@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: उन्हें खाद्यान्न को सड़ाना अधिक पसंद है

मंगलवार, 7 सितंबर 2010

उन्हें खाद्यान्न को सड़ाना अधिक पसंद है

डॉक्टर मनमोहन सिंह, भारत के प्रधानमंत्री ने कल देश के चुने हुए संपादकों से बात करते हुए बहुत मजेदार बातें कही हैं। मैं उन का अर्थ तलाशने का प्रयत्न कर रहा हूँ, विशेष रुप से खाद्यान्नों के मामले में।
न्हों ने कहा-
रकार अनाज की बरबादी को ले कर सुप्रीम कोर्ट की भावनाओं का सम्मान करती है।  खाद्यान्न को मुफ्त वितरित नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट को सरकार के नीति निर्धारण संबंधी मामलों में नहीं पड़ना चाहिए। संपदा का उत्पादन किए बगैर गरीबी नहीं मिटाई जा सकती। देश में 37 प्रतिशत आबादी गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन करती है। आबादी के इतने बड़े हिस्से को मुफ्त में अनाज कैसे बांटा जा सकता है? रियायती मूल्य पर उसे अवश्य ही वितरित किया जा सकता है जिस के लिए सरकार इश्यु मूल्य निश्चित कर चुकी है। अनाज के मुफ्त वितरण का विचार किसानों को खाद्यान्न उत्पादन से हतोत्साहित करेगा।

ब मामला सुप्रीम कोर्ट के पास गया था तब सुप्रीम कोर्ट के सामने दो तथ्य थे। पहला यह कि देश के गोदामों और उन से बाहर रखा गया अनाज बड़ी मात्रा में उचित संरक्षण के अभाव में सड़ रहा है। दूसरा तथ्य यह कि देश की आबादी का एक हिस्से को दो वक्त के लिए खाद्यान्न उपलब्ध नहीं है। 

सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि अनाज को सड़ाने के स्थान पर उन लोगों तक मुफ्त में पहुँचा दिया जाए जिन्हें इस की आवश्यकता है। 
म्माननीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने खाद्यान्नों के सड़ने पर एक भी शब्द अपनी बातचीत में नहीं कहा। 
 शायद उन्हें खाद्यान्न को सड़ाना अधिक पसंद है, बजाय इस के कि उस का सदुपयोग हो जाए।

23 टिप्‍पणियां:

honesty project democracy ने कहा…

जिस व्यक्ति का दिमाग खोखला और सड़ गया हो वह किसी देश के प्रधानमंत्री के पद पर भी बैठेगा तो उस देश और समाज को नरक ही बनाएगा ,इसने अपने इस बयान से न्याय और इंसानियत को हतोत्साहित तथा भ्रष्टाचार को संरक्षित करने का गंभीर अपराध किया है ...असल में आज इस देश का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे सम्माननीय पद पर बैठा व्यक्ति यही कर रहा है इसलिए ये देश और समाज कराह रहा है ,अब जरूरत है ऐसे लोगों को इन उच्च पदों से हटाने की मुहीम की ...

निर्मला कपिला ने कहा…

कम से कम मैं मनमोहन सिंह को भ्रष्टाचारी तो नही मानती हां ये बात समझ से परे है कि दिक्कत क्या है। वैसे तो लोगों ने अटल जी जैसे लोगों पर भी आरोप लगा दिये । मनमोहन का दिमाग नही है,सड गया है आदि शब्दकिसी खास दिमाग की उपज लगते हैं। वर्ना भर्ष्टाचार या ऐसे काम के लिये दिमाग तो चाहिये ही नही। अनाज तो बिना दिमाग के ही बाँटा जा सकता है।अभार।

bhuvnesh sharma ने कहा…

मनमोहन सिंह के नाम के आगे प्रधानमंत्री शब्‍द पढ़कर कष्‍ट होता है...मैं तो उन्‍हें प्रधानमंत्री कार्यालय का प्रबंधक, बाबू या मुंशी कहूंगा...और मुझे शक है कि उनकी सत्‍ता प्रधानमंत्री कार्यालय में भी पूरी तरह चलती होगी...कार्यालय के बाहर की दुनिया के बारे में तो कोई शक है ही नहीं
उन्‍होंने कहा है कि सुप्रीम-कोर्ट नीति-निर्धारण के मामलों में दखल ना दे...तो क्‍या वे खुद को नीति-निर्धारण करने लायक समझने लगे....सुप्रीमकोर्ट के निर्देश से सबक लेने की बजाय उनसे ऐसी ही उम्‍मीद थी....उनकी नाक के नीचे सारी कारगुजारियां होने के बावजूद लोग उन्‍हें ईमानदार प्रधानमंत्री कहते हैं इसके लिए वे नहीं लोग तारीफ के काबिल हैं...

bhuvnesh sharma ने कहा…

आदरणीय निर्मला कपिलाजी,
मैं भी मनमोहनसिंह को भ्रष्‍टाचारी नहीं मानता....दिक्‍कत बस यही है कि वे प्रधानमंत्री कार्यालय में बैठते जरूर हैं पर प्रधानमंत्री कहलाना या होने में जो फर्क है वो उनके साथ भी है...उनके बारे में यही बात बुरी लगती है कि वे केवल किसी के प्रति अपनी निष्‍ठाभक्ति के कारण जो कुछ भी हो रहा है उस पर से आंखें मूंदे हुए हैं..

समय चक्र ने कहा…

आर्थिक सुधारों के नाम पर इन्हें गेहू सड़ाना पसंद है .....उच्चतम न्यायालय के आदेश के उपरांत भी पर गरीबों को मुफ्त में अनाज बांटना पसंद नहीं है .. अब तो हद हो गई है हमारे पी.एम. साहब उच्चतम न्यायालय को अपनी हद में रहने की सलाह देने लगे हैं ....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अनाज सड़ाना घातक है, समुचित प्रबन्धन होना चाहिये।

Unknown ने कहा…

मनमोहन सिंह, सोनिया गाँधी अथवा राहुल गाँधी पूरी तरह से योग्य, ईमानदार, कर्मठ और त्यागमयी हैं…। हमें कम से कम अगले 20 वर्ष तक कांग्रेस के अलावा किसी और की सत्ता को स्वीकार नहीं करना चाहिए…

ऐसा नहीं करने पर, "साम्प्रदायिक शक्तियाँ", "फ़िरकापरस्त ताकतें", "उग्र हिन्दुत्व के पैरोकार", "बर्बर" इस प्रकार के लोगों का सत्ता में आना सुनिश्चित हो जायेगा…

अतः सभी "सेकुलरों", "तटस्थों", "मानवाधिकारवादियों" और "गाँधीवादियों" का फ़र्ज़ बनता है कि साम्प्रदायिक शक्तियों को दूर रखने के लिये सिर्फ़ राहुल बाबा का गुणगान करें, मनमोहन सिंह की नीतियों (यदि कोई है), तथा सोनिया गाँधी की देश के प्रति निष्ठा और ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं करते हुए सिर्फ़ पंजे पर वोट देना है…।

चन्द हिन्दुत्ववादी चीखते-चिल्लाते रहें, उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए… मनमोहन सिंह अपनी खड़ाऊं राहुल बाबा के लिए सहेजकर रखे हुए हैं उस भावना को मजबूत करना है… जैसे ही राहुल बाबा प्रधानमंत्री बनेंगे, देश में चहुंओर खुशहाली छा जायेगी…। वामपंथी भाई भी सिर्फ़ बंगाल-केरल के चुनाव निपटने तक ही कांग्रेस के खिलाफ़ काम करें, उसके बाद फ़िर उसकी गोद में जाकर बैठ जायें…। अतः नरेन्द्र मोदी को किसी भी कीमत पर देश का प्रधानमंत्री नहीं बनने दें… कांग्रेस का राज्य निष्कण्टक चले… यह सबका साझा प्रयास होना चाहिए… :) :)
:) :) :) :) :) :) :) :) (इसके आगे ऐसी 1008 स्माइली और लगायें)

bhuvnesh sharma ने कहा…

आदरणीय चिपलूनकरजी,
गांधी परिवार की खड़ाऊं ही इस देश को चलायेंगी...सोनिया-राहुल का हम कितना भी विरोध करें पर सत्‍ता की चाबी उनके हाथ से जाती नहीं दिखती...
हिंदुत्‍ववादी पार्टी होने के नाम पर बीजेपी के लोग जितना नंगा नाचते हैं और उससे भी ज्‍यादा ये लोग खुलेआम नाचते हैं...उससे भी जनता भुला नहीं पा रही...यहां म.प्र. में एक व्‍यक्ति शिवराज सिंह को भलामानुष होने का मुखौटा पहनाकर बाकी कैबिनेट क्‍या कर रही है और पूरा कैडर इस समय क्‍या गुल खिला रहा है....नामी माफिया और गुंडे सरेआम कैबिनेट और पार्टी प्रमुख का पद पा गये...
जनता ने जिसे विकल्‍प समझा था उसने और भी ज्‍यादा निराश किया....
यदि आप अब भी मुगालते में हैं तो बता दूं नरेंद्र मोदी कभी प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे क्‍योंकि बीजेपी खुद नहीं चाहेगी, एक बिखरी हुई और दलालों की पार्टी से उम्‍मीद ही क्‍या की जा सकती है

राज भाटिय़ा ने कहा…

हम गुलामी मे ही खुश है, इस लिये इस अगले सॊ सालो तक इस खान दान की ही गुलामी करो, जिस के चारो ओर भ्रष्टाचारी , चोर उच्चके, बदमाश बेठे हो ओर वो आदमी फ़िर भी शरीफ़ ओर ईमान दार तो होगा ही, क्योकि वो किसी के प्रति तो इंआन दार हे,दुसरे देशो मै गरीबो को खाना मुफ़त मै दिया जाता है, सर छुपाने को छत मुफ़त मै दी जाती है, लेकिन खाना खराब नही होने दिया जाता, कोई छत बेकार नही होने दी जाती, ओर हम ठहरे ग्याणी ध्याणी, ओर इस देश को बचाये चाहे देश मै रहने वाले भूखे मर जाये..... वाह सरदार जी आप धन्य है, अरे कभी गुरु बाणी ही पढ ले शायद नानक देव की एक बात ही समझ मै आ जाये कि तेरा ही तेरा....

राज भाटिय़ा ने कहा…

सब से बडा भ्रष्टाचारी वो है जो दुसरे भ्रष्टाचारी को बचाता है, उन्हे मदद देता है, उन के बीच रहता है, ईमान दार तो अपनी इज्जत के लिये झट से अब तक ठोकर मर देता, फ़िर भी ईमान दार कहे तो कहो, वेसे काजल की कोटरी मे कोई भी बिना दाग के बाहर नही आ सकता.... ओर हम ने कोन सा इन का बेंक बेलेंस देखा है.... यह तो बाद मै पता चलता है, ईमान दार तब कहे जब यह किसी आम आदमी की तरह से रहे, जेसे लाल बाहदुर शास्त्री जी रहते थे, उन्हे लोग आज भी सच्चा ओर इमान दार कहते है

Unknown ने कहा…

भुवनेश भाई,
मैं भी तो यही कह रहा हूं… जो आपने कहा है, सिर्फ़ मेरा तरीका व्यंग्यात्मक है… राहुल-सोनिया और कांग्रेस के घातक पंजों में देश का भविष्य रखा रहे, इसका प्रयास सभी लोग मिलकर करें… (सिवाय कुछ हिन्दुत्ववादियों के, जो इस मुगालते में हैं कि शायद कभी गाँधी परिवार राजनैतिक फ़लक से गायब हो जायेगा और देश का प्रधानमंत्री कोई ऐसा व्यक्ति बने जो काम करने में यकीन करता हो तथा देश का आत्मसम्मान बचाकर रखे)…

हमें सिर्फ़ आराम से बैठकर सेकुलरिज़्म, भ्रष्टाचार और देश के आत्मसम्मान के खिलवाड़ का तमाशा देखते रहना चाहिये, किसी भी अन्य विकल्प पर विचार नहीं करना चाहिए, यह एक बेहद निराशाजनक और आत्मघाती प्रवृत्ति है। चलिये नरेन्द्र मोदी न सही, बाबा रामदेव ही सही, रामदेव न सही कोई और सही… लेकिन यह मानकर बैठे रहना कि राहुल-सोनिया ही हमारे मालिक हैं और हमें सिर्फ़ यह सुनिश्चित करना है कि हम या तो वोट न दें… और यदि दें तो सिर्फ़ कांग्रेस को। इस प्रकार जब मन से ही हार मान ली है कि देश में कांग्रेस का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता, तब क्या किया जा सकता है…

बाकी तो जो चल रहा है, वह सभी देख रहे हैं… ऐसे ही चलता भी रहे तो किसे क्या फ़र्क पड़ने वाला है… जब सभी को सिर्फ़ "अपनी-अपनी" पड़ी है… :) :) :)

कम से कम मैं तो इतना निराशावादी और आत्मघाती नहीं हूं कि राहुल बाबा जैसा भोंदू और सोनिया गाँधी जैसे लोग मुझ पर राज करे और मैं चुपचाप बैठकर देखता रहूं…। पूरी सम्भावना है कि मेरे जीवनकाल में कभी भी भाजपा अकेले दम पर केन्द्र में सत्ता में न आये, लेकिन मैं अपना प्रयास ही बन्द कर दूं और उस "परिवार" की स्तुति में लग जाऊं जो देश की दुर्दशा के लिये सबसे अधिक जिम्मेदार है, ऐसा नहीं हो सकता…।

मेरा तो आधे से अधिक जीवन बीत चुका… आप तो युवा हैं, यदि आप देश की वर्तमान परिस्थिति से खुश हैं तब मुझे कुछ नहीं कहना है…

Unknown ने कहा…

द्विवेदी जी
विषय से हटकर टिप्पणी करने के लिये माफ़ी चाहूंगा…

Unknown ने कहा…

भुवनेश मेरे प्रिय हैं और उर्जावान युवा हैं… मेरी विचारधारा से उन्हें ऐतराज़ है, लेकिन यह तो होता ही है… मूल बात यह है कि एक युवक को "व्यवस्था" से इतना निराश नहीं होना चाहिए, इसलिये इतनी लम्बी टिप्पणी कर गया…

यहूदियों को सैकड़ों वर्ष तक संघर्ष करने के बाद इज़राइल मिला, यदि वे भी यह मानकर बैठ जाते कि हमारा कुछ नहीं होगा, हमारे सामने कोई विकल्प नहीं है, हमें चुपचाप बैठे रहना चाहिये और जो हो रहा है उसे सहते रहना चाहिए, कोई विकल्प या कोई संघर्ष नहीं करना चाहिए, तब तो कभी भी इज़राइल नहीं बनता… लेकिन संघर्षों और वैचारिक मजबूती से ही आज उन्हें इज़राइल मिला और शान से दुनिया की छाती पर खड़ा है…। इस दृष्टि से भारत की आज़ादी के बाद 65 साल का समय तो बहुत कम हुआ है और कम से कम इतने वर्षों में इतनी सफ़लता तो मिली है कि काफ़ी बड़ी जनसंख्या "गाँधी परिवार" की असलियत न सिर्फ़ जान गई है, बल्कि नफ़रत भी करने लगी है…। परिवर्तन रातोंरात नहीं होता और विकल्प भी लगातार बदल-बदल कर आजमाये जाते हैं… मन के हारे हार है मन के जीते जीत…।

विकल्प पैदा करने की कोशिश भी नहीं करना, एक मुर्दे का काम होता है…

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@सुरेश चिपलूनकर
आप की टिप्पणी विषय से हटकर नहीं है। आप ने सही बिंदु पर बात की है। हाँ, मैं आप से यह अवश्य जानना चाहूँगा कि इस व्यवस्था में ऐसा क्या है जिस से एक युवक निराश न हो?

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

परधान्मन्तरी जी बयान अफ़्सोसजनक है. हम भी अखबार में बांचकर अभी तक सोच रहे हैं कि इसका कनेक्शन किसानों को हतोत्साहित करना कहां से होकर आरहा है.

रामराम

Unknown ने कहा…

आदरणीय द्विवेदी जी
निराशा और हताशा, संघर्ष को समाप्त कर देती है, विकल्प के बारे में सोचने की शक्ति कुन्द कर देती है, यदि किसी को नरेन्द्र मोदी या भाजपा पसन्द नहीं हैं इसका मतलब यह नहीं होता कि वह थककर बैठ जाये, अन्य विकल्प खोजे…।

लेकिन कोई युवक यह कहे कि - "…गांधी परिवार की खड़ाऊं ही इस देश को चलायेंगी... सोनिया-राहुल का हम कितना भी विरोध करें पर सत्‍ता की चाबी उनके हाथ से जाती नहीं दिखती..." तब बड़ा अटपटा और निराशाजनक लगता है…। सभी जानते हैं कि 63 साल से एक परिवार द्वारा पैदा की गई व्यवस्था रातोंरात खत्म होने वाली नहीं है और सभी इस व्यवस्था से हताश भी हैं, लेकिन बदलाव के लिये विकल्पहीनता की बात करना तो अक्षम्य है… कुछ बदलना है तो पहले पुराना तो हटाना पड़ेगा, फ़िर कुछ नया आयेगा… वह नया पसन्द नहीं आयेगा तो दूसरा और नया आयेगा… लेकिन पहले से ही यह सोच लेना कि आने वाला नया पुराने जैसा ही होगा, इसलिये जैसा चल रहा है चलने दो… बहुत बेकार की बात है…

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

सुरेश जी,
आप की इस बात से सहमति है कि हमे विकल्प के बारे में अवश्य सोचना चाहिए। विकल्प कभी बना बनाया नहीं मिलता। मौजूदा ढांचे में कोई विकल्प मौजूद है भी नहीं। यदि होता तो वह वर्तमान को प्रत्यास्थापित कर चुका होता। हाँ विकल्प बनाने का कच्चा माल जरूर उपलब्ध है। हमें उस से नए विकल्प के निर्माण की आशा कभी नहीं त्यागनी चाहिए। हम तो बृहस्पति के देश के लोग हैं। जो कहते थे कि जो पैदा हुआ है वह अवश्य मरेगा। तो मौजूदा व्यवस्था भी शेष नहीं रहेगी, और विकल्प तो इस का हर हाल में बनना ही है। इस पर विश्वास दृढ़ होना चाहिए।

Abhishek Ojha ने कहा…

मुफ्त वितरण अर्थशास्त्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है और हमारे प्रधानमंत्री एक अर्थशास्त्री हैं :)

Udan Tashtari ने कहा…

अति अफसोसजनक!

दीपक 'मशाल' ने कहा…

उन्हें खुद को मिल रहा है ना इसलिए दूसरों का दर्द नहीं समझ आ रहा..

ASHOK BAJAJ ने कहा…

अच्छी चर्चा के लिए बधाई .कृपया इसे भी पढ़े.
http://ashokbajaj99.blogspot.com/

निर्मला कपिला ने कहा…

भुवनेश जी मैं मनमोहन जी की तरफ दारी नही कर रही मगर एक शरीफ इन्सान के लिये जो अभद्र भाषा का प्रोय्ग हुया उस के लिये मुझे ये कमेन्ट देना पडा। इसका ये4 मतलव नही कि उनकी हर गैर्जिम्मेदाराना बात पर मेरी सहम्ति है। धन्यवाद।

उम्मतें ने कहा…

पोस्ट जायज़ सवाल उठाती है ! सडन पर बात ज़रूर होनी चाहिए !
पर यहां सडांध का एक सूत्री विकल्प घृणा और हिंसा सुझाया जा रहा है :)