सर्किट हाउस तिराहे से अदालत की ओर मुड़ना था पर
वहाँ सिपाही लगे थे और सब को सीधे निकलने का इशारा कर रहे थे। सिपाहियों
के पीछे सर्किट हाउस के गेट से कुछ आगे सड़क के बीचों बीच शामियाना तना हुआ
था और रास्ता बन्द था। अब अदालत पहुँचने के लिए मुझे दो किलोमीटर का
चक्कर लगाना था। मैं ने सोचा, आज क्या है? फिर सुबह अखबार में पढ़ी खबर
का ध्यान आया कि आज विपक्ष के महंगाई विरोधी आंदोलन का अन्तिम दिन है और
पूरे देश में गिरफ्तारियाँ दी जा रही हैं। खैर, मैं घूम कर अदालत चौराहे
पहुँचा। आज किस्मत अच्छी थी, मुझे पार्किंग में जगह खाली मिल गई। चौराहे का
नक्शा बदला हुआ था। राजभवन और अदालत की ओर जाने वाले रास्तों पर बेरीकेड
लगे थे। दोनों ही रास्तों पर आज पार्किंग नहीं करने दी गई थी और आवागमन
बंद था। केवल शहर की ओर से आने वाला रास्ता खुला था। गिरफ्तारी वालों के
जलूस उधर से आ कर मंच के सामने एकत्र हो सकते थे, आ जाने के बाद खिसकने का
कोई रास्ता नहीं था। सब तरफ पुलिस जवान तैनात थे जिन में डंडा वालों से ले
कर बंदूक वाले तक थे। एण्टीरॉयट वाहन पोजीशन लिए खड़े थे। रोज पार्क
होने वाले वाहन न होने से अदालत वाली सड़क और दिनों की अपेक्षा चौगुनी
चौड़ी लग रही थी। अस्पताल वाली सड़क पर गिरफ्तार करने के बाद लोगों को ले
जाने के लिए बीसियों खाली बसें पंक्तिबद्ध खड़ी थीं।
करीब बारह बजे, मंच से उद्घोषणाएँ आरंभ हो
गईं, ... मंच के दाईं तरफ का स्थान पत्रकारों के लिए है, कार्यकर्ता उन पर
न बैठें ... बाईं तरफ सब के लिए शीतल जल की व्यवस्था है ... आदि आदि। मैं
मंच की और झाँका तो मंच पर उद्घोषक के साथ दो-एक लोग थे, मंच के सामने
आठ-दस लोग खड़े थे बाकी दो सौ मीटर तक लोगों के बैठने के लिए बिछाए गए फर्श
खाली थे। इंतजाम देख कर मुझे लग रहा था जैसे दशहरे पर रावणवध का आयोजन
किया जा रहा हो।
एक बजे के लगभग ढोलों के बजने की आवाजें
आने लगीं। शायद जलूस निकट आ चुका था। तो मौके पर तैनात पुलिस वाले सतर्क
हो कर बेरीकेडस् के पास एकत्र होने लगे। तभी एक अफसर ने आ कर डंडा और बंदूक
वालों को एकत्र कर उन्हें कुछ निर्देश दिए। पुलिसवालों ने पोजीशन ले ली।
मेरे दिमाग में चित्र बनने लगे ... अभी महंगाई के कारण गुस्से से भरे लोग
आएंगे और बेरीकेडस् तोड़ कर कलेक्ट्री की ओर जाने की कोशिश करेंगे, पुलिस
वाले रोकेंगे, वे जबरन उधर जाने की जिद करेंगे, पुलिस वाले लाठियाँ
तानेंगे, तभी कोई पुलिस पर पत्थर फैंकेंगा। पुलिस वाले गुस्से में लाठियाँ
चलाने लगेंगे। कुछ भगदड़ होगी, लेकिन लोग भागेंगे नहीं, फिर डट जाएंगे। तब
एण्टीरॉयट वाहन से पानी की बौछारें छोड़ी जाएंगी। सारे रास्ते पानी फैलेगा।
लोग भागने लगेंगे, कुछ वहीं फिसल कर गिर पडेंगे। गिरे हुए लोगों को अधिक
लाठियाँ खानी पड़ेंगी, नेता और उन के कुछ चमचे फिर भी अड़े रहेंगे, उन्हें
गिरफ्तार कर लिया जाएगा ...
जलूस निकट आ गया। मंच से नारे लगने लगे।
मैं अदालत की सीमा में एक टेबल पर खड़ा हो देखने लगा। कुछ लोग ढोल बजा रहे
थे, कुछ नाचते हुए तेजी से आगे बढ़ रहे थे। लगा अभी बेरीकेड को टक्कर
मारेंगे और वह गिर पड़ेगा। पर ऐसा कुछ न हुआ। जलूस चौराहे पर बने सर्कल से
मंच की ओर मुड़ गया। लोग मंच के आगे जा कर बैठने लगे। ये सब देहात वाले थे।
कुछ देर बाद नगर वालों का जलूस भी आ पहुँचा। वह भी देहात वालों की नकल
करता हुआ मंच की तरफ मुड़ गया। मंच के सामने कम लोग बैठे। ज्यादातर ने पानी
के इंतजाम के आसपास भीड़ लगा दी। मंच से फिर निर्देश दिए जाने लगे,
पत्रकारों का स्थान खाली रखना है, वहाँ केवल पत्रकार ही बैठें; पानी एक-एक
कर लें, भीड़ न लगाएँ, आदि आदि। पन्द्रह मिनट बाद सभा जमी, मंच से भाषण
होने लगे। केन्द्र और राज्य की सरकारों को कोसा जाने लगा। जनता की दुर्दशा
का बखान होने लगा। पौन घंटे में सब नेता निपट लिए। फिर घोषणा हुई कि सब
अनुशासन पूर्वक गिरफ्तारी देंगे, किसी तरह की वायलेंस नहीं करेंगे। लोग
खड़े हो गए, पुलिस भी सतर्क हो गई। लोग सीधे गिरफ्तारी के बाद बैठाए जाने
वाली बसों की ओर दौड़ पड़े। कुछ बस में चढ़े, कुछ बसों में जगह खाली होने
पर भी उन की छतों पर चढ़ गए। छत का आनंद अलग होता है। बसें चल पड़ीं। बसों
में पुलिस एक भी नहीं थी जिस की लोगों को एक फर्लांग आगे जा कर लोगों को
सुध आई। लोगों ने बस रुकवा दी और उतर कर वापस लौट लिए। फिर पुलिस ने
उन्हें दूसरी बसों में बैठाया गया। इस बार डंडे वाली पुलिस दो-दो जवान भी
हर एक बस में चढ़े। बहुत से लोग ऐसे भी थे जो किसी बस में नहीं चढ़े वे
पैदल ही खिसक लिए। पुलिस ने उन्हें खिसकने दिया। बीसेक मिनट में चौराहा
खाली हो गया। केवल पुलिस वाले रह गए। किसी अफसर ने इशारा किया तो मजदूर आ
गए और बेरिकेडस् हटाने लगे।
अगले दिन अखबारों में आंदोलन के चित्र
छपे, चित्र ऐसे थे कि दो तीन सौ आदमी भी हजारों नजर आएँ। यह भी छपा था कि
लोगों को पास के स्टेडियम के पास ले जा कर छोड़ दिया गया। गिरफ्तार होने
वाले आँकड़ों पर बहस छिड़ी थी। पुलिस ने गिरफ्तार लोगों की संख्या 300 बताई
जब कि नेता कह रहे थे 1873 लोग गिरफ्तार हुए, बसें कम पड़ गईं। नेता जी का
बयान छपा था- महंगाई मौजूदा
सरकार की गलत नीतियों के कारण बढ़ रही है। आमजन के लिए जीवन यापन चुनौती बन
गया है। हमारा महंगाई विरोधी अभियान का आज अंतिम दिन था। अभियान भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन विपक्ष सरकार की गलत नीतियों का विरोध करता रहेगा।
गोया, कर्मकाण्ड की एक खानापूर्ति हो गई। अन्त भला सो सब भला।
जवाब देंहटाएंसरकारी काम...
जवाब देंहटाएंसरकारी आँकड़े
वाह सर क्या पटका है और क्या धोया है । पने तो पूरा पोस्टमार्टम कर दिया इसका । एकदम सटीक रिपोर्ट धर दी है । बढिया
जवाब देंहटाएंसन्नाट..
जवाब देंहटाएंयह तो आपके लिए आये दिन के अनुभव हैं कभी कुछ तनी अलग किस्म के भी
जवाब देंहटाएंतो आजकल आप विरोध के मूड मे हैं। लगे रहिये शायद सरकार जाग जाये।
जवाब देंहटाएंवाह! गज़ब का चित्रण
जवाब देंहटाएंआपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि पत्रकार भी ऐसा ही लिखना चाहता है। खरी खरी। लेकिन छुटभैये नेता पीछे पीछे ऑफिस तक आ जाते हैं।
जवाब देंहटाएंऐसी मालिश चंपी करते हैं, भाईजी थे तो समझो हो। इत्ता हो ग्या जिका ही घणा है।
आधे घंटे तक उसकी लानत मलामत करने के बाद पत्रकार भी छोड़ देता है। आखिर में खबर में यही लिखा जाता है कि सरकारी आंकड़े यह कह रहे हैं और नेता यह कह रहे हैं।
पब्लिक भी सब जानती है... :)