डा. अमर कुमार said...अब तकिये पर से पैर हटा भी लो, पंडित जी ! अब कुछ आगे भी लिखो, अपनी मस्त लेखनी से.. ! 6 November, 2008 11:18 AMखैर पैर तो अब बराक हुसैन ओबामा के साथ तकिए पर जम चुके हैं, हटाए न हटेंगे। पाँच बरस की हमारी गारंटी, और अमरीकी वोटरों की जमानती गारंटी है। इस के बाद भी पाँच बरस की संभावना और है, कि जमे ही रहें। पर पैर तकिए पर जम ही जाएँ तो इस का मतलब यह तो नहीं कि बाकी शरीर भी काम करना बंद कर दे। इन्हें तो काम करना होगा और पहले से ज्यादा करना होगा। आखिर पैरों की तकिए पर मौजूदगी को सही साबित भी तो करना है।
पूरब, पश्चिम और दक्षिण में पहुँचे गोरे बहुत बरस तक यह समझते रहे कि वे अविजित हैं, और सदा रहेंगे। अमरीकियों ने यह तो साबित कर दिया कि उन का ख़याल गलत था। देरी हुई, मगर इस देरी में उन की खाम-ख़याली की भूमिका कम और काले और पद्दलितों की इस सोच की कि गोरे लोग बने ही राज करने को हैं, अधिक थी। अब सब को समझ लेना चाहिए कि ये जो होमोसेपियन, है वह किसी भेद को बर्दाश्त नहीं करेगा, एक दिन सब को बराबर कर छोड़ेगा।
अमरीका तो अमरीका, दुनिया भर के लोग ओबामा की जीत से खुश हैं। लेकिन यह खुशी वैसी ही सुहानी है, जैसे दूर के डोल। सारी दुनिया में जो लोग होमोसेपियन्स में किसी भी तरह का भेद करते हैं। उन्हें होशियार हो जाना चाहिए कि एक दिन उन के खुद के यहाँ कोई होमोसेपियन बराक हो जाएगा और अपने पैर तकिए पर जमा देगा।
याद आ रही है महेन्द्र 'नेह' की यह कविता .....
‘हम सब नीग्रो हैं, हम सब काले हैं’
हम सब जो तूफानों ने पाले हैं
हम सब जिन के हाथों में छाले हैं
हम सब नीग्रो हैं, हम सब काले हैं।।
जब इस धरती पर प्यार उमड़ता है
हम चट्टानों का चुम्बन लेते हैं
सागर-मैदानों ज्वालामुखियों को
हम बाहों में भर लेते हैं।
हम अपने ताजे टटके लहू से
इस दुनियां की तस्वीर बनाते हैं
शीशे-पत्थर-गारे-अंगारों से
मानव सपने साकार बनाते हैं।
हम जो धरती पर अमन बनाते हैं
हम जो धरती को चमन बनाते हैं
हम सब नीग्रो हैं, हम सब काले हैं।।
फिर भी दुनियाँ के मुट्ठी भर जालिम
मालिक हम पर कोड़े बरसाते हैं
हथकड़ी-बेड़ियों-जंजीरों-जेलों
काले कानूनों से बंधवाते हैं।
तोड़ कर हमारी झुग्गी झोंपड़ियां
वे महलों में बिस्तर गरमाते हैं।
लूट कर हमारी हरी भरी फसलें
रोटी के टुकड़ों को तरसाते हैं।
हम पशुओं से जोते जाते हैं
हम जो बूटों से रोंदे जाते हैं
हम सब नीग्रो हैं, हम सब काले हैं।।
लेकिन जुल्मी हत्यारों के आगे
ऊंचा सिर आपना कभी नहीं झुकता
अन्यायों-अत्याचारों से डर कर
कारवाँ कभी नहीं रुकता।
लूट की सभ्यता लंगड़ी संस्कृति को
क्षय कर हम आगे बढ़ते जाते हैं
जिस टुकड़े पर गिरता है खूँ अपना
लाखों नीग्रो पैदा हो जाते हैं।
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शुक्रिया वकील साहब ......आपने जीत के गीत नही गाये कुछ तथ्यों पर भी नजर है आपकी....
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिखा है आपने.. मगर मुझे यहां भी कबीले वाली ही बात जैसा कुछ दिख रहा है..
जवाब देंहटाएंमहेन्द्र 'नेह' जी कि कविता भी शानदार है..
हम अपने ताजे टटके लहू से
जवाब देंहटाएंइस दुनियां की तस्वीर बनाते हैं
शीशे-पत्थर-गारे-अंगारों से
मानव सपने साकार बनाते हैं।
बहुत ही अच्छा लिखा है।
महेंद्र नेह जी की कविता सशक्त है
जवाब देंहटाएंअच्छा किया इसे देकर ...
लूट की सभ्यता लंगड़ी संस्कृति को
जवाब देंहटाएंक्षय कर हम आगे बढ़ते जाते हैं
जिस टुकड़े पर गिरता है खूँ अपना
लाखों नीग्रो पैदा हो जाते हैं।
बहुत सत्य कहा आपने ! कविता भी बड़ी सटीक है यहाँ ! बहुत धन्यवाद !
धन्यवाद
जवाब देंहटाएं"हम सब नीग्रो हैं, हम सब काले हैं।।" सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंजिस टुकड़े पर गिरता है खूँ अपना
जवाब देंहटाएंलाखों नीग्रो पैदा हो जाते हैं।
यह कुछ खटकने वाला अंश है क्योंकि एक पौराणिक कहानी के अनुसार रक्त की एक बूँद से कई प्राणियों का जन्म एक राक्षसी कृत्य/वृत्ति है जबकि कविता सकारात्मक संदेश के लिए उद्येषित है .
बहुत ही गंभीर मुद्दे सहज-सरल अंदाज़ में उठाना आपकी विशेषता है। महेन्द्र नेह की कविता सोने में सुहागा है। बधाई और आभार।
जवाब देंहटाएंओबामा की जीत की कडवी हकीकत कहें या आगत की आहट - आपने सपनों की दुनिया से ठोस धरती पर ले आने का प्रशंसनीय काम किया है । तेल देखो, तेल की धार देखो । ओबामा को देखो, आने वाले दिनों में ओबामा का काया पलट देखने के लिए हम सबको तैयार रहना चाहिए ।
जवाब देंहटाएंइतनी अच्छी रचना से अब तक वंचित था...शुक्र है ताऊ का कि उनक्र ब्लौग ने ये रस्ता इधर का दिखाया
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