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शुक्रवार, 4 मार्च 2011

शमशेर के साहित्य को उन के जीवन और समकालीन सामाजिक यथार्थ की पृष्ठभूमि में समझा जाना चाहिए

शमशेर जन्म शताब्दी पर कोटा में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी की रपट
पिछले माह 12-13 फरवरी को कवि शमशेर बहादुर सिंह की शताब्दी वर्ष पर राजस्थान साहित्य अकादमी और 'विकल्प जन सांस्कृतिक मंच द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी 'काल से होड़ लेता सृजन' संपन्न हुई। कल आप ने इस संगोष्ठी रिपोर्ट के पूर्वार्ध  में पहले दिन का हाल जाना। आज यहाँ संगोष्ठी की रिपोर्ट का उत्तरार्ध प्रस्तुत है ... 
मुख्य अतिथि का स्वागत करते कवि ओम नागर
बोलते हुए महेन्द्र 'नेह'
गले दिन 13 फरवरी का पहला सत्र ‘शमशेर की कविताओं में जनचेतना’ विषय पर था। जिस का  आरंभ ओम नागर की कविता ‘काट बुर्जुआ भावों की बेड़ी’ से आरंभ हुआ। इस सत्र में. बीना शर्मा ने कहा कि शमशेर को ऐंद्रिकता, दुर्बोधता और सौंदर्य का कवि कह कर पल्ला नहीं छुड़ा सकते। हम उन के समूचे काव्य कर्म का मूल्यांकन करें तो वहाँ पाएंगे कि पीड़ित जन की पीड़ा की अभिव्यक्ति उन के काव्य का केंद्र है। अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि उन के लेखन का मानवीय पक्ष बहुत सशक्त है, वे रूस की समाजवादी क्रांति से प्रभावित हुए और अंत तक श्रमजीवी जनता के लिए लेखन करते रहे। जयपुर से आए प्रेमचंद गांधी ने कहा कि वे सचेत जनपक्षधरता के कवि ही नहीं थे अपितु जनसंघर्षों में जनता के साथ सक्रिय रूप से खड़े थे। उन के जन का अर्थ बहुत व्यापक है। वे पूरी दुनिया के जन की बात करते हैं। वे आजादी के दौर में ही पूरी दुनिया के जन की मुक्ति की बात करते हैं। उन के काव्य की अमूर्तता अनेक स्तरों पर बोलती है। जब उस के अर्थ खुलते हैं तो दो पंक्तियों में पूरी दुनिया दिखाई देने लगती है। उन की कविता का दर्शन पूरी दुनिया कि जन की मुक्ति का दर्शन है। इस सत्र का मुख्य वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए शैलेंद्र चौहान ने कहा कि शमशेर वामपंथी तो हैं, लेकिन वे वाम चेतना को पचा कर रचनाकर्म करते हैं। वे एक सम्पूर्ण कलाकार के रूप में सामने आते हैं जो अन्य ललितकलाओं के रूपों को कविता में ले आते हैं। इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे मनु शर्मा ने कहा कि शमशेर के साहित्य को समझने के लिए चित्रकला को समझना जरूरी है। उन का चित्रकला का अभ्यास उन की कविता में रूपायित हुआ है। इस सत्र का सफल संचालन डॉ. उषा  झा ने किया।
डॉ. हरे प्रकाश गौड़
महत्वपूर्ण प्रतिभागी हितेष व्यास, शकूर अनवर, नन्द भारद्वाज और उन के पीछे शैलेन्द्र चौहान
संगोष्ठी का चौथा सत्र ‘शमशेर : जीवन, कला और सौंदर्य’ विषय पर था। इस विषय को खोलते हुए कवि-व्यंगकार अतुल कनक ने कहा कि शमशेर की रूमानियत व्यक्तिगत नहीं अपितु सत्यम शिवम् सुंदरम है। डॉ. राजेश चौधरी ने कहा कि शमशेर ने अपनी हर रचना के साथ कला का नया प्रयोग किया, इसी से उन्हें दुर्बोध कहना उचित नहीं। साहित्यकार रौनक रशीद ने कहा कि शमशेर को दुरूह कहना उन के साथ अन्याय करना है वे ग़ज़ल जैसी परंपरागत विधा के साथ पूरा न्याय करते हैं और पूरी तरह सहज हो जाते हैं। वरिष्ठ ब्लागर दिनेशराय द्विवेदी ने उन की कविताएँ ‘काल से होड़’ और ‘प्रेम’ प्रस्तुत करते हुए कहा कि शमशेर का अभावों से परिपूर्ण जीवन अभावग्रस्त जनता के साथ उन का तादात्म्य स्थापित  करता था। उन के साहित्य में जीवन साधनों से ले कर प्रेम और सौंदर्य के अभाव की तीव्रता पूरी संश्लिष्टता के साथ प्रकट होती है। डॉ. नन्द भारद्वाज ने कहा कि शमशेर के साहित्य को उन के जीवन और समकालीन सामाजिक यथार्थ की पृष्ठभूमि में समझा जाना चाहिए, ऐसा करने पर दुरूह नहीं रह जाते हैं। इस सत्र के अध्यक्ष सुरेश सलिल ने सब से महत्वपूर्ण पत्र वाचन करते हुए बताया कि शमशेर में मानवीय सौंदर्य से राजनैतिक दृष्टि का विकास दिखाई देता है, उन्हें समझने के लिए हम साहित्य के पुराने प्रतिमानों से काम नहीं चला सकते। हमें उन के लिए नए प्रतिमान खोजने होंगे। इस सत्र संचालन अजमेर से आए कवि अनंत भटनागर ने किया।
सुसज्जित सभागार और प्रतिभागी
     संगोष्ठी के समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि व केन्द्रीय साहित्य अकादमी (राजभाषा) के सदस्य अम्बिकादत्त ने कहा कि शमशेर बहादुर सिंह का साहित्य यह चुनौती प्रस्तुत करता है कि समीक्षा के औजारों में सुधार किया जाए और आवश्यकता होने पर नए औजार ईजाद किए जाने चाहिए। यही कारण है कि शमशेर के साहित्य को व्याख्यायित करने की आवश्यकता अभी तक बनी हुई है और आगे भी बनी रहेगी। समापन सत्र में ‘शमशेर का गद्य और विचार भूमि’ विषय पर डॉ.गीता सक्सेना, कवियित्री कृष्णा कुमारी, साहित्यकार भगवती प्रसाद गौतम तथा डॉ. विवेक शंकर ने पत्र वाचन किया तथा कथाकार विजय जोशी ने अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। इस सत्र का संचालन करते हुए विकल्प के अध्यक्ष महेन्द्र नेह ने कहा कि केवल शमशेर ही हैं जो यह बताते हैं कि किस तरह एक महत्वाकांक्षी लेखक अपनी परंपरा, विश्वसाहित्य का सघन अध्ययन करते हुए तथा जनता के साथ तादात्म्य स्थापित करते हुए वाल्मिकी, तुलसी, शेक्सपियर जैसा महान साहित्यकार बन सकता है।
    इस संगोष्ठी का आयोजन कोटा की प्राचीनतम संस्था भारतेंदु समिति के भवन पर किया गया था। भारतेंदु समिति ने इस के लिए संगोष्ठी स्थल की सज्जा स्वयं की थी। संगोष्ठी पुराने नगर के मध्य में आयोजन का लाभ यह भी रहा कि आम-जन भी इस में उपस्थित होते रहे। इस आयोजन में आगे बढ़ कर आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले वरिष्ठ नागरिक जवाहरलाल जैन ने सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि इस संगोष्ठी ने उन्हे पुराने दिन याद दिला दिये हैं जब इसी भवन में साहित्यकार अक्सर ही एकत्र हो कर साहित्य आयोजन करते थे और आम लोग उन में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे। वे चाहते हैं कि कोटा में इस तरह के आयोजन होते रहें। देश के महत्वपूर्ण रचनाकार यहाँ आते रहें और उन के बीच नगर के रचनाकारों को सीखने और अपना विकास करने का वातावरण मिले और जनता भी उन से प्रेरणा प्राप्त करे। उन्हों ने बाबा नागार्जुन का अनायास कोटा में आ निकलने और पूरे पखवाड़े तक यहाँ जनता के बीच रहने का उल्लेख करते हुए कहा कि इस वर्ष नागार्जुन की जन्म शताब्दी भी है और उन पर भी एक बड़ा आयोजन करना चाहिए। उस के लिए जो भी सहयोग चाहिए उसे के लिए वे तैयार हैं।

नन्द भारद्वाज
संगोष्ठी के अंत में सब ने यह महसूस किया कि शमशेर बहादुर सिंह के रचनाकर्म को न केवल पढ़ना जरूरी है, अपितु उस का गहरा अध्ययन जनता के मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिए नए कलारूपों का द्वार खोल सकता है।

10 टिप्‍पणियां:

  1. संगोष्ठी के अंत में सब ने यह महसूस किया कि शमशेर बहादुर सिंह के रचनाकर्म को न केवल पढ़ना जरूरी है, अपितु उस का गहरा अध्ययन जनता के मनोभावों की अभिव्यक्ति के लिए नए कलारूपों का द्वार खोल सकता है।संगोष्ठी के अंत में सबने ऐसा सोचा तो समझिये संगोष्ठी सफ़ल!

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  2. बहुत ही प्रभावशाली रिपोर्टिंग। आभार।

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  3. कुछ भी हो, इस मत में थोड़ा सा चुटकी बराबर पूंजीवाद मिल जाये तो ठीक हो जाये... अन्यथा यह सफल तो रूस में नहीं हो सका.... बाकी ठीक है.. रिपोर्ट बढ़िया है..

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