन तो होता ही है, यह सौर बैसाख मास का पहला दिन भी है। लेकिन संक्रान्ति का समय तो लगभग दो मिनट का होता है क्यों कि सूर्य के अयन को किसी भी खगोलीय बिन्दु को पार करने में लगभग इतना ही समय लगता है। पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करने में 365.25 दिन के लगभग का समय लगता है। इसी कारण हम ग्रीगेरियन कैलेंडर में चौथे वर्ष एक दिन 29 फरवरी को रूप में बढ़ा देते हैं। इस कारण संक्रांति की घटना 24 घंटों के दिन में कभी भी घटित हो सकती है। कभी वह अर्धरात्रि के पूर्व या पश्चात हो सकती है तो कभी वह सूर्योदय या सूर्यास्त के ठीक पहले या ठीक बाद हो सकती है। भारत में दिन के आरंभ की अवधारणा सूर्योदय से होती है जब कि संपूर्ण विश्व अब दिन का आरंभ मध्यरात्रि से मानने लगा है।
यदि हम किसी सूर्य संक्रान्ति के दिन को वर्षारंभ के रूप में मानें तो जिस दिन संक्रांति की यह घटना होती है उस दिन संक्रान्ति के पूर्व पिछला वर्ष होगा और संक्रान्ति के पश्चात नव वर्ष। इस तरह यह दिन पुराने वर्ष का अंतिम और नए वर्ष का पहला दिन होता है। यदि हम यह चाहें कि हमारे वर्ष का पहला दिन पूरी तरह नए वर्ष का होना चाहिए तो हमारा नव-वर्ष वर्षान्त और वर्षारम्भ के अगले दिन होगा। भारतीय जब नव संवत्सर को नव वर्ष के रूप में मनाते हैं तो वह वास्तव में नव वर्ष आरंभ होने का अगला दिन होता है। क्यों कि यह प्रतिपदा को मनाया जाता है। भारतीय पद्धति में कोई भी तिथि पूरे दिन उस दिन मानी जाती है जिसमें सूर्य उदय होता है। यदि इसी मान्यता के आधार पर हम सौर नववर्ष मानें तो यह मेष की संक्रांति के अगले दिन होगा, अर्थात बैसाखी के दिन के बाद का दिन हमारा नव वर्ष होगा। यह संयोग नहीं है कि हमारे बंगाली भाई बैसाखी के बाद वाले दिन को अपने नववर्ष के रूप में मनाते हैं। इसे वे अपना नववर्ष अथवा पोइला बैशाख कहते हैं।
मेष की संक्रान्ति से जुड़े त्यौहार संपूर्ण भारत में किसी न किसी रूप में मनाए जाते हैं। इस वर्ष 14 अप्रेल के इस दिन को जहाँ पंजाब और सिख समुदाय बैसाखी के रूप में मना रहा है वहीं तमिलनाडु इसे पुथण्डु के रूप में, केरल विशु के रूप में, आसाम इसे बोहाग बिहु के रूप में मना रहा है। तमाम हिन्दू इसे मेष संक्रान्ति के रूप में तो मनाते ही हैं।
आजादी के उपरान्त भारत ने अपना नववर्ष वर्नल इक्विनोक्स वासंतिक विषुव के दिन 22/23 मार्च को वर्ष का पहला दिन मानते हुए एक सौर कलेंडर बनाया जिसे भारतीय राष्ट्रीय पंचांग कहा गया। यह राष्ट्रीय पंचांग सरकारी कैलेंडर के अतिरिक्त कहीं भी स्थान नहीं बना सका। क्यों कि यह किसी व्यापक रूप से मनाए जाने वाले भारतीय त्यौहार से संबंधित नहीं था। यदि बैसाखी के दिन या बैसाखी के दिन के बाद के दिन से हम राष्ट्रीय सौर कैलेंडर को चुनते तो इसे सब को जानने में बहुत आसानी होती और यह संपूर्ण भारत में आसानी से प्रचलन में आ सकता था। यदि हमारी संसद चाहे तो इस काम को अब भी कर सकती है।किसी भी त्रुटि को दूर करना हमेशा बुद्धिमानीपूर्ण कदम होता है जो चिरस्थायी हो जाता है। हम चाहें तो इस काम को अब भी कर सकते हैं।
फिलहाल सभी मित्रों को बैसाखी, बोहाग बिहु, पोइला बैशाख, पुथण्डु और विशु के साथ साथ मेष संक्रान्ति की शुभकामानाएँ और बंगाली मानुषों को नववर्ष की शुभकामनाएँ जिसे वे कल मनाएंगे।