अनवरत
क्या बतलाएँ दुनिया वालो! क्या-क्या देखा है हमने ...!
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रविवार, 24 जनवरी 2010
बीज ही वृक्ष है।
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मे रे एक मित्र हैं, अरविंद भारद्वाज, आज कल राजस्थान हाईकोर्ट की जयपुर बैंच में वकालत करते हैं। वे कोटा से हैं और कोई पन्द्रह वर्ष पहले तक को...
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शनिवार, 23 जनवरी 2010
झाड़ू ऊँचा रहे हमारा
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ना टक शिवराम की प्रमुख विधा है। नाटकों की आवश्यकता पर उन्हों ने अनेक गीत रचे हैं। ऐसा ही उन का एक गीत ...... आनंद लीजिए, गुनिए और समझिए.... ...
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गुरुवार, 21 जनवरी 2010
आज किसी ने बताया नहीं, कि बसंत पंचमी है
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मुझे पता था आज बसंत-पंचमी है। पर न जाने क्यों लग रहा था कि आज बसंत पंचमी नहीं है। शायद मैं सोच रहा था कि कोई आए और मुझ से कहे कि आज बसंत पं...
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मंगलवार, 19 जनवरी 2010
खुद को कभी कम्युनिस्ट नहीं कहूँगा
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क ल एक गलती हो गई। भुवनेश शर्मा अपने गुरू श्री विद्याराम जी गुप्ता को बाबूजी कहते हैं। मैं समझता रहा कि वे अपने पिता जी के बारे में बात कर र...
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सोमवार, 18 जनवरी 2010
भविष्य के लिए मार्ग तलाशें
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अ नवरत पर कल की पोस्ट जब इतिहास जीवित हो उठा का उद्देश्य अपने एक संस्मरण के माध्यम से आदरणीय डॉ. रांगेव राघव जैसे मसिजीवी को उन के जन्मदि...
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रविवार, 17 जनवरी 2010
जब इतिहास जीवित हो उठा
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1 976 या 77 का साल था। मैं बी. एससी. करने के बाद एलएल.बी कर रहा था। उन्हीं दिनों राजस्थान प्रशासनिक सेवा के लिए पहली और आखिरी बार प्रतियोगी ...
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शनिवार, 16 जनवरी 2010
जेब से पैसे निकालो
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शिवराम की यह कविता सारी बात खुद ही कहती है- पढ़िए और गुनिए .... .. जेब से पैसे निकालो शिवराम इस कटोरे में हुजूर कुछ न कुछ डालो देख...
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