तिरेसठ बरस पहले बर्तानियाई संसद का एक कानून इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट, 1947 लागू हुआ, और हम आजाद हो गए। हमारे देश पर अब बर्तानिया का नियंत्रण नहीं रह गया था। लेकिन हम दो देश बन गए थे। एक इंडिया और दूसरा पाकिस्तान। केवल एक गवर्नर जनरल छूट गया था। तकरीबन ढाई बरस में हमने अपना संविधान बना कर लागू किया और उसे भी अलविदा कह दिया। हम अब पूरी तरह आजाद थे। पूरी तरह खुदमुख्तार। हमने देश बनाना शुरू किया और आज तक बना ही रहे हैं। हमने जो कुछ बनाया है हमारे सामने है। महेन्द्र 'नेह' ने इन बारह दोहों में अपने बनाए देश की पड़ताल की है।
आप भी गुनगुनाइये ये दोहे .......
महेन्द्र 'नेह' के बारह 'दोहे'
तू बामन का पूत है, मेरी जात चमार
तेरे मेरे बीच में, जाति बनी दीवार।।
वो ही झाड़ू हाथ में, वही तगारी माथ।
युग बदले छूटा नहीं, इन दोनों का साथ।।
हरिजन केवल नाम है, वो ही छूत अछूत।
गांधी चरखे का तेरे, उलझ गया है सूत।।
अब मजहब की देह से, रिसने लगा मवाद।
इन्सानों के कत्ल का, नाम हुआ जेहाद।।
युग बदले छूटा नहीं, इन दोनों का साथ।।
हरिजन केवल नाम है, वो ही छूत अछूत।
गांधी चरखे का तेरे, उलझ गया है सूत।।
अब मजहब की देह से, रिसने लगा मवाद।
इन्सानों के कत्ल का, नाम हुआ जेहाद।।
फिर मांदो में भेड़िये, फिर से बिल में साँप।
लोक-तंत्र में जुड़ रही, फिर पंचायत खाँप।।
घोड़े जैसा दौड़ता, सुबह शाम इंसान।
नहीं चैन की रोटियाँ, नहीं कहीं सम्मान।।
फुटपाथों पर चीखता, सिर धुनता है न्याय।
न्यायालय में देवता, बन बैठा अन्याय।।
सत्ता पक्ष-विपक्ष हैं, स्विस-खातों में दोय।
काले-धन की वापसी, आखिर कैसे होय।।
जिसने छीनी रोटियाँ, जिसने छीने खेत।
वोट उसी को दे रहे, कृषक मजूर अचेत।।
कहने को जनतंत्र है, सच में है धन-तंत्र।
आजादी बस नाम की, जन-गण है पर-तंत्र।।
चिंदी-चिंदी बीनती, फिर भी नहीं हताश।
वह कूड़े के ढेर में, जीवन रही तलाश।।
चलो चलें फिर से करें, नव-युग का आगाज।
लहू-पसीने से रचें, शोषण-हीन समाज।।
वह कूड़े के ढेर में, जीवन रही तलाश।।
चलो चलें फिर से करें, नव-युग का आगाज।
लहू-पसीने से रचें, शोषण-हीन समाज।।
वाह गजब की कविता है, धन्यवाद आपको
जवाब देंहटाएंह्रदय को छू लेने वाले दोहे !
जवाब देंहटाएंजबरदस्त दोहे!
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.
सादर
समीर लाल
अब मजहब की देह से, रिसने लगा मवाद।इन्सानों के कत्ल का, नाम हुआ जेहाद।।
जवाब देंहटाएंचिंदी-चिंदी बीनती, फिर भी नहीं हताश। वह कूड़े के ढेर में, जीवन रही तलाश।।
ये दोनों तो कमाल के दोहे हैं । महेंद्र नेह के दोहे
पढवाने का बहुत बहुत धन्यवाद ।
वाह गजब की कविता है,
जवाब देंहटाएंमाकूल दोहे...
जवाब देंहटाएंहर एक घर में दिया भी जले अनाज भी हो
अगर ना हो कहीं ऐसा तो एहतिजाज भी हो
हुकुमतों को बदलना तो कुछ मुहाल नहीं
हुकुमतें जो बदलता हो वो समाज भी हो
इन दोहों में देश का सत्य खोल कर रख दिया है।
जवाब देंहटाएंनेह जी हमेशा ही अपने शब्दों को दिल तक उतार देते हैं। सटीक दोहे। स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें बधाई।
जवाब देंहटाएंगजब आं की तासिर, नेह जी के दोहे।
जवाब देंहटाएंसांची बातां लिखी, मेरे मनड़ा नै मोहे॥
राम राम सा
स्वतंत्रता दिवस की घणी घणी बधाई
सभी चित्र ओर कविता आज की सचाई है, मै कल से सभी को बधाई संदेश तो दे रहा हुं लेकिन दिमाग मै एक ही प्रशन घुम रहा है कि क्या हम आजाद हो गये है सच मै क्या भारत ने सच मै विकास कर लिया है,,, इस सुंदर ओर मन के तारो को छूने वाली कविता के लिये नेः साहब का धन्यवाद ओर आप का धन्यवाद जो आप ने हम तक पहुचाई. धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दोहे ....
जवाब देंहटाएंdesh aur samaj ki kadvi hiqiqak bayan karate dohe.
जवाब देंहटाएंdesh aur samaj ki kadvi hiqiqak bayan karate dohe.
जवाब देंहटाएंजिसने छीनी रोटियाँ, जिसने छीने खेत।
जवाब देंहटाएंवोट उसी को दे रहे, कृषक मजूर अचेत।।
चिंदी-चिंदी बीनती, फिर भी नहीं हताश।
वह कूड़े के ढेर में, जीवन रही तलाश।।
यूँ तो सारे ही दोहे खास है ...मगर मुझे ये दो बहुत ही भाये ...!
महेंद्र नेह से परिचय कराने के लिए शुक्रिया ..बेहतरीन लिखते हैं यह ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंसच को बयाँ करते शानदार दोहे दिल को छू गये…………आभार्।
जवाब देंहटाएंबनते बनते बिगड़ गई दॆश की तकदीर :(
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता के लिए आभार।
जिन्दा दोहे बॉंच कर, झनझना गई देह।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद दिनेशजी, धन्य-धन्य है नेह।।
फुटपाथों पर चीखता, सिर धुनता है न्याय।
जवाब देंहटाएंन्यायालय में देवता, बन बैठा है अन्याय।।
में चौथे चरण में 'है' नहीं होगा।
दोहे अच्छे लगे।
@चंदन कुमार मिश्र
जवाब देंहटाएंचंदन जी आप की बात सही है। वहाँ "है" टाइपिंग की गलती से अधिक हो गया है। गलती दुरुस्त कर दी गई है।