खबर है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों के अमल पर डेढ़ साल के लिए रोक लगाने का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देने को तैयार है। इसके बाद जरूरत पड़ने पर अमल पर रोक आगे भी बढ़ाई जा सकती है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट से इतर एक नई कमेटी बनेगी जिसमें किसान संगठनों के प्रतिनिधियों, कृषि विशेषज्ञों और सरकार के प्रतिनिधि होंगे। यही कमेटी तीनों कृषि कानूनों के पहलुओं के साथ-साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर चर्चा करेगी। इसी के हिसाब से आगे कृषि कानूनों में संशोधन किए जाएंगे। आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज सभी मामले वापस लिए जाएंगे। एनआईए समन ठंडे बस्ते में डाल निर्दोषों पर कार्रवाई नहीं होगी।
गुरुवार, 21 जनवरी 2021
क्या मोदी सरकार जल्दी बहुमत खो देगी?
खबर है कि सरकार तीनों कृषि कानूनों के अमल पर डेढ़ साल के लिए रोक लगाने का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देने को तैयार है। इसके बाद जरूरत पड़ने पर अमल पर रोक आगे भी बढ़ाई जा सकती है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट से इतर एक नई कमेटी बनेगी जिसमें किसान संगठनों के प्रतिनिधियों, कृषि विशेषज्ञों और सरकार के प्रतिनिधि होंगे। यही कमेटी तीनों कृषि कानूनों के पहलुओं के साथ-साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर चर्चा करेगी। इसी के हिसाब से आगे कृषि कानूनों में संशोधन किए जाएंगे। आंदोलन के दौरान किसानों पर दर्ज सभी मामले वापस लिए जाएंगे। एनआईए समन ठंडे बस्ते में डाल निर्दोषों पर कार्रवाई नहीं होगी।
रविवार, 10 जनवरी 2021
नॉर्मल डिलीवरी
कल शाम करीब साढ़े सात का समय था, फ्लैट की कॉलबेल बजी। मैंने दरवाजा खोला। केयरटेकर की पत्नी थी। मुझे देखते ही बोली, "आण्टी जी कहाँ हैं?"
"रसोई में। क्यों कोई बात हो तो मुझे बताओ?
"उधर सामने सड़क पर एक औरत ने बच्चा जन दिया है। बहुत सुन्दर बच्चा है।"
अब मैं क्या कहता। मैंने उत्तमार्ध को बुलाया। अब वह सारी कहानी बताने लगी।
"जच्चा को दरी और कम्बल दे दिया है, वह सड़क के किनारे ही बच्चे सहित लेटी है। उसके परिजन आ गए हैं। उसे घेर कर बैठ गए हैं। अस्पताल जाने के साधन की जुगाड़ की जा रही है। मैं यह पूछने आयी थी कि उसे चाय दे सकते हैं क्या?"
"हाँ, दे सकते हैं। पर उसके परिजन आ गए हैं तो उनकी अनुमति हो तो ही देना। बनाने से पहले पूछ लेना।" उत्तमार्ध ने कहा। वह सुन कर सीढ़ियों से नीचे उतर गई।
मैंने उत्तमार्ध को कहा, "मैं नीचे पता कर के आता हूँ। माजरा क्या है?"
"वहाँ तुम्हारा क्या काम है? रहने दो।"
मैं ने बालकनी से देखा। तीन चार मजदूर स्त्रियाँ जच्चा को घेर कर बैठी थीं। वहाँ अधिक रोशनी नहीं थी। वैसे जच्चा के लेटे हुए होने के कारण वह दिखाई नहीं दे रही थी। पास ही दो-तीन मजदूर खड़े थे। पास ही मेरी बिल्डिंग के एक व्यवसायी किसी को फोन कर रहे थे। मैं सीढ़ियों से नीचे उतर गया।
पता लगा उन्होने 108 नं. एम्बुलेंस को, पुलिस कंट्रोल रूम को और पुलिस थाने को फोन कर दिया है। पर बच्चे की नाल अभी नहीं कटी है।
मैंने अपने तमाम ज्ञान पर विचार किया। फिर कहा कि यदि कुछ मिनटों में 108 आ जाए तो अस्पताल ही विकल्प है। अपने अधूरे ज्ञान के आधार पर नाल काटने का प्रयास करना उचित नहीं।
मेरा वहां मेरा कोई काम नहीं था। मैं लौट आया। पर जिज्ञासा ने मुझे फिर से बालकनी में पहुँचा दिया। 108 आ चुकी थी। चालक ने पिछला दरवाजा खोल दिया था। मजदूर स्त्रियाँ जच्चा को चढ़ा रही थीं। दो मिनट में जच्चा-बच्चा और साथ की स्त्रियों को लेकर एम्बुलेंस चली गयी। साथ के मजदूर चौराहे की तरफ चल दिए साधन की तलाश में कि अस्पताल पहुँचें।
जच्चा पास में निर्मित हो रहे पार्किंग प्लेस में काम करने वाले मजदूर थे। उन्होंने वहीं अपनी झुग्गियाँ डाली हुई हैं। पता लगा कि जच्चा शाम तक मजदूरी कर रही थी। काम से उतरते के कुछ देर बाद ही उसे दर्द हुआ। जच्चा को उसका पति डाक्टर के यहाँ दिखाने जा रहे थे कि चलते हुए दर्द तेज हुआ। जच्चा से सहन नहीं हुआ वह वहीं सड़क पर लेट गई। बच्चा जन दिया, बिना किसी की सहायता के नॉर्मल डिलीवरी।
हमने राहत की साँस ली कि जच्चा बच्चा अस्पताल पहुँच गए होंगे।