@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: कैसे जानें? मूल साँख्य

रविवार, 26 जुलाई 2009

कैसे जानें? मूल साँख्य

अनवरत के आलेख कहाँ से आते हैं? विचार! में साँख्य दर्शन का उल्लेख हुआ था। तब मुझ से यह अपेक्षा की गई थी कि मैं साँख्य के बारे में कुछ लिखूँ। दर्शनशास्त्र मेरी रुचि का विषय अवश्य है, लेकिन दर्शनों का मेरा अध्ययन किसी एक या एकाधिक दर्शनों को संपूर्ण रूप से जानने और उन पर अपनी व्याख्या प्रस्तुत करने के उद्देश्य से नहीं रहा है। जगत की तमाम गतिविधियों को समझने की अपनी जिज्ञासा को शांत करने के दृष्टिकोण से ही मैं थोड़ा बहुत पढ़ता रहा। अपने किशोर काल से ही मेरा प्रयास यह जान ने का भी रहा कि आखिर यह दुनिया कैसे चलती रही है? जिस से यह भी जाना जा सके कि आगे यह कैसे चलेगी और इस की दिशा क्या होगी? साँख्य को भी मैं ने इसी दृष्टिकोण से जानने की चेष्ठा की। मैं यदि साँख्य के विषय पर कुछ लिख सकूंगा तो इतना ही कि मैं ने उसे किस तरह जाना है और कैसा पाया है? इस से अधिक लिख पाना शायद मेरी क्षमता के बाहर का भी हो।

जब मैं ने साँख्य के बारे में जानना चाहा तो सब से पहले यह जाना कि भारत के संदर्भ में यह एक महत्वपूर्ण और अत्यंत व्यापक प्रभाव वाला दर्शन रहा है। इस का आभास 'गार्बे' की इस टिप्पणी से होता है कि " ईसा पूर्व पहली शताब्दी से, महाभारत और मनु संहिता से आरंभ होने वाला संपूर्ण भारतीय साहित्य, विशेषकर पौराणिक कथाएँ और श्रुतियाँ, जहाँ तक दार्शनिक चिंतन का संबंध है, साँख्य विचारधाराओं से भरी पड़ी हैं।" सांख्य के प्रबलतम विरोधी शंकराचार्य को न चाहते हुए भी बार बार स्वीकार करना पड़ा कि साँख्य दर्शन के पक्ष में बहुत से प्रभावशाली तर्क हैं। मैं ने पहले भी कहा था कि मूल साँख्य के बारे में सच्ची प्रामाणिक सामग्री लगभग न के बराबर उपलब्ध है। सांख्य के संबंध में केवल दो ग्रंथ हमें मिलते हैं, जिन में एक 'साँख्य कारिका' और दूसरा 'साँख्य सूत्र' है। दोनों ही बहुत बाद के ग्रंथ हैं और साँख्य को अपने मूल शुद्ध रूप में प्रतिपादित करते दिखाई नहीं देते हैं। 'साँख्य सूत्र' में तो अनेक स्थान पर वेदांत का प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है, कहीं कहीं तो सीधे वेदांत की शब्दावली का ही प्रयोग देखने को मिलता है। 'साँख्य सूत्र' की अपेक्षा 'सांख्य कारिका' अधिक प्राचीन ग्रंथ प्रमाणित होता है और विद्वान इसे ईसा की दूसरी शताब्दी से पाँचवीं शताब्दी के बीच लिखा मानते हैं। इस में भी कुछ ऐसे दार्शनिक मतों का समावेश करने की प्रवृत्ति दिखाई पड़ती है जिन की व्युत्पत्ति वास्तव में वेदांत से हुई थी। इसी कारण से विद्वानों का मानना है कि मूल साँख्य के वर्णन के लिए आलोचनात्मक भाव से 'साँख्य कारिका' पर निर्भर करना गलत है।

अब स्थिति यह बनती है कि मूल साँख्य को कहाँ से तलाशा जाए? एक महत्वपूर्ण आयुर्वेद ग्रंथ चरक संहिता में भी सांख्य का वर्णन है। महाभारत में कुछ अंश ऐसे हैं जिन में मिथिला नरेश जनक को साँख्य दर्शन का ज्ञान कराए जाने का विवरण है। दास गुप्त ने कहा है कि 'साँख्य का यह विवरण चरक के विवरण से बहुत मेल खाता है, यह तथ्य चरक द्वारा की गई सांख्य की व्याख्या के पक्ष में जाता है।' असल में साँख्य अत्यन्त प्राचीन दर्शन है और आरंभ से ही इस में निरंतर कुछ न कुछ परिवर्तन होता रहा है। महाभारत में साँख्य और योग को दो सनातन दर्शन कहा गया है जो सभी वेदों के समान थे। इस तरह वहाँ इन्हें वैदिक ज्ञान से पृथक किन्तु वेदों के समान माना गया है। कौटिल्य ने भी केवल तीन दार्शनिक मतों साँख्य, योग और लोकायत का ही उल्लेख किया है। प्रमाणों के आधार पर गार्बे ने साँख्य को प्राचीनतम भारतीय दर्शन घोषित किया। उन्हों ने सिद्ध किया कि साँख्य बौद्ध काल के पूर्व का था, बल्कि बौद्ध दर्शन इसी से विकसित हुआ। अश्वघोष ने स्पष्ट कहा कि बौद्ध मत की व्युत्पत्ति साँख्य दर्शन से हुई। बुद्ध के उपदेशक आडार कालाम और उद्दक (रामपुत्त) साँख्य मत के समर्थक थे। इन सब तथ्यों से यह सिद्ध होता है कि सांख्य बुद्धकाल के पूर्व का दर्शन था।

ब्रह्मसूत्र के रचियता बादरायण ने वेदांत को स्थापित करने के प्रयास में साँख्य दर्शन का खंडन करने का सतत प्रयत्न किया और इसे वेदान्त दर्शन के लिए सब से बड़ी चुनौती समझा। बादरायण के इस ब्रह्मसूत्र या वेदान्त सूत्र में कुल 555 सूत्र हैं जिस में उपनिषदों के दर्शन को एक सुनियोजित रूप में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। दास गुप्त के अनुसार ये सूत्र ईसापूर्व दूसरी शताब्दी में रचे गए। 555 सूत्रों में से कम से कम 60 सूत्रों में तो प्रधानवाद (साँख्य) का खंडन मौजूद है। इस तरह ब्रह्मसूत्र में जिस साँख्य मत का खंडन करने का प्रयत्न किया गया है उसी से मूल साँख्य के बारे में महत्वपूर्ण संकेत मिलते हैं। इस तरह मूल साँख्य के बारे में जानने के लिए विद्वानों ने विशेष रूप से देवीप्रसाद चटोपाध्याय ने ब्रह्मसूत्र में किए गए इस के खंडन की सहायता लेते हुए महाभारत, चरक संहिता, बाद के उपनिषदों और साँख्य कारिका का अध्ययन करते हुए मूल सांख्य के बारे में जानने का तरीका अपनाया। इस अध्ययन से जो नतीजे सामने आए उन पर हम आगे बात करेंगे।

16 टिप्‍पणियां:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

अच्छी जानकारी- पुस्तकों की। परंतु सांख्य कि व्याख्या तो रह ही गई॥

Vinay ने कहा…

you're blog is full of knowledge!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत अच्छा आलेख. पर क्या सांख्य पढ कर समझ आ सकता है? मेरी समझ से वो तो है ही, बस होश की देर है. बहुत अच्छा प्रयास.

रामराम.

Arvind Mishra ने कहा…

हद है पहले आप को सांख्य दर्शन क्या है इसके बारे में आम लोगों की भाषा में जानकारी दे दी जानी चाहिए थी -फिर यह सारा पिंगल लाना था !
सांख्य दर्शन जहाँ तक मुझे सतही जानकारी है प्रकृति पुरुष के अन्तर्सम्बन्धों और श्रृष्टि की तदनुसार उत्पत्ति की व्याख्या है -हमारे छः दर्शनों में से एक !

Urmi ने कहा…

मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा! बहुत बढ़िया लिखा है आपने !
मेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है !

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

सांख्य का मूल तो सत्कार्यवाद ही है.

निर्मला कपिला ने कहा…

अदभुत अक्सर जितने भी आलेख ऐसे गम्भीर और हमाते शा्स्त्रों से सम्बँधित होते हैं चो इतनी कठिन भाशा और अभिव्यक्ति मे होते हैं कि मेरे जैसे लोग उसेाधा अधूरा हे सम्झ पाते हैं मगर आपका् आलेख इतना प्रवाहमय और सरल है कि इसमे रुची और बढ गयी है और ऐसी जानकारी आज की पीढी के लिये बहुत लाभदायक है आपकी इस प्रतिभा को भी मेरा नमन इस लिये भी कि इतनी व्यस्तता मे भी आप हमारा मार्गदर्शन तो करते ही हैं हमे अपनी संस्कृ्ति और शास्त्रों से भी परिचित करवा रहे हैं अगली कडी का उन्तज़ार रहेगा आभार और सेहत के लिये शुभकामनायें्

निर्मला कपिला ने कहा…

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निर्मला कपिला ने कहा…

अदभुत अक्सर जितने भी आलेख ऐसे गम्भीर और हमाते शा्स्त्रों से सम्बँधित होते हैं चो इतनी कठिन भाशा और अभिव्यक्ति मे होते हैं कि मेरे जैसे लोग उसेाधा अधूरा हे सम्झ पाते हैं मगर आपका् आलेख इतना प्रवाहमय और सरल है कि इसमे रुची और बढ गयी है और ऐसी जानकारी आज की पीढी के लिये बहुत लाभदायक है आपकी इस प्रतिभा को भी मेरा नमन इस लिये भी कि इतनी व्यस्तता मे भी आप हमारा मार्गदर्शन तो करते ही हैं हमे अपनी संस्कृ्ति और शास्त्रों से भी परिचित करवा रहे हैं अगली कडी का उन्तज़ार रहेगा आभार और सेहत के लिये शुभकामनायें्

दीपक कुमार भानरे ने कहा…

श्रीमान जी संख्या दर्शन के बारे मैं जानकारी देने की जो पहल आपने की है बहुत ही सराहनीय है . आगे के अंक की प्रतीक्षा रहेगी .
धन्यवाद .

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

स्वामी चिन्मयानन्द हमारी विजिटिंग फेकल्टी थे। सांख्य सिखाने में उन्होने बहुत मेहनत की। पर हम भोंठ थे और रहे!

Ashok Kumar pandey ने कहा…

सांख्य के बारे में अभी जो आपने बताया वह आगे की उतकण्ठा बढाता है…

अगली क़िस्त का इंतज़ार रहेगा

Abhishek Ojha ने कहा…

ये अच्छी श्रृखला शुरू की आपने.

Shastri JC Philip ने कहा…

हिन्दु धर्मदर्शन पर मैं ने काफी लिखा है. उदाहरण के लिये

http://knol.google.com/k/shastri-jc-philip/hinduism-and-the-hindu-society-a/3aw752rt3ywhc/31?domain=knol.google.com&locale=en#

बचपन से अध्यायन भी करता आ रहा हूँ. अत: सांख्य पर आप जो कुछ भी लिख रहे हैं वह मेरे लिये बेहद उपयोगी है.

सस्नेह -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

Unknown ने कहा…

Its vary good not only for hindus but also for all the indian and outside to know about our rich cultur. I think you should be go on like this and post all the related knowledge that you can. If you need some help or knowledge regarding any thing please let me know I will definately try to arrange it for you.

Unknown ने कहा…

Thanks a lot for this valuable post keep it on.