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शनिवार, 8 नवंबर 2008

शिवराम की कविताएँ 'बवंडर' और 'तौहीन'

दो दिन कोटा से बाहर हूँ, कम्प्यूटर और जाल हाथ लगे न लगे, कुछ  कह नहीं सकता। 
पहले से सूची-बद्ध की गई इस कड़ी में पढ़िए शिवराम की शिवराम की कविताएँ  'बवंडर' और 'तौहीन' ...
बवंडर
 यह बवंडर भी थमेगा एक दिन 
थम गई थीं जैसे सुनामी लहरें

आखिर यह बात 
आएगी ही समझ में 
कि- यह दुनियाँ 
ऐसे नहीं चलेगी
और यह भी कि 
कि- आखिर कैसे चलेगी 
यह दुनिया? 

ज्यादा दिन नहीं चलेगा 
यह बवंडर बाजारू
थमेगा एक दिन
 ... शिवराम
***** 
 
तौहीन 
सातवें आसमान के
पार जाना था तुम्हें
तुम उड़े ,
और ठूँठ पर जा कर बैठ गए

यह उड़ान की नहीं,
परों की तौहीन है
तुम्हारी नहीं, 
हमारी तौहीन है।  
... शिवराम 
*****

17 टिप्‍पणियां:

  1. मनभावन रचनाये प्रस्तुत करने के
    लिए धन्यवाद्. मन आनंदित भयो . धन्यवाद्
    जी

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  2. शिवराम जी की दोनों रचनाऐं पसंद आई. आभार प्रस्तुत करने का.

    जवाब देंहटाएं
  3. यह उड़ान की नहीं,
    परों की तौहीन है
    तुम्हारी नहीं,
    हमारी तौहीन है। bahut badhiyaa

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही गहरे भाव, धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  5. आनंदम ! बहुत आभार आपका ! सही में लाजवाब !

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्छी कविताएं। शिवराम जी को यहाँ लाने का धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  7. कविताएं तो दोनों ही उत्‍कृष्‍ट हैं किन्‍तु 'तौहीन' अधिक अपने पास अनुभव हुई ।
    प्रभावी कविताएं उपलब्‍ध कराने के लिए धन्‍यवाद ।

    जवाब देंहटाएं

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