मैं कल से ही बाहर हूँ। कल आप ने शिवराम की दो कविताएँ पढ़ीं। आज की इस पूर्व सूचीबद्ध कड़ी में पढिए मेरे अजीज दोस्त शायर पुरुषोत्तम 'यकीन' की छोटी बहर की दो गज़लें ...
हम चले
- पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’
हम चले
कम चले
आए तुम
ग़म चले
तुम रहो
दम चले
तुम में हम
रम चले
हर तरफ़
बम चले
अब हवा
नम चले
लो ‘यक़ीन’
हम चले
*****
चुप मत रह
- पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’
चुप मत रह
कुछ तो कह।
ज़ुल्मो-सितम
यूँ मत सह।
कर न कभी
व्यर्थ कलह।
नद-सा तू
निर्मल बह।
कह दे ग़ज़ल
मेरी तरह।
ज़ुल्म का गढ़
जाता ढह।
मिल बैठो
एक जगह।
नज़्द मेरे
आए वह।
प्यार ‘यक़ीन’
करता रह।
*****
बहोत खूब मज़ा आगया छोटी बहर की ग़ज़लों में काफी गहराई मिली
जवाब देंहटाएंआपको ढेरो बधाई .. यकीन साब को सलाम ...
वाह!!अति सुन्दर!!
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया यकीन साः को पढ़, आभार.
बहुत बढिया जी ! कम समझ है शायरी की हमको पर आज समझ आया बहर का मतलब ! धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंअद्भुत शब्द संयोजन। अर्थपूर्ण ग़जल...वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
behad khubsurat!
जवाब देंहटाएंitni achchee aur saral ghazalen padhne ko milin.
[aisee ghazalen likhne ke liye shbd-kosh bahut badaaa hona chaheeye.]
'yakeen ji' ko badhayee.
बढ़िया.. :)
जवाब देंहटाएंवाह, छोटी बहर की इन गजलें पढ़कर मजा आ गया। यकीन जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंछोटी बहर में कहना कितना मुश्किल होता है जानता हूं...और ये तो इतनी छोटी बहर कि उफ़्फ़्फ़्फ़
जवाब देंहटाएं'देखत में छोटे लगें घाव करें गंभीर'
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
वक्ता/कलमकार अपनी बात के उथलेपन को छिपाने के लिए उसे विस्तारित कर देता है । 'यकीनजी' ने इस बात को बखूबी साबित कर दिया । वे चमत्कारी कलमकार हैं । उन्हें हमारे नमन अर्पित कीजिएगा । इतने श्रेष्ठ सरस्वती-पुत्र से भेंट कराने के लिए आपको साधुवाद ।
जवाब देंहटाएंनया कलेवर पसंद आया ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंवाह वाह सरजी,
जवाब देंहटाएंदोनों गज़लें बेहतरीन !
हो गया हमको "यक़ीन" !!