मुझे पता था आज बसंत-पंचमी है। पर न जाने क्यों लग रहा था कि आज बसंत पंचमी नहीं है। शायद मैं सोच रहा था कि कोई आए और मुझ से कहे कि आज बसंत पंचमी है। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अक्सर इन त्योहारों का महिलाओं को खूब ध्यान रहता है। पत्नी शोभा मेरे बिस्तर से उठने के पहले ही स्नान कर चुकी थी, बाल भी धोए थे और सूखने के लिए खुले छोड़े हुए थे। मैं ने सोचा वह जरूर कह देगी कि आज बसंत पंचमी है। पर उस ने भी कुछ नहीं कहा। सुबह नेट पर ब्लाग पढ़ता हूँ। वहाँ इस विषय पर कुछ नजर नहीं आया। मेरे यहाँ दो अखबार नियमित रूप से आते हैं। उन में बसंत-पंचमी तलाशता रहा। लेकिन दोनों अखबारों में बसंत पंचमी का उल्लेख नहीं था। मैं ने ऊब कर अखबार छोड़ दिए। मैं दस बजे तक स्नानघर में नहीं घुसा। सोचा अब तो पत्नी जरूर कह ही देगी कि त्योहार कर के स्नान में देरी कर रहे हो। लेकिन फिर भी उस ने नहीं कहा और चुपचाप अपने भगवान जी की पूजा में लग गई। मैं नहा कर निकला तो वह मेरे लिए भोजन तैयार कर रही थी। मैं तैयार होता उस के पहले उस ने भोजन परोस दिया। मैं अदालत के लिए निकल लिया।
आज शहर में चेंपा की भरमार थी। शायद सरसों की फसल कटने लगी थी और वे करोड़ों-अरबों की संख्या में बेघर हो शहरों की तरफ उड़ आए थे। यह उन की यह अंतिम यात्रा थी और शायद वे जीवनलीला समाप्त होने के पहले जी भर कर स्वतंत्रता से उड़ लेना चाहते थे। मैं शहर में पैदा हुआ और तब से अधिकतर शहरों में ही रहा हूँ। लेकिन मैं ने कभी शहर की तरफ आते सियार को नहीं देखा। हाँ कभी यात्रा में रात के समय वाहन की रोशनी में जंगल के बीच से निकल रही सड़क पर अवश्य दिखे। शायद इंसानों की मुहावरेबाजी से वे बहुत पहले ही यह सीख चुके हैं कि शहर की और जाना मौत बुलाना है और उन्हों ने शहर की ओर भागना बंद कर दिया है। मुझे लगता है मुहावरा बदल डालना चाहिए और कहना चाहिए "जब मौत आती है तो चेंपा शहर की और उड़ता है।" अदालत में आज कुछ काम नही हुआ। अधिकतर अदालतों में जज नहीं थे। शायद वसंतपंचमी का ऐच्छिक अवकाश था जिसे उन्होने काम में लिया था। दोपहर तक सब काम निपट गया। दो बार मित्रों के साथ बैठ कर कॉफी भी पी ली। लेकिन किसी ने उल्लेख नहीं किया कि आज बसंत पंचमी है।
अदालत से आते समय एक दफ्तर भी गया, जहाँ एक कवि-मित्र नौकरी में हैं। उन्हों ने भी कुछ नहीं कहा। मैं घर पहुँचा तो वहाँ ताला पड़ा था। शोभा कहीं निकल गई थी। मैं अपनी चाबी से ताला खोल अंदर आया। नैट खोला तो वहाँ कुछ पोस्टें बसंत पर दिखाई पड़ी। मन को कुछ संतोष हुआ, चलो कुछ लोगों को तो पता है कि आज बसंत पंचमी है। वर्ना मुझे तो लगने लगा था कि इस बार बसंत पंचमी जल्दी पड़ रही है इस कारण सभी उसे भूल गए हैं। इस बीच दफ्तर में कोई आ गया। उस का काम निपटा कर बाहर निकला तो देखता हूँ। बाहर कचनार पर आठ-दस सफेद फूल खिले हैं और वह कह रहा है, बसंत आ चुका है। कुछ देर बाद शोभा लौट आई। हमने साथ कॉफी पी। मैं फिर अपने काम में लग गया। निपटा तो रात हो चुकी थी। अंदर गया तो शोभा भगवान जी की आरती उतार रही थी। उस ने भगवान जी का घर फूलों से सजा रखा था। मैं मन ही मन मुसकाया, चलो मुझे नहीं कहा कि आज बसंत पंचमी है लेकिन उसे पता तो है। कुछ देर बाद भोजन के लिए तैयार हो मेज पर पहुँचा तो शोभा भोजन लगा चुकी थी। वह भगवान जी के यहां से एक पात्र उठा कर लाई। उस में पीले रंग के चीनी की चाशनी में पके बासमती चावल थे, जिन से महक उठ रही थी। मैं ने उसे कहा -तो तुम्हें पता था, आज बसंत पंचमी है? मुझे क्यों नहीं बताया? कहने लगी -आप को खुद पता होना चाहिए, यह बात भी मुझे बतानी होगी क्या?
दैनिक जागरण में आज फ्रंट पेज पर राखी सावंत की एक खबर थी.... पर सच में बसंत पंचमी की नहीं .... मुलायम कैसे शेर बने और लात खाए.... फोटो समेत खबर थी..... पर बसंत पंचमी की नहीं.... दो IAS गाँव में फँस गए.... खबर थी... लेकिन बसंत पंचमी की नहीं... एक I-Next नाम का अखबार है... हिंदी मिश्रित अंग्रेजी.. या vice-versa कह लीजिये .... वो कहता है कि HAPPY BASANT PANCHMI....बताइए.... अब तो सांस्कृतिक पर्व भी अंग्रेजी त्योहारों की तर्ज पे HAPPY हो गए.... हाँ! ब्लॉग्गिंग में लोगों ने इतना याद दिलाया ... इतना याद दिलाया... कि दिमाग फट गया... ..
जवाब देंहटाएंबताईये, किसी अखबार तक में नहीं...हमें मालूम होता कि आप ऐसे मायूस होंगे तो हम ही फोन कर देते. :)
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ.
हाँ आपको तो पता होना था -ये चेपा क्या होता है ?
जवाब देंहटाएंहमने तो सुबह ही मीठे पीले चावल खाये थे .सरस्वती जी की पूजा के बाद
जवाब देंहटाएंबासंती चावल ही बसंत आने की निशानी है, बहुत सुंदर-आभार
जवाब देंहटाएंचेंपा बोले तो माहू.
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी को लेकर यहां तो दैनिक भास्कर ने सुबह ही चेता दिया था. लेकिन इस कड़ाके की सर्दी में अधिक कुछ उत्सव नहीं हो सका.
भाभी का कहना ठीक है उन्होंने वर्षों तक आपको डायरी आधारित दिनचर्या में देखा है ... फिर बसंत की पेशी कब होगी वो क्यों बतायें ?
जवाब देंहटाएंजय हिन्दी ब्लॉगरी!
जवाब देंहटाएं@
मुझे क्यों नहीं बताया? कहने लगी -आप को खुद पता होना चाहिए, यह बात भी मुझे बतानी होगी क्या?
भाभी जी की जय!
क्रिसमस के पहले ससुरे हमरे ऑफिस ब्वाय तक बिना माँगे केक ठूँसने के फिराक में रहते हैं (इसे किसी धरम से न जोड़ा जाय, प्लीज)।
बसंत पंचमी के दिन दुपहर तक अगोरा फिर हुक़्म दिया - पीली मिठाई लै आओ, खिलाओ सभन को, बताओ आज बसंत पंचमी है।
क्या जमाना है! याद दिलाना पड़ता है।
आप के लेख का प्रवाह, सहजता और आत्मीयता निरख रहा हूँ।
ये लो...आपको तो बस शिकायत करने से मतलब है. हमने कल सुबह ही आपको बसंत पंचमी की बधाई दी थी, अब दुबारा ले लिजिये.
जवाब देंहटाएंभाभी जी का कहना सही है कि आपको अब स्वयम ध्यान रखना चाहिये. कोई बच्चे य्होडे ही रह गये अब?:)
रामराम.
ऐसे-कैसे????
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ.
ब्लॉग पर तो वंसत पंचमी की भरमार थी, सा'ब.
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंवेसे हमे भी नही पता चलता,. बीबी ने रात को बताया की आज बसंत पंचमी है, इन तीस सालो मै हम ने एक भी त्योहार भारत मै नही मनाया, जब कि मजा तो भारत मै ही है.
फ़िर से बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ
मैंने तो कुछ लोगों को याद दिलाया और साथ में ये भी कहा कि वैलेनटाइन होता तब तो पता होता. कई लोगों ने इसके लिए मीडिया को दोष दिया जो मुझे सही नहीं लगा. खैर... अपने पास आईपॉड में पंचांग नहीं होता तो शायद घर से फोन आने पर ही पता चला होता !
जवाब देंहटाएंमाँ सरस्वती का दिन याद नहीम ये कैसे हो सकता था आपको नहीं भूल सकता था। बसंत पंचमी की शुभकामनायें
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