ईरान के बादशाह का किस्सा जिसे फ्रेंक्विस बर्नियर ने अपनी किताब में जगह दी, मैं अपने वायदे के मुताबिक कल आप के पेश-ए-नजर नहीं कर सका था। लेकिन आज कोई बाधा नहीं है। तो देर किस बात की? शुरू करते हैं ....
ईरान के प्रसिद्ध बादशाह शाह अब्बास ने कहीं अपने महल मेंबगीचा लगाने की आज्ञा दी थी और इस काम के लिए एक दिन भी नियत कर चुका था। बादशाही बागवान भी मेवे के कुछ वृक्षों के लिए एक उचित स्थान चुन चुका था। परन्तु बादशाही ज्योतिषी ने नाक-भौं चढ़ा कर कह दिया कि यदि सायत निकाले बिना वृक्ष लगा दिए जाएंगे तो कदापि नहीं फूलेंगे-फलेंगे। बादशाह शाह अब्बास ने नजूमी की बात मान कर सायत निकालने को कहा तोउस ने पाँसा आदि डाला और अपनी पुस्तक के पृष्ठ उलट-पलट कर हिसाब लगाया और कहा कि नक्षत्रों के अमुक अमुक स्थानों में होने के कारण जान पड़ता है कि दूसरी घड़ी के बीतने के पहले ही वृक्ष लगा दिए जाएँ।
बादशाही बागवान जो नजूमियों तथा ज्योतिषियों से कुछ पूछना व्यर्थ समझता था इस समय उपस्थित नहीं था। अतः इस के बिना ही कि उस के आने की प्रतीक्षा की जाए, गड्ढे खुदवाए गए और बादशाह ने अपने हाथों से वृक्षों को स्थान स्थान में लगा दिया। ताकि पूर्व स्मृति की रीति पर कहा जाए कि ये वृक्ष स्वयं शाह अब्बास ने अपने हाथों लगाए थे। इधर बागवान जो अपने समय पर तीसरे पहर आया तो वृक्षों को लगा हुआ पा कर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। और यह विचार कर के कि वे उस क्रम से नहीं लगाए गए हैं जैसे उस ने विचारा था, जिस से उसे उन के पोषण में सुभीता रहता। उस ने सभी पौधों को उखाड़ कर उन की जगह मिट्टी डाल कर रख दिया। रात भर वृक्ष इसी तरह रखे रहे।
ज्योतिषी से किसी ने जा कर यह बात कह दी। इस का परिणाम यह हुआ कि वह बादशाह के पास जा कर बागवान की इस कार्यवाही के लिए बुरा-भला कहने लगा। अपराधी बागवान को उसी समय बुलाया गया। बादशाह ने उस से अत्य़न्त क्रोध के साथ उस से कहा - "तू ने यह क्या हरकत की कि जिन दरख्तों को हम ने नेक सायत निकलवा कर अपने हाथ से लगाया था उन को ही उखाड़ डाला। अब क्या उम्मीद है कि इस बाग का कोई दरख्त फल लाएगा, क्यों कि जो नेक सायत थी वह तो गुजर गई और फिर नहीं आ सकती।"
बागवान एक स्पष्टवादी गँवार मुसलमान था। नजूमी की ओर तिरछी दृष्टि डाल कर बोला -"अरे! कमबख्त बदशकुनी,जरा ख्याल तो कर कि यही तेरा नजूम है कि जो दरख्त तेरे कहने से दोपहर को लगाए गए थे वे शाम से पहले ही उखड़ गए?" शाह अब्बास आकस्मिक रूप से मजेदार बात सुन कर एकदम हँस पड़ा। और ज्योतिषी की तऱफ पीठ कर के वहाँ से चला गया।
कल की पोष्ट मे यह कहानी इसलिये नही आयी क्योंकि सही मूहुर्त नही था। आज मुहुर्त बन गया और कहानी आ गयी !
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उखाड़ने के बाद वही पुनः लगाने का आदेश भी मिला होगा...फलने फूलने के लिये...
जवाब देंहटाएंबागवान की बात में दम था :)
जवाब देंहटाएंबागवान ने एकदम सही कहा... बल्कि यहाँ तो बागवान ही अक्लमंद है...
जवाब देंहटाएंरोचक किस्सा है.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
मजेदार किस्सा :)
जवाब देंहटाएंबहुत मनोरंजक भाई जी ...
जवाब देंहटाएंऐसे दुर्लभ किस्सों का इंतज़ार रहेगा !
बागवान की सूझ बूझ तो सहाी है पर उन वृक्षों का क्या हुआ..........................
जवाब देंहटाएंमजेदार किस्सा
जवाब देंहटाएंअरे! कमबख्त बदशकुनी,जरा ख्याल तो कर कि यही तेरा नजूम है कि जो दरख्त तेरे कहने से दोपहर को लगाए गए थे वे शाम से पहले ही उखड़ गए?
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वाह! क्या सिम्पल लॉजिक है!
सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंश्रम से उपजे जीवन के समृध्द अनुभव किसी भी नजूमी की बडी से बडी भविष्यवाणी से अधिक सच होती हैं।
जवाब देंहटाएंबोध कथा ने आनन्द ला दिया।
शुभकामनायें होली की भाई जी !
जवाब देंहटाएंरोचक!!
जवाब देंहटाएंहोली की अनंत शुभकामनाएं!!
वाह !! काश ऐसे बागवान हमारे मुल्क में भी फूले फले ताकि नजूमियों, ज्योतिषियों के बखेड़ों से रियाया आज़ाद हो !!
जवाब देंहटाएंरोचक किस्सा और विचारणीय भी
जवाब देंहटाएंअन्धविश्वासों के पीछे यही किस्से होते हैं लेकिन देख कर भी न देखने वालों को कौन समझाये!
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