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बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

जिन्दा तो रहूँगा

मेरे विचार में किसी रचनाकार का परिचय देने की आवश्यकता नहीं होती। आप परिचय में क्या बता सकते हैं? उस की कद-काठी, रंग-रूप, खानदान, शिक्षा, वर्तमान जीविका और उस ने अब तक क्या लिखा है, कितना लिखा है और कितना प्रकाशित किया है और कितने सम्मान मिले हैं ... आदि आदि। लेकिन यह उस का परिचय कहाँ हुआ। उस का असली परिचय तो उस की रचनाएँ होती हैं। यदि मधुशाला न होती तो कोई हरिवंशराय बच्चन को जानता? या रामचरित मानस न होती तो तुलसीदास किसी गुमनामी अंधेरे में खो गए होते धनिया व गोबर जैसे पात्र नहीं होते तो लोग प्रेमचंद को बिसरा चुके होते। 
सा ही एक रचनाकार है, वह कॉलेज में कुछ साल पीछे था, तो सोच भी न सकते थे कि वह लोगों के मन को पढ़ने  जबर्दस्त हुनर रखता होगा, कि उस में जीवन के प्रति इतना अनुराग होगा, और वह हर कहीं से जीवन-राग और उस की जीत का विश्वास तलाश कर लाएगा और आप के सामने इस तरह खड़ा कर देगा कि आप उसे सुनने को बाध्य हो जाएंगे। अम्बिकादत्त ऐसे ही रचनाकार हैं। उन के बारे में  आज और अधिक कुछ न कहूँगा।  आने वाले दिनों में उन की कविताएँ ही उन का परिचय देंगी। यहाँ प्रस्तुत हैं उन की कविता 'जिन्दा तो रहूंगा' ...

जिन्दा तो रहूँगा
  • अम्बिकादत्त

मेरे मरने की बात मत करो
पृथ्वी पर संकट है और मनुष्य मुसीबत में है
ये ही बातें तो मुझे डराती हैं
मेरे सामने इस तरह की बातें मत करो
तुम ने मुझ से मेरा सब कुछ तो छीन लिया
मेरे पास घर नहीं है/रोटी भी नहीं है
सिर्फ भूख और सपने हैं
मैं अपनी जीभ से अपना ही स्वाद चखता रहता हूँ/फिर भी
सपनों के लिए मैं ने अपनी नींद में जगह रख छोड़ी है
मैं भूख में भले ही अपने जिस्म को खा लूँ 
पर अपनी आत्मा बचाए रखूंगा 
मैं कमजोर हूँ, कायर नहीं हूँ
देखना जिन्दा तो रहूंगा। 

 






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16 टिप्‍पणियां:

  1. kya bat he dinesh bhai aek aek kr hadoti ke hire dhundhe ja rhe hen ambikaa dtt ji prshasnik adhikari ki vystta ke bad bhi itna akuchh likhte hen bhut khub he aap ka achyn shi he shukriya . akhtar khan akela kota rajsthan

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  2. आज पहली बार आपके ब्लाग पर आया हूँ अच्छा लगा
    अम्बिकादत्त जी की कविता भी बहुत अच्छी लगी
    आगे भी पढना चाहूंगा

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  3. श्री अम्बिकादत्तजी की ये प्रस्तुति लीक से हटकर लगी । निश्चय ही ये पाठकों को कुछ अलग सा अहसास करवा पाएंगी ।

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  4. जब जिन्दगी डराती है तो बिल्ली की तरह पीछे हट कर दीवार टटोलनी होती है। बहुत सुन्दर कविता।

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  5. मैं भूख में भले ही अपने जिस्म को खा लूँ
    पर अपनी आत्मा बचाए रखूंगा
    मैं कमजोर हूँ, कायर नहीं हूँ
    देखना जिन्दा तो रहूंगा।

    अंबिकादत्त जी के इस लघु परिचय के लिये आपका आभार, रचना जबरदस्त जोश, उत्साह और उमंग से भरी है. भविष्य में और भी रचनाएं पढने को मिलेगी. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  6. एक और अच्छा काम किया आपने हमें यह कविता पढ़ाकर..

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  7. श्री अम्बिकादत्तजी जी की रचना बहुत ही सुंदर लगी धन्यवाद

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  8. बहुत ही उम्दा लगी यह कविता...

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  9. अम्बिकादत्त जी का स्वागत है

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  10. कथन, कविता और चित्र के बीच का तालमेल बिठाना मुश्किल लगा.

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  11. मैं भूख में भले ही अपने जिस्म को खा लूँ
    पर अपनी आत्मा बचाए रखूंगा
    जबरदस्त कविता। निश्चित रूप से ये लाइनें लेखक को अन्य से अलग करती हैं। आपका आभारी।

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  12. मैं भूख में भले ही अपने जिस्म को खा लूँ
    पर अपनी आत्मा बचाए रखूंगा
    मैं कमजोर हूँ, कायर नहीं हूँ
    देखना जिन्दा तो रहूंगा।
    सच मे ऐसा व्यक्ति किसी परिचय का मोहताज नही होता। क्यों कि ऐसे व्यक्तित्व बचे ही कितने हैं दुनियाँ मे? बहुत प्रेरक और सार्थक रचना है। श्री अम्बिकादत्त जी को शुभकामनायें< बधाई।

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  13. मैं भूख में भले ही अपने जिस्म को खा लूँ
    पर अपनी आत्मा बचाए रखूंगा
    मैं कमजोर हूँ, कायर नहीं हूँ
    देखना जिन्दा तो रहूंगा।

    ऐसे ही व्यक्तित्व अमर होते हैं।पढवाने के लिये आभार्।

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  14. सुन्दर अभिव्यक्ति और अंबिकादत्त जी की बढ़िया रचना प्रस्तुति...आभार

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