@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: किस का कसूर

मंगलवार, 5 दिसंबर 2017

किस का कसूर

कविता

किस का कसूर 

दिनेशराय द्विवेदी 

जब कोई अस्पताल
मरीज के मर जाने पर भी
चार दिनों तक वेंटिलेटर लगाकर
लाखों रुपए वसूल लेता है
तब किसी डॉक्टर का कोई कसूर नहीं होता।


कसूर होता है अस्पताल का
जिसमें कारपोरेट प्रबंधन होता है
बैंकों से उधार ली गई वित्तीय पूंजी लगी होती है,और
न्यूनतम संभव वेतन पर टेक्नीशियन काम कर रहे होते हैं

वित्तीय पूंजी का स्वभाव यही है
वह अपने लिए इंसानों का खून मांगती है
खून पीती है और दिन-रात बढ़ती है
सारा कसूर इसी वित्तीय पूंजी का है

क्या है यह वित्तीय पूंजी?
जो रुपया हम जैसे छोटे छोटे लोगों ने
अपनी मासिक तनख्वाह से
हाड़तोड़ मेहनत की कमाई से
पेट काटकर बचाया, और
बुरे वक्त के लिए बैंकों में जमा कराया
वहीं वित्तीय पूंजी है

वही रुपया बैंकों ने कंपनियों को
उद्योगों और अस्पतालों को ऋण दिया
और वही ऋणीअब हमारे लिए
बुरा वक्त पैदा कर रहे हैं

इन बैंकों पर सरकारों का नियन्त्रण है
सरकारों पर पूंजीपतियों का
इसलिए किसी डॉक्टर का कसूर नहीं है
अब आप जानते हैं कसूर किसका है?
04.12.2017

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