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शनिवार, 2 दिसंबर 2023

एग्नोडिस : प्राचीन ग्रीस की पहली स्त्री चिकित्सक

प्राचीन ग्रीस में, स्त्रियों के लिए चिकित्सा का अध्ययन करना वर्जित था। 300 ईस्वी पूर्व में जन्मी, एग्नोडिस ने अपने बाल काटे और एक पुरुष के रूप में वस्त्र धारण करके अलेक्जेंड्रिया मेडिकल स्कूल में प्रवेश किया।


अपनी चिकित्सा शिक्षा पूरी करने के बाद एथेंस की सड़कों पर चलते समय, एग्नोडिस ने प्रसव पीड़ा में तड़प रही एक स्त्री की कराहट सुनाई दी। वह उस स्त्री के यहाँ पहुँच गयी। दर्द से कराहती स्त्री नहीं चाहती थी कि एग्नोडिस उसे छुए क्योंकि उसे लगा कि वह एक पुरुष है। किन्तु एग्नोडिस ने अपने कपड़े उतारकर साबित किया कि वह एक स्त्री है। उसने प्रसव कराया जिससे स्त्री ने बच्चे को जन्म दिया।

इस घटना का समाचार स्त्रियों में फैल गया और सभी महिलाएं जो बीमार थीं, एग्नोडिस के पास जाने लगीं। ईर्ष्यालु, पुरुष डॉक्टरों ने एग्नोडिस पर जिसे वे पुरुष मानते थे, आरोप लगाया कि उसने महिला रोगियों को धोखा दिया है। एग्नोडिस पर अदालत में मुकदमा चलाया गया और उसे मौत की सजा सुना दी। तब एग्नोडिस ने बताया कि वह एक स्त्री है, पुरुष।

यह जानने पर कि उसने स्त्री होते हुए भी पुरुष वेश धारण कर चिकित्सा अध्ययन किया है एग्नोडिस को स्त्री होते हुए भी छद्म पुरुष वेश धारण करने के लिए मौत की सजा सुना दी गयी। तब स्त्रियों ने विद्रोह कर दिया जिसमें सजा सुनाने वाले न्यायाधीशों की पत्नियाँ भी सम्मिलित थीं।

कुछ ने कहा कि अगर एग्नोडिस को मृत्युदंड दे दिया गया, तो वे उसके साथ अपने प्राण भी त्याग देंगी। अपनी पत्नियों और अन्य स्त्रियों के दबाव का सामना करने में असमर्थ, न्यायाधीशों ने एग्नोडिस को दोष मुक्त कर दिया। तब से स्त्रियों को भी चिकित्सा का अभ्यास करने की अनुमति दी गई, बशर्ते कि वे केवल स्त्रियों की देखभाल करें।

एग्नोडिस ने इतिहास में पहली स्त्री चिकित्सक और स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में अपनी पहचान बनाई।

शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

धन्वन्तरि जयन्ती

आज धन्वन्तरि जयंती है। कहते हैं धन्वन्तरि उज्जयनी के राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्न थे। उन्हें विष्णु का एक अवतार भी कहा जाता है।

यह भी कहते हैं कि 800 या 600 वर्ष ईसा पूर्व प्राचीन काल के महान शल्य चिकित्सक सुश्रुत ने धनवन्तरि से वैद्यक की शिक्षा ग्रहण की थी।

इसी तरह की बहुत सी विरोधाभासी सूचनाएँ हैं जो विभिन्न माध्यमों में मिल जाती हैं।

मनुष्य आदिकाल से बीमारियों और स्वास्थ्य रक्षा के लिए प्रयत्न करता रहा है। जिसने जो खोजा, जो ज्ञान प्राप्त किया उसे आने वाली पीढ़ी को हस्तान्तरित कर दिया। मोर्य और गुप्त काल में जब चिकित्साशास्त्र को संहिताबद्ध किया जा रहा था तो इस विद्या के लिए एक काल्पनिक देवता का आविष्कार कर लिया गया जिसे धन्वन्तरि कहा गया। पुराणों में धन्वन्तरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन से कही जाती है। जब समुद्र मंथन का आख्यान रचा गया। चिकित्सा के व्यवसाय में अधिकांश ब्राह्मण ही थे। पुराणों की रचना के दौरान मनुष्य का समस्त ज्ञान और कृतित्व ईश्वर को समर्पित कर दिया गया। तभी चिकित्सा के लिए हुए तब तक के तमाम प्रयास और प्राप्त ज्ञान को भी ईश्वर को समर्पित कर दिया गया।

दादाजी थोड़े बहुत, और पिताजी पूरे वैद्य थे। मैंने भी आयुर्वेद की शिक्षा ग्रहण की। दिल्ली विद्यापीठ से वैद्य विशारद किया और आयुर्वेदिक चिकित्सालय में इन्टर्नशिप भी की। बचपन से ही निकट के आयुर्वेद औषधालयों में धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरि की पूजा होती देखी है और उन पूजाओं में शामिल भी हुआ हूँ। यह पूजा भारतीय चिकित्साशास्त्र में अपना योगदान करने वाले तमाम चिकित्सकों का स्मरण और आभार प्रकट करने का अवसर है। इस अवसर का हमें कभी त्याग नहीं करना चाहिए। जब से धनतेरस का मिथक धन-संपदा के साथ जुड़ा है तब से धन्वन्तरि को लोग विस्मृत करते चले जा रहे हैं। आज धन्वन्तरि का स्मरण करने वाले बहुत उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। दूसरी ओर बाजार आज जगमग है, भारी भीड़ है। लोग एक दूसरे से सटे हुए निकल रहे हैं।

आज धन्वन्तरि जयन्ती के इस अवसर पर भारत के तथा दुनिया भर के चिकित्सकों और चिकित्साशास्त्र में अपना योगदान करने वाले तमाम वैज्ञानिकों का आभार प्रकट करता हूँ। अनन्त शुभकामनाएँ कि सभी को चिकित्सा और स्वास्थ्य प्राप्त हो।