दो दिन कोटा से बाहर हूँ, कम्प्यूटर और जाल हाथ लगे न लगे, कुछ कह नहीं सकता।
पहले से सूची-बद्ध की गई इस कड़ी में पढ़िए शिवराम की शिवराम की कविताएँ 'बवंडर' और 'तौहीन' ...
बवंडर
यह बवंडर भी थमेगा एक दिन
थम गई थीं जैसे सुनामी लहरें
आखिर यह बात
आएगी ही समझ में
कि- यह दुनियाँ
ऐसे नहीं चलेगी
और यह भी कि
कि- आखिर कैसे चलेगी
यह दुनिया?
ज्यादा दिन नहीं चलेगा
यह बवंडर बाजारू
थमेगा एक दिन
... शिवराम
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तौहीन
सातवें आसमान के
पार जाना था तुम्हें
तुम उड़े ,
और ठूँठ पर जा कर बैठ गए
यह उड़ान की नहीं,
परों की तौहीन है
तुम्हारी नहीं,
हमारी तौहीन है।
... शिवराम
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bahut sunder rachanyen
जवाब देंहटाएंमन को प्रफुल्लता मिली।
जवाब देंहटाएंदूसरी ज्यादा पसंद आयी
जवाब देंहटाएंसुंदर |
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंमनभावन रचनाये प्रस्तुत करने के
जवाब देंहटाएंलिए धन्यवाद्. मन आनंदित भयो . धन्यवाद्
जी
शिवराम जी की दोनों रचनाऐं पसंद आई. आभार प्रस्तुत करने का.
जवाब देंहटाएंयह उड़ान की नहीं,
जवाब देंहटाएंपरों की तौहीन है
तुम्हारी नहीं,
हमारी तौहीन है। bahut badhiyaa
बहुत ही गहरे भाव, धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआनंदम ! बहुत आभार आपका ! सही में लाजवाब !
जवाब देंहटाएंShivraam jee kee kavitaaon badee achhee hai. Tathyaparak.
जवाब देंहटाएंअच्छी लगीं दोनों कवितायेँ
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव हैं
जवाब देंहटाएंaanand daayak
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंअच्छी कविताएं। शिवराम जी को यहाँ लाने का धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंकविताएं तो दोनों ही उत्कृष्ट हैं किन्तु 'तौहीन' अधिक अपने पास अनुभव हुई ।
जवाब देंहटाएंप्रभावी कविताएं उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद ।