कल शाम गुजरात के मोरबी में हुई दुर्घटना आज टीवी पर छायी हुई है। दुर्घटना बहुत बड़ी है। अब तक 134 लोगों के मरने और 100 से अधिक के घायल होने की पुख्ता जानकारी है। लापता लोगों की जानकारी भी लापता है।
यह कोई 100 बरस पुराना पुल है। इसे मरम्मत के लिए कोई सात माह पहले बन्द किया गया था। मरम्मत का ठेका एक कंपनी को दिया था। जिसका काम इलेक्ट्रोनिक घड़ियाँ और अन्य इलेक्ट्रोनिक वस्तुओं के उत्पादन का काम है। पर मुनाफा कमाने के लिए कंपनियाँ कैसे भी काम कर लेती हैं। इस ठेके में मरम्मत और अगले अनेक वर्षों के लिए पुल की देखभाल और संचालन का काम भी सम्मिलित है। कंपनी उस पर प्रवेश के लिए 17 रुपए प्रति व्यक्ति भी वसूल कर रही है।
यह पुल मात्र साढ़े चार फुट के लगभग चौड़ा है। इस पर एक व्यक्ति पैदल आ रहा हो तो शेष स्थान बस इतना बचता है कि सामने से आने वाला दूसरा व्यक्ति बगल से निकल जाए। यदि दो व्यक्ति साथ चल रहे हों तो सामने से आने वाले व्यक्ति को जाने देने के लिए एक व्यक्ति को हट कर दूसरे के पीछे आना पड़ेगा। इस पुल को तीन दिन पहले खोल दिया गया। आश्चर्य की बात है कि पुल पर तीन दिन से एक बार में सैंकड़ों अर्थात 500 व्यक्ति उस पुल पर चढ़ रहे थे। जबकि पुल की क्षमता 100 व्यक्तियों द्वारा एक बार में उपयोग करने की है। ऐसा लगता है रखरखाव रखने वाली कंपनी ने पुल को यातायात के साधन के रूप में नहीं बल्कि एक पर्यटन स्थल के रूप में बदल दिया था और कमाई कर रही थी। यह तथ्य भी सामने आयी है कि मरम्मत के बाद पुल को चालू करने के पहले नगर पालिका से एनओसी प्राप्त करनी थी और नगर पालिका ने ऐसी अनुमति नहीं दी थी पुल उसके बिना ही उपयोग में लिया जा रहा था। इस का मुख्य कारण कारपोरेट द्वारा मुनाफे के लालच से जनता की असीम लूट ही है।
नगर पालिका की ड्यूटी थी कि यदि पुल को बिना अनुमति चालू कर दिया था तो उसके उपयोग को रुकवाती और यह सुनिश्चित करती कि एक बार में उस पर 100 से अधिक लोग न चढ़ सकें। नगर पालिका के पास स्टाफ होता है जो अवैध निर्माण और संचालन पर निगाह रखता है। पर देश भर के नगर निकायों के तमाम ऐसे निगरानी स्टाफ पूरी तरह से भ्रष्टाचार में ऊब डूब है। जो पांच दस प्रतिशत ईमानदार स्टाफ है वह ठेकेदारों और उनसे संबंधित राजनीतिक लोगों द्वारा प्रतिशोध लेने से भयभीत रहता है और ऐसी घटनाओं से आँख मूंद लेता है। इसी कारण हर शहर में अवैध इमारतों, निर्माणों की भरमार हो चुकी है। फुटपाथ तो दुकानदारों की बपौती है। उस पर उन्हीं का माल फैला रहता है। यहाँ तक कि फुटपाथ के बाद का स्थान पार्किंग से भरा रहता है। सड़क पर यातायात अक्सर फँसा रहता है। जनता यह सब बर्दाश्त करती रहती है।
लेकिन जब राजनीतिक लोगों और पूंजीपतियों ठेकेदारों का भ्रष्टाचारी गठजोड़ लोगों की जाने लेने लगे तो जनता तत्काल उफनने लगती है। यह उफान भी सोडावाटरी होता है। तत्काल पुलिस ठेकेदार के कुछ कर्मचारियों को गिरफ्तार कर मुकदमा बनाती है। लेकिन पीछे पीछे भ्रष्टाचारी गठजोड़ काम करता रहता है। जो मुकदमे बनाए जाते हैं उनमें सबूत होते ही नहीं या फर्जी होते हैं। दसियों साल मुकदमा चलने के बाद सारे मुलजिम बरी हो जाते हैं। राजनीतिक लोगों और पूंजीपतियों ठेकेदारों का भ्रष्टाचारी गठजोड़ बना रहता है।
गुजरात में सारा प्रशासन भाजपा के हाथों में है केन्द्र् में भी उनकी सरकार है। प्रधानमंत्री का मन भटक कर टूटे पुल के पीड़ितों के आसपास भटक रहा है जाँच की घोषणा कर दी गयी है। लेकिन कोई राजनेता यह नहीं कह रहा है कि ठेकेदार, पालिका और सरकारी कर्मचारियों के साथ साथ उनसे यह सब काम करवाने में लिप्त रहे राजनेता भी दंडित किए जाएंगे। कौन अपनी माँ को डाकिन कहता है।
दो चार दिन हल्ला रहेगा। फिर चुनाव होगा। परिणाम आ जाएंगे। अफसर कर्मचारी जिन पर मुकदमा किया जाएगा वे सब बरी हो जाएंगे। किसी राजनेता पर कोई आँच नहीं आएगी और जनता फिर सो कर खर्राटे लेने लगेगी या फिर हिन्दू मुसलमान करते हुए धर्म की अफीम की पिनक में डूब जाएगी।
यह पुल मात्र साढ़े चार फुट के लगभग चौड़ा है। इस पर एक व्यक्ति पैदल आ रहा हो तो शेष स्थान बस इतना बचता है कि सामने से आने वाला दूसरा व्यक्ति बगल से निकल जाए। यदि दो व्यक्ति साथ चल रहे हों तो सामने से आने वाले व्यक्ति को जाने देने के लिए एक व्यक्ति को हट कर दूसरे के पीछे आना पड़ेगा। इस पुल को तीन दिन पहले खोल दिया गया। आश्चर्य की बात है कि पुल पर तीन दिन से एक बार में सैंकड़ों अर्थात 500 व्यक्ति उस पुल पर चढ़ रहे थे। जबकि पुल की क्षमता 100 व्यक्तियों द्वारा एक बार में उपयोग करने की है। ऐसा लगता है रखरखाव रखने वाली कंपनी ने पुल को यातायात के साधन के रूप में नहीं बल्कि एक पर्यटन स्थल के रूप में बदल दिया था और कमाई कर रही थी। यह तथ्य भी सामने आयी है कि मरम्मत के बाद पुल को चालू करने के पहले नगर पालिका से एनओसी प्राप्त करनी थी और नगर पालिका ने ऐसी अनुमति नहीं दी थी पुल उसके बिना ही उपयोग में लिया जा रहा था। इस का मुख्य कारण कारपोरेट द्वारा मुनाफे के लालच से जनता की असीम लूट ही है।
नगर पालिका की ड्यूटी थी कि यदि पुल को बिना अनुमति चालू कर दिया था तो उसके उपयोग को रुकवाती और यह सुनिश्चित करती कि एक बार में उस पर 100 से अधिक लोग न चढ़ सकें। नगर पालिका के पास स्टाफ होता है जो अवैध निर्माण और संचालन पर निगाह रखता है। पर देश भर के नगर निकायों के तमाम ऐसे निगरानी स्टाफ पूरी तरह से भ्रष्टाचार में ऊब डूब है। जो पांच दस प्रतिशत ईमानदार स्टाफ है वह ठेकेदारों और उनसे संबंधित राजनीतिक लोगों द्वारा प्रतिशोध लेने से भयभीत रहता है और ऐसी घटनाओं से आँख मूंद लेता है। इसी कारण हर शहर में अवैध इमारतों, निर्माणों की भरमार हो चुकी है। फुटपाथ तो दुकानदारों की बपौती है। उस पर उन्हीं का माल फैला रहता है। यहाँ तक कि फुटपाथ के बाद का स्थान पार्किंग से भरा रहता है। सड़क पर यातायात अक्सर फँसा रहता है। जनता यह सब बर्दाश्त करती रहती है।
लेकिन जब राजनीतिक लोगों और पूंजीपतियों ठेकेदारों का भ्रष्टाचारी गठजोड़ लोगों की जाने लेने लगे तो जनता तत्काल उफनने लगती है। यह उफान भी सोडावाटरी होता है। तत्काल पुलिस ठेकेदार के कुछ कर्मचारियों को गिरफ्तार कर मुकदमा बनाती है। लेकिन पीछे पीछे भ्रष्टाचारी गठजोड़ काम करता रहता है। जो मुकदमे बनाए जाते हैं उनमें सबूत होते ही नहीं या फर्जी होते हैं। दसियों साल मुकदमा चलने के बाद सारे मुलजिम बरी हो जाते हैं। राजनीतिक लोगों और पूंजीपतियों ठेकेदारों का भ्रष्टाचारी गठजोड़ बना रहता है।
गुजरात में सारा प्रशासन भाजपा के हाथों में है केन्द्र् में भी उनकी सरकार है। प्रधानमंत्री का मन भटक कर टूटे पुल के पीड़ितों के आसपास भटक रहा है जाँच की घोषणा कर दी गयी है। लेकिन कोई राजनेता यह नहीं कह रहा है कि ठेकेदार, पालिका और सरकारी कर्मचारियों के साथ साथ उनसे यह सब काम करवाने में लिप्त रहे राजनेता भी दंडित किए जाएंगे। कौन अपनी माँ को डाकिन कहता है।
दो चार दिन हल्ला रहेगा। फिर चुनाव होगा। परिणाम आ जाएंगे। अफसर कर्मचारी जिन पर मुकदमा किया जाएगा वे सब बरी हो जाएंगे। किसी राजनेता पर कोई आँच नहीं आएगी और जनता फिर सो कर खर्राटे लेने लगेगी या फिर हिन्दू मुसलमान करते हुए धर्म की अफीम की पिनक में डूब जाएगी।