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मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

सरस्वती मेरे भीतर वास करती है ...

ब मैं छोटा था, यही करीब चार-पाँच बरस का, और खुद ठीक से  नहाना नहीं सीख सका था। यदि खुद नहाना होता था तो सर्दी में उस का मतलब सिर्फ यही होता था कि दो लोटा गरम पानी बदन पर डाल कर उसे गीला किया और तौलिए से पोंछ लिया। लेकिन गर्मी में उस का मतलब नदी पर जाना और घंटों तैरते रहना, जब तक कि मन न भर जाए, या कोई बड़ा डाँट कर बाहर निकलने को न कहे। यही कारण था कि कम से कम सर्दी के मौसम में नहलाने का काम माँ किया करती थी। अब भी कम से कम सात-आठ बरस का होने तक बच्चों को नहलाने की जिम्मेदारी माओं को ही उठानी पड़ती है, और शायद हमेशा उठानी पड़ती रहे। फरवरी में जब सर्दी कम होने लगती तो माँ नहाने को बुलाती, मैं पानी में हाथ डाल कर कहता -पानी कम गरम है। तब माँ मुझे पकड़ती और झट से एक लोटा पानी मेरे सर पर डाल देती। फिर मुझे मेरी पुस्तक में छपा वह गीत गाने को बोलती ...
आया वसंत, आया वसंत 
वन उपवन में छाया वसंत 
गेंदा और गुलाब चमेली 
फूल रही जूही अलबेली
देखो आमों की हरियाली 
कैसी है मन हर्षाने वाली 
जाड़ा बिलकुल नहीं सताता
मजा नहाने में है आता ......
ब तक मैं गीत पूरा सुनाता, माँ मुजे नहला कर तौलिए में लपेट चुकी होती थी। वसंत के दिन कोशिश की जाती कि हलके पीले रंग के कपड़े पहने जाएँ। दादा जी मंदिर में पीले रंग के वस्त्र ही ठाकुर जी को पहनाते। उस दिन भोग में मीठा केसरिया भात बनता। मंदिर में वसंत का उत्सव होता, गुलाल के टीके लगाए जाते और केसर का घोल दर्शनार्थियों पर छिड़का जाता। अपने कपड़ों पर वे पीले छींटे देख लोग प्रसन्न हो जाते। केसरिया भात का प्रसाद ले कर लोग घर लौटते। स्कूल में भी  आधा दिन पढ़ाई के बाद वसंत पंचमी मनाई जाती। एक ओर देवी सरस्वती की तस्वीर रखी होती तो दूसरी ओर महाकवि निराला की। बालकों को निराला के बारे में बताया जाता। 
क अध्यापक थे नाम मुझे अब स्मरण नहीं पर वे हमेशा हर सभा में अवश्य बोलते। वसंत पंचमी पर वे कहते "आज प्रकृति का उत्सव है, उस प्रकृति का जो हमें सब कुछ देती है, हमें पैदा करती है, उल्लास और जीवन देती है। आज निराला का जन्मदिन है और आज ही माँ सरस्वती की पूजा का दिन भी। लेकिन सरस्वती की पूजा वैसे नहीं होती जैसे और लोग करते हैं। उस की पूजा करनी है तो ज्ञान अर्जित करो और उस ज्ञान का स्वयं के पालन और समाज की बेहतरी के लिए काम करो।"  वे आगे कहते "जानते हो सरस्वती कहाँ रहती है? नहीं जानते। मैं बताता हूँ। सरस्वती हम सब के भीतर रहती है। दुनिया में कोई नहीं जिस के भीतर सरस्वती का वास न हो, बस लोग इसे मानते नहीं हैं। वह ज्ञानार्जन और अभ्यास से प्रसन्न होती है। जो जिस चीज का अधिक अभ्यास करता है वही उस में प्रवीण हो जाता है। इतना समझा कर वे वृन्द कवि का दोहा सुनाते ...
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान॥


15 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छा संस्मरण॥ बसंत पंचमी की शुभकामनाएं॥

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  2. बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. सरस्वती हम सब के भीतर रहती है। उस की पूजा करनी है तो ज्ञान अर्जित करो और उस ज्ञान का स्वयं के पालन और समाज की बेहतरी के लिए काम करो।"

    काश आज भी अध्यापक ऐसे ही संदेश दें...और छात्र भी उसे आत्मसात करें
    वसंत पंचमी की शुभकामनाएं

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  4. ओह सर आपने क्या क्या याद दिला दिया । लगता है अब तो हमें भी वसंत पंचमी की यादों पर एक पोस्ट लिखनी ही पडेगी ..

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  5. हमारी मां भी इसी तरह से नहलाती थी, ओर हमारी बीबी भी हमारे बच्चो को इसी तरह से ही नहलाती थी, बहुत कुछ याद आ गया,बहुत सुंदर चित्र, धन्यवाद....बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

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  6. बसंतपंचमी को निराला का जन्मदिन भी, इससे सुन्दर उपहार कहाँ मिलेगा माँ शारदे द्वारा, अपने पुत्र को ही भेज दिया।

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  7. निराला ही है यह वसंत का उत्‍सव.

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  8. प्रकृति भी माँ की तरह दुलारती है।

    बसंत पंचमी की शुभकामनाएं।

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  9. निराला और बसंत की याद तो जैसे अन्योनाश्रित हो गयी हो

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  10. माँ सरस्वती हम सबके मन में सदा वास करें.वसन्तोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  11. काश आज भी अध्यापक ऐसे ही संदेश दें..

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  12. "Uski pooja karni hai to gyan arjit
    karo aur us gyan ka swayam ke paalan aur samaaj ki behatri ke liye kaam karo"
    Ati sundar seekh mili hai aapko
    jo aapne is lekh ke maadhyam se hamko bhi di.Shukriya.

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