@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: ईश्वर ही ईश्वर को जला रहा है

मंगलवार, 26 अगस्त 2008

ईश्वर ही ईश्वर को जला रहा है

नाक में सुबह से जलन थी। ऱात होते होते टपकने लगी सोना भी उस की वजह से मुश्किल हो रहा था। रात साढ़े बारह सोया था। नीन्द खुलती है, सवा तीन बजे हैं। नाक का टपकना बदस्तूर जारी है। पेट में गुड़गुड़ाहट है। मैं पानी पीता हूँ तो बढ़ जाती है। मैं शौच को जाता हूँ तो पेट खाली हो लेता है। अब तुरंत नीन्द आना मुश्किल है। घर में एक सप्ताह पहले खूब हलचल थी। रक्षाबंधन पर बेटा था, वह चला गया। बेटी आई थी, वह भी कल शाम चली गई। पत्नी की बुआ जी नहीं रहीं, वह भी आज शाम वहाँ के लिए चली गई। अब अकेला हूँ।
रात सोने के पहले खबरें सुनी थीं। उड़ीसा में एक अनाथालय जला दिया गया। एक परिचारिका भी जीवित जल गई। किसी धर्मपरिवर्तन विरोधी की हत्या का बदला था यह। जम्मू और कश्मीर दोनों जल रहे हैं दो माह होने को आए। वही, धर्मस्थल जाने के पहले अस्थाई आवास के लिए दी गई भूमि और उसे वापस लिए जाने का झगड़ा।
राजस्थान में एक जाति है, जिस में हिन्दू भी हैं और मुस्लिम भी। घर में ही दो भाई दो अलग अलग धर्म पालते रहे हैं। पति-पत्नी के अलग धर्म हैं। कोई बैर नहीं, पूरा जीवन सुख-दुख से बिताते हैं। कुछ दशकों से लोग पूरी जाति को हिन्दू या मुस्लिम बनाने में जुटे हैं। जाति में अशान्ति व्याप्त है।
मैं ईश्वर को तलाशता हूँ। वह एक है? या नहीं? वह एक से अधिक होता तो शायद धरती माँ के टुकड़े हो गए होते। उस एक को क्या सूझी है कि कहीं वह किस रूप में आता है और कहीं किस रूप में। वह आता ही नहीं है। लेकिन उस के अनेक प्रतिरूप खड़े कर लिए जाते हैं, अपने-अपने मुताबिक। 
टीवी पर पुरी के शंकराचार्य क्रोध से दहाड़ रहे हैं। मुझे शंकराचार्य याद आते हैं जिन्हों ने देश में चारों मठों की स्थापना की। दुनियाँ को अद्वैत की शिक्षा दी। कहाँ गई वह शिक्षा? और उन के नाम धारी व्यक्ति कौन हैं ये? क्या बता रहे हैं दुनियाँ को? कहाँ हैं, ईसा और मुहम्मद? ईसा के पहले ईसाई धर्म और मुहम्मद के पहले इस्लाम कहाँ थे? शंकराचार्य के पहले अद्वैत कहाँ था? राम और कृष्ण का क्या धर्म था? उस से भी पहले कौन थे वे जो प्रकृति की शक्तियों को पूजते थे? सब में एक को ही देखते थे। और उस से भी पहले कौन थे वे जो जन्मदाता योनि की पूजा करते थे, बाद में लिंग भी पूजने लगे थे। आज भी उसे ही कल्याणकारी मान कर पूजा कर रहे हैं?
है ईश्वर! क्या हो रहा है यह? तुम्हारी कोई सत्ता है भी या नहीं? या उस के बहाने अपनी सत्ता स्थापित करने, उसे बनाए रखने को इंन्सान का हवन हो रहा है। ईश्वर भी है, या नहीं?
स्वामी विवेकानंद  आते हैं।  पूछने पर कहते हैं- मैं ने तो आँख खुलने के बाद ईश्वर के सिवा किसी को नहीं देखा। मैं पूछता हूँ। पर यह जो जल रहे हैं, जलाए जा रहे हैं,। कौन हैं वे? स्वामी जी कहते हैं- सब ईश्वर है।  जो जलाया जा रहा है वह भी और जो जला रहा है वह भी।
हे राम! यह क्या हो रहा है? ईश्वर ही ईश्वर को जला रहा है। वह ऐसा क्यों कर रहा है?
शायद सोचता हो कि दुनियाँ को अब उस के वजूद की जरूरत ही नहीं। क्यों न अब खुद को विसर्जित कर लूँ?

15 टिप्‍पणियां:

Tarun ने कहा…

आपकी इस लेख पर क्या टिप्पणी करूँ, मैने भी इसी पर एक पोस्ट श्यडूल लिख छोड़ी है उसे ही आप टिप्पणी मान लीजियेगा

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

यह तो पक्का है कि ईश्वर ही जला रहा है और वही आगे का प्रपंच भी रचेगा। उसके तौर तरीके समझ में नहीं आते। कभी वह त्वरित परिवर्तन के लिये मां काली के पदाघात का सहारा लेता है तो कभी मां सरस्वती के सतत धीमे सृजन का।
पर घटनाओं पर हमें अपने स्वभावानुसार रियेक्ट करना है। वह नहीं शिथिल होना चाहिये!

Udan Tashtari ने कहा…

वह ऐसा क्यों कर रहा है?


--गहन चिन्तन!!!!!! बहुत कुछ ऐसे ही भाव लिए डोल रहा हूँ-जब दोनों बेटे अपनी नौकरी पर चले गये हैं और पत्नी कल एक विवाह समारोह से लौटेगी परिवार में.

Smart Indian ने कहा…

"ईशावास्यमिदम सर्वं यत्किंच जगात्याम्जागत..." ~ईशोपनिषद

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

शायद ईश्वर भी तंग आगया है इन हरकतों से !
इसीलिए ईश्वर भी ईश्वर को जलाना चाहता है !
पर ईश्वर का क्या दोष ? उसको मजबूर कौन कर
रहा है ? और ये मजबूर करने वाले कौन हैं ?
सभी जानते हैं ! जो जागरूक हैं उनकी तो ये
बातें नींद ख़राब करेग्न्गी ही ! जुकाम का तो
बहाना है ! नींद ३ बजे खुलने का कारण जुकाम
नही ये वाला है ! बहुत सटीक और सामयीक लेख है !
धन्यवाद !

Arvind Mishra ने कहा…

ये घटनाएं चीख चीख कर यही तो बता रही कि मनुष्य अभी भी अपने दिल में एक वनमानुष छुपाये हुए है .चमडी के अन्दर अभी भी कुछ ज्यादा नही बदला .इन कपि पुत्रों का परिमार्जन कौन करेगा ?कहाँ गए हमारे सुनहले नियम ?मनुष्य को समझना अभी भी आसान है बशर्ते हम उसे सहज रूप से बिना पूर्वाग्रहों के देखें .राम द्वारा भालू कापियों को भी अनुशाषित करने के प्रतीकार्थ को शायद भूल गए हैं हम !

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ ने कहा…

जाति,सम्प्रदाय,धर्म एव देश की सीमा लाँघ कर दान दाताओं के धन से चलनें वाले मदर टेरेसा की मिशनरी अनाथ बेसहारा बच्चों को बपतिस्मा करके क्रिश्चियन बनानें के बाद ही मिशन में क्यों शामिल करती है? इंसान की औलाद के तौर पर ही उसे क्यों नहीं पाला जा सकता? इस पर भी भारत रत्न- क्यों? हिन्दु से कन्वर्ट हुए आधे-अधूरे मुसलमानों को जबरन पूरा मुसलमान बनानें की जद्दोजहद क्यों?ख़ुदा पर ईमान लानें वाले दीनदार मुसलमानों के बज़ाय इस्लाम का खिज़ाब लगाये चन्द मुसलमानों को ही सर्वराकार माना जाए- क्यों? अपनें-अपनें मज़हब को उसकी रुह के अनुरुप माननें वालों में कोई द्वन्द्व कहाँ? झगड़ा तो झन्डॆ और ज्येष्ठ और श्रेष्ठ का है,जो शुद्ध राजनैतिक और विस्तारवादी है। वेद-शास्त्र हम पढ़ेगे नहीं,पुराण और विशेषकर गरुड़ पुराण जब हम मृतक क्रियाओं को करानें वालों की ऊसूली का बहीखाता समझेंगे तो ऎसे जड़ रहित एवं आस्था विहीन मानस में आधारहीन संशय उठनें स्वाभाविक हैं। पुरुष(ळिंग) एवं प्रकृति(योनि) के तांत्रिक स्वरुपों के दाक्षिणात्य या वामपंथी, उपासना के स्वरुप के चुनाव का औदार्य हमें परम्परा से प्राप्त है। देवबन्द की फैक्ट्री का उत्पाद पूरे विश्व में उत्पात मचाए हुए है,ऎसी परिस्थिति में शंकराचार्य की पुकार अगर दहाड़ लगती है तो यह संस्कार दोष ही कहा जा सकता है। धर्म के विज्ञान को जाने बिना प्रकृति का अन्याय युक्त वर्तन ताप तो देगा ही। अपनें स्वभाव के अनुरुप सर्जन या विसर्जन का स्वातन्त्र्य हमारी संस्कृति नें पहले ही दिया हुआ है।

विष्णु बैरागी ने कहा…

मनुष्‍‍य ने धर्म बनाया और उसके नाम पर अधर्म करने लगा । दुनिया का प्रत्‍येक धर्म 'आत्‍म निरीक्षण', 'आत्‍म परीक्षण', 'आत्‍म विश्‍लेषण' और 'आत्‍म शोधन' का परामर्श देता है । धर्म पर न्‍यौछावर हो जाने की बात प्रत्‍येक धर्म में मिलती है, धर्म के नाम पर जान लेने की नहीं । लेकिन मनुष्‍य अपने भीतर नहीं देखता । देख ले तो ईश्‍वर से साक्षात्‍कार हो जाए । अपने आचरण से आंखें मूंदकर वह चिन्‍ता कर रहा है कि दूसरा अपने धर्म का पालन कर रहा है या नहीं । खुद के आचरण से आंख चुराना और दूसरे के आचरण पर नजर गडाना - यही अधर्म है । जानते सब हैं लेकिन अपने धर्म को श्रेष्‍ठ साबित करने के लिए उस पर आचरण करना कोई नहीं चाहता । सबके सब आतंकित कर अपने धर्म को श्रेष्‍ठ साबित करने पर तुले हुए हैं और ऐसा करने में अपने-अपने धर्म को निक़ष्‍ट साबित कर रहे हैं ।
ईश्‍वर यह सब नहीं कर रहा । चह तो आत्‍मा में ही निवास कर रहा है । आत्‍मा से मुंह चुराकर हम न केवल धर्म को बल्कि ईश्‍वर को भी बदनाम कर रहे हैं ।

शोभा ने कहा…

हे राम! यह क्या हो रहा है? ईश्वर ही ईश्वर को जला रहा है। वह ऐसा क्यों कर रहा है?
शायद सोचता हो कि दुनियाँ को अब उस के वजूद की जरूरत ही नहीं। क्यों न अब खुद को विसर्जित कर लूँ?
वाह बहुत सुंदर. विचारों का प्रवाह प्रभावी है. बहुत सहीं और सुंदर सवाल उठाये हैं. आज जी दशा का सही चित्र खींचा है. बधाई .

Abhishek Ojha ने कहा…

ये धर्म से नहीं आ सकता !
धर्म ये कैसे सीखा सकता है !
और इश्वर की सत्ता मानों और सोंचो तो सब कुछ ना तो ....

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

ईश्वर
वही , प्रथम ,
तेज पूँज रुपी अग्नि बिँदु हैँ !
- आग तो उनसे उत्पन्न और उन्हीँ मेँ
तोरोहित होनेवाली सँतानोँ की लगाई बुझाई है
- लावण्या

shelley ने कहा…

है ईश्वर! क्या हो रहा है यह? तुम्हारी कोई सत्ता है भी या नहीं? या उस के बहाने अपनी सत्ता स्थापित करने, उसे बनाए रखने को इंन्सान का हवन हो रहा है। ईश्वर भी है, या नहीं?

aapka chantan jayaj hai.par ye aisa bishay hai jisk liye or gaharai ki jarurat hai

Suresh Gupta ने कहा…

अपनी गलती ईश्वर पर मढ़ रहे हैं हम लोग. कितना आसान कर लिया हमने अपनी गलतियाँ दूसरों पर मढ़ देना? ईश्वर के नाम पर मारकाट करेंगे हम ख़ुद और इल्जाम लगाएँगे ईश्वर पर. हम एक दूसरे को जला रहे हैं और कह रहे हैं कि ईश्वर ईश्वर को जला रहा है. इस का मतलब यह हुआ कि हम ख़ुद को ही ईश्वर मान बैठे हैं. स्वामी विवेकानंद को भी शामिल कर लिया अपने साथ.

धर्म के ठेकेदार बन बैठे हैं हम. हमने दूसरों का धर्म बदलना है. ईश्वर से हमने इस बात का ठेका ले लिया है. जो नहीं बदलेगा वह हमारा दुश्मन है. वह काफिर है. उसे मारना ईश्वर पर एहसान करना है.

मैं पूछता हूँ कौन सा ईश्वर है जिस ने हम सबको को यह सब करने को कहा है? शैतान के बफादार होकर ईश्वर को बदनाम करते फ़िर रहे हैं हम.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

इन्ही तक़लीफ़ों से गुजरते हुए पिछले दिनों मैने ये प्रार्थना की थी-

हे अमरनाथ के बाबा!
तू क्यों बर्फ़ की तरह जम गया है?
तेरे सामने, देखते ही देखते,
धर्म के नाम पर,
मानवता का रास्ता थम गया है।

तुम्ही ब्रह्मा, तुम्ही विष्णु
तुम्ही हो अल्लाह भी;
और तेरी ही है मसीहाई,
तुम्हारी इस बात पर
सबको है भरोसा,
कि यह धरती तुमने ही बनायी।

जंगल, जानवर और वहाँ का कानून
सब तुम्हारी ही करनी है।
तो क्या इस ख़ौफनाक ख़ता की सजा,
हम इन्सानों को भरनी है?

तुमने तो,
इन्सान के भीतर अपना अंश
डाला था!
तेरी किताबें कहती हैं,
इन्सान को
तूने बनाके अपना वंश
पाला था!

हे परम पिता परमेश्वर, तारणहार,
ऐ रसूल अल्लाह, परवरदिग़ार!
तेरी फितरत हम समझ क्यों नहीं पाते?
क्या है तेरा दीन-धरम,
खुलकर क्यों नहीं बताते?

ये तसद्दुद, ये खूँरेज़ी,
ये रंज़ो-ग़म।
ये ज़मीन की लड़ाई, ये बलवा
क्या यही है धरम?

रोक ले इसे,
सम्हाल ले, अभी-इसी वक्त!
नहीं तो देख ले समय,
निकला जा रहा है कमबख़्त।

डरता हूँ,
कहीँ तेरा दामन,
उसकी पाक़ीज़गी
दागदार न हो जाये।
करने को तुझे सज़दा,
तेरी पूजा, तेरी अर्चना,
कोई
तमीज़दार न रह जाये।
(सिद्धार्थ)

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

अपने आलेख का भी कुछ ऐसा ही मानना है। http://hindibhojpuri.blogspot.com/2011/06/blog-post_4914.html

http://dharmdharmantar.blogspot.com/2011/07/blog-post_16.html पर मेरी टिप्पणी देखिए।

ये ईश्वरवादी तो हर जगह मिल जाते हैं और उपदेश देना शुरु करते हैं।