@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत

मंगलवार, 31 मार्च 2020

भगवान का नाम लेने का डर?


एक अखबार के मालिक हैं। (हालाँकि अखबार की प्रेस लाइन में उनका नाम नहीं जाता, न संपादक के रूप में और न ही किसी और रूप में) विशेष अवसरों पर वे मुखपृष्ठ पर अपने नाम से संपादकीय लिखते हैं। आजकल भी कोविद-19 महामारी एक विशेष अवसर है और वे संपादकीय लिख रहे हैं।

आज उन्होंने अपने संपादकीय में 24 मार्च को लॉकडाउन की घोषणा के बाद देश के औद्योगिक केन्द्रों पर कारखाने बन्द हो जाने के कारण अपने अपने गाँवों की ओर पैदल ही चल पड़े मजदूरों और उनके परिवारों के बारे जिस तरीके से लिखा है। इसे उन्होंने प्रशासन की असफलता और केन्द्र व राज्यों के बीच सामंजस्य के अभाव को मुख्य कारण बताते हुए लिखा है कि "अचानक ही उद्योग बंद हो गए, अधिकारी बेखबर। क्या इस परिस्थिति को योजना बना कर नियंत्रित नहीं किया जा सकता था। क्या यह अचानक हो गया? नहीं। अधिकारियों ने रुचि नहीं दिखाई और उद्योग एक ही दिन बंद हो गए।"

मुझे समझ नहीं आया कि मालिक क्या कहना चाहते हैं। देश के किन अधिकारियों को दोषी मान रहे हैं। क्या किसी भी अधिकारी को भी 24 मार्च की रात 8 बजे के पहले पता था कि देश लॉकडाउन होने वाला है? घोषणा करने वालों के अलावा पूरी दुनिया को रात आठ बजे पता लगा कि चार घंटे के बाद रात 12 बजे 25 मार्च आरंभ होते ही लॉकडाउन शुरू हो जाएगा।


वह शख्स जो हमेशा अपने काम में रहस्य-रोमांच बनाए रखना चाहता है। उसने अचानक घोषणा की। उसकी घोषणा से देश में क्या होने जा रहा है इसका उसे तनिक भी गुमान नहीं था। वह तो देश का भगवान बना भक्तो के कीर्तन-भजन के नशे मे चूर हो कर घोषणा कर रहा था कि अब 'ब्रह्मांड" को बचाने का बस एक ही तरीका है और वह है "लॉक डाउन"। केवल भगवान ही है जो हमेशा केवल यही सोचता है कि मैं कभी गलत नहीं सोचता, गलत नहीं कर सकता। उसके भक्त भी भक्ति के नशे में चूर यही समझते हैं। जब किसी भक्त का नशा उतरता है तो वह नीत्शे की तरह कहता है "भगवान" मर चुका। जबकि वास्तविकता तो यह है कि कभी कोई भगवान नहीं था। वह हमेशा से केवल एक इल्यूजन (भ्रम) था और है।


खैर, हमारे मालिक साहब भी उस इल्यूजनरी भगवान से डरते हैं, क्या पता कब वे यमराज को भिजवा दें। उन्होंने अपने संपादकीय के निष्कर्ष को हवा में छोड़ दिया कि "जवाबदेह कौन? वे भगवान का नाम लेने से उसी तरह डरे हुए दिखाई दिए, जैसे प्रहलाद की कथा में हिरण्यकश्यप के राज्य में प्रहलाद के अलावा हर कोई विष्णु का नाम लेने से डरता था।


कोविद-19 महामारी और भारत-2


बचाव के बचकाना उपाय

24 मार्च 2020 को सुबह-सुबह घोषणा होने के बाद कि प्रधानमंत्री रात आठ बजे देश को संबोधित करेंगे तरह तरह की अटकलें लगाई जाने लगीं कि आखिर प्रधानमंत्री क्या करने वाले हैं। लेकिन किसी को पता नहीं था कि वे क्या कहेंगे। रात आठ बजे जब वे टीवी-रेडियो पर आए तो उन्होंने आधी रात से 21 दिनों के लिए पूरे देश को लॉक-डाउन कर देने की घोषणा कर दी। उन्होंने कहा कि घर के दरवाजे पर लक्ष्मण रेखा खींच दें और उसके बाहर नहीं निकलें। कोविद-19 से उत्पन्न इस विश्वव्यापी महामारी से निपटने का यही एक तरीका है। दुनिया भर के स्वास्थ्य विशेषज्ञ दो माह के अध्ययन के बाद इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि इस महामारी से निपटने का लोगों के बीच डिस्टेंसिंग के अलावा और कोई तरीका नहीं है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो देश 21 साल पीछे चला जाएगा। उन्होंने कोविद-19 से संक्रमित रोगियों की चिकित्सा के लिए, देश के हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को और मजबूत बनाने के लिए 15 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान केन्द्र सरकार की ओर से करने की घोषणा करते हुए यह भी बताया कि टेस्टिंग फेसिलिटीज, पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्वीपमेंट्स, आइसोलेशन बेड, आसीयू बेड, वेंटीलेटर और अन्य जरूरी साधनों की संख्या तेजी से बढ़ाई जाएगी। आपदा प्रबंध के विशेषज्ञों ने इस पर राय जताई कि यह धनराशि भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए बहुत अपर्याप्त सिद्ध होगी। अन्य किसी प्रकार की कोई घोषणा प्रधानमंत्री नहीं की।
आधी रात अर्थात 25 मार्च 2020 के आरंभ होते ही लॉक-डाउन शुरू हो गया। सब लोग असमंजस में थे कि अब क्या होगा। क्या काम चालू रहेंगे और क्या काम बन्द होंगे? लोग घरों के बाहर निकलेंगे नहीं तो उद्योग कैसे चल सकेंगें? कैसे लोगों को जरूरी सामान मुहैया कराए जाएँगे? यदि उद्योग बन्द होंगे तो मजदूरों का क्या होगा? उन्हें वेतन मिलेगा या नहीं। लोगों के राशन-पानी की क्या व्यवस्था होगी? रबी की फसल की कटाई सिर पर आ चुकी थी। उसकी कटाई कैसे होगी? क्या फसलें बरबाद होने के लिए छोड़ दी जाएँगी? अनेक ज्वलन्त प्रश्नों को बिलकुल अनुत्तरित छोड़ दिए गए। उस दिन सभी कुछ अन्धेरे में था। अगले दिन रिजर्व बैंक के गवर्नर ने आकर कुछ राहतें प्रदान करने की घोषणा की। लेकिन उसमें भी कुछ स्पष्ट नहीं था कि राहतों के लाभ आम लोगों को कैसे प्राप्त होंगे। रेलें, बसें और आवागमन के सारे साधन पूरी तरह मार्गों से हटा दिए गए थे। निजी वाहनों को भी एक हद तक प्रतिबंधित कर दिया गया था। सभी उद्योगों और आवश्यक सेवाओँ के अतिरिक्त सभी सेवाओं को तुरन्त प्रभाव से बन्द कर दिया गया। 
 लॉकडाउन के दो दिन बाद ही अचानक एक विस्फोट की तरह देश के सभी बड़े और छोटे औद्योगिक नगरों से मजदूर हजारों नहीं बल्कि लाखों की संख्या में अपने गोँवों की ओर पलायन करने लगे। उनके पास न तो रास्ते के लिए पर्याप्त धन था और न ही खाने पीने की वस्तुएँ। लेकिन तब तक रेलें और बसें सब बन्द हो चुकी थीं। कुछ सौ किलोमीटर से ले कर डेढ़ हजार किलोमीटर तक की यात्रा करने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं था। लेकिन लोग उसकी परवाह न करते हुए इतने लम्बे रास्तों पर जो भी थोड़ा बहुत माल असबाब उनके पास था उसे ले कर गावों की ओर  भूखे प्यासे पैदल ही चल दिए। कोविद-19 की महामारी को लॉक-डाउन कर के रोकने के प्रयास को बहुत बड़ा धक्का लगा। क्यों की केन्द्र और राज्य सरकारो और देश के प्रशासन को बिलकुल समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हुआ? इसे कैसे रोका जाए। इस से तो कुछ खास जगहों पर इस रोग को सीमित करने के सारे उपाय बेकार हो जाने वाले थे। इस पलायन से महामारी के रुकने के स्थान पर उसे जंगल की आग की तरह फैलने का अवसर मिल गया था।
पुलिस और प्रशासन द्वारा पैदल निकल पड़ी इस श्रमशक्ति को रोका जाने लगा। पुलिस ने उन पर डंडे बरसाए, उन्हें बैठ कर आगे बढ़ने को मजबूर किया, कहीं उन्हें मुर्गा बना दिया और पुलिस ने अपने थर्ड डिग्री वाले तरीकों का उपयोग किया। अनेक सहृदयी संवेदनशील पुलिस कर्मियों द्वारा उनकी मदद करने के समाचार भी मिले। वहीं लोगों और संस्थाओं ने जितना हो सका इन्हें भोजन आदि की व्यवस्था की जो किसी भी तरह पर्याप्त नहीं थी।  पलायन इन लोगों में स्त्रियाँ भी थीं तो बूढ़े भी थे, छोटे बच्चे और शिशु भी थे तो गर्भवती स्त्रियाँ भी थीं। पलायन को रोकने के इन बेतरतीब कष्टदायी तरीकों के बावजूद देश भर का प्रशासन समझ गया था कि इस विस्फोट को ऐसै नहीं रोगा जा सकेगा। आखिर कुछ राज्य सरकारों ने इन लोगों को घर जाने के लिए मुफ्त बसें उपलब्ध कराने की घोषणा कर दी। उत्तर प्रदेश में बसे उपलब्ध कराई गयी लेकिन जिन लोगों के पास खाने की सामग्री नहीं थी उनसे कुछ सौ रुपयों से ले कर हजार रुपये तक किराए वसूल किए गए। यह सूचना समाचार माध्यमों पर वायरल हो जाने पर आदेश जारी किया गया कि अब यात्रा के लिए कोई धन वसूला नहीं जाएगा। वहीं अनेक गाँवों में शहर से पहुंच रहे अपने ही लोगों को गाँवो में घुसने से रोक दिया गया। उनकी समझ थी कि ये लोग महामारी को लेकर घर लौट रहे हैं। अजीब तरह की अराजकता पूरे देश में फैल रही थी। 
आखिर इतवार 29 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात में अपने फैसलों से उत्पन्न विकट परिस्थितियों के लिए देश के गरीबों से माफी मांगी और पलायन कर रहे लोगों से वहीं रुकने का आग्रह किया। इस के बाद राज्यादेश भी जारी किए गए कि प्रत्येक जिले और नगर को सील कर दिया जाए। जो लोग जहाँ हैं वहीं रोक दिए जाएँ। प्रशासन उनके रहने खाने की वहीं व्यवस्था करे और कम से कम दो सप्ताह तक उन सब को निगरानी में रखा जाए जिस से महामारी को फैलने से रोका जाए। इसके बाद सभी स्थानों पर प्रशासन हरकत में आया और पलायन कर रहे लोगों को जहाँ के तहाँ रोकने के प्रयास आरंभ हो गए। ये प्रयास कितने सफल होंगे। महामारी को कुछ इलाकों तक सीमित करने और फिर समाप्त करने में कैसे सफलता मिलेगी? सफलता मिलेगी भी या नहीं मिलेगी? इन प्रश्नों के उत्तर तो समय के साथ पता लगेंगे। लेकिन महामारी को फैलने से रोकने के उपायों की घोषणा मात्र से उसके तैजी से फैलने के जो अवसर पैदा हो गए उसके पीछे क्या कारण हैं? उनकी पड़ताल करना और जानना अत्यन्त आवश्यक है। यदि इन तथ्यों को न जाना गया तो हमें समझ लेना चाहिए कि हम परमाणु बम से भी खतरनाक बम पर बैठे हैं जो कभी भी फट पड़ सकता है।                           ...... (क्रमशः)